भारतीय रुपये में लगातार गिरावट के कारण और प्रभाव

भारतीय रुपये में लगातार गिरावट के कारण और प्रभाव

संदर्भ क्या है ?

  • वर्ष2022 में भारतीय रुपये में अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगातार गिरावट देखी जा रही है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया इतिहास में पहली बार 80 के काफी पास पहुंच चुका है। प्रश्न है कि लगातार हो रही इस गिरावट में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्या संदेश निकलकर आता है , लेकिन रुपये की कीमत के गिरने के पीछे कई कारण हैं अन्तर्निहित हैं।
  • डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में गिरावट वर्ष 2022 की शुरुआत से ही देखी जा रही है और फरवरी में यूक्रेन युद्ध के शुरू हो जाने के बाद से संकट और बढ़ गया।

मूल्य ह्रास क्या है?

मुद्रा मूल्य ह्रास को एक अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मूल्य में गिरावट के रूप में परिभाषित किया जाता है। रुपये के मूल्य ह्रास का आशय अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया के कम मूल्यवान होने से है। मूल्य ह्रास के कारण रुपया पहले की तुलना में कमजोर होता है। ऐसा सरकार के निर्णय के कारण नहीं, बल्कि आपूर्ति और मांग- पक्ष के कारकों के कारण होता है।

अवमूल्यन और मूल्य ह्रास में क्या अंतर है ?

अवमूल्यन शब्द का प्रयोग तब किया जाता है, जब सरकार निश्चित दर प्रणाली के अंतर्गत मुद्रा के मूल्य को कम करती है। मूल्य ह्रास तब होता है, जब अस्थायी विनिमय दर में गिरावट के कारण एक मुद्रा के मूल्य में कमी या ह्रास होता है।

वर्तमान में रुपए के मूल्य ह्रास के क्या कारण हैं ?

  • रूस- यूक्रेन युद्धःभारतीय रुपए में गिरावट के पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध प्रमुख कारण के रूप में देखा जा रहा है। रूस के यूक्रेन पर आक्रमण किये जाने के कारण भारतीय रुपये में ही नहीं बल्कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं में भी गिरावट आई है। यूरो तो गिरते-गिरते डॉलर के बराबर तक आ गया।
  • ब्याज दरों में वृद्धि:उच्च ब्याज दरें नए निवेश को हतोत्साहित करती हैं, बचत को प्रोत्साहित कर सकती हैं और परिणामस्वरूप उत्पादन और मुद्रास्फीति को कम करती हैं।
  • कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धिः कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि14 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इसका मुख्य कारण यूक्रेन में चल रहा संघर्ष है। इससे भारत के आयात लागत में वृद्धि होने से रुपए के मूल्य ह्रास को बढ़ावा मिला है।
  • सख्त मौद्रिक नीति: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ती मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए सख्त मौद्रिक नीति का पालन करने से भी रुपए का मूल्य ह्रास हुआ है।
  • अमेरिकी डॉलर का बहिर्गमन: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और इक्विटी बाजारों में सुधार के कारण डॉलर का तेजी से बहिर्गमन हुआ है।
    रूस -यूक्रेन संकट और अमरीकी फैडरल रिजर्व की ब्याज दर में हुई वृद्धि रुपए की वर्तमान कमजोरी के पीछे के कारण बताए जा रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन संकट के कारण आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है। घरेलू शेयर बाजार में दबाव, क्रूड ऑइल की महंगाई, मंदी की आशंका और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के चलते रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। महंगे कच्चे तेल के लिए अधिक डालर चुकाने की वजह से डालर की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, दूसरी तरफ  फैडरल रिजर्व ने 2 दशक में पहली बार ब्याज दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि की है। इससे स्वत: ही विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफ.आई.आई.) का आकर्षण अमरीकी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा है।

मुद्रा मूल्य ह्रास का भारत पर प्रभाव

    नकारात्मक प्रभाव

  • आयात लागत और चालू खाते के घाटे में वृद्धिः रुपए के मूल्य ह्रास के कारण भारत का वाणिज्यिक व्यापार घाटा अप्रैल 2022 में बढ़कर 20.1 अरब डॉलर हो गया। इससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होगी।
  • बढ़ती मुद्रास्फीति: यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमत 14 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इससे देश में मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा।
  • तेल की कीमतों में वृद्धिः भारत अपनी ईंधन आवश्यकताओं का लगभग 80% आयात करता है। मूल्य ह्रास के कारण तेल की          कीमतों में  वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति अधिक हो जाएगी।

      सकारात्मक प्रभाव

  • निर्यातःमुद्रा के मूल्य ह्रास से निर्यात को लाभ हो सकता है। डॉलर की मजबूती निर्यात- उन्मुख कंपनियों के लिए लाभदायक सिद्ध होती है।
  • निर्यातकों को लाभःमुद्रा में मूल्य ह्रास से भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होता है। इससे निर्यातकों को लाभ मिल सकता है।
  • पर्यटन उद्योगःयात्रा और पर्यटन एक ऐसा क्षेत्र है जिसे रुपये के मूल्य ह्रास से लाभ होता है।

          मूल्य ह्रास को कम करने के उपाय

  • भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति में परिवर्तन करते हुए ब्याज दरों में वृद्धि करनी होगी। भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों के विश्वास को मजबूत करने एवं पूंजी प्रवाह और विनिमय दर को स्थिर करने के लिए निवेश और विकास को बढ़ावा देना होगा तथा इसके लिए सरकार को अधिक व्यय करना होगा।
  • नीतिगत उपाय के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ा कर बाजार में तरलता घटा कर रुपए की मांग बढ़ाने का प्रयास करता है, दूसरे, बाजार में डालर की आपूर्ति बढ़ाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से डालर बेचता है ।

भारतीय रिजर्व बैंक के लिए बाजार में डालर की आपूर्ति बढ़ाना भी वर्तमान में कठिन कदम है, क्योंकि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डालर से नीचे चला गया है। इसमें लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है। यदि अधिक आय वाले लोगों पर प्रत्यक्ष कर और कार्पोरेट कर बढ़ाया जाए, अप्रत्यक्ष कर घटा कर महंगाई नीचे लाई जाए तो इससे बाजार में मांग बढ़ेगी, नौकरियां पैदा होंगी। अर्थव्यवस्था स्थिर होगी तो विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।

Yojna IAS Daily Current Affairs Hindi med 14th July

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