भारतीय विश्वविद्यालय 

भारतीय विश्वविद्यालय 

भारतीय विश्वविद्यालय 

संदर्भ- ऑस्ट्रेलिया का डीकिन विश्वविद्यालय, भारत में परिसर स्थापित करने वाला पहला विदेशी विश्वविद्यालय होगा। गुजरात राज्य के गिफ्ट सिटी में स्वतंत्र परिसर के रूप से इसकी स्थापना होनी है।

डीकिन विश्वविद्यालय- 

  • ऑस्ट्रेलिया में स्थित डीकिन विश्वविद्यालय विश्व के शीर्ष 1% विश्वविद्यालयों में से एक है। यह क्यू एस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में 266 वे स्थान पर है। इसके साथ ही विश्व के शीर्ष 50 युवा विश्वविद्यालयों में से एक है।
  • ऑस्ट्रेलिया में डीकिन विश्वविद्यालय के 4 परिसर हैं- मेलबोर्न (बरवुड), जिलॉन्ग(वॉर्न पॉन्ड्स और वाटरफ्रंट) और वारनमबूल। इनमें सर्वाधिक छात्र मेलबोर्न के बरवुड परिसर में है।
  • विश्वविद्यालय के परिसरों में विश्व के 132 देशों के छात्र शिक्षा ग्रहण करते है। इसमें पढ़ने वाले कुल विदेशी छात्रों में सर्वाधिक 27% छात्र भारतीय हैं।

विदेशी (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम 2023 का उद्देश्य विभिन्न डिग्री, डिप्लोमा व प्रमाण पत्र कार्यक्रम के संचालन के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश व संचालन को विनियमित करना है।

नई शिक्षा नीति 2020

  • भारत में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए लागू की गई थी।   
  • उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात 50% तक करना है। इसके तहत 3.5 करोड़ नई तकनीकों को जोड़ना है। 
  • इसके तहत मल्टीपल एंट्री व एक्जिट सिस्टम को शुरु किया गया है। जिसके तहत कोर्स के मध्य में कोर्स को छोड़ने पर वह कोर्स की वर्तमान स्टेज का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकेगा।
  • इसके अनुसार विदेशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय अब भारत में अपने परिसर स्थापित कर सकेंगे। इसका उद्देश्य प्रतिभा पलायन को रोकना व देश में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।

चुनौतियाँ-  

विदेशों के शिक्षण संस्थानों में भारतीय विद्यार्थियों के शिक्षण शुल्क लगभग 55 – 70 लाख तक होता है जो भारत के निजी संस्थानों के शुल्क से 50% अधिक है। इसके साथ ही भारत के सार्वजनिक संस्थानों में शुल्क 100% अधिक है। इससे समाज में शिक्षा की दृष्टि से एक खाई उत्पन्न हो सकती है।

विदेशी शिक्षण संस्थानों के प्रवेश के प्रभाव से भारतीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश महंगा हो सकता है। यह आर्थिक रूप से अक्षम वर्ग के लोगों की उच्च शिक्षा तक पहुँच को बाधित कर सकता है। और उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात को कम कर सकता है।

वर्तमान डिजीटल शैक्षिक वातावरण में भारतीय शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के अवसर के समय विदेशी शिक्षा पद्धति को मंच प्रदान करने भारतीय शिक्षण संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पिछड़ सकते हैं।

भारत में उच्च शिक्षा

भारत, प्राचीन काल से विश्व गुरु रहा है। भारत के ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान तक्षशिला, नालंदा व उज्जैन थे। जहाँ भारतीय उपमहाद्वीप के साथ विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते थे। इनकी महत्ता इस बात से लगाई जा सकती है कि छात्रों के प्रवेश से पहले छात्रों को प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता था। छठी शताब्दी से आक्रमणकारियों द्वारा इनका पतन शुरु हुआ और 13वी शताब्दी तक पूर्णतः समाप्त कर दिया गया।

भारत में उच्च शिक्षण संस्थान जब समाप्त किए जा रहे थे यूरोप में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना की जा रही थी। जो वर्तमान में दुनियाँ की सर्वोच्च संस्था है, जो ब्रिटेन में एक अलाभकारी संस्था है। आधुनिककाल जिसे ब्रिटिश काल भी कहा जाता है। भारतीय उच्च शिक्षा की स्थापना को पुनः वरीयता दी गई किंतु भारतीय उच्च शिक्षा अब यूरोपीय शिक्षण संस्थानों के अनुकरण पर 1857 में कलकत्ता, बंबई व मद्रास विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। वर्तमान में भारत में लगभग 850 विश्वविद्यालय है। 

विश्वविद्यालय-

ऐसे शैक्षिक संस्थान जिनमें किसी विशेष विषय में विद्वता प्राप्त की जाती है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में था। जहाँ 60 से अधिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 1956 के अनुच्छेद 22(1) के अनुसार केंद्रीय या राज्य अधिनियम और यूजीसी अधिनियम के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत स्थापित विश्वविद्यालय को ही संसदीय अधिनियम द्वारा उपाधि प्रदान करने का अधिकार है। ऐसे संस्थान ही ‘विश्वविद्यालय’ कहे जाएंगे।

भारत में शिक्षा की संवैधानिक स्थिति

संविधान में शिक्षा को 1976 के 42 वे संशोधन के अनुसार समवर्ती सूची में रखा गया है।

निजी संस्थानों को लाभ का एक साधन माना जाता है किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इसे धर्मार्थ संस्था के रूप में निरुपित किया है, जिसका अवैध लाभ नहीं उठाया जा सकता है। अतिरिक्त राजस्व एकत्र होने पर उसका प्रयोग शैक्षिक संस्थानों के विकास के लिए किया जाना चाहिए।  

राधाकृष्ण आयोग में तत्कालीन (1948) उच्च शिक्षा की समस्याओं के विषय की जाँच तथा समस्या के समाधान हेतु सुझाव दिए गए जैसे – विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना और उच्च शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति, वेतन और सेवा के विषय में सुझाव देना, सांस्कृतिक विविधताओं के बारे में छात्रों को अवगत कराना, शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना आदि। 

इसी प्रकार कोठारी आयोग 1968 में प्राथमिक शिक्षा पर केंद्रित एक अन्य आयोग था। प्राथमिक शिक्षा के सात इसमें उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं और औद्योगिक शिक्षा को शामिल किया गया।

1986 में एक अन्य शिक्षा नीति लागू की गई इसे शिक्षा की नई राष्ट्रीय नीति कहा गया। इसके तहत प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा तीनों पहलुओं पर ध्यान दिया गया। उच्च शिक्षा में विशेषज्ञता हासिल करने के पक्ष पर फोकस किया गया।

स्रोत

Yojna Daily current affairs Hindi med 1st March 2023

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