भारत की लोकतांत्रिक विरासत : उथिरामेरुर शिलालेख 

भारत की लोकतांत्रिक विरासत : उथिरामेरुर शिलालेख 

संदर्भ- हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्न मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में देश की लोकतांत्रिक मूल्यों की विरासत का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह मैग्नाकार्टा से भी प्राचीन है। उन्होंने भारत के इतिहास में लोकतंत्र के प्रत्यक्ष प्रमाणों उथिरामेरुर शिलालेख का  जिक्र किया।

भारत में लोकतंत्र का इतिहास- 

  • लोकतंत्र जिसे प्रजातंत्र भी कहा जाता है, जिसमें जनता का जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि भागीदारी करते है। भारत के संविधान के अुसार यह जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन है।
  • भारत में लोकतंत्र का इतिहास वैदिक काल जितना प्राचीन है। जिसमें सभा, समिति और विदथ का उल्लेख किया गया है। ये संस्थाएं ग्राम समाज के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक व न्यायिक मुद्दों पर चर्चा व समाधान के लिए होती थी। किंतु महिलाओं की भागीदारी सीमित थी।
  • महाजनपद काल में लोकतंत्र से मिलती जुलती गणतंत्र व्यवस्था उपस्थित थी। गणतंत्र व्यवस्था में सम्पूर्ण जनता का शासन न होकर अभिजात वर्ग के व्यक्तियों का शासन माना जाता है क्योंकि इसके प्रशासन में जनता का प्रतिनिधित्व न होकर अभिजात वर्ग द्वारा चुनी गई सरकार का प्रतिनिधित्व होता है। उस समय कपिलवस्तु के शाक्य, वैशाली के लिच्छवि, सुमसुमारपुत्र के भग्ग, केसपुक्ष के कालाम, रामगाम के कोलिय, कुशीनारा के मल्ल, पावा के मल्ल, पिपलीवन के मोरिय, अल्कलप के बुलि में गणतंत्रात्मक शासन था।
  • इसके साथ ही लोकतंत्र की चुनावी प्रणाली का प्रमाण भी भारत के इतिहास में अभिलेखीय रूप में मिल जाते हैं, जिनमें प्रमुख है- उथिरामेरुर शिलालेख, आदि हैं।

 उथिरामेरुर शिलालेख

उथिरामेरुर, भारत के तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित है। और प्राचीन शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है। जो भारतीय इतिहास के प्रमुख साक्ष्य हैं। इस क्षेत्र में एक दीर्घ अवधि तक पल्लवों ने शासन किया जिनके 25 शिलालेख उथिरामेरुर से प्राप्त होते है। इसके बाद नवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यहां चोलों का शासन हुआ। जिनके शासकों के भी यहां से कई लेख प्राप्त हुए हैं। अब तक यहां से प्राप्त सभी लेखों में सबसे प्राचीन लेख पल्लव शासक दंतिवर्मन का है, जिसमें सभा का वर्णन एक परिपक्व संस्था के रूप में किया गया है। लेखों में वर्णित लोकतंत्र के तत्व निम्नलिखित हैं-

उथिरामेरुर शिलालेख।

ग्राम प्रशासन-

  • प्रमुख रूप से दो ग्रामसभाएं होती थीसभा और उर। सभा पुरोहित वर्ग और उर सभी वर्गों को लिए गठित की जाती थी।
  • सभा के अधीनस्थ कार्यपालक अधिकारी को वारियार कहा जाता था। जिनकी शक्तियाँ वरियम नामक समिति के पास होती थी। वरियम समिति में 6-12 सदस्य होते थे।
  • इन सदस्यों का कार्यकाल 365 दिन होता था।

समिति के सदस्य के निर्वाचन हेतु योग्यताएं

  • कम से कम एक चौथाई वेली यानि डेड़ एकड़ भूमि (कर देने योग्य) का स्वामी हो।
  • उम्र 35-70 वर्ष की हो।
  • वैदिक साहित्य का ज्ञान रखने वाला हो।
  • पिछले 3 वर्षों में किसी समिति का सदस्य न हो।
  • कर का भुगतान समय पर करता हो।
  • किसी अनाचार( ब्राह्मण की हत्या, मदिरा सेवन, चोरी, व्यभिचार, अपराधियों से संबंधित) में लिप्त न हो।

चुनावी प्रक्रिया-

समिति के सदस्य के चुनाव के लिए एक विशिष्ट चुनाव प्रक्रिया का पालन करना होता था। उथिरामेरुर के 921 ई. के शिलालेख के अनुसार ग्राम में 30 कुदुम्बु होते थे जिन्हें वर्तमान वार्ड कहा जा सकता है। प्रत्येक गाँव में 5 समितियाँ होती थी। इनकी चुनावी प्रणाली को कुदावोलाई कहा जाता था। जिसके अनुसार-

  • ताड़ के पत्तों पर उम्मीदवार का नाम लिखा जाता था।
  • नाम लिखे हुए पत्तों को चुनकर एक पात्र में डाला जाता था। और अंत में इसे फेंटा जाता था।
  • किसी युवक को बुलाकर समिति के सदस्यों की संख्या के आधार पर पत्ते पात्र से निकलवाए जाते थे। 
  • सभी पत्तों को सभी के समक्ष सभी पुजारियों द्वारा पढ़ा जाता था।
  • पढ़कर सुनाए गए नाम समिति के सदस्य के लिए चयनित होते थे।

मैग्नाकार्टा इंग्लैण्ड में 1215 ई. में लागू हुआ था जो राजा पर कुछ वैधानिक प्रतिबंध लगाता था। जो निरंकुश शासन को गणतंत्र का रूप देता है। इसमें सामंतों को कुछ अधिकार दिए गए थे। यह वैधानिक अधिनियमों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। किंतु यह व्यवस्था भारत के प्राचीन इतिहास में पहले से ही मौजूद थी, अतः भारत को लोकतंत्र का जनक माना जा सकता है। 

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

थापर.रोमिला : प्रारंभिक भारत मूल से 1300 ई. तक

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 30th Jan

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