हाथ से मैला ढोने की प्रथा

हाथ से मैला ढोने की प्रथा

सिलेबस: जीएस 1/ सामाजिक मुद्दे

संदर्भ-

  • हाल ही में, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि भारत में, देश के कुल 766 जिलों में से केवल 508 जिलों ने स्वयं को मैला ढोने से मुक्त घोषित किया है।

मैला ढोने की प्रथा के बारे में-

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग(Manual scavenging) या हाथ से मैला ढोने की प्रथा को ”किसी सुरक्षा साधन के बिना और नग्न हाथों से सार्वजनिक सड़कों एवं सेप्टिक टैंक, गटर एवं सीवर की सफाई करने तथा सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने ” के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भारत ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 (पीईएमएसआर) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • 2013 में, सेप्टिक टैंक, खाई या रेलवे ट्रैक को साफ करने के लिए नियोजित लोगों को शामिल करने के लिए मैनुअल मैला ढोने वालों की परिभाषा को भी विस्तृत किया गया था।

मुद्दे और चिंताएं-

  • हाथ से मैला उठाने की प्रथा को “अमानवीय प्रथा” है, हाथ से मैला ढोने वालों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय और अपमान  की पृष्ठभूमि के साथ चली आ रही है।
  • यह उन समस्याओं को जन्म देता है जो स्वास्थ्य और रोजगार , मानवाधिकार और सामाजिक न्याय, लिंग और जाति, और मानव गरिमा को क्षति पहुचाती हैं।
  • मैला ढोने और सीवर लाइनों में फंसे लोगों की मौत एक वास्तविकता बनी हुई है, हालांकि इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मृत्यु के मामलों में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकांशतः मैनहोल को साफ कर रहे लोगों के पास पर्याप्त उपकरण और सुरक्षात्मक समान नहीं होते हैं।
  • “कमजोर कानूनी संरक्षण और कानूनों के प्रवर्तन की कमी” साथ ही साथ सफाई कर्मचारियों की खराब वित्तीय स्थिति, अभी भी प्रचलित प्रथा में योगदान करती है।
  • कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने की असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया है।

मैला ढोने से संबंधित कानून:

  • वर्ष 1955 के नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के द्वारा अस्पृश्यता पर आधारित मैला ढुलाई जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन का प्रयास किया गया था।
  • वर्ष 1956 में काका कालेलकर आयोग ने शौचालयों की सफाई में मशीनीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया था। जिस मशीनीकरण का संशोधन आज के कानून में किया जा रहा है।
  • वर्ष 1957 में मलकानी समिति तथा
  • वर्ष 1968 में पंड्या समिति द्वारा भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की सेवा शर्तो को विनियमित किया गया।
  • वर्ष 1993 में मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोजगार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम 1993-के द्वारा देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया तथा ऐसे मामलों में एक वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 2013 में मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 -के द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी हाथ से मैला ढोने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया।
  • इस अधिनियम में नालियों, सीवर टैंकों और सेप्टिक टैंकों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के मैन्युअल रूप से साफ करने के लिए लोगों को रोजगार देना या उन्हें इससे जोड़ना एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया।
  • इस अधिनियम में राज्य सरकारों और नगरपालिकाओं, निकायों को हाथ से मैला ढोने वाले लोगों की पहचान कर परिवार सहित उनके पुनर्वास का प्रबंध करने की बात कही गई है।
  • अनुच्छेद 21 के अनुसार: ” जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण : कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।”
  • अत्याचार निवारण अधिनियम: यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ विशिष्ट अपराधों का वर्णन करता है।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020: यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव पर प्रतिबंध लगाता है और किसी भी व्यक्ति द्वारा हाथ से मैला ढोने या सीवर एवं सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई की खतरनाक प्रथा को समाप्त करने का प्रावधान करता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले-

  • शीर्ष अदालत ने सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ के मामले के संबंध में दिए गए अपने फैसले में इस प्रतिबंध लगा दिया था और हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में पारंपरिक रूप से और अन्य कार्यरत लोगों के पुनर्वास का निर्देश दिया था
  • फैसले ने उनके ‘न्याय और परिवर्तन के सिद्धांतों के आधार पर पुनर्वास’ का आह्वान किया था

सरकारी पहल-

  • स्वच्छ भारत अभियान : भारत सरकार ने अगस्त 2021 तक हाथ से मैला ढोने की भेदभावपूर्ण और खतरनाक प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत पहल) के तहत कई उपायों की घोषणा की है।
  • नमस्ते योजना: सरकार का उद्देश्य कस्बों और शहरों में सेप्टिक टैंक की सफाई और सीवर कार्य के 100% मशीनीकरण तथा मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास की योजना को अब नमस्ते योजना के साथ मिला दिया गया है।
  • इसका उद्देश्य सफाई कर्मचारियों को वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना है।
  • नमस्ते योजना सीवर सफाई कर्मियों को स्वच्छता मशीनरी की खरीद पर पूंजीगत सब्सिडी, वजीफा राशि के साथ श्रमिकों के प्रशिक्षण और स्वच्छता उपकरणों पर सीमित ब्याज दरों के साथ ऋण सब्सिडी प्रदान करती है।
  • भारत सरकार ने नमस्ते योजना (NAMASTE scheme) के लिए केंद्रीय बजट 2023 में 100 करोड़ रुपये आवंटित किए।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग :- दिल्ली सहित कुछ राज्यों ने इस उद्देश्य के लिए सीवेज सफाई मशीनों का उपयोग शुरू किया है। हैदराबाद रोटोमेटिक सीवर क्रोक, सीवर जेटिंग और सक्शन क्लीनिंग मशीन पेश करने के लिए तैयार है।
  • वर्ष 2013 में संयुक्त राष्ट्र  महासभा ने आधिकारिक तौर पर 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस के रूप में नामित किया। यह सरकारों और भागीदारों के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र-जल (UN-Water) द्वारा समन्वित है।
  • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती: आयोग सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक गैर-सांविधिक निकाय के रूप में कार्य कर रहा है जिसका कार्यकाल समय-समय पर सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से बढ़ाया जाता है।
  • सफाई कर्मचारियों के लिए एक अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (आरपीएल) आयोजित किया जाता है जिसमें उन्हें सुरक्षित और मशीनीकृत सफाई प्रथाओं में प्रशिक्षित किया जाता है।

सुझाव-

  • नियमों का उचित कार्यान्वयन, और पर्याप्त निगरानी बिल्कुल आवश्यक है।
  • इसके साथ ही, मौजूदा योजनाओं के भीतर, मरने वालों के परिवार के सदस्यों को मुआवजा प्रदान करने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए, और यदि वे चाहें तो उन्हें पेशे से बाहर निकलने का रास्ता प्रदान करना चाहिए।
  • मैला ढोने वालों की मौतों को रोकने के लिए जैव-शौचालयों और उनके पुनर्वास के लिए धन आवंटन बढ़ाने के लिए आवश्यकता है।

स्रोत:द हिन्दू

 

 

 

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