जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघ सफारी पर प्रतिबंध बनाम राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघ सफारी पर प्रतिबंध बनाम राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – पर्यावरण एवं पारिस्थिकी तंत्र, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण,  ‘बफर और फ्रिंज जोन’, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, र्यावरण संरक्षण के उपाय , कुनो नेशनल पार्क, राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना।  

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने  6 मार्च 2024 को दिए गए अपने एक निर्णय में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में लगभग 6,000 पेड़ों की कटाई के मामले में उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के अनुसार – “ उतराखंड के वन अधिकारियों और उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री रावत ने मिलकर पार्क परिसर में ‘टाइगर सफारी’ के दायरे को व्यापक रूप से विस्तारित करने के लिए पर्यावरण के संरक्षण से जुड़ी कार्यप्रणालियों का मखौल उड़ाया है।” 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की एक खंडपीठ में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने अपने फैसले में कहा कि –  “ जंगलों में बाघों की मौजूदगी पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) की तंदुरुस्ती का एक संकेतक है। जब तक बाघों की सुरक्षा के लिए कदम नहीं उठाए जाते, बाघों के इर्द-गिर्द घूमने वाले पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा नहीं की जा सकती है  जिम कॉर्बेट में अवैध निर्माण और पेड़ों की अवैध कटाई जैसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ” 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने पार्क के आसपास के विभिन्न रिसॉर्टों का भी जिक्र किया जहां अक्सर तेज संगीत बजाया जाता है और जो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में रहने वाले जानवरों के लिए खतरा पैदा करते हैं।
  • भारत के शीर्ष न्यायालय के इस फैसले का असर वन्यजीव पार्कों के बफर और फ्रिंज जोन’ में ‘टाइगर सफारी’ की व्यवस्था पर्यावरण के संरक्षण के उपायों के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है या नहीं, के संदर्भ में वन्यजीव पार्कों के प्रबंधन की जरूरत पर भी असर करेगा।
  • भारत में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, दोनों ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध विशेषज्ञ निकाय हैं और इन्हें जंगली जानवरों के संरक्षण एवं सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी गई है। 
  • हाल ही में भारत में अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में चीतों को  लाने  का मुख्य  उद्देश्य भी  भारत में चीतों की मौजूदगी को पुनर्जीवित करना और पर्यटन को बढ़ावा देना है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपने फैसले में कहा कि – वन्यजीव सफारी जंगल के मुख्य क्षेत्रों से दूर लोगों का ध्यान आकर्षित करती है और इस प्रकार जंगल की अक्षुण्ण प्रकृति को बढ़ावा देती है और इसके साथ – ही – साथ यह पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों में सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ाती है। इसका व्यापक उद्देश्य इको-पर्यटन होना चाहिए, न कि व्यावसायिक पर्यटन होना चाहिए।
  • उच्चतम न्यायालय ने जिम कॉर्बेट में अवैध निर्माण, पेड़ों की कटाई पर उत्तराखंड सरकार से तीन महीने के भीतर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है। भारत के शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना संरक्षित इलाकों से परे वन्यजीव संरक्षण की जरूरत को पहचानती है। 
  • याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने चिड़ियाघर से बाघ लाकर सफारी के नाम पर उन्हें बफर जोन में रखने और कॉर्बेट पार्क में हुए अवैध निर्माण कार्य को लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.। 
  • वर्ष 2021 में उत्तराखंड  के वन मंत्री रावत के रहते हुए कालागढ़ रेंज में पेड़ों की कटाई शुरू हुई थी। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इससे पहले टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण के मामले में रावत और चंद के आवासों पर छापेमारी की थी।
  • इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रावत पर तल्ख टिप्पणी की और जिम कार्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्रों में टाइगर सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया है ।

 

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का परिचय

  • यह  सन 936 में स्थापित, भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान है। 
  • इसका नाम प्रसिद्ध प्रकृतिवादी और संरक्षणवादी जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया है।जिन्होंने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • हिमालय की तलहटी में, लोकप्रिय हिल-स्टेशन नैनीताल के पास स्थित, खूबसूरत जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, बड़ी संख्या में बाघों का घर होने के लिए प्रसिद्ध है, जो किसी भी भारतीय राष्ट्रीय पार्क में सबसे अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ  है। 
  • यह राष्ट्रीय उद्यान 1318.54 वर्ग किमी में फैला हुआ है, जिसमें से 520 वर्ग किमी मुख्य क्षेत्र है, और इसका शेष भाग बफर जोन है। 
  • यह राष्ट्रीय उद्यान पौरी गढ़वाल, अल्मोडा और नैनीताल के सुरम्य क्षेत्र  में फैला हुआ है। 
  • इस राष्ट्रीय उद्यान पार्क के अंदर रात्रि विश्राम के लिए  आवास भी उपलब्ध हैं।
  • यह उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है। 
  • प्रोजेक्ट टाइगर 1973 में कॉर्बेट नेशनल पार्क (भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान) में शुरू किया गया था, जो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का हिस्सा है।
  • भारत में राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1936 में लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैली नेशनल पार्क के रूप में की गई थी।
  • मुख्य क्षेत्र कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान बनाता है जबकि बफर में आरक्षित वनों के साथ-साथ सोनानदी वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल है।
  • इस राष्ट्रीय उद्यान का पूरा क्षेत्र पहाड़ी है और शिवालिक और बाहरी हिमालय भूवैज्ञानिक भागो में स्थित  है।
  • इस रिजर्व से बहने वाली प्रमुख नदियाँ रामगंगा, सोननदी, मंडल, पलैन और कोसी हैं।
  • यह 500 वर्ग किलोमीटर में फैला , सीटीआर 230 बाघों का घर है और यहां 14 बाघ प्रति सौ वर्ग किलोमीटर पर दुनिया का सबसे अधिक बाघ घनत्व है।

 

कॉर्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाली वनस्पति :

  • भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के अनुसार – इस  कॉर्बेट में पौधों की 600 प्रजातियाँ पाई जाती हैं – पेड़, झाड़ियाँ, फर्न, घास, पर्वतारोही, जड़ी-बूटियाँ और बांस। साल, खैर और सिस्सू कॉर्बेट में पाए जाने वाले सबसे अधिक दिखाई देने वाले पेड़ हैं। यहां घने नम पर्णपाती वन पाए जाते हैं। 

कॉर्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाला जीव – जंतु  :

  • इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के अलावा तेंदुए भी पाए जाते  हैं। अन्य स्तनधारी जैसे जंगली बिल्लियाँ, भौंकने वाले हिरण, चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, स्लॉथ आदि भी वहाँ पाए जाते हैं।

 

उत्तराखंड में अवस्थित अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र :

भारत के उत्तराखंड राज्य में कुछ अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र भी है। जो निम्नलिखित है – 

  1. नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान।
  2. फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान।
  3. राजाजी राष्ट्रीय उद्यान।
  4. गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान।
  5. गोविंद राष्ट्रीय उद्यान।

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान एक साथ यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड :

  • भारत में  राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) वन्यजीवों से संबंधित सभी मामलों के लिए सर्वोच्च निकाय है। यह मुख्य रूप से वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने और वन्यजीवों और वनों के विकास के लिए जिम्मेदार है ।
  • यह भारत में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (डब्ल्यूएलपीए) की धारा 5A के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह भारत में संरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, आदि) में और उसके आसपास परियोजनाओं (सरकारी परियोजनाओं सहित) को मंजूरी देता है।
  • यह भारत में केवल एक सलाहकार बोर्ड है और देश में वन्यजीव संरक्षण से संबंधित नीतिगत मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देता है।
  • भारत में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड  का गठन 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के तहत किया गया था।
  • इसका गठन  भारतीय वन्यजीव बोर्ड के स्थान पर किया गया है , जिसका गठन भारत में सन 1952 में एक सलाहकार बोर्ड के रूप में किया गया था।

 

भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड : 

  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड में एक अध्यक्ष और 47 सदस्य होते  हैं। भारत में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का अध्यक्ष भारत के पदेन प्रधानमंत्री होते हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री बोर्ड के उपाध्यक्ष होते हैं। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के अनुसार, भारत में जब भी कोई नई सरकार बनती है, तो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता के रूप में एक नयाराष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड गठित करना पड़ता है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के कार्य : 

भारत में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का  कार्य  निम्नलिखित होता है – 

  1. वन्यजीव संरक्षण और संरक्षण से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देना।
  2. वन्य जीवों का संवर्धन एवं विकास एवं उनका संरक्षण करना ।
  3. राष्ट्रीय उद्यानों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों में और उसके आसपास परियोजनाओं को मंजूरी देना या आरक्षित करना।
  4. भारत में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की मंजूरी के बिना किसी भी संरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं में कोई बदलाव संभव नहीं होता है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की  स्थायी समिति : 

  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड अपने विवेक के आधार पर एक स्थायी समिति का गठन कर सकता है। समिति के उपाध्यक्ष पर्यावरण मंत्री होंगे और इसमें कम से कम दस सदस्य होंगे जिन्हें मंत्री बोर्ड के सदस्यों में से नामित करेंगे।
  • स्थायी समिति और बोर्ड के बीच अंतर यह है कि जहां स्थायी समिति का कार्य संरक्षित क्षेत्रों और पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के भीतर भूमि परिवर्तन को विनियमित करना है, जिससे यह पूरी तरह से परियोजना मंजूरी निकाय बन जाता है, वहीं दूसरी ओर, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के पास यह शक्ति है कि वह वन्य जीवों के लिए नीति – निर्धारण करने का कार्य करता है

 

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

  • वर्ष 2020 के अप्रैल महीने में, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की बैठक में 16 परियोजना प्रस्तावों को मंजूरी दी गई, जो राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और बाघ गलियारों के माध्यम से राजमार्गों, ट्रांसमिशन लाइनों और रेलवे लाइनों से संबंधित  था । 
  • इसने पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में लगभग 3000 एकड़ भूमि को घेरनेवाली कई अन्य परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है ।
  • भारत में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का पिछले 6 वर्षों से  कोई  बैठक नहीं हुआ  है।
  • भारत में कई परियोजनाओं को मंजूरी देने वाली स्थायी समिति के कामकाज की आलोचना होती रही है. 
  • भारत के कई पर्यावरणविदों की यह राय है कि ये सभी स्वीकृतियाँ केवल आर्थिक लाभों को ध्यान में रखते हुए दी गई हैं,न कि उनके कारण होने वाले दीर्घकालिक पर्यावरणीय खतरों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया गया है ।
  • भारत में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड  अपने जनादेश को पूरा करने के लिए काम नहीं कर रहा है, बल्कि स्थायी समिति के माध्यम से, केवल उन परियोजनाओं को मंजूरी देने में लगा हुआ है जो वास्तव में पर्यावरण/वन्यजीव को लाभ के बजाय अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • भारत में वर्तमान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड समिति ने वन्यजीवों पर अपने हालिया निर्णयों के दुष्प्रभावों पर कोई विचार नहीं किया  है ।
  • इस समिति में कोई स्वतंत्र पर्यावरणविद् और संरक्षणवादी नहीं हैं, जिससे समिति के लिए संबंधित लोगों की वास्तविक आपत्ति के बिना परियोजनाओं को मंजूरी देना आसान हो जाता है।
  • भारत के वन्यजीव कार्यकर्ता इस बात से चिंतित हैं कि बोर्ड की अनुपस्थिति में नीति स्तर के प्रस्तावों को कैसे संभाला जा रहा है।
  • मंत्रालय के अधिकारियों का तर्क है कि स्थायी समिति और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड  के बीच बहुत अंतर नहीं है, क्योंकि समिति के सदस्यों को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड  से ही लिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कम  सदस्यों वाली कोई भी समिति बोर्ड के जनादेश को कमजोर कर सकती है ।

 

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