पूर्वोत्तर से AFSPA को हटाने की समीक्षा 

पूर्वोत्तर से AFSPA को हटाने की समीक्षा 

संदर्भ क्या है?

  • केन्द्र सरकार ने 4 दिसंबर, 2021 को नागालैंड से AFSPA को वापस लेने की समीक्षा के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया। इस समिति का गठन किया गया है क्योंकि नागालैंड में सेना द्वारा 6 नागरिक मारे गए थे।
  • यह नागालैंड से सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA) को वापस लेने की संभावना की जांच करेगा।

AFSPA क्या है?

  • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 11 सितम्बर 1958 को पारित किया गया था। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड के ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सैन्‍य बलों को प्रारम्भ में इस विधि के अन्तर्गत विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह विधि सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया गया।
  • AFSPA एक ऐसा अधिनियम है जो सशस्त्र बलों को बिना वारंट के गिरफ्तार करने और यहां तक ​​कि ‘अशांत क्षेत्रों’ में विशिष्ट परिस्थितियों में गोली मारने की शक्ति देता है। यह अधिनियम सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष शक्तियां प्रदान करता है।
  • एक बार जब क्षेत्र को ‘अशांत’ घोषित कर दिया जाता है, तो उसे अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के अनुसार कम से कम 6 महीने तक यथास्थिति बनाए रखनी होती है।

AFSPA के अंतर्गत राज्य 

  • जब कुछ राज्यों में आतंकवाद का प्रभाव था, उस दौरान पूर्वोत्तर राज्यों, पंजाब और जम्मू-कश्मीर पर AFSPA लगाया गया था। 
  • पंजाब इस अधिनियम को निरस्त करने वाला पहला राज्य था। इसके बाद त्रिपुरा और मेघालय का स्थान है। 
  • वर्तमान में, यह अधिनियम नागालैंड, असम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है। 
  • असम में, तीन जिले और चार पुलिस स्टेशन इस अधिनियम के तहत हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मार्च 2018 में मेघालय से AFSPA को पूरी तरह से हटा दिया था। 2018 और 2019 के दौरान अरुणाचल प्रदेश के कई पुलिस स्टेशनों से भी AFSPA को हटा दिया गया था।

विभिन्न संस्थाओं के AFSPA पर विचार 

संयुक्त राष्ट्र 

  • 23 मार्च 2009 को, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त नवनेथेम पिल्ले ने भारत से AFSPA को निरस्त करने के लिए कहा। उन्होंने कानून को “औपनिवेशिक युग का कानून कहा जो समकालीन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन करता है।”
  • 31 मार्च 2012 को, संयुक्त राष्ट्र ने भारत से AFSPA को यह कहते हुए रद्द करने के लिए कहा कि, भारतीय लोकतंत्र में इसका कोई स्थान नहीं है। यह अंतरराष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन है।

जस्टिस जीवन रेड्डी आयोग

आयोग ने AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की क्योंकि “यह अधिनियम घृणा, उत्पीड़न और वर्चस्व  के साधन का प्रतीक है”। इसने 2005 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। भारत सरकार ने AFSPA को निरस्त करने के लिए न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी आयोग द्वारा की गई सिफारिश को खारिज कर दिया।

दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग

  • दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने “सार्वजनिक व्यवस्था” पर अपनी पांचवीं रिपोर्ट में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 को निरस्त करने की सिफारिश की। इसने टिप्पणी की कि इसे समाप्त करने से पूर्वोत्तर भारत के लोगों के बीच भेदभाव और अलगाव की भावना दूर हो जाएगी। 
  • आयोग ने उत्तर पूर्वी राज्यों में संघ के सशस्त्र बलों को तैनात करने के लिए एक नया अध्याय सम्मिलित करते हुए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन करने की सिफारिश की।
  •  इसने शासन के समावेशी दृष्टिकोण में निहित पुलिस और आपराधिक न्याय के एक नए सिद्धांत का समर्थन किया।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AFSPA की आड़ में सशस्त्र बलों द्वारा की गई किसी भी मुठभेड़ की गहन जांच की जानी चाहिए। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के शब्दों में “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीड़ित एक आम व्यक्ति था या आतंकवादी, न ही इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमलावर एक आम व्यक्ति था या राज्य। कानून दोनों के लिए समान है और समान रूप से है दोनों के लिए लागू। 
  • यह लोकतंत्र की आवश्यकता है और कानून के शासन के संरक्षण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण की आवश्यकता है।”

AFSPA के पक्ष और विपक्ष में तर्क

पक्ष:

इस कानून के समर्थकों का कहना है कि सशस्त्र बल आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में और इस कानून द्वारा प्रदत्त शक्तियों के कारण देशद्रोह के मामलों में प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम हैं। इस प्रकार यह कानून देश की एकता और अखंडता की रक्षा में योगदान दे रहा है। इस कानून के प्रावधानों ने अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कानून के माध्यम से प्रदान की गई अतिरिक्त शक्तियों के कारण सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा है।

विपक्ष

इस कानून के माध्यम से प्रदत्त शक्तियों का सशस्त्र बलों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है। सशस्त्र बलों में निहित अत्यधिक शक्तियां उन्हें असंवेदनशील और गैर-पेशेवर बनाती हैं। उन पर फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा है।

  • एक ओर यह 50 वर्षों से अधिक समय में वांछित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका, दूसरी ओर इसके कारण होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं को देखते हुए इसकी समीक्षा करना आवश्यक हो गया है।
  • यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के साथ-साथ नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित करता है, जिससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। 
  • इसके लागू होने के दशकों बाद भी अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बहाल करने में यह सफल नहीं रहा है, इसलिए इसे हटा दिया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष 

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम की समकालीन परिवर्तित वातावरण में समीक्षा की जानी चाहिए एवं जिन राज्यों या क्षेत्रों में इसमें ढील दी जा सकती है वहां ऐसा किया जाना चाहिए। क़ानून और व्यवस्था तथा आतंरिक सुरक्षा के संकट को विभिन्न माध्यमों जैसे संस्थानिक और गैर-सरकारी प्रयास, कम्युनिटी पुलिसिंग,संवेदनशीलता प्रशिक्षण इत्यादि की द्वारा समाधान किया जाना चाहिए । दीर्घकालिक रूप से इस क़ानून को कैसे समाप्त किया जाए और कौनसे वैकल्पिक माध्यम विकसित किये जायें, उन पर विचार होना चाहिए ।

Yojna IAS daily current affairs Hindi med 27thAugust

 

 

No Comments

Post A Comment