जारवा और शोम्पेन

जारवा और शोम्पेन

जारवा और शोम्पेन

संदर्भ- हाल ही में पारंपरिक शिल्प कौशल को बढ़ावा दिए जाने की खबरें लगातार चर्चा का विषय बनी हुई हैं, जैसे भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण संस्थान ने अण्डमान निकोबार क्षेत्र की जनजाति झोपड़ियों की प्रतिकृतियाँ बनाई। इन्हीं में से एक है जारवा व शोम्पेन जनजाति की पारंपरिक मधुमक्खी झोपड़ियाँ प्रमुख हैं।

अण्डमान निकोबार की जनजातियाँ

  • अण्डमान निकोबार द्वीप, बंगाल की खाड़ी व अंडमान के संगम पर भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण पूर्व में स्थित हैं।
  • इन द्वीपों को वर्तमान दुनियाँ से अलग थलग जनजातियों के घर के रूप में भी जाना जाता है। जो पारंपरिक आदिम रूप में जीवन यापन करते हैं। इन्हें अतिसंवेदनशील जनजातीय समूह यानि Particularly Vulnerable Tribal Group भी कहा जाता है। 
  • एंथ्रोपोलॉजिक सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार अण्डमान निकोबार सहित भारत में 75 विशेष रूप से संवेदनशील जनजातियों की पहचान की गई है।
  • इस द्वीप में 6 विभिन्न जनजातियाँ रहती हैं। जो अतिसंवेदनशील जनजातियों की सूची मे आती हैं।ये जनजातियाँ हैं- महान अण्डमानी, ओंगी, जारवा, शोम्पेन व निकोबारी।
  • महान अंडमान, ओंगी, जारवा, सेंटिनेल नीग्रीटों प्रजाति से संबंधित हैं। शोम्पेन व निकोबारी मंगोलायड प्रजाति से संबंधित हैं। 

जारवा जनजाति- 

  • भारत के अण्डमान निकोबारद्वीप समूह के अण्डमान जिले की प्रमुख जनजति है।
  • पारंपरिक रूप से जारवा लोग शिकारी संग्रहकर्ता होते हैं।
  • 1990 तक जारवा जनजाति का बाहरी संसार से कोई संपर्क नहीं था। वे बाहरी लोगों के प्रवेश पर उन पर हमला कर देते हैं।
  • वर्तमान में जारवा, अन्य जनजातियों से घुलने मिलने लगे हैं।
  • इनके पास संसाधनों का विशाल भण्डार है। जिनमें पौधों व जानवरों की 150 प्रजातियाँ हैं।
  • यह खानाबदोश तरह की जनजति होती है जो संसाधनो की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती रहती है।
  • इनके विशेष प्रकार के घर जिन्हें मधुमक्खी झोपड़ियाँ कहा जाता है। ये मधुमक्खी के छत्ते के आकार की होती हैं।
  • जारवा महिलाओं का पसंदीदा काम फूलों, पत्तियों, सीपियों व कौड़ियों से माला, कमरबंद, बाजूबंद, सिर का ताज आदि आभूषण बनाना है।  

शोम्पेन जनजाति- 

  • यह भी भारत के अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के निकोबार जिले में रहने वाली जनजाति है।
  • शोम्पेन शब्द सम हप शब्द से लिया गया है जिसका ग्रेट निकोबार में अर्थ है जंगल के निवासी।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 229 थी।
  • शोम्पेन जनजाति के लोग ग्रेट निकोबार द्वीप समूह के लोग उष्ण कटिबंधीय वनों में एकांतवास मेंं रहते हैं।
  • शोम्पेन जनजाति का ग्रेट निकोबारी जनजाति के साथ वस्तु विनिमय प्रचलन में था, जिस कारण इनके बीच संघर्ष, समझौता और सहअस्तित्व का विकास हुआ।
  • यह जनजाति अन्य जनजाति की तुलना में कम प्रतिरोधी है।
  • यह संकोची स्वभाव के होते हैं।

भारत की जनजातियों के लिए संविधान में प्रावधान

  • अनुसूची 5 में अनुसूचित जनजातियों के नियंत्रण का प्रावधान है।
  • नीति निदेशक तत्वों के तहत अनुसूचित जाति जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और उनके अर्थ संबंधी हितों की रक्षा करने का प्रावधान है।
  • 1995 के 77वे संवैधानिक संशोधन में अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति के मामले में आरक्षण देने की व्यवस्था की गई।
  • इसके लिए 2003 में 89वे संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा पृथक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई थी।

जनजातीयों के विकास के लिए पहल

  • एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयी योजना- इसका उद्देश्य दूरदराज के गांवों में रहने वाले विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करना।
  • अनुसूचित जनजाति कन्या शिक्षा योजना
  • आदिवासी क्षेत्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र
  • राजीन गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप 

आदिम जनजातीय समूह के लिए विशेष पहल-

  • पीटीजी विकास योजना- यह योजना 1998-99 में शुरु की गई थी। इसमें आवास बुनियादी ढांचे का विकास, शिक्षा स्वास्थ्य, पशु विकास आदि शामिल किए गए थे।
  • संरक्षण एवं विकास योजना- 2007-08 के दौरान में गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से पीटीजी की सुरक्षा की कोशिश की गई थी।
  • भारत में 14 जनजातीय संस्थान स्थापित किए गए थे। जिसमें जनजातीय कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाता है।
  • आदिवासी उत्पाद व उत्पादन विपणन योजना।

आगे की राह-

  • जनजातियों तक सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुँच पा रहा है। योजनाओं को अमल में लाने के लिए विशेष रणनीति बनानी होती।
  • सामाजिक अलगाव को दूर करने के लिए  आदिम कलाओं से संबंधित केंद्रों की स्थापना की जा सकती है, जिससे वे अन्य समाज से जुड़ सकें।
  • आम नागरिकों को जनजातीय समाज की संस्कृति से पर्यावरण के साथ जीने की कला सीखनी चाहिए तथा आदिवासी हितों की रक्षा करनी चाहिए।
  • समाज से अलग थलग जनजातियों के मनोविज्ञान को समझे बगैर उनके क्षेत्र में दखल देना हिंसात्मक गतिविधि को जन्म दे सकता है। अतः उनके मनोविज्ञान को समझने का प्रयास करना चाहिए।

स्रोत

https://bit.ly/3fTBr8O (द हिंदू)

https://indianculture.gov.in/hi/node/2720386#book5/undefined

https://bit.ly/3UAslN9

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