जनसंख्या संबंधी प्राथमिकताएं: अंतरिम बजट 2024 और जनगणना

जनसंख्या संबंधी प्राथमिकताएं: अंतरिम बजट 2024 और जनगणना

स्त्रोत्र – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास , बजट , अंतरिम बजट , जनगणना , जनसंख्या नियंत्रण , प्रजनन दर, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, जनसांख्यिकीय लाभांश।

खबरों में क्यों ? 

  • केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अपने अंतरिम बजट भाषण कहा कि – “ तेजी से बढ़ती जनसंख्या और जनसांख्यिकीय बदलावों से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर विचार करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाएगा।”
  • केंद्र सरकार द्वारा बार-बार दशकीय जनगणना को स्थगित किए जाने की पृष्ठभूमि में इस कथन के समर्थन में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है। 
  • भारत में सन 1881 के बाद यह पहली बार हुआ है जब किसी दशक में जनगणना नहीं कराया गया है। 
  • वर्तमान में भारत की जनसंख्या लगभग 1 अरब 40 करोड़ है ।
  • ,वर्ष 2020 में हुए नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (2019-21) यह दर्शाता है कि भारत में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) गिरकर 2 हो गई है। 
  • वर्तमान समय में भी कुछ राज्यों – बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) और मणिपुर (2.17) – का प्रजनन दर (टीएफआर) राष्ट्रीय प्रजनन दर (टीएफआर) की औसत दर से अधिक अर्थात  2.1 है। 
  • अब 20वीं शताब्दी में देखी गई उच्च जनसंख्या वृद्धि में लगभग नियंत्रण कर लिया गया है। 
  • सन 1950 की प्रजनन दर (टीएफआर)  5.7 से कम होकर अब वर्ष  2020 में प्रजनन दर (टीएफआर) 2 हो गया है, हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में यह आंकड़ा अलग-अलग है। 
  • भारत के दक्षिण के राज्यों की जनसंख्या में हिस्सेदारी 1951 में 26 फीसदी से घटकर 2011 में 21 फीसदी हो गई है, जो मुख्य रूप से बेहतर सामाजिक-आर्थिक परिणामों और शिक्षा की वजह से टीएफआर में तेजी से आई कमी का नतीजा है और यह स्थिति इन राज्यों में उच्च प्रवासन दर के बावजूद है। 
  • भारत की वर्तमान उल्लिखित सर्वेक्षण ठोस और जरुरी हैं, फिर भी वे व्यापक जनगणना का विकल्प नहीं हैं। जनगणना कराने में हो निरंतर देरी केंद्रीय गृह मंत्रालय की खराब स्थिति को दर्शाती है, जो भारतीय शासन के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के बजाय अन्य प्राथमिकताओं से प्रेरित है।
  • भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव और बढ़ती जीवन प्रत्याशा दर के फलस्वरूप कई चुनौतियां और कुछ अवसर भी उपस्थित हुए हैं। 
  • किसी भी विकासशील देश में जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ तभी मिलता है, जब उस देश की  कामकाजी उम्र की आबादी का अपेक्षाकृत उच्च अनुपात के लिए पर्याप्त नौकरियां हों और लोग कुछ हद तक उन सामाजिक सुरक्षाओं का लाभ उठा पायें, जो बढती उम्र के बावजूद भी उनके लिए मददगार साबित हों। 
  • उच्च बेरोजगारी और उत्पादकता में वृद्धि करने वाली व कुशल रोजगार की जरूरतों को पूरा करने वाली गैर-कृषि नौकरियों के सृजन के पिछले कुछ सालों में अपेक्षाकृत सुस्त होने के कारण भारत में इस लाभांश के बर्बाद हो जाने की प्रबल संभावना है। 
  • अगर यह “उच्चाधिकार प्राप्त” समिति नौकरियों और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े सवालों तथा तेजी से हो रहे शहरीकरण व काम के मशीनीकरण के चलते नागरिकों के सामने आने वाली चुनौतियों का हल निकालने में सार्थक रूप से संलग्न होती है, तो वह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। लेकिन अगर यह समिति जनसंख्या को धर्म और आप्रवासन दृष्टि से देखती है, तो यह सिर्फ देश में तेजी से घटते लोकतांत्रिक लाभांश का सदुपयोग करने से शासन और सरकार को भटकाएगी।
  • वर्ष 2024 का अंतरिम बजट लोकसभा चुनाव से पहले पेश किया गया है , लेकिन यह 2019 के अंतरिम बजट के लोकलुभावन घोषणाएं से अलग है। 
  • वर्तमान सरकार का पूरा ध्यान देश में अवसंरचनात्मक या बुनियादी ढांचे के विकास पर केन्द्रित है। वित्त मंत्री ने कहा कि वो जुलाई बजट में विकसित भारत का विस्तृत रोडमैप पेश करेंगी।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार 1 फरवरी को अपने अंतरिम बजट भाषण में कहा- “ सरकार देश/ भारत  को सिर्फ 4 जातियों में बांटकर देखती है – महिला, किसान, युवा और गरीब।’”
  • इस बार अंतरिम बजट (Interim budget) सरकार की आवश्यक सेवाओं को जारी रखने के लिए पेश किया गया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस वर्ष अपना पहला अंतरिम बजट और भारत के वित्त मंत्री के रूप में छठवीं बार बजट पेश किया है।
  • वर्ष 2019 में पिछला अंतरिम बजट अरुण जेटली के बीमार पड़ने के बाद वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पेश किया था। मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सीतारमण को वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था। भारत के वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने 5 जुलाई, 2019 को पूर्ण बजट पेश किया था.। वर्ष 2019 में वित्त मंत्री के रूप में यह उनका पहला बजट था।

पूर्ण बजट और अंतरिम बजट में मुख्य अंतर : 

 

देश में होने वाले किसी भी आम चुनाव से ठीक पहले अंतरिम बजट पेश किया जाता है, जबकि पूर्ण बजट (यूनियन बजट) किसी भी चुनी हुई सरकार द्वारा संसद में पेश किया जाता है। पूर्ण बजट और अंतरिम बजट में मुख्य अंतर निम्नलिखित है – 

  1. पूर्ण बजट या केंद्रीय बजट केंद्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत किया जाने वाला एक वार्षिक बजट है, जबकि अंतरिम बजट आम चुनावों से ठीक पहले पेश किया जाता है।
  2. पूर्ण बजट या केंद्रीय बजट लोकसभा में पूरी चर्चा के बाद पारित किया जाता है, जबकि अंतरिम बजट को संसद में बिना किसी चर्चा के पेश किया जाता है. जिसे ‘वोट ऑन अकाउंट’ (Vote on the account) भी कहा जाता है।
  3. केंद्रीय बजट में पिछले वित्त वर्ष के आय और व्यय का विवरण विस्तार से दिया जाता है, जबकि अंतरिम बजट में पिछले वित्त वर्ष के आय और व्यय का एक सामान्य विवरण पेश किया जाता है. यह केवल सरकार की आवश्यक सेवाओं को जारी रखने के लिए पेश किया जाता है। 
  4. केन्द्रीय बजट हमेशा किसी पूरे एक वित्त वर्ष के लिए पेश किया जाता है, जिसे पूर्ण बजट भी कहा जाता है, जबकि अंतरिम बजट चुनावी वर्ष के दौरान, वित्तीय वर्ष के लगभग 3 से 4 महीने की अवधि के खर्चों के लिए पेश किया जाता है। 
  5. केन्द्रीय बजट में सरकार की ओर से कई नई योजनाओं की घोषणा भी की जाती है और इसके लिए फंड भी निर्धारित किये जाते है, जबकि अंतरिम बजट में किसी भी प्रकार की नई योजनाओं की घोषणा नहीं की जाती है।.
  6. केंद्रीय बजट के दो अलग-अलग भाग होते है. उनमें से एक सरकार के खर्चों के बारें में होता है वहीं दूसरा भाग सरकार द्वारा विभिन्न उपायों के माध्यम से धन जुटाने की योजना पर आधारित होता है, जबकि अंतरिम बजट में सरकार के आय के स्रोतों के विवरण की पूरी जानकारी नहीं दी जाती है।. इसे अगली सरकार के गठन से पहले के लिए सरकार के जरुरी खर्चों के लिए पेश किया जाता है.।
  7. पूर्ण बजट संसद में बहुमत प्राप्त सरकार द्वारा पेश किया जाता है, जबकि अंतरिम बजट अगले लोकसभा चुनाव और पिछली लोकसभा की समाप्ति के अवधि के दौरान वाले वर्ष में पेश किया जाता है।

वोट ऑन अकाउंट : 

लेखानुदान अंतरिम बजट (Interim Budget in Hindi) के माध्यम से पारित किया जाता है। यह  सरकार को वित्तीय – वर्ष के शेष दिनों के प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने की अनुमति देता है। इसे संसद के निचले सदन में बिना किसी बड़ी चर्चा के पारित किया जाता है। एक नियमित बजट के विपरीत जहां बजट उचित चर्चा के बाद ही पारित किया जाता है। यह उस समय की सरकार को अग्रिम अनुदान की तरह है जब तक किअनुदान की मांग पर मतदान नहीं हो जाता और वित्तीय विधेयक और विनियोग विधेयक संसद में पारित नहीं हो जाता। अनुदान की राशि सामान्यतः विभिन्न अनुदान मांगों के तहत पूरे वर्ष के लिए कुल अनुमानित व्यय का छठा हिस्सा होता है। एक वर्ष के लिए वैध नियमित बजट के विपरीत, लेखानुदान आमतौर पर दो महीने की अवधि के लिए वैध होता है।

अंतरिम बजट और लेखानुदान के बीच मुख्य अंतर : 

अंतरिम बजट और लेखानुदान बजट प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने में सरकार के उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है। अंतरिम बजट और लेखानुदान में प्रमुख अंतर निम्नलिखित है – 

  1. अंतरिम बजट (Interim Budget in Hindi) तब पारित किया जाता है जब सरकार के लिए आम चुनाव के समय पूर्ण बजट पेश करना संभव नहीं होता है। जबकि लेखानुदान अंतरिम बजट (Interim Budget in Hindi) के माध्यम से पारित किया जाता है। यह वित्तीय वर्ष के शेष भाग के खर्चों को पूरा करने के लिए दिन की सरकार के लिए संसदीय अनुमोदन चाहता है।
  2. अंतरिम बजट में प्राप्तियां और व्यय विवरण दोनों शामिल होते हैं। जबकि लेखानुदान केवल सरकार द्वारा वहन किए जाने वाले व्यय विवरणों को सूचीबद्ध करता है।
  3. बजट पर संसद के निचले सदन में चर्चा की जानी चाहिए और सरकार को अपने प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने की अनुमति देने के लिए इसे पारित किया जाना चाहिए। जबकि चूंकि लेखानुदान को एक औपचारिक मामले की तरह माना जाता है, इसलिए इसे संसद के निचले सदन द्वारा बिना किसी चर्चा के पारित किया जा सकता है।
  4. सरकार के पास बजट में भी कर प्रशासन में बदलाव करने का पर्याप्त अधिकार है। जबकि लेखानुदान को प्रत्यक्ष लागत में कोई परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। प्रत्यक्ष कर में कोई भी परिवर्तन केवल वित्त विधेयक द्वारा ही लाया जा सकता है।
  5. यह एक बजट की तरह है जो एक संक्रमण अवधि के लिए प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि इसे नियमित बजट की तरह ही पूरे साल के लिए पेश किया जाता है। जबकि लेखानुदान अंतरिम बजट (Interim Budget in Hindi) के माध्यम से पारित किया जाता है।

जनगणना : 

  • जनगणना का अर्थ – किसी भी देश के लोगों / नागरिकों की कुल संख्या की गिनती करना है। यह किसी भी देश के सभी व्यक्तियों के एक विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा एकत्र करने, उसके संकलन, विश्लेषण और प्रसारित करने की प्रक्रिया है।
  • यह जनसंख्या की विशेषताओं पर भी प्रकाश डालती है।
  • भारत में किया जाने वाला जनगणना पूरी दुनिया में किए जाने वाले सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक महत्वपूर्ण अभ्यास है।

क्रियान्वयन मंत्रालय :

  • भारत में भारत की दशकीय जनगणना का क्रियान्वयन  और संचालन भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय,द्वारा किया जाता है।
  • भारत की दशकीय जनगणना  भारत के गृह मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में सन 1951 में प्रत्येक दस वर्ष पर जनगणना के लिए  जनगणना संगठन की स्थापना की गई थी, जो भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय, भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत होता है।

जनगणना से जुड़े कानूनी/ संवैधानिक प्रावधान :

  • स्वतंत्र भारत में सबसे पहली बार भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा जनगणना अधिनियम, 1948 को विधेयक के रूप में पेश किया गया था।
  • भारत में  जनगणना  भारत के संघ सूची का विषय है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत उल्लिखित है। 
  • भारत में  पूरे देश भर में जनगणना का कार्य जनगणना अधिनियम, 1948 के उल्लिखित प्रावधानों के द्वारा किया जाता है।
  • भारत के संविधान में जनगणना भारत  की सातवीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है।

दंड का प्रावधान और एकत्र की गई सूचना की गोपनीयता की गारंटी  :

  • भारत सरकार द्वारा जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत व्यक्तियों / नागरिकों से जुटाई / एकत्र की गई सूचना को गोपनीयता की गारंटी दी जाती है। इस कानून के तहत सार्वजनिक और जनगणना अधिकारियों दोनों के लिए इस नियम गैर-अनुपालन करने की स्थिति में या अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है।
  • जनगणना के दौरान एकत्र की गई जानकारी इतनी गोपनीय होती है कि यह भारत के उच्चतम और उच्च न्यायालयों के लिए भी सुलभ नहीं होती है।

भारत में जनगणना का क्रमिक इतिहास : 

प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास :

  • भारत के प्राचीन साहित्य ‘ऋग्वेद’ से  भारत में 800-600 ईसा पूर्व के दौरान किए गए जनसंख्या गणना की जानकारी प्राप्त  होता है ।
  • कौटिल्य’ द्वारा लिखे गए ‘अर्थशास्त्र’ से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व ‘में किए गए  कराधान हेतु राज्य की नीति बनाने के एक उपाय के रूप में जनसंख्या के आँकड़ों का संग्रहण निर्धारित किया गया था की जानकारी प्राप्त होती है ।
  • मध्यकाल में मुगल बादशाह अकबर के शासन काल के प्रशासनिक रिपोर्ट ‘आइन-ए-अकबरी’ में भारत की जनसंख्या, उद्योग, धन और कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक आंकड़ों की जानकारी प्राप्त होती है ।

भारत के स्वतंत्रता – पूर्व  की जनगणना :

  • भारत में जनगणना का इतिहास लगभग 1800 ई. से शुरू हुआ जब इंग्लैंड ने अपनी जनगणना शुरू की थी।
  • भारत में जेम्स प्रिंसेप द्वारा इलाहाबाद (वर्ष 1824) और बनारस (वर्ष 1827-28) में जनगणना करवाई गई थी ।
  • एक भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना वर्ष 1830 में हेनरी वाल्टर द्वारा ढाका (अब बांग्लादेश में) में पूरी की गई थी।
  • फोर्ट सेंट जॉर्ज द्वारा वर्ष 1836-37 में भारत की दूसरी जनगणना पूरी करवाई गई थी ।
  • भारत सरकार ने स्थानीय सरकारों को वर्ष 1849 में जनसंख्या का पंचवर्षीय संचालन करने का आदेश दिया था ।
  • गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासन काल के दौरान वर्ष 1872 में भारत  की  पहली गैर-तुल्यकालिक जनगणना करवाई गई थी।
  • 17 फरवरी, 1881 को ब्रिटिश शासन के तहत डब्ल्यू.सी. प्लौडेन (भारत के जनगणना आयुक्त) द्वारा भारत की पहली तुल्यकालिक जनगणना करवाई गई।
  • भारत में यह तब से अब / वर्त्तमान समय तक हर दस साल में एक बार निर्बाध रूप से जनगणना की जाती रही है।

भारत में पहली जनगणना (वर्ष 1881):

  • भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के पूरे महाद्वीप (कश्मीर, फ्रेंच तथा पुर्तगाली उपनिवेशों को छोड़कर) की जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक विशेषताओं के वर्गीकरण पर विशेष बल देकर पहली बार जनगणना की गई थी ।

दूसरी जनगणना (वर्ष 1891):

  • भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान ही दूसरी जनगणना वर्ष 1881 में  पहले की तरह ही समान प्रणाली पर ही आयोजित की गई थी।
  • इसमें सभी लोगों को शत – प्रतिशत शामिल किया गया था और वर्तमान बर्मा के ऊपरी हिस्से, कश्मीर और सिक्किम को भी शामिल किया गया था।

तीसरी जनगणना (वर्ष 1901) :

  • भारत में तीसरी बार हुए जनगणना में बलूचिस्तान, राजपूताना, अंडमान निकोबार, बर्मा, पंजाब और कश्मीर के सुदूर इलाकों को भी शामिल किया गया था।

पाँचवीं जनगणना (वर्ष 1921) :

  • भारत की जनसंख्या वर्ष 1921 की जनगणना तक लगातार बढ़ रही थी और वर्ष 1921 की जनगणना के बाद भी यह वृद्धि जारी है। यह वह दशक था जब वर्ष 1918 में फ्लू महामारी का प्रकोप फैला हुआ था, जिसमें कम-से-कम 12 मिलियन लोगों की जान गई थी। 1911-21 का दशक अब तक का एकमात्र ऐसा दशक रहा है, जिसमें जनसंख्या में 0.31% की दशकीय गिरावट देखी गई।
  • वर्ष 1921 के जनगणना वर्ष को भारत के जनसांख्यिकीय इतिहास में “द ग्रेट डिवाइड” या महान विभाजक वर्ष’  भी कहा जाता है।

ग्यारहवीं जनगणना (वर्ष 1971) :

  • भारत की स्वतंत्रता के बाद यह भारत की  दूसरी जनगणना थी।
  • इसमें विवाहित महिलाओं की प्रजनन क्षमता के बारे में जानकारी के लिए  पहली बार एक प्रश्न के रूप में एक कॉलम जोड़ा गया था।

13वीं जनगणना (वर्ष 1991) :

  • वर्ष 1981 की तुलना में जब चार या चार वर्ष से अधिक आयु वर्ग के बच्चों को साक्षर माना जाता था इस जनगणना में पहली बार साक्षरता की अवधारणा को बदल दिया गया और सात या सात से अधिक आयु वर्ग के बच्चों को साक्षर माना गया।
  • यह स्वतंत्र भारत की पाँचवीं जनगणना थी। 

14 वीं जनगणना (2001) :

  • भारत की चौदहवीं जनगणना में पहली बार प्रौद्योगिकी के स्तर पर बहुत बड़ा बदलाव हुआ था ।
  • इस जनगणना में हाई स्पीड स्कैनर के माध्यम से स्कैन किया गया था और शेड्यूल के हस्तलिखित डेटा को इंटेलिजेंट कैरेक्टर रीडिंग (ICR) के माध्यम से डिजिटल रूप में परिवर्तित किया गया था।
  • इसमें एक इंटेलिजेंट कैरेक्टर रीडिंग (ICR) छवि फाइलों से हस्तलेखन को कैप्चर्ड किया गया था। 
  • इस जनगणना में ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) तकनीक के  एक उन्नत संस्करण का प्रयोग किया गया  जिसमें मुद्रित वर्ण कैप्चर किए  जाते हैं।

15वीं जनगणना (वर्ष 2011) :

  • वर्ष 2011 की जनगणना में EAG राज्यों (अधिकार प्राप्त कार्रवाई समूह/Empowered Action Group): उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य  प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और ओडिशा) के मामले में पहली बार महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई थी।

सोलहवीं जनगणना (2021) :

  • इस जनगणना 2021 को कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण स्थगित कर दिया गया था।
  • इसमें पहली बार डिजिटल रूप में जनगणना होगी, जिसमें स्व-गणना का भी प्रावधान है ।
  • इसमें पहली बार पहली ऐसे परिवार और परिवारों में रहने वाले सदस्यों की जानकारी एकत्र की जाएगी, जिसका मुखिया कोई ट्रांसजेंडर हो।
  • इस जनगणना से केवल पुरुष और महिला के लिए ही कॉलम था।
  • इस जनगणना में पहली बार ट्रांसजेंडर या तृतीय लिंगी या अन्य लिंग के लिए भी कॉलम जोड़ा गया है।
  • इस जनगणना को अभी तक सार्वजानिक नहीं किया गया है ।

भारत के जनगणना का महत्त्व :

सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत :  भारतीय जनगणना भारत के नागरिकों या लोगों के बारे में विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय जानकारी प्राप्त करने का सबसे बड़ा एकल स्रोत है।

विभिन्न शोधकर्त्ता जनसंख्या के विकास और प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने और अनुमान लगाने के लिए जनगणना के आँकड़ों का उपयोग करते हैं।

योजना और नीति निर्माण तथा सुशासन में सहायक : भारत में जनगणना के माध्यम से जुटाई गई जानकारी का उपयोग प्रशासन, योजना और नीति निर्माण के साथ-साथ सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के प्रबंधन और मूल्यांकन के लिए किया जाता है। अतः भारत की जनगणना भारत में किसी भी प्रकार की योजना बनाने और नीति निर्माण करने तथा सुशासन कायम रखने में सहायक है।

निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन तथा प्रतिनिधित्व हेतु आवंटन में सहायक : भारत की जनगणना के आँकड़ों का उपयोग किसी भी निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन और संसद, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों के प्रतिनिधित्व हेतु आवंटन के लिए  भी किया जाता है।

व्यवसाय तथा उद्योग के स्थापना के लिए सहायक:  भारत की जनगणना के आँकड़ों का उपयोग किसी भी व्यवसाय तथा उद्योग के स्थापना के लिए बेहतर पहुँच में सहायक होता है। व्यावसायिक घरानों और उद्योगों के लिए उन क्षेत्रों, जहाँ अब तक उनकी पहुँच नहीं थी, में अपने व्यवसाय को मज़बूती प्रदान करने हेतु योजना बना सके में सहायक होता है ।

राज्यों को अनुदान प्रदान करने में सहायक: भारत में केन्द्रीय वित्त आयोग भारत की जनगणना के माध्यम से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है। अतः  भारत की जनगणना भारत में राज्यों को अनुदान प्रदान करने में सहायक होता है।

सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) : 

  • सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) वर्ष 1931 के बाद पहली बार वर्ष 2011 में आयोजित की गई थी।
  • इसके अंतर्गत ग्रामीण और शहरी भारत के प्रत्येक भारतीय परिवार के बारे में जानने का प्रयास किया जाता है तथा उनकी निम्नलिखित जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया है – :
  • आर्थिक स्थिति के बारे में ताकि केंद्र/राज्य प्राधिकरण इसका उपयोग गरीब/गरीबी या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए  कर सकें और इसके लिए  विभिन्न प्रकार के संकेतक विकसित किये जा सकें।
  • विशिष्ट जाति का नाम, सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने के लिए  कि कौन से जाति समूह आर्थिक रूप से बदतर स्थिति में हैं और कौन से बेहतर स्थिति में है का पता लगाने के लिए किया गया है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. अंतरिम बजट के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. अंतरिम बजट आम चुनावों से ठीक पहले पेश किया जाता है।
  2. अंतरिम बजट चुनावी वर्ष के दौरान, वित्तीय वर्ष के लगभग 3 से 4 महीने की अवधि के खर्चों के लिए पेश किया जाता है।
  3. अंतरिम बजट में किसी भी प्रकार की नई योजनाओं की घोषणा नहीं की जाती है।.
  4. अंतरिम बजट में सरकार के आय के स्रोतों के विवरण की पूरी जानकारी नहीं दी जाती है।.

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A). केवल 1, 3  और 4 

(B). केवल 2, 3 और 4 

(C )  इनमें से कोई नहीं।

(D) इनमें से सभी ।

उत्तर – (D)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1 . बजट से आप क्या समझते हैं ? आम बजट और अंतरिम बजट में मुख्य अंतर को  रेखांकित करते हुए बजट का जनसंख्या लाभांश पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए

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