परमाणु ऊर्जा : उपयोग व सीमाएं 

परमाणु ऊर्जा : उपयोग व सीमाएं 

परमाणु ऊर्जा : उपयोग व सीमाएं 

संदर्भ-  द हिंदू के अनुसार देश के परमाणु दायित्व कानून के मुद्दों के कारण महाराष्ट्र के जैतपुर में भारत के सबसे बड़े परमाणु परियोजना का कार्य वर्षों से रुका हुआ है। 

जैतपुर परमाणु ऊर्जा परियोजना

  • भारत के महाराष्ट्र के रत्नागिरी में परमाणु ऊर्जा परियोजना प्रस्तावित की गई है। 
  • यह संयंत्र न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्मित किया जाना है। 
  • इस परियोजना के लिए भारत व फ्रांस ने सांझेदारी की है।
  • परियोजना परमाणु दायित्व कानूनों के कारण लंबित है। 

परमाणु ऊर्जा- परमाणु ऊर्जा नाभिक से निकलने वाली ऊर्जा का एक रूप है, परमाणु का नाभिक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बना होता है। ऊर्जा के इस स्रोत को दो तरह से उत्पादित किया जा सकता है: विखंडन – जब परमाणुओं के नाभिक कई भागों में विभाजित हो जाते हैं  और संलयन – जब नाभिक एक साथ जुड़ जाते हैं। संलयन व विखण्डन के लिए उपयुक्त तत्व यूरेनियम व थोरियम को माना जाता है। परमाणु ऊर्जा का प्रयोग प्रारंभ में सैन्य गतिविधि के लिए किया गया। वर्तमान में विद्युत ऊर्जा के रूप में परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता को प्रमुखता दी जा रही है। 

  • भारत में 70000 टन तक य़ूरेनियम व 360000 टन तक थोरियम के भण्डार पाए जाते हैं। 

भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास-

    • भारत में परमाणु ऊर्जा को शांति व सुरक्षापूर्ण रूप से भारत में लाने और इनसे संबंधित नीतियाँ बनाने के लिए 1948 में परमाणु ऊर्जा कमीशन की स्थापना की गई। इन नीतियों को लागू करने के लिए 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई।
    • भारत में पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया गया। 
    • समेत भारत में परमाणु ऊर्जा का प्रथम प्रयोग सैन्य शक्ति में वृद्धि करने के लिए किया गया था। भारत में परमाणु ऊर्जा के रूप में सैन्य प्रदर्शन के लिए 1998 में कई प्रयोग किया गया।
  • न्यूक्लीय़र ट्रायड- यदि कोई देश जल, थल व वायु तीन क्षेत्रों में परमाणु हमला करने में सक्षम हो तो उसे न्यूक्लियर ट्रायड देश कहा जाता है। भारत वायु(मिराज 2000), थल(पृथ्वी-1) और जल(आईएनएस अरिहंत) में हमला करने में सक्षम है। अतः भारत न्यूक्लीय़र ट्रायड देश बन गया है।

परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर सीमाएं

परमाणु ऊर्जा के विघटित होने पर कई विध्वंशकारी घटनाएं हो सकती हैं, इसके साथ ही यह ऊर्जा के रूप में समाज के लिए एक वरदान भी साबित हो सकता है। किंतु कई बार इसके सदुपयोग करने में असावधानी या किसी भी अन्य कारण से विस्फोट की घटना हो सकती है। चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बाद वैश्विक रूप से परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर कई प्रतिबंध लगाए गए।

  • कंवेंशन ऑन सप्लीमेंट्री कंपन्जेशन फॉर न्यूक्लीयर डैमेज1997 में परमाणु ऊर्जा से हुई हानि के लिए न्यूनतम मुआवजे का प्रावधान, कंवेंशन ऑन सप्लीमेंट्री कंपन्जेशन फॉर न्यूक्लीयर डैमेज के तहत निर्धारित किया गया। यदि राष्ट्र से प्राप्त राशि इस मुआवजे के लिए पर्याप्त नहीं है तो सार्वजनिक पूँजी से राष्ट्र को मुआवजा प्रदान किया जा सकता है। इस कंवेंशन में भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता था, 2016 में भारतीय संसद ने भी इसकी पुष्टि की थी।  
  • परमाणु अप्रसार संधि- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसका उद्देश्य विश्व में परमाणु हथियारों के उत्पादन व परमाणु परीक्षण को रोकना है। संधि के लिए 1 जुलाई 1968 से हस्ताक्षर की प्रणाली शुरु हो गई। इस संधि में विश्व के 190 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं, किंतु भारत इस संधि में शामिल नहीं है। 

भारत में परमाणु ऊर्जा में सीमाएं

  • नो फर्स्ट यूस- भारत ने परमाणु हथियारों के उपयोग को सीमित करने के लिए 1998 में नो फर्स्ट यूज नीति को प्रारंभ किया था। जिसे औपचारिक रूप से 2003 में प्रारंभ किया गया था। जिसके तहत भारत, केवल परमाणु हमले के जवाब में ही परमाणु हथियारों का प्रयोग करेगा। 
  • भारत अमेरिका परमाणु समझौता- भारत अमेरिका ने 2006 में परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस संधि में हस्ताक्षर के बाद भारत ने असैन्य क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के उपयोग के लिए अन्य देशों से भी सहयोग प्राप्त किया।
  • भारत के परमाणु दायित्व कानून- भारत के परमाणु दायित्व कानून, देश के परमाणु घटना के विध्वंश या आपदा से पीड़ित लोगों के लिए मुआवजे का आबंटन सुनिश्चित करता है। इस कानून के तहत संयंत्र में उत्पन्न किसी भी आपदा के लिए संचालक को उत्तरदायी माना जाएगा। पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का गठन किया गया है।  
  • परमाणु क्षति अधिनियम- अधिनियम के तहत किसी भी असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने पर संयंत्र चालक का उत्तरदायी माना जाएगा। जिसके तहत संयंत्र दुर्घटना से पीड़ितों को मुआवजा प्रदान किया जा सकेगा। संचालक को 1500 करोड़ रुपये तक की राशि को कवर मुआवजा, दुर्घटना क्षति के रूप में देय होगा यदि क्षति 1500 करोड़ से अधिक होती है तब सरकार, देयता राशि द्वारा इसे 2100-2300 करोड़ तक सीमित करेगी। 

परमाणु दायित्व कानून की आवश्यकता – भारत 2032 तक विद्युत संयंत्रों में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग 63000 मेगावाट तक बढ़ाना चाहता है। वर्तमान में भारत 6780 मेगावाट तक की परमाणु ऊर्जा का उपयोग कर रहा है। विशाल रूप से परमाणु के प्रयोग के कारण भविष्य में परमाणु दुर्घटना की संंभावनाएं बढ़ सकती हैं। इन दुर्घटनाओं से पीड़ित लोगों को राहत दिलाने के लिए इस विधेयक की आवश्यकता महसूस हो गई है।

असैन्य परमाणु दायित्व कानून यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को परमाणु घटना या आपदा के कारण हुई परमाणु क्षति के लिए मुआवजा उपलब्ध है और यह निर्धारित करता है कि उन नुकसानों के लिए कौन उत्तरदायी होगा। 

भारत में विद्युत उत्पादन- 

भारत में विद्युत उत्पादन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है, जिसमें कोयला संयंत्र, जल विद्युत संयंत्र, परमाणु संयंत्र आदि आते हैं। भारत में ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत 400 Kwh/Yr है जबकि विश्व के प्रति व्यक्ति खपत 2400 kwh/Yr है जो भारत की खपत से बहुत अधिक है अतः भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में कई प्रयास करने की आवश्यकता है। वर्तमान में जैतपुर समेत हरियाणा, राजस्थान, गुजरात व कुडनकुलम में भी परमाणु संयंत्रों की स्थापना लक्षित है।

  • कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र 
  • जल विद्युत उत्पादन
  • गैर पारंपरिक स्रोतों द्वारा(नाभिकीय, वायु, ज्वारीय तरंग) 

परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता 

  • भारत में ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक होगा।
  • पारंपरिक ऊर्जा संयंत्रों से मुक्त कार्बन डाइ ऑक्साइड के कारण उत्पन्न जलवायु प्रभावों को कम करने में सहायक हो सकता है।
  • भारत के 2070 के शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेग। 
  • रूस युक्रेन युद्ध के बाद आए ऊर्जा संकट के बाद नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की आवश्यकता वैश्विक रूप से बढ़ गई है। अतः भविष्य में इस प्रकार के संकटों से बचने के लिए देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्र मददगार साबित हो सकता है। 

स्रोत

the hindu

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