दयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती

संदर्भ- हाल ही में 12 फरवरी को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज सुधारक दयानंद सरस्वती को उनकी 200वी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। 

दयानंद सरस्वती

  • 19वी शताब्दी के समय दयानंद सरस्वती भारत के प्रमुख समाज सुधारकों में से एक थे। 
  • इन्हें हिंदू धर्म के मार्टिन लूथर के रूप में भी जाना जाता था।
  • उन्होंने हिंदू धर्म के भीतर आई रुढ़िवादी कुरीतियों को दूर करने के लिए समाज सुधार आंदोलन प्रारंभ किया।
  • समाज सुधार के लिए उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
  • समाज सुधारक आंदोलन के तहत अत्यधिक कर्मकांडों का विरोध किया। 
  • महिला सुधार कार्य जैसे बाल विवाह का विरोध, बालिका शिक्षा का समर्थन आदि।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रमुख कृतियाँ- सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्यम, सत्यार्थ भौमिका, संस्कार विधि, ऋग्वेद भाष्यम, यजुर्वेद भाष्यम आदि।

आर्य समाज

हिंदू धर्म में सुधार के लिए दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज में राम व कृष्ण को आदर्श माना गया है। दयानंद सरस्वती ने कई यात्राएं कर आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार किया। इसके निम्नलिखित सिद्धांत थे- 

  • विद्या सत्य है तथा विद्या का आदि मूल परमेश्वर है।
  • वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक हैं । वेदों को पढ़ना तथा सुनना सभी आर्यो का परम धर्म हैं।
  • सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए ।
  • सब कार्य तर्क के आधार पर धर्मानुसार करने चाहिए।
  • संसार का उपकार करना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य हैं।
  • सबसे प्रीतिपूर्वक, यथानुसार, धर्मयोग्य व्यवहार करना चाहिए।
  • अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए ।
  • प्रत्येक को अपनी उन्नति में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए तथा सभी को उन्नति को अपनी उन्नति समझना चाहिए।
  • सभी मनुष्य प्रत्येक हितकारी नियम में स्वतन्त्र हैं।
  • ईश्वर निराकार तथा सर्वशक्तिशाली हैं।

आर्य समाज के कार्य-

सनातन सत्य – आर्य समाज में वेदों को सनातन धर्म का अंतिम सत्य माना गया। वेदों से विरोधाभास रखने वाले विचारों का आर्य समाज में खण्डन किया गया। दयानंद सरस्वती ने वेदों की ओर लौटो का नारा दिया।

शुद्धि आंदोलन- दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के अंतर्गत 1920 के दशक में शुद्धि आंदोलन शुरु किय़ा। इसके तहत मोपाला विद्रोह व बंगाल विभाजन के समय बलपूर्वक ईसाई व मुस्लिम धर्म ग्रहण कर चुके सनातनियों को पुनः हिंदू धर्म में प्रवेश दिलवाया।

सामाजिक समता – सामाजिक समता बढ़ाने के लिए अस्पृश्यता का विरोध किया तथा जन्म आधारित जाति व्यवस्था का विरोध किया। 

शिक्षा का समर्थन- धार्मिक कुरीतियों को दूर करने के लिए वैदिक शिक्षा को दयानंद सरस्वती ने अत्यधिक समर्थन दिया और बालिकाओं की शिक्षा के लिए अनेक प्रयास किए। उनके बाद उनके अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज(D.A.V.) की स्थापना(1886) लाहौर में की थी। जिसमें वैदिक शिक्षा के साथ समझौता किए बिना पश्चिमी शिक्षा दी जाती थी।

विवाह संबंधी सुधार- दयानंद सरस्वती ने एक ओर बाल विवाह का विरोध कर बालिकाओं की शिक्षा का प्रचार किया तो दूसरी ओर अंतर्जातीय विवाह का समर्थन कर जाति व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया। इसके साथ ही विधवा विवाह का समर्थन और सती प्रथा  का विरोध कर तत्कालीन विधवाओं को उनकी दयनीय स्थिति से बचाया।

दयानंद सरस्वती की विरासत

  • भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा के आगमन के समय सर्वप्रथम स्वराज(स्वशासन) शब्द का प्रयोग किया जिस शब्द का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना स्वतंत्र इतिहास है। 
  • तत्कालीन निम्न जातीय लोगों को पर्याप्त सम्मान मिला।
  • वर्तमान भारत में आर्य समाज के सिद्धांतों पर आधारित एंग्लो इंडियन विद्यालय और कॉलेज प्रचालित हैं।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

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