25 Feb भारतीय शास्त्रीय नृत्य व नाट्यशास्त्र।
भारतीय शास्त्रीय नृत्यकला
संदर्भ- हाल ही में मोहनीअट्टम को अकादमी दर्जा देने वाली प्रख्यात नृत्यांगना कनक रैले का निधन हो गया है। कनक रैले को भारत की सबसे प्रतिभाशील नृत्यांगना के रूप में जाना जाता है। जिन्होंने मोहनीअट्टम के साथ कथकली में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2013 में कनक रैले को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
मोहनीअट्टम-
- मोहनीअट्टम नृत्य कला केरल राज्य की संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग है।
- मोहनीअट्टम शब्द का सूत्रपात मोहनी शब्द से हुआ है।
- मोहनी शब्द का पौराणिक पर्याय भगवान विष्णु द्वारा लिए गए एक अवतार में निहित है। जहाँ वे दैवीय शक्तियों के दुरुपयोग को बिना युद्ध किए रोक लेते हैं।
- मोहनी अट्टम का लिखित वर्णन भरतमुनि द्वारा लिखित ग्रंथ नाट्य शास्त्र में दिया गया है। इसे पंचम वेद भी कहा जाता है। यह भारतीय आठ नृत्यकलाओें में से एक है।
नाट्यशास्त्र –
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र सभी प्रदर्शन कला शैलियों के लिए सर्वश्रष्ठ ग्रंथ माना जाता है। इसमें नृत्य कला व नाट्य को सर्वाधिक महत्ता दी जाती है। कहा जाता है कि इंद्र देव के राजभवन में पहला नृत्य नाटक प्रस्तुत किया गया था जिसे भरतमुनि ने निर्मित और निर्देशित किया था। इसमें कला शैलियों को तीन भागों में बांटा जाता है।
- नृत- इसमें संगीत के संचलन के आधार पर शऱीर के संचलन पर आधारित है। इसमें अभिनय कला का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- नृत्य- इस कला में रस व भाव का संयोजन किया जाता है जो नृत कला के साथ अभिनय को भी महत्ता देता है।
- नाट्य- इसमें नृत व नृत्य के साथ संवादों को भी महत्व दिया जाता है।
भारतीय नाट्यशास्त्र में शास्त्रीय नृत्यकलाओं को स्थान दिया गया है, भारत में 8 शास्त्रीय नृत्य कलाएं हैं जिन्हें भारतीय नाट्य अकादमी ने भी शास्त्रीय संगीत का दर्जा प्रदान करती है- भरतनाट्यम, कथक, कथकली, सत्तरिया, ओडिसी, कुचिपुड़ी, मणिपुरी और मोहनीअट्टम। इसके अतिरिक्त भारतीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने छऊ नृत्य को भी शास्त्रीय नृत्य माना है।
भरतमुनि व भारतीय शास्त्रीय नृत्य।
भरतनाट्यम-
- तमिलनाडु में भरतनाट्यम सादिर अट्टम के नाम से प्रसिद्ध था।
- भरतनाट्यम ऐतिहासिक तौर पर नया शब्द है जो भाव, राग, ताल, नाट्यम से लिया गया है।
- यह नाट्य कला नाट्यशास्त्र के साथ नंदिकेश्वर द्वारा लिखित अभिनयदर्पण पर भी आधारित है।
- भरतनाट्यम का मुख्य तत्व अडवु अर्थात पैरों को चलाने की कला है जो नृत के अंतर्गत आता है।
कथक
- कथक उत्तर भारतीय नृत्य़कला है।
- प्राचीनकाल में इसे कुशिलव के नाम से जाना जाता था। महाभारत में इसका वर्णन प्राप्त होता है।
- इस कला का संबंध कृष्ण कथा से लिया जाता है।
कथकली
- केरल राज्य में यह कला लगभग 300 वर्षों से प्रचलित है।
- इस नृत्यकला में आँखों की भंगिमा व हाथों की कला एं महत्वपूर्ण होती है।
- अट्टकथा गायक द्वारा कथा का गयान किया जाता है जिसमें कथकली नर्तक अभिनय व नृत्य करता है।
- कहा जाता है कि कोट्टारक्कतंपुरान राजा द्वारा इस नृत्यकला का केरल में बीजारोपण हुआ।
सत्तरिया
- यह असम का शास्त्रीय नृत्य है। जो सत्तरा अर्थात असम के वैष्णव मठों को समर्पित होती है।
- असम संस्कृति के महान नाटककार, नर्तक, समाजसुधआरक व कवि श्रीमनता शंकरदेव को सत्तरिया नृत्य कहा जाने लगा।
- इसकी प्रस्तुति में नृत, नृत्य व नाट्य के सभी घटकों को शामिल किया जाता है।
ओडिसी
- ओडिसी, भारतीय शास्त्रीय नृत्यकलाओं में से एक है।
- ओडिसी का उल्लेख ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों में प्राप्त होता है।
- इस कला के द्वारा धार्मिक कथाओं और वैष्णववाद के विचारों को व्यक्त किया जाता है।
- पैर, धड़, सिर व हाथ की ज्यामितीय व समरुपता इस नृत्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।
कुचिपुड़ी
- यह सर्वाधिक प्राचीन नृत्यों में से एक माना जाता है इसकी शुरुआत के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। किवदंती के अनुसार इसे विजयवाड़ा व गोलकुंडा के शासन के समय प्रारंभ माना जाता है।
- कुचुपुड़ी नाम कृष्णा नदी के किनारे दिवि तालुक में कुचिपुड़ी गांव से लिया गया है।
- प्रारंभ में किसी कुचिपुड़ी केवल ब्राह्मण पुरुषों के द्वारा किया जाता था।
मणिपुरी
- मणिपुरी नृत्यकला को उसके स्थानीय नाम से जाना जाता है।
- यह वैष्णव परंपरा के राधा कृष्ण प्रेम पर आधारित नाट्यकला है।
- धीमी गति के इस नृत्य में भुजाएं, उंगलियों को प्रवाह पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- महिलाओं द्वारा राधा कृष्ण के प्रेम पर आधारित रास किया जाता है, तथा पुरुषों द्वारा संकीर्तन किया जाता है।
छऊ नृत्य-
- यह नृत्य, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा व झारखण्ड में प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य सम्प्रिक प्रथा व नृत्य का मिक्षण देखने को मिलता है।
- छऊ नृत्य में एक विशेष प्रकार का मुखौटा पहना जाता है।
स्रोत
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