निजी क्षेत्र में आरक्षण

निजी क्षेत्र में आरक्षण

निजी क्षेत्र में आरक्षण

संदर्भ- हाल ही में केंद्रीय न्याय व सामाजिक मंत्री ए नारायणस्वामी ने कहा कि निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कंप्यूटरीकरण के बाद सरकारी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं अतः निजी क्षेत्र में भी आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए। हाल ही में हरियाणा में राज्य के नागरिकों को निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए प्रावधान किए गए हैं।

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार का रोजगार विधेयक 2020

प्रस्तुत बिल को हरियाणा विधानसभा में नवंबर 2020 में प्रस्तुत किया गया, तथा 15 जनवरी 2022 को प्रभावी हुआ। इस प्रकार का विधेयक हरियाणा के साथ ही आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भी इस प्रकार के कानून का प्रावधान है। 

अधिनियम का उद्देश्य राज्य के स्थानीय नागरिकों में राज्य में ही रोजगार मुहैया कराना है। निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को राज्य में रहने वाले नागरिकों हेतु कम से कम पाँच वर्षों के रोजगार के पदों में आरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है। 

विधेयक की विशेषताएं- 

  • विधेयक निजी प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75% नई नौकरियों को आरक्षित करना चाहता है।
  • वांछित कौशल के उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने पर निजी प्रतिष्ठान छूट का दावा कर सकते हैं।
  • प्रतिष्ठानों को अनिवार्य रूप से 50 हजार रुपये से कम आय वाले सभी कर्मचारियों को एक निर्दिष्ट पोर्टल पर पंजीकृत करना होगा।

विधेयक से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • निवास के आधार पर निजी प्रतिष्ठानों में आरक्षण प्रदान करने वाला राज्य का कानून संवैधानिक नहीं हो सकता है।
  •  75% की सीमा तक आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर सकता है।
  • किराए पर लेने में निजी प्रतिष्ठानों पर प्रतिबंध उनकी दक्षता के लिए हानिकारक हो सकता है।

विधेयक के सकारात्मक पक्ष

  • पलायन में कमी-  इस प्रकार के कानून से राज्यों में पलायन कम हो सकता है। जो स्थानीय निवासी रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर प्रवास करते हैं। उन्हें राज्य में ही रोजगार प्रदान किया ज सकेगा। 
  • राज्यों के अतिरिक्त भार में कमी- राज्यों में रोजगार के असमान संसाधनों के कारण किसी एक राज्य में जनसंख्या में अत्यधिक कमी व किसी राज्य में जनसंख्या घनत्व अत्यधिक हो सकता है जिससे राज्य के संसाधनों में कमी आ सकती है। और राज्य पर अतिरिक्त भार पड़ सकता है। इस प्रकार के विधेयक से अन्य राज्यों के निवासियों का राज्यों में आगमन कम हो सकेगा।
  • सामाजिक न्याय- इस विधेयक के माध्यम से वह वर्ग जो अन्य राज्यों में जाने के लिए सक्षण नहीं है, उन्हें सामाजिक न्याय मिल सकेगा। 
  • कृषि का विकास- पलायन के कारण कई राज्यों(उत्तराखण्ड) में कृषि भूमि क्षेत्र बंजर हो गया है, इसका एक कारण कृषकों की छोटी जोत वाले कृषि क्षेत्र हैं जो आजीविका के पूर्ण साधन उपलब्ध कराने में असमर्थ होते हैं। अतः कृषि के साथ आजीविका के अन्य साधनों की भी आवश्यकता होती है। स्वराज्य में रोजगार मुहय्या होने पर भूमालिकों द्वारा छोटी जोत वाली कृषि का भी विकास किया जा सकेगा। 

संवैधानिक चुनौतियां-

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन- संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकारों के अनुसार भारत के किसी भी नागरिक को जन्म, लिंग, स्थान, जाति या धर्म के आधार किसी भी स्थान पर निवास करने या व्यवसाय करने के लिए वंचित नहीं किया जा सकता, यह विधेयक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। 
  • व्यवसाय करने के अधिकार पर रोक- यह व्यवसाय़ी को अपने व्यवसाय में 75% पदों में स्थानीय निवासियों की भर्ती करने के लिए बाध्य करता है। अनुच्छेद 19 के तहत किसी भी व्यवसायी को अपना पेशा या व्यवसाय चुनने का अधिकार है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के 2002 निर्णय के अनुसार किसी भी निजी शिक्षा संस्थान को अपने प्रबंधन व प्रशिक्षण में स्वायत्तता होनी चाहिए। अतः यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध कार्य करता है। 
  • संविधान का अनुच्छेद 16(2), सार्वजनिक स्थानों से संबंधित रोजगार पर किसी भी तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।  
  • स्थानीय आधार पर 75% तक का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को पूर्ण नहीं कर सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों में आरक्षण को 50% तक सीमित करने का निर्णय दिया था।
  • निजी क्षेत्र के उद्योगों या कंपनियों पर नियुक्तियों के आधार पर लगाया गया यह आरक्षण उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को हानि पहुँचा सकता है। 

आगे की राह –

  • विधेयक से पूर्व राज्यों में श्रम शक्ति में स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। ताकि इस कानून के कारण नियोक्ता वर्ग की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में कोई हानि न आए।
  • राज्य कंपनियों को आवश्यकता आधारित आरक्षण के लिए निर्देशित कर सकता है। 
  • इस प्रकार के कानून को हरियाणा या दिल्ली जैेसे सभी राज्यों में लागू करने से कम आय वाले श्रमिक वर्ग का अपने राज्यों में भीषण पलायन होगा। और इस विशाल वर्ग के लिए एक साथ रोजगार की व्यवस्था करना एक चुनौती हो सकता है। इसलिए इस प्रकार के राज्यों जैसे बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि को अपने राज्य में रोजगार के उचित साधन सृजित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। 

स्रोत

yojna daily current affairs hindi med 2 May 2023

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