पट्ट चित्र परंपरा।

पट्ट चित्र परंपरा।

पट्ट चित्र परंपरा।

संदर्भ-  हाल ही में रूपसोना जो एक चित्रकार व गायिका है पश्चिम बंगाल के लोकगीतों को स्क्रॉल के माध्यम से सुनाती नजर आई।

  • इसके साथ ही रूपसोना अपने पट्टचित्रों में भ्रुण हत्या, 2004 की सुनामी और मदर टेरेसा के जीवन की कहानियाँ सुना चुकी हैं।
  • और हाल ही में पश्चिम बंगाल के नोया गाँव के 300 मुस्लिम समुदाय के निवासी पट्टचित्र परंपरा के चित्रों द्वारा हिंदू देवी देवताओं की कहानियों को प्रदर्शित करते नजर आए। जो साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।

पट्टचित्र परम्परा-

  • शाब्दिक रूप से पट्ट का अर्थ है कपड़ा और चित्र का अर्थ है तस्वीर। अतः यह कपड़े पर बनने वाली एक पेंटिंग है। 
  • पट्टचित्र परंपरा एक स्क्रॉल परंपरा है। 
  • यह मुख्यतः पश्चिम बंगाल व उड़ीसा की प्राचीन चित्रकला है। पुरी व अन्य मंदिरों के स्मृति चिह्नों के रूप में बनाई जाती है।
  • बंगाल में इसे कथा और गीत प्रस्तुत करने के लिए एक दृश्य उपकरण के रूप मेंं प्रयोग किया जाता है।
  • बंगाल में इसे पट्टदेखाबा, संथाल परगना में जादुपटुआ, राजस्थान में पट्ट और महाराष्ट्र में इसे चित्रकथी कहा जाता है।
  • पश्चिम बंगाल व उड़ीसा दोनों राज्यों की अलग अलग पट्टचित्र पद्धति को भौगोलिक संकेतों के साथ पंजीकृत किया गया है।

पट्टचित्र में प्रयोग होने वाले उपकरण-

  • पट्टचित्र पट या कपड़े पर बनाए जाते हैं, यह कपड़ा पतले कॉटन का होता है।
  • पट्टचित्र परंपरा में प्राकृतिक व प्राथमिक रंगों का प्रयोग होता था लाल,नीले व पीले रंग के साथ सफेद व काले रंग का ही प्रयोग किया जाता था। अन्य रंगों को प्राथमिक रंगों के मिश्रण द्वारा बनाया जा सकता है। वर्तमान में विभिन्न रंगों का प्रयोग होने लगा है।
  • रंगों का विभिन्न भाव के अनुसार प्रयोग किया जाता है जैसे- हास्य में सफेद रंग, उग्र भाव में लाल रंग, विचित्र या अजीब स्थिति में पीले रंगा का प्रयोग किया जाता है।
  • पारंपरिक पट्टचित्रों में प्रयोग होने वाले प्राकृतिक तत्व- जल, कैथट्टा(फल से बना गोंद), तैंतुली गुण्डा(इमली का पाउडर), तैंतुली मंजी(इमली के बीज), लाख, हरिताली(पीला पत्थर), हिंगुला(लाल गेरु), घनीला(नीला पत्थर), शंख गुण्डा( शंख पाउडर), दीपा रा शिखा( दीपशिखा), खड़ी पाथर( सफेद पत्थर) आदि के साथ काला माटी और गाय का गोबर भी प्रयोग किया जाता था।

उड़ीसा की पट्टचित्र परम्परा-

  • पटचित्र परंपरा जगन्नाथ व अन्य मंदिरों की उपासना से संबंधित है,
  • इन चित्रों की परंपरा पुरी के जगन्नाथ मंदिर व वैष्णव परंपरा से संबंधित है, और जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 8वी सदी में हो गया था। जगन्नाथ का जैसा रूप वर्तमान में है,उसके चित्रों का उल्लेख 15वी शताब्दी से मिलता है।   
  • चित्रों का पहला ज्ञात उपयोग जगन्नाथ मंदिर जितना पुराना माना जाता है, परंपरा है कि 15 दिन का समय जिसे अनसार कहा जाता है, इस समय भक्त भगवान को नहीं देख सकते किंतु उनके चित्रों को तो देख सकते हैं। अतः विकल्प के तौर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियों की जगह उनके पटचित्रों को रखा जाता है। और चित्रों को अनासरपति कहा जाता है।
  • पट्टचित्रों का अन्य पारंपरिक उपयोग गंजीफा कार्ड(ताश) को सजाने के लिए और रथ यात्रा के अनुष्ठान को सजाने के लिए किया जाता है।
  • परंपरा के अनुसार पुरी की यात्रा पट्टचित्र के बिना अधुरी रहती है, 
  • यह चित्रकला पूरी तरह से हस्त निर्मित है। उड़ीसा का रघुराजपुर गांव एकमात्र ऐसा गांव है जिसका प्रत्येक सदस्य पट्टचित्र परंपरा से जुड़ा है। 

बंगाल की पट्टचित्र परम्परा-

  • बंगाल की पट्टचित्र परंपरा पौराणिक, धार्मिक,लोककथा व सामाजिक कथाओं से संबंधित हैं। इसमें दुर्गा पट्टचित्र, आदिवासी पट्टचित्र, मेदिनीपुर पट्टचित्र, कालीघाट पट्टचित्र आदि हैं।
  • पश्चिम बंगाल में पटुआ गीत में संगीत के साथ पट्टचित्र कथा (रामायण महाभारत की कथा का कागज में चित्रण)प्रदर्शित करने की परंपरा है।
  • यह चलचित्र परंपरा है, जिसमें दिए के उजाले में कथा का निरुपण किया जाता था, फिल्म या सिनेमा का यह शुरुआती रूप था।
  • पश्चिम बंगाल के नोया गांव के निवासी भारत में एक मिसाल कायम कर रहे हैं, वे पूरी तरह से पट्टचित्र परंपरा के लिए समर्पित हैं और मुस्लिम होते हुए वे हिंदू धर्म से संबंधित कथाओं को चित्रित करते हैं और अपना उपनाम चित्रकार बताते हैं। जो साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।

पट्टचित्र परंपरा की चुनौतियाँ-

  • तस्वीरों के डिजीटल रूपों के कारण पट्टचित्र परंपरा की प्रसिद्धि कम हुई है।
  • प्राकृतिक रंगों के निर्माण में श्रम, समय व लागत, वर्तमान के पोस्टर रंगों से अधिक लगता है। 
  • बिचौलियों और व्यापारियों को कलाकारों से अधिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए कलाकार का अंतिम लक्ष्य कलाकार बना रहना नहीं रह गया है।

स्रोत-

https://www.thehindu.com/entertainment/art/traditional-indian-art-is-witnessing-a-contemporary-makeover-and-the-art-market-is-loving-it/article65944810.ece

https://www.academia.edu/28189555/_Pattachitra_a_traditional_hand_painted_textile_of_Orissa

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