प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के – ‘ भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता, भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्त्व, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, जनगणना 2011, जनसांख्यिकीय लाभांश, कुल प्रजनन दर (TFR), जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि  से संबंधित है।)

 

ख़बरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में जारी भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) के एक रिपोर्ट के  विश्लेषण के अनुसार, 1950 से 2015 के बीच भारत में हिंदुओं की जनसंख्या में 7.82% की कमी आई है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या में 43.15% की वृद्धि हुई है। 
  • इस रिपोर्ट के विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य यह दर्शाना है कि भारत में विविधता को बढ़ावा देने का अनुकूल वातावरण है। हालांकि, इस रिपोर्ट के समय और उसके प्रस्तुतीकरण पर कुछ सवाल उठाए गए हैं, जैसे कि यह डेटा पुराना है और इसे नए तरीके से पेश किया गया है।
  • इस रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर यह भी बताया गया है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि या स्थिरता महिलाओं की शिक्षा, सशक्तिकरण, बाल मृत्यु दर और अन्य सामाजिक-आर्थिक कारकों से सीधे जुड़ी होने के कारण हुआ है, न कि भारत के किसी भी व्यक्ति के धर्म के या उसकी धार्मिक पहचान के कारण हुई है।

 

विश्व भर में धार्मिक जनसंख्या के रुझानों पर PM-EAC की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष भारत के संदर्भ में इस प्रकार हैं – 

  • OECD देशों की धार्मिक जनसंख्या में परिवर्तन : सन 1950 से 2015 के बीच, 38 OECD देशों में से 30 में रोमन कैथोलिक धार्मिक समूह के अनुपात में कमी आई है।
  • वैश्विक स्तर पर धार्मिक जनसंख्या में गिरावट : इसी अवधि में, 167 देशों में बहुसंख्यक धार्मिक समूहों की जनसंख्या में औसतन 22% की गिरावट देखी गई। OECD देशों में यह गिरावट औसतन 29% थी।
  • अफ्रीका में धार्मिक परिवर्तन : सन 1950 में, अफ्रीका के 24 देशों में जीववाद या स्थानीय मूल के लोग  धार्मिक रूप से बहुसंख्यक के रूप में प्रमुखता थे, लेकिन 2015 तक इन देशों में से किसी में भी स्थानीय धर्म के अनुयायी बहुसंख्यक नहीं रहे।
  • दक्षिण एशिया में धार्मिक जनसंख्या की वृद्धि : दक्षिण एशिया में बहुसंख्यक धार्मिक समूहों की जनसंख्या बढ़ रही है, जबकि बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान, और अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों की जनसंख्या में कमी आई है।

यह रिपोर्ट धार्मिक जनसंख्या के वैश्विक रुझानों को समझने में मदद करती है और विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक समूहों के बीच जनसंख्या गतिशीलता को दर्शाती है।

 

भारत में धार्मिक जनसंख्या के रुझानों का संक्षिप्त विश्लेषण : 

 

 

  • हिंदू जनसंख्या : 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में हिंदू जनसंख्या में 7.82% की कमी आई, जिससे भारत में अब हिंदू जनसंख्या लगभग 79.8% हो गई है।
  • अल्पसंख्यक जनसंख्या : मुस्लिम जनसंख्या 9.84% से बढ़कर 14.095% हो गई, ईसाई जनसंख्या 2.24% से बढ़कर 2.36%, सिख जनसंख्या 1.24% से बढ़कर 1.85%, और बौद्ध जनसंख्या 0.05% से बढ़कर 0.81% हो गई।
  • जैन और पारसी समुदाय : भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार जैन जनसंख्या 0.45% से घटकर 0.36% हो गई, जबकि पारसी जनसंख्या में 85% की गिरावट के साथ यह 0.03% से 0.0004% रह गई।
  • प्रजनन दर : भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्तमान में 2 के आसपास है, जो वांछित TFR 2.19 के निकट है। हिंदुओं के लिए TFR 1991 में 3.3 से घटकर 2015 में 2.1 और 2024 में 1.9 हो गई। मुसलमानों के लिए TFR 1991 में 4.4 से घटकर 2015 में 2.6 और 2024 में 2.4 हो गई।
  • अल्पसंख्यकों को समान लाभ मिलना : भारत में अल्पसंख्यक समुदायों को समान लाभ मिलता है और वे सुखद जीवन जीते हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर जनसांख्यिकीय बदलाव चिंता का विषय है।

यह विश्लेषण भारत में धार्मिक जनसंख्या के बदलते रुझानों और विभिन्न समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दरों को समझने में सहायक है।

जनसांख्यिकी प्रतिरूप और इसकी प्रासंगिकता :

जनसांख्यिकी प्रतिरूप : मानव जनसंख्या की विविधता और रुझानों का अध्ययन है। यह जन्म दर, मृत्यु दर, प्रवासन, और जनसंख्या की संरचना जैसे तत्वों के विश्लेषण से उत्पन्न होता है।

प्रासंगिकता :

  • जनसंख्या की प्रवृत्तियों की समझ : जनसांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण करके, हम समय के साथ जनसंख्या के पैटर्न या प्रणालियों की पहचान कर सकते हैं।
  • आधारभूत ढाँचा और सेवाओं की योजना : यह जानकारी आधारभूत ढाँचा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, और सामाजिक सेवाओं की योजना बनाने में मदद करती है।
  • कारणों और परिणामों का विश्लेषण : यह जनसंख्या में परिवर्तन के पीछे के कारणों और उनके परिणामों को समझने में सहायक है।
  • नीति निर्माण और कार्यान्वयन : जनसांख्यिकीय जानकारी से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, और शहरी नियोजन से संबंधित नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन में मदद मिलती है।
  • बुजुर्ग जनसंख्या के लिए नीतियाँ : वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों का निर्धारण।

यह  स्पष्ट रूप से जनसांख्यिकीय प्रतिरूप और इसकी प्रासंगिकता को परिभाषित करता है।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत : 

 

  • माल्थसीय जनसंख्या सिद्धांत : थॉमस रॉबर्ट माल्थस, एक प्रतिष्ठित ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे ने वर्ष 1798 में अपने निबंध में जनसंख्या के विकास और संसाधनों की सीमाओं पर एक विचार प्रस्तुत किया था।
  • जनसंख्या वृद्धि की गति : माल्थस ने बताया कि जनसंख्या एक ज्यामितीय अनुक्रम में बढ़ती है (उदाहरण: 1, 2, 4, 8, 16…), जबकि संसाधनों की वृद्धि एक अंकगणितीय अनुक्रम में होती है (उदाहरण: 1, 2, 3, 4, 5…), जिससे जनसंख्या संसाधनों की वृद्धि क्षमता को पार कर जाती है।
  • संसाधनों की सीमाएँ : माल्थस ने दो मुख्य संसाधन सीमाओं की पहचान की – भोजन के लिए निर्वाह और पर्यावरण की जनसंख्या समर्थन क्षमता। उनका मानना था कि जनसंख्या वृद्धि से इन संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा, जिससे अकाल, भूख, बीमारी, और संघर्ष जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होंगी।
  • जनसंख्या नियंत्रण की जाँच : माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो प्रकार की जाँच की पहचान की:
  • सकारात्मक जाँच : प्राकृतिक कारक जैसे अकाल, बीमारी, और युद्ध जो जनसंख्या को कम करते हैं।
  • निवारक जाँच : व्यक्तियों और समुदायों द्वारा जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए लिए गए सचेत निर्णय, जैसे विलंबित विवाह, संयम, और जन्म नियंत्रण।

हालांकि, माल्थस की भविष्यवाणियाँ अंततः गलत साबित हुईं, क्योंकि कृषि प्रौद्योगिकी में उन्नति ने भारत जैसे देशों को खाद्य अधिशेष वाले देशों में परिवर्तित कर दिया।

जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत : जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत किसी भी समाज के आर्थिक और सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों के साथ जनसंख्या परिवर्तन की प्रक्रिया को दर्शाता है। जिसमें विभिन्न चरण होते हैं । जो निम्नलिखित है –  

  • चरण 1: पूर्व औद्योगिक समाज – इस चरण में, उच्च जन्म और मृत्यु दर के कारण जनसंख्या स्थिर रहती है। पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली और जन्म नियंत्रण की कमी के कारण जन्म दर अधिक होती है, जबकि स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और बीमारियों के प्रसार के कारण मृत्यु दर भी अधिक होती है।
  • चरण 2: संक्रमणकालीन चरण – औद्योगीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ, मृत्यु दर में कमी आती है, लेकिन जन्म दर अभी भी उच्च रहती है, जिससे जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है।
  • चरण 3: औद्योगिक समाज – शहरीकरण, शिक्षा में वृद्धि, आर्थिक परिवर्तन, और महिला सशक्तीकरण के प्रभाव से जन्म दर में कमी आती है। इस चरण में जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • चरण 4: उत्तर-औद्योगिक समाज – जन्म और मृत्यु दर दोनों कम होती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर हो जाती है या धीरे-धीरे बढ़ती है। जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे जा सकती है, जिससे जनसंख्या की उम्र बढ़ने और जनसांख्यिकीय असंतुलन की संभावना बढ़ जाती है।
  • चरण 5 – जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत के पांचवें चरण में जहाँ जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाती है, जिससे जनसंख्या में कमी आती है। वहीं इस चरण में एक महत्वपूर्ण वृद्ध जनसंख्या और जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ पैदा होती हैं।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

 

 

  • प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा जारी रिपोर्ट में 1950 से 2015 तक की अवधि में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया गया है। 
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में हिंदुओं की आबादी में 7.82% की कमी आई है, जबकि मुस्लिम आबादी में 43.15% की वृद्धि हुई है। इस रिपोर्ट को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं।
  • इस तरह की जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के समाधान के लिए विभिन्न नीतियों और उपायों पर चर्चा हो रही है। 
  • इस तरह की समस्या के समाधान के रूप में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और आर्थिक अवसरों की समान पहुँच प्रदान करना, सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क को मजबूत करना, और समावेशी विकास की नीतियों को अपनाना शामिल हैं। 
  • इसके अलावा, भारत में सामाजिक सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने वाली पहलें भी महत्वपूर्ण हैं।
  • भारत की विविधता और बहुलतावादी संस्कृति को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि सभी समुदायों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ाया जाए और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित किए जाएँ। 
  • भारत के नीति निर्माताओं, सामाजिक संगठनों, और नागरिक समाज के सदस्यों को मिलकर इस समस्या के समाधान के रूप में एकसाथ मिलकर काम करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस एवं पीआईबी।  

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत को सर्वाधिक जनसांख्यिकीय लाभांश वाला देश किस कारण से माना जाता है? ( UPSC – 2021)

A. भारत में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग की उच्च जनसंख्या।

B. भारत की कुल उच्च जनसंख्या।

C. भारत में 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या। 

D. भारत में 15-64 वर्ष के आयु वर्ग की कुल उच्च जनसंख्या।

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. ”महिलाओं को सशक्त बनाना जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” इस कथन के आलोक में यह चर्चा कीजिए कि भारत में जनसंख्या शिक्षा एवं जागरूकता के प्रमुख उद्देश्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ? ( UPSC CSE – 2021)

 

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