बहुविवाह या पॉलीगेमी 

बहुविवाह या पॉलीगेमी 

बहुविवाह या पॉलीगेमी 

संदर्भ- हाल ही में असम के मुख्यमंत्री के अनुसार राज्य सरकार के द्वारा एक समिति का गठन किया जाएगा, जो यह जांच करेगी कि बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्य सरकार को है या नहीं। 

 बहुविवाह

बहुविवाह या polygamy, दो शब्दों से मिलकर बना है- बहु या poly और विवाह या gamos, जो एक से अधिक विवाह को संदर्भित करता है। 

समस्त विश्व में बहुविवाह की प्रथा प्राचीनकाल से देखी जा सकती है, किंतु बहुविवाह को अनिवार्य करार नहीं दिया गया है। वर्तमान में कई देशों ने बहुविवाह की परंपरा को नकार कर एकल विवाह की परंपरा को अपनाया है। किंतु कुछ देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन व दक्षिण अफ्रीका में आज भी बहुविवाह की परंपरा बनी हुई है। 

अन्य देशों के साथ भारत के प्राचीन ग्रंथों में भी बहुविवाह के वर्णन मिलते हैं जैसे महाभारत में एक ब्राह्मण, तीन विवाह कर सकते हैं और एक क्षत्रिय दो विवाह कर सकते हैं। रामायण में राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थी। किंतु भारतीय संस्कृति में भगवान राम के जीवन को आदर्श माना जाता है जो एकपत्नीव्रत थे। 

बहुविवाह के प्रकार

बहु पत्नी विवाह – इस प्रकार के बहुविवाह वैश्विक समाज मे अधिकतर देखे गए हैं। भारतीय इतिहास में भी एक समय में एक से अधिक विवाह करने की अनुमति केवल पुरुषों को दी गई गई थी। और यह पूर्णतः सामान्य था। यह प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था, अधिकतर विवाह साम्राज्य विस्तार व राज्य के संरक्षण के लिए किए जाते थे।

बहु पति विवाह – स्त्री द्वारा एक से अधिक पुरुषों के साथ विवाह, एक असामान्य घटना थी जिसका इतिहास तो है किंतु इसे असामान्य ही माना जाता रहा है। महाभारत में द्रौपदी का विवाह एक असामान्य घटना मानी जाती है। 

सामूहिक विवाह – इस व्यवस्था में एक समुदाय अन्य समुदाय के साथ स्वयं को विवाहित मानता है। इस समुदाय की कड़ी परिवार से ही शुरुआत होती है। इस प्रकार की प्रथा भारत की मूल व्यवस्था जिसे हिंदू संस्कृति कहा जाता है, के साथ मेल नहीं खाता है। इस प्रकार की परंपरा आदिवासी समाज में देखने को मिल सकती हैं। 

भारत में बहुविवाह के आंकड़े

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार बहुविवाह का प्रचलन विभिन्न धार्मिक समुदायों के आंकड़े भिन्न भिन्न पाए गए-

  • ईसाई- 2.1%
  • मुस्लिम- 1.9%
  • हिंदू –  1.3%
  • अन्य धार्मिक समुदाय़ – 1.6%
  • सर्वाधिक बहुपत्नी विवाह के आंकड़े आदिवासी समुदायों में पाई गई है। 

हिंदू परंपरा व बहुविवाह

भारतीय सभ्यता में प्राचीनकाल से बहुविवाह की परंपरा मिल जाती है। सिंधु सभ्यता जिसे हिंदू संस्कृति से मिलता जुलता माना गया है, में भी बहुविवाह के साक्ष्य मिल जाते हैं। इसके साथ ही वैदिक काल जिसे भारत की संस्कृति व सभ्यता का मूल माना जाता है में भी बहुविवाह के साक्ष्य मिल जाते हैं। वर्तमान में हिंदू विवाह प्रणाली में एक समय में एक से अधिक विवाह को गैरकानूनी माना जाता है। 

हिंदू विवाह संबंधी कानून

  • हिंदू विवाह अधिनियम 1855 के अनुसार हिंदू धर्म से संबंधित लोगों को बहुविवाह की अनुमति मही दी गई है।
  • भारतीय दण्ड संहिता 1855 की धारा 17 व भारतीय दण्ड संहिता 1860 अधिनियम का विरोध करने वालों के लिए दण्ड का प्रावधान भी किया गया है।
  • अधिनियम के अंतर्गत हिंदू के साथ बौद्ध जैन व सिक्ख को भी हिंदू समुदाय का माना गया है।  

पारसी विवाह व तलाक अधिनियम- 1936 में एक अधिनियम के अंतर्गत सर्वप्रथम, पारसी समुदाय ने बहुविवाह को प्रतिबंधित करने के साथ द्विविवाह को अवैध घोषित कर दिया था। 

इस्लाम परंपरा व बहुविवाह

  • मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के अंतर्गत एक मुस्लिम एक समय में चार विवाह कर सकता है। 
  • मुस्लिम कानून में इन विवाहों को कानूनी मान्यता भी प्राप्त है। यह कानून केवल एक मुस्लिम पुरुष पर लागू होता है, किंतु समान कानून, एक महिला के लिए अपराध की श्रेणी में आता है। 
  • विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत कई मुस्लिम महिलाओं ने बहुविवाह का विरोध किया है। 
  • अधिनियम 1954 के अंतर्गत हिंदू, मुस्लिम, जैन, ईसाई, सिक्ख व बौद्ध शामिल हैं।
  • भारत के मुस्लिम समुदायों में बहुविवाह को अवैध नहीं किया गया है, क्योंकि मुस्लिम बहुविवाह को धार्मिक प्रथा के रूप में माना जाता है। 
  • तुर्की व ट्यूनीशइया जैसे देशों में मुस्लिमों में बहुविवाह को समाप्त कर दिया गया है।

बहुविवाह से संबंधित न्यायिक कार्यवाहियाँ

परायंकंदियाल बनाम के. देवी व अन्य के निर्णय में हिंदू समाज के आदर्श विचारधारा थे, जिसने दूसरी शादी की निंदा की थी। 

बॉम्बे राज्य बनाम नरसु अप्पा आली के निर्णय के अनुसार विवाह से संबंधित निर्णयों को लागू करना विधायिका के अधिकार में रहेगा। इसके साथ ही बॉम्बे अधिनियम 1946 जो द्विविवाह रोकथाम से संबंधित है, एक भेदभावरहित कानून है। 

जावेद और अन्य बनाम हरियाणा राज्य 2003- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार मुस्लिम कानून में बहुविवाह (चार विवाह) को अनुमति दी गई है, इसे अनिवार्य बनाना उनके मुस्लिम धार्मिक प्रथाओं का उल्लंघन नहीं होगा। 

विभिन्न देशों के समाज में बहुविवाह की इस प्रथा को प्राचीम समय से तत्कालीन समाज व परिस्थिति के अनुसार उचित समझा जाता था किंतु वर्तमान विकसित समाज में बहुविवाह एक समस्या बनकर अधिक उभरा है, अतः इसे हर प्रकार से प्रतिबंधित करना किसी भी समुदाय के लिए अहितकर नहीं होना चाहिए।  

स्रोत

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