10 Mar पाल-दाधव नरसंहार: गुजरात
- गुजरात में 7 मार्च को हुए ‘पाल-दाधव हत्याकांड’ ने 100 साल पूरे कर लिए। गुजरात सरकार ने इसे “जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार” बताया है।
पाल-दाधव नरसंहार के बारे में:
- यह नरसंहार 7 मार्च, 1922 को साबरकांठा जिले के पाल, चितरिया और दधवाव गाँवों में हुआ था, उस समय ये गाँव ‘इदर रियासत’ (वर्तमान गुजरात) का हिस्सा थे।
- मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में ‘एकी आंदोलन’ के तहत पाल, दधव और चितरिया के ग्रामीण ‘वारिस नदी’ के तट पर एकत्रित हुए।
- यह आंदोलन अंग्रेजों और सामंतों द्वारा किसानों पर लगाए गए भू-राजस्व कर (लगान) के विरोध में किया जा रहा था।
- ब्रिटिश अर्धसैनिक बल लंबे समय से ‘तेजावत’ की तलाश में थे। इस भीड़ की जानकारी मिलते ही ये बल तुरंत मौके पर पहुंच गए।
- तेजावत के नेतृत्व में करीब 2000 भीलों ने धनुष-बाण उठाकर लगान न देने के नारे लगाने शुरू कर दिए. इस पर ब्रिटिश कमांडर एचजी सटन ने ग्रामीणों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया और इस अंधाधुंध गोलीबारी में करीब 1,000 आदिवासी (भील) मारे गए।
- हालांकि मोतीलाल तेजावत गोलीबारी में बाल-बाल बच गए, और बाद में उन्होंने लौटकर इस जगह का नाम ‘वीरभूमि’ रखा।
विरासत:
- इस नरसंहार की शताब्दी पर गुजरात सरकार द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में इस घटना को “1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक क्रूर” बताया गया है।
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