तालिबान शासन के बाद भारत-अफगानिस्तान संबंध

तालिबान शासन के बाद भारत-अफगानिस्तान संबंध

संदर्भ क्या है ?

विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अफगानिस्तान की पहली आधिकारिक यात्रा चर्चा का विषय है। इसे भविष्य में अफगानिस्तान में नई तालिबान सरकार की मान्यता के संबंध में देखा जा रहा है। हालांकि, वस्तुस्थिति  यह है कि फिलहाल यह मुद्दा भारत के एजेंडे में शामिल नहीं है।

तालिबान के बाद अफगानिस्तान की स्थिति 

तालिबान ने अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया है। तब से, देश में लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है और न ही आय का कोई साधन है। इस सर्दी के मौसम में, 22 मिलियन से अधिक अफगानों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित सूखे ने उनके संकट को और बढ़ा दिया। ये सभी स्थितियां अफ़ग़ानों को देश से भागने या भुखमरी के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रही हैं।

अफगानिस्तान भारत के लिए कैसे अधिक महत्वपूर्ण है?

अफगानिस्तान सामरिक समेत कई अन्य कारणों से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें सबसे अहम मुद्दा भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रयोग  है, फिर अफगानिस्तान की पिछली सरकार के समय में भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए भारी निवेश किया है। ऐसे में सवाल भरोसे के निर्माण का भी है, जिसकी जिम्मेदारी तालिबान की है। जब तक भारत को इन मुद्दों पर सकारात्मक और ठोस संकेत नहीं मिलते, तालिबान सरकार को मान्यता देने का सवाल ही नहीं उठता। जब तक सुरक्षा और स्थिरता का विश्वास नहीं हो जाता है तब तक भारत वहां कांसुलर सेवा बहाल करने के बारे में निर्णय नहीं ले सकता है।

तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर भारत का रुख 

  • भारत ने तालिबान के सत्ता में आने के बाद भी खाद्यान्न और अन्य प्रकार से सहायता प्रदान की थी। भारत ने कहा था कि वह अफगानिस्तान के लोगों के साथ है और उनकी मानवीय सहायता जारी रखेगा । 
  • भारत की अध्यक्षता में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) द्वारा ‘संकल्प 2593’ को अपनाया गया था। इस संकल्प में कहा गया है, कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का उपयोग किसी भी देश को धमकी देने या आतंकवादियों को शरण देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए ।

अफ़गानिस्तान में स्थिरता का महत्व

  • अफगानिस्तान, मध्य एशिया और शेष विश्व के बीच एक पुल की भूमिका निभाने वाली, क्षेत्रीय व्यापार हेतु और सांस्कृतिक रूप से, एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
  • अफगानिस्तान में तालिबान की बहाली का असर इसके पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि में फैल सकता है।
  • तालिबान के पुनरुत्थान से इस क्षेत्र में ‘उग्रवाद’ फिर से जीवित हो जाएगा और यह क्षेत्र ‘लश्कर-ए-तैयबा’, आईएसआईएस आदि के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन सकता है।
  • अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होने से मध्य एशिया और उसके बाहर के देशों में शरणार्थी संकट उत्पन्न हो जाएगा।
  • अफगानिस्तान की स्थिरता से मध्य एशियाई देशों को हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित बंदरगाहों तक  सबसे कम दूरी वाले मार्ग से पहुंचने में मदद मिलेगी।

तालिबान से संपर्क भारत के लिए क्यों आबश्यक  है?

  • भारत पहले ही अफगानिस्तान में भारी निवेश कर चुका है। भारत को अपनी 3 अरब डॉलर की संपत्ति की सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान में सभी पक्षों के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए। तालिबान के साथ पाकिस्तान के साथ गहरे संबंध रखना भारत के हित में नहीं होगा।
  • यदि भारत अभी संपर्क स्थापित नहीं करता है, तो रूस, ईरान, पाकिस्तान और चीन अफगानिस्तान के राजनीतिक और भू-राजनीतिक भाग्य-विधाता के रूप में उभरेंगे, जो निश्चित रूप से भारतीय हितों के लिए हानिकारक होगा।
  • अमेरिका ने भारत को बाहर रखने वाले क्षेत्रीय लिंक पर ‘यूएस उज्बेकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान’ के रूप में एक “क्वाड” के गठन की घोषणा की है।
  • अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने का भारत का प्रयास खतरे में है।

निष्कर्ष 

भारत के अफगानिस्तान में दीर्घकालिक हित हैं और लोकतान्त्रिक आवश्यकताएं भी हैं। यदि अफगानिस्तान में भारत के हित संरक्षित रहते हैं और इस क्षेत्र में सुरक्षा रहती है तो भारत मध्य एशिया तक पहुँच विकसित कर सकता है और विस्तारित पडौस की अवधारणा साकारित हो सकेगी  

 

 

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