भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 

संदर्भ- हाल ही में भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना 138वां स्थापना वर्ष मनाया। कांग्रेस का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास का अभिन्न अंग है। वर्तमान में भारत जोड़ों यात्रा कांग्रेस की एक नई पहल है।

कांग्रेस की स्थापना- 

वर्तमान में एक राजनीतिक दल के रूप में विख्यात कांग्रेस का गठन 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ। जिनमें ह्यूम, दादाभाई नौरोजी, दीनशावाचा, फिरोजशाह मेहता, केटी तैलंग जैसे नेता शामिल थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक महासचिव एलन एक्टीवियन ह्यूम(सेवानिवृत्त सिविल सेवा अधिकारी) थे जिन्होंने व्योमेश चंद्र बैनर्जी को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन से पूर्व देश में कई राजनीतिक संगठन अलघ अलग स्थानो पर कार्य र रहे थे। इस समय देश के नेताओं को एक संगठन की आवश्यकता थी जो पूरे देश में राजनीतिक गतिविधियों के कार्यक्रम तैयार करने के लिए मंच तैयार करे। इस तरह के संघ बनाने की योजना विभिन्न नेताओं ने शुरु कर दी, 1883 में अखिल भारतीय सम्मेलन कलकत्ता मेंआयोजित किया गया जिसमें भारत के प्रमुख कस्बों के नेताओं ने भाग लिया। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के घोर आलोचक ह्यूम ने 1883 के सम्मेलन की सोच को आगे बढ़ाते हुए 28 दिसम्बर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की।

प्रारंभिक प्रकृति व उद्देश्य- 

कांग्रेस की स्थापना के समय कांंग्रेस के प्रतिनिधि मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, कांग्रेस के अधिकतर नेताओं ने विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर राजनीति में प्रवेश कर रहे थे, वे ब्रिटिश न्याय की भावना से भलीभांति अवगत थे और उदारवादी राजनीति में विश्वास रखते थे। जिसके अनुसार सरकार के समक्ष संयमित व उदार मांगें रखी जाती थी। इस समय कांग्रेस का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति न होकर भारतीयों के पक्ष में ब्रिटिश राजनीति को प्रभावित करना था। जिसे सुरक्षा वॉल्व के रूप में भी जाना जाता है। 

उद्देश्य

  • विभिन्न तत्वों का एक राष्ट्र के रूप में विलय और राष्ट्र का उत्थान 
  • इंग्लैण्ड व भारत के मध्य संघ का समेकन
  • भारत के श्रमिकों के बीच एकता को बढ़ावा देना।
  • नस्ल, पंथ व आपसी पूर्वाग्रह के लिए काम करना।
  • इंग्लैण्ड व भारत में एक साथ सार्वजनिक सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करना।

कांग्रेस का विभाजन व एकता –

19 वी शताब्दी के अंत में कांग्रेस में एक नई विचारधारा के नेताओं का आगमन होने लगा। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल, अरविंदो घोष आदि नेता कांग्रेस की उदारवादी नीति से निराश थे और क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाले गरमपंथी विचारधारा चाहते थे। जो तत्कालीन अकाल(1876,1895), बंगाल विभाजन(1905) और सरकार की नीतियों से त्रस्त जनजीवन को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिला सके। इस प्रकार कांग्रेस की नीतियों व स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्यों को लेकर निरंतर मतभेद के चलते सूरत अधिवेशन 1907 में कांग्रेस का विभाजन हो गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता रास बिहारी बोष ने की थी।

1916 में लखनऊ में कांग्रेस का सम्मेलन हुआ जिसमें गरम दल भी कांग्रेस में पुनः शामिल हो गया। इस सम्मेलन को हिंदू मुस्लिम एकता का पर्याय भी माना जाता है क्योंकि इस सम्मेलन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने समान मांगें सरकार के सामने रखी। इसी दौर में गांधीजी का प्रवेश भी भारतीय राजनीति व कांग्रेस में हुआ।

लखनऊ समझौते में कांग्रेस(नरम व गरम दल) व मुस्लिम लीग के संयुक्त उद्देश्य

  • साम्प्रदायिक मतदाता
  • प्रत्यक्ष चुनाव
  • भारतीय परिषद का उन्मूलन
  • विधान परिषद का उन्मूलन

स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय भी कांग्रेस के विभाजन व संयुक्त होने का क्रम जारी रहा। जो इंदिरा गांधी समय भी चलता रहा। वर्तमान में भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस को संयुक्त व मजबूत करने के लिए एक कदम है। जवाहरलाल नेहरू ने भी देश के पहले आम चुनाव के समय 40000 किमी की यात्रा की थी और लगभग साढ़े तीन करोड़ लोगों को सीधे सम्बोधित किया था। 

https://indianexpress.com/article/explained/explained-politics/on-congress-foundation-day-a-brief-history-of-the-party-8348538/

https://www.orfonline.org/hindi/research/jawaharlal-nehru-balance-governance/

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 29th December

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