तिब्बती बौद्ध धर्म : दलाईलामा व पुनर्जन्म

तिब्बती बौद्ध धर्म : दलाईलामा व पुनर्जन्म

तिब्बती बौद्ध धर्म : दलाईलामा व पुनर्जन्म

संदर्भहाल ही मे दलाई लामा ने पुनर्जन्म परंपरा के अनुसार तिब्बत के बौद्ध धर्म के जनांग परंपरा के प्रमुख व मंगोलियाई के बौद्ध आध्यात्मिक प्रमुख जेट्सन धम्पा के रूप में नामित किया है। 2012 में मंगोलिया के बौद्ध धर्म के नौवे आध्यात्मिक प्रमुख जेट्सन धम्पा का निधन हो गया था। 

नई घोषणा के अनुसार वह मंगोलिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफैसर व व्यापारिक कार्यकारी अधिकारी की संतान होंगे। 

बौद्ध धर्म – छठी शताब्दी ईसा पूर्व जब विश्व के लगभग सभी हिस्सों में धार्मिक पुनर्जागरण देखा जा रहा था ऐसे में भारत में भी जैन व बौद्ध दो नए धर्मों का उद्भव हुआ। भारत में बुद्ध परंपरा का जितनी तेजी से विकास हुआ उतनी तेजी से यह भारत के पड़ोसी देशों में विस्तृत हुई। कुषाण शासक कनिष्क व मौर्य सम्राट अशोक ने देश विदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार  किया। भारत की बौद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य श्रीलंका व तिब्बत ने किया। 

समय के साथ बौद्ध धर्म दो वर्गों में विभाजित हो गया हीनान व महायान। हीनयान उस धर्म को कहा जाता है जहां बुद्ध के जीवनचरित को केंद्र में रखा जाता है अर्थात बौद्ध धर्म की प्रारंभिक परंपरा को हीनयान कहा जाता है। तथा बौद्ध धर्म में आए परिवर्तन जिसमें बुद्ध को एक देवता के समान पूजा गया, को महायान के अंतर्गत रखा जाता है। चीन, जापान व तिब्बत देशों में बौद्ध धर्म की महायान परंपरा विकसित हुई। 

तिब्बती बौद्ध धर्म

तिब्बत में बौद्ध धर्म की वज्रयान परंपरा विकसित हुई जिसे महायान की उपशाखा माना जाता है। यह तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, नेपाल, भारत के कुछ प्रदेशों जैसे लद्दाख, अरुणांचल प्रदेश, लाहौल स्पीति, सिक्किम, रूस के कालमिकिया, तूबा, बुर्यातित के साथ पूर्वोत्तर चीन में विस्तृत है। इस प्राचीन धर्म का प्रमुख दलाई लामा को माना जाता है। 

बौद्ध परंपरा का शिक्षाओं को मूलतः त्रिपिटक कहा जाता है, किंतु तिब्बत में स्थानीय परंपराओं के साथ शिक्षाओं में कुछ अंतर है और यहां त्रिपिटक केवल दो वर्गों में विभाजित किया गया है जिसे तेंग्यूर व कांग्यूर कहा जाता है।

कांग्यूर-  बुद्ध के कथनों को कांग्यूर कहा जाता है। कांग्यूर के अंतर्गत बुद्ध के कथनो के अतिरिक्त भारत के प्राचीन बौद्ध गुरुओं के वचनों को भी संग्रहित किया गया है। तिब्बत में गुरु शिष्ट परंपरा को विशिष्ट स्थान दिया गया है। इसके अंतर्गत तंत्र मंत्र को भी कांग्यूर में स्थान दिया गया है और तंत्र विद्या को बुद्ध की शिक्षाओं का अंश माना गया है। इसके साथ 14 वे दलाईलामा को कालचक्र तंत्र की शिक्षा देने का अधिकारी माना गया है।

तेंग्यूर – बौद्ध धर्म के आचार्यों द्वारा संग्रहित व उल्लेखित कथनों को तेंग्यूर कहा जाता है। इसके अंतर्गत मंत्र, सूत्तपिटक(बुद्ध कथन व भारतीय धर्मगुरुओं के कथन), योग, चिकित्सा, शिल्पविद्या से संबंधित प्राचीन आख्यान शामिल हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख स्कूल माने जाते हैं-

  • निंगमा(8वी शताब्दी)
  • कांग्यू(11वी शताब्दी)
  • शाक्य(1073)- हाल ही में की गई भविष्वाणी में दलाईलामा जनांग स्कूल के होंगे। यह जनांग स्कूल शाक्य शाखा की उपशाखा माना जाता है।
  • गेलुग(1409)- बौद्ध धर्म की गेलुग शाखा तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी शाखा है। और 1417 में चौखंपा ने इसकी स्थापना की थी। यहाँ के दलाईलामा, इसी गेलुग स्कूल से शिक्षा प्राप्त करते हैं। 

तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाईलामा

तिब्बती परंपरा में दलाईलामा को अवलोकितेश्वर करुणाशील बुद्ध के अवतार कहे जाते हैं। पहले दलाई लामा गैंडेन डूब (1391-1474 ई.) को माना जाता है जिन्हें उनके जीवन काल में कभी दलाई लामा का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ था। गेलुग्पा के शासनकाल में पाँचवे दलाई लामा (ग्यालवा गवांग लो सांग ग्यात्सो) तिब्बत को संयुक्त करने का श्रेय दिया जाता है। 

चौदवे दलाईलामा तेनजिंग ग्यात्सो को विशिष्ट माना जाता है। क्योंकि यह लामा त्सांग खापा वंशआवली के हैं जिनके भतीजे व शिष्य प्रथम दलाई लामा हुए इसका एक अन्य कारण यह भी है कि केवल इन्हें ही कालच्कर तंत्र की सइक्षा देने का अधिकार दिया गया है। इन्हें तेरहवे दलाई लामा का अवतार भी माना जात है। तिब्बत में चीनी आक्रमण 1949 ई. के बाद दलाई लामा को निर्वासन 1959 ई. में करना पड़ा। उन्होंने तिब्बत में गणतंत्र की स्थापना के लिए कई प्रयत्न किए। जो तिब्बत में शांति स्थापना पर केंद्रित थे। तिब्बत में अहिंसात्मक रूप से स्वतंत्रता संघर्ष करने के लिए दलाई लामा को 1989 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

दलाईलामा और पुनर्जन्म

बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म पर विश्वास किया जाता है। तिब्बत में यह परंपरा दलाईलामा के पुनर्जन्म से संबंधित होने के कारण इस विश्वास को और दृढ़ करती है। 13 वी शताब्दी में करमापा पागशी के पुनर्जन्म सेसंबंधित अनुयायियों की घोषमा के बाद से यह परंपरा चली आ रही है। गेलुग स्कूल में पुनर्जन्म की परंपरा को विकसित किया जाता है।

तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, एक मृत लामा की आत्मा एक बच्चे में पुनर्जन्म होती है। जॉन पॉवर्स ने अपनी पुस्तक तिब्बती बौद्ध धर्म का परिचय (1995) में लिखा, “यह निरंतर पुन: अवतार के माध्यम से उत्तराधिकार की एक सतत रेखा को सुरक्षित करता है। ” मान्यता प्राप्त पुनर्जन्नम को पहचानने के लिए कई दिशानिर्देश होते हैं-

  • पूर्वज स्वयं अपने पुनर्जन्म से पूर्व मार्गदर्शन छोड़ जाते हैं। 
  • भावी लामा को तब तक कई परीक्षणों का सामना करना पड़ता है जब तक की वह अपने पूरव जन्म को याद न कर ले। 
  • पूर्व जन्म इस्तेमाल की गई वस्तुओं को पहचानना, 
  • यदि एक से अधिक संभावित उम्मीदवार(बच्चे, जो मान्यता प्राप्त लामा हो सकते हैं) होने पर उन्हें आटा बॉल विधि द्वारा चुना जाता है। 

वर्तमान दलाईलामा के पुनर्जन्म व नए दलाईलामा के जन्म से संबंधित घोषणा तिब्बती बौद्धों के विश्वास की पुष्टि करती है। खलखा जेट्सन धम्पा की 2012 में मृत्यु(उलानबटार) हो गई थी। वर्तमान दलाईलामा की घोषणा है कि- “आज (संभावित तिथि 8 मार्च) मंगोलिया के खलखा जेट्सन धम्पा रिनपोचे का पुनर्जन्म है।” 

चीन का हस्तक्षेप व निवेश

तिब्बत पर चीनी कब्जे और दलाई लामा के निर्वासन ने तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की स्थापित परंपराओं में महत्वपूर्ण जटिलताएं पैदा कर दी हैं। 

  • तिब्बत में अपना अधिकार स्थापित करने के लिए चीन के शुरुआती प्रयासों में प्रत्यक्ष, दमनकारी रणनीति (विशेष रूप से माओ की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान जब हजारों तिब्बती मठों और सांस्कृतिक स्थलों को नष्ट कर दिया गया था) को नियोजित किया गया था।
  •  चीन की नीति ने तिब्बती बौद्ध धर्म को “शांत” करने के लिए खुद को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया है। किंतु चीन मे तिब्बती पाठ्यक्रमों में परिवर्तन कर दिया जिसमें इतिहास का अध्ययन नहीं कराया जाता। 
  • मठों पर कड़ी निगरानी के सात मठों के निर्माण के लिए पर्याप्त फंड दिया जाता है। 

 चीन के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध व वैश्विक डिजीटलीकरण के दौर में तिब्बतियों द्वारा बौद्ध धर्म की प्राचीन परंपराओं को अब तक सहेजा हुआ है। इसके साथ ही दलाईलामा का शांति के लिए संघर्ष बौद्धों की वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है। जो प्राचीन मूल्यों के साथ आधुनितकता के समावेशन पर जोर देती है। पुनर्जन्म एक प्रथा के साथ धार्मिक प्रमुख के उत्तराधिकारी निर्माण की परंपरा के भांति भी प्रतीत होती है जिसे जन्म से ही बौद्ध परंपराओं की कसौटी पर रखकर तैयार किया जाता है। 

स्रोत

Yojna IAS daily current affairs hindi med 31st March 2023

No Comments

Post A Comment