बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा

संदर्भ- हाल ही में 15 नवंबर को आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिरसा मुंडा के उलिहातु गांव की यात्रा की और जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।

18वी सदी में झारखण्ड के मुण्डा आदिवासी-

  • 18 वी सदी में मुंडा आदिवासी झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करते थे।
  • बिरसा मुंडा के जन्म से पूर्व से ही अंग्रेजों ने आदिवासी भूमि पर अपना अधिकार करना प्रारंभ कर दिया।
  • अंग्रेजों के साथ स्थानीय जमींदार भी आदिवासियों के अधिकारों का दोहन करने में लिप्त थे, अंग्रेजों के साथ मिलकर आदिवासी समुदाय को बंधुआ मजदीर बनने के लिए विवश किया जा रहा था।
  • आदिवासी खूंटकट्टी कृषि व भूमि स्वामित्व प्रणाली को समाप्त करते हुए सामंती प्रणाली प्रारंभ कर दी गई।
  • आदिवासियों को उनकी ही भूमि में मजदूरी करने के लिए विवश कर दिया गया।

बिरसा मुंडा

  • आदिवासी समाज के लोकनायक के रूप में विख्यात बिरसा मुंडा का जन्म झारखण्ड के कुरुंबड़ा गांव में निषाद परिवार में 15 नवम्बर 1875 में हुआ था। जबकि उलिहातु बिरसा मुंडा का पैतृक निवास स्थान था।  
  • अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयनागपाल से प्राप्त की और उनसे प्रभावित होकर जर्मन पब्लिक स्कूल में दाखिला लेने के लिए ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया।
  • छोटा नागपुर में ब्रिटिश शासन व ईसाई मिशनरियों की गतिविधि के कारण आदिवासी इनके विद्रोही हो गए।
  • बिरसा मुंडा ने सरदार आंदोलन के केंद्र चाईबासा में काफी समय बिताया। जिससे सरदार आंदोलन का बिरसा पर काफी गहरा असर हुआ। 
  • वे आदिवासी समुदाय के लिए बिरसैत का पालन करने वाले भगवान के समान हो गए तथा ब्रिटिश शासकों द्वारा किए गए अत्याचार के विरुद्ध मुंडा जनजाति को नेतृत्व प्रदान किया। 

मुंडा विद्रोह- 

  • इसे उलगुलान आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है।
  • विद्रोह से पूर्व बिरसा मुंडा ने आदिवासियों में अंगरेजों की नीतियों के विरुद्ध चेतना लाने का प्रयास किया।
  • अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लेने पर उन्होंने धर्म के माध्यम से जनचेतना लाने का प्रयास किया, और बिरसैत धर्म की स्थापना की।
  • बिरसैत धर्म के माध्यम से उन्होंने सामाजिक अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया, वे आदिवासियों के लिए भगवान यानि ‘धरती आबा’ हो गए।
  • उन्हें भगवान के रूप में जननायक होने का लाभ अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में समस्त आदिवासियों के समर्थन के रूप में प्राप्त हुआ।
  • 24 दिसंबर 1899 में बिरसा अनुयायियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। और 5 जनवरी तक समस्त मुंटा क्षेत्र में विद्रोह फैल गया।
  • अंग्रेजों ने विद्रोह का दमन करना प्रारंभ किया, 9 जनवरी 1900 को डोम्बार पहाड़ी पर सैकड़ों आदिवासी शहीद हो गए। कई आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
  •  3 मार्च 1900 को ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया औऱ मुंडा विद्रोह का अंत हो गया।

मुंडा विद्रोह का मूल कारण-

धार्मिक कारण- आदिवासी क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों के आगमन से आदिवासियों का धर्म परिवर्तन किया गया। जिससे अन्य आदिवासी, अंग्रेजों और ईसाई धर्म के प्रति घृणा की भावना रखने लगे। आदिवासी संस्कृति को बचाने तथा आदिवासी संस्कृति से अंधविश्वास को कम करने के लिए बिरसा मुण्डा ने अन्य धर्म की स्थापना की और ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके आदिवासियों को पुनः आदिवासी समाज में प्रविष्ट कराया। 

जमींदारी व्यवस्था-  ब्रिटिश अधिकारियों के साथ मिलकर स्थानीय जमींदारों ने क्षेत्रीय जल, जंगल, जमीन समेत सभी प्राकृतिक संसाधनों को धीरे धीरे हड़प लिया। सूदखोर जमींदार जिन्हें वे दिकू कहकर बुलाते थे, ने कर्ज के बदले उनकी जमीन लेना शुरु कर दिया। अतः आदिवासियों ने अपने प्राकृतिक संसाधनों के लिए बिरसा मुंडा के साथ विद्रोह कर दिया।

खूंटकट्टी प्रणाली का अंत-  इस प्रणाली मे मुण्डा आदिवासी, जंगलों की सफाई कर जमीन को कृषि योग्य बनाते थे, इस भूमि पर किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व न होकर सम्पूर्ण समुदाय का स्वामित्व होता था। आदिवासियों द्वारा कृषि योग्य बनाई गई भूमि पर अंग्रेजों की जमींदारी व्यवस्था के तहत जमींदारों का अधिकार हो गया। खूंटकट्टी प्रणाली का अंत कर अन्य वन क्षेत्र की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे आदिवासी भूमिहीन हो गए, और अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।

स्रोत

https://indianexpress.com/article/explained/explained-culture/marking-the-birth-anniversary-of-tribal-leader-birsa-munda-8270023/

Yojna IAS Daily current affairs hindi med 17th November

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