देवदासी प्रथा

देवदासी प्रथा

देवदासी प्रथा

संदर्भ- हाल ही में तमिल लेखक वासंथी ने देवदासी परंपरा पर आधारित पुस्तक ब्रेकिंग फ्री को एक गाथा के रूप में लिखा है। जिसे एन कल्यान रमन ने अनुवादित किया है। 

देवदासी प्रथा- देवदासी का शाब्दिक अर्थ देव की दासी है। इतिहास में देवदासी, देवता को समर्पित कन्या थी। इन कन्याओं के कर्तव्य मंदिर के देवता की पूजा हेतु सामग्री जुटाना, मंदिर को दियों से रौशन करना, मंदिर में स्थापित देव की मूर्ति को पंखा करना, देवता के जुलूस के आगे नृत्य करना आदि थे। वे नृत्य का प्रशिक्षण देते थे। देवदासी परंपरा का प्रचलन दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में अधिक देखा गया है। समय के साथ साथ भारत मं धर्म व आस्था के नाम पर वैश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाने लगा। और सामाजिक दबाव के चलते यह प्रथा दूषित होती चली गई।

देवदासी परंपरा प्रचलित स्थल

  • महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा व तमिलनाडु में देवदासी प्रथा का प्रचलन वर्तमान काल तक मिलता है।
  • तमिलनाडु में देवदासी को देवरतियाल, केरल में तेवादिचि, करमनाटक में वासवी और उत्तर भारत में देवदासी कहा जाता है।

भारतीय इतिहास में देवदासी परंपरा-

  • भारत में देवदासी प्रथा का प्रचलन लगभग छठी शताब्दी ईसवी के हैं। 
  • कालिदास के मेघदूतम में मंदिरों में आजीवन रहने वाली कुँवारी कन्याओं का उल्लेख है, जो देवदासियों को इंगित करती हैं।
  • देवदासी शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम कौटिल्य के अर्थशास्त्र में किया गया है।
  • दक्षिण भारत में नवी व दसवी शताब्दी में मंदिरों का निर्माण तेजी से हो रहा था, मंदिरों की अधिकता के साथ इस प्रथा की चरम स्थिति उत्पन्न हुई।
  • 11वी शताब्दी में तंजौर के मंदिर में 400 देवदासियां थी।
  • विजयनगर साम्राज्य में कृष्णदेवराय के दरबार में आए विदेशी यात्री डोमिंगो पायस ने 1510 ई. में देवदासी प्रथा का उल्लेख किया है। 
  • मध्यकाल में राजाओं ने देवदासियाँ रखना शुरु किया, जिससे यह प्रथा और भी घृणित होती चली गई।
  • अंग्रेजों द्वारा इसका विरोध करने पर उन्हें स्थानीय विद्रोह का सामना करना पड़ा जिस कारण यह प्रथा प्रतिबंधित नहीं हो पाई।

भारत में देवदासी प्रथा के विरुद्ध कानून- 

  • देवदासी प्रथा को खत्म करने के लिए मुथुलक्ष्मी रेड्डी को कट्टर समूहों से संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने मद्रास विधान परिषद में इस प्रथा को सती प्रथा का विभत्स रूप कहा था।
  • कर्नाटक मेंं 1982 व आंध्र प्रदेश में 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। इसके बाद भी राष्ट्रीय मानवाधिकार रिपोर्ट 2013 के अनुसार भारत में 450000 देवदासियाँ उपस्थित थी। वर्तमान समय में भी तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में यह प्रथा पूर्णतः समाप्त नहीं हो पाई है। 2008 में महिला विकास सर्वे के अनुसार कर्नाटक में 40600 देवदासियाँ थी।
  • जस्टिस रघुनाथ राव की अध्यक्षता में बने एक आयोग के अनुसार केवल आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में अस्सी हजार देवदासियाँ थी।
  • 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के सचिव को निर्देश दिए कि कर्नाटक में देवदासी की संख्या को शून्य करना सुनिश्चित करें।

प्रतिबंधित होने के बावजूद प्रता के समाप्त न होने के कारण-

  • गरीबी- माता पिता ही अपनी बेटियों को इस कुप्रथा में धकेलते थे, क्योंकि यह ही उनकी आय का एकमात्र सादन होती थी।
  • अंधविश्वास समाज में देव पूजा को विधि विधान को विभत्स बना दिया गया, जिससे समाज लड़कियों पर इस प्रथा में शामिल होने के लिए दबाव बनाता था।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 में इस प्रथा का कोई प्रावधान न होना।

स्रोत- 

https://www.thehindu.com/books/books-reviews/review-of-vaasanthis-novel-on-devadasis-breaking-free-translated-by-n-kalyan-raman/article65969323.ece

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