भारत निर्वाचन आयोग – कार्य एवं शक्तियों की वर्तमान प्रासंगिकता

भारत निर्वाचन आयोग – कार्य एवं शक्तियों की वर्तमान प्रासंगिकता

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था , भारत निर्वाचन आयोग , मुख्य चुनाव आयुक्त , चुनाव आयुक्त ,मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति , सेवा शर्त एवं कार्यकाल की अवधि विधेयक 2023 , कानून एवं न्याय मंत्रालय , चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन समिति , नेता प्रतिपक्ष। 

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में भारत के निर्वाचन आयोग ने आगामी 18वीं लोकसभा आम चुनाव 2024 की तारीखों को जारी कर दिया है। 
  • भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार आगामी लोकसभा के लिए आम चुनाव सात चरणों में और कुल 44 दिनों में संचालित होगी।
  • 18वीं लोकसभा के लिए होने वाले आम चुनाव के मतों की गणना 04 जून 2024 को संपन्न होगी।
  • हाल ही में भारत के निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने भारत में वर्ष 2024 में आयोजित होने वाले लोकसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा से पहले ही निर्वाचन आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया है। 
  • भारत के दूसरे चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी 2024 को अपने पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
  • भारत निर्वाचन आयोग के चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति और अरुण गोयल के इस्तीफे से उपजी चुनाव आयुक्तों की रिक्तियों को भरने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल के साथ मुलाकात के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने बताया कि’ नए चुनाव आयुक्तों के लिए पूर्व आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और डॉ. सुखबीर सिंह संधू का नाम तय किया गया है।
  • हाल ही में केंद्र सरकार ने दो चुनाव आयुक्तों के नाम की घोषणा कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय चयन समिति ने चुनाव आयोग में पूर्व आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नए चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया है। इसके लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना भी जारी कर दिया गया है।
  • पूर्व आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं  वहीं उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे डॉ. सुखबीर सिंह संधू 1988 बैच के उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी रहें हैं।
  • वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ही भारत निर्वाचन आयोग के एकमात्र सदस्य के रूप में इस पद पर आसीन थे।

 

 भारत निर्वाचन आयोग का परिचय : 

 

  • भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी। 
  • भारत में इसीलिए 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है
  • भारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण/ संस्था है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारत की संसद, राज्य विधानमंडल के साथ – ही – साथ भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों के अधीक्षण,निर्देशन और निर्वाचन नामावलियों की तैयारी करने एवं उस पर  नियंत्रण रखने के लिए भारत में निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है| अतः निर्वाचन आयोग केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर होने वाले चुनावों के लिए एक उत्तरदायी शीर्ष संस्था है।
  • भारत के राज्यों में होने वाले पंचायत और नगरपालिका या नगरनिगम की चुनाव प्रक्रियाओं को संपन्न कराने के लिए भारत का संविधान अलग से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है। अतः राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों संबंधित राज्य का राज्य निर्वाचन आयोग उत्तरदायी संस्था होता है।  

भारत निर्वाचन आयोग की  संरचना :

  • सन 1950 में गठित भारत निर्वाचन आयोग में मूल रूप से केवल एक चुनाव आयुक्त होता था  लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के फलस्वरूप इसे एक बहु-सदस्यीय संस्था बना दिया गया है ।
  • चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) तथा अन्य चुनाव आयुक्त, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा समय – समय पर चुना जाता है वे भी इसमें शामिल होते हैं।
  • वर्तमान में भारत निर्वाचन आयोग में  एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते  हैं।
  • राज्य स्तर पर चुनाव आयोग को मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा मदद की जाती है जो IAS रैंक का अधिकारी होता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें एवं कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023

  • यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया है।
  • इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, उनका वेतन एवं उनके निष्कासन से संबंधित प्रावधान शामिल है।

इस विधेयक के अनुसार नियुक्ति की प्रक्रिया : 

  • भारत के निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।   
  • इस चयन समिति में सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता होगा और यदि लोकसभा में किसी भी दल को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता इसमें शामिल होगा।
  • इस समिति में कोई पद रिक्त होने पर भी चयन समिति की सिफारिशें मान्य होंगी। 
  • इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों  के पदों पर विचार करने के लिए पाँच व्यक्तियों / सदस्यों का एक पैनल तैयार करने हेतु एक खोज समिति (Search Committee) की स्थापना का प्रस्ताव है।  
  • खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से निम्न पद वाले दो सदस्य भी शामिल होंगे तथा उनके  पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान तथा अनुभव होना चाहिए।

इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के वेतन एवं शर्तों में परिवर्तन : 

  • मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त विधेयक 2023 के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त  और अन्य चुनाव आयुक्तों  के वेतन एवं सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान ही होंगी।
  • 1991 के अधिनियम के तहत इनका वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर होता था।

चुनाव आयुक्त का कार्यकाल : 

 

  • भारत के संविधान में चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल संबंधी कोई स्पष्ट निर्देश नही है, लेकिन भारत के संविधान संशोधन 1991 के चुनाव आयोग अधिनियम के अनुसार, भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त का कार्यकाल अधिकतम छह साल तक या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, तक ही इस पद पर बने रह सकते हैं। यह कार्यकाल उनके कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से गिना जाता है।
  • इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और उनके समान ही वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
  • भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त आम तौर पर अक्सर भारतीय प्रशासनिक सेवा से भारतीय सिविल सेवा का सदस्य होता है। जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 से अधिकार प्राप्त होता है और उनका अधिकार संरक्षित होता है।
  • भारत निर्वाचन आयोग, भारत में उन कुछ संवैधानिक प्राधिकरणों/ संस्थाओं में से एक है जो स्वायत्त रूप से काम करते हैं। ऐसे अन्य संस्थाओं में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय और संघ लोक सेवा आयोग जैसी संस्था शामिल हैं।

 

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को पद से हटाने की प्रक्रिया : 

  • भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रकार उनके पद से हटाया जा सकता है जैसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग के द्वारा भारत की संसद द्वारा लोकसभा और राज्यसभा दोनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित एक प्रस्ताव की आवश्यकता होती है।
  • इनको हटाने का आधार दुर्व्यवहार करने, किसी राजनीतिक दल के साथ पक्षपात करने या अपने कार्य को पूरा करने में असक्षम सिद्ध होने पर ही किया जा सकता है। 
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत में अभी किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त पर कभी भी महाभियोग नहीं लगाया गया है।
  • भारत के निर्वाचन आयोग में सदस्य के रूप में पदस्थापित अन्य चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के आधार पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। 
  • हालाँकि, इस प्रावधान को भारत में अभी तक कभी भी लागू नहीं किया गया है।
  • वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने की सिफारिश की थी. इस सिफ़ारिश के पीछे का कारण मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में चावला की आगामी नियुक्ति और उनके कथित पक्षपातपूर्ण राजनीतिक दल व्यवहार के कारण हितों का संभावित टकराव था। हालाँकि, भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राय दी कि ऐसी सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी और उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। अगले महीने गोपालस्वामी की सेवानिवृत्ति के बाद, चावला ने मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला और 2009 के लोकसभा आम चुनावों की निगरानी भी की और लोकसभा चुनाव संपन्न भी करवाया था ।

 

भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ : 

 

 

भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है – 

 

  1. प्रशासनिक शक्तियाँ
  2. सलाहकारी शक्तियां
  3. अर्ध-न्यायिक शक्तियाँ

 

भारत निर्वाचन आयोग की प्रशासनिक शक्तियाँ : 

  • भारत निर्वाचन आयोग के अधीन परिसीमन आयोग अधिनियम के अनुसार कार्य करने और विभिन्न चुनावों के लिए चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों की क्षेत्रीय सीमाओं को निर्धारित करने का अधिकार है।
  • इसके पास किसी भी राजनीतिक दल या इकाई को पंजीकृत और अपंजीकृत करने की शक्ति प्राप्त  है।
  • यह भारत में होने वाले चुनाव अभियानों के लिए ‘ आदर्श आचार संहिता ‘ लागू करने और इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अधिकृत है ।
  • इस आयोग के पास राजनीतिक दलों के चुनाव खर्चों की निगरानी करने की शक्ति है, जिससे सभी दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना शामिल है, चाहे उनका आकार और खर्च करने की क्षमता कुछ भी क्यों न हो।
  • यह भारत के सिविल सेवा के विभिन्न विभागों से अधिकारियों को चुनाव पर्यवेक्षकों और व्यय पर्यवेक्षकों के रूप में नियुक्त कर सकता है।

भारत निर्वाचन आयोग की सलाहकारी शक्तियाँ : 

  • भारत निर्वाचन आयोग के पास संसद सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता और चुनाव में उसके लिए शर्तों का निर्धारण करने के मामले में  भारत के राष्ट्रपति को सलाह देने की शक्ति है।
  • यह आयोग राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की अयोग्यता पर संबंधित राज्य के राज्यपालों को सलाह भी देता है।
  • यह भारत में होने वाले आम चुनाव में उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के बीच चुनाव के बाद के विवादों से संबंधित मामलों पर उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय को सलाह देता है।
  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित चुनाव के बाद के विवादों को सर्वोच्च न्यायालय में भेजा जाता है। संसद और राज्य विधानमंडलों से संबंधित विवादों को उच्च न्यायालयों में भेजा जाता है।

भारत निर्वाचन आयोग की अर्ध – न्यायिक शक्तियाँ : 

  • भारत निर्वाचन आयोग के पास भारत के राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को दी गई मान्यता से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार प्राप्त है।
  • इसमें राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव चिन्हों के आवंटन से उत्पन्न विवादों से संबंधित मामलों के लिए अदालत के रूप में कार्य करने की शक्तियाँ प्राप्त है। 
  • राज्यों में होने वाले पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव से संबंधित चुनाव राज्य चुनाव आयोग की देखरेख में कराए जाते हैं। राज्य चुनाव आयोगों कोभारत निर्वाचन आयोग द्वारा सलाह दी जाती है और वे इसके प्रति जवाबदेह होते हैं।

चुनाव आयोग की शक्तियाँ भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में निहित हैं, जिनमें शामिल हैं:

अनुच्छेद 324 : यह ईसीआई को राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों की सीधे निगरानी, ​​​​नियंत्रण और निर्देशन की जिम्मेदारी देता है।

अनुच्छेद 325 : यह अनुच्छेद निर्धारित करता है कि मतदाता सूची में नामों को शामिल करना और बाहर करना भारतीय नागरिकता के आधार पर होना चाहिए । इसमें कहा गया है कि मतदान की उम्र से ऊपर के भारत के किसी भी नागरिक को नस्ल, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर नामावली से बाहर नहीं किया जाना चाहिए या विशेष मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

अनुच्छेद 326 : यह अनुच्छेद निर्वाचित सरकार के सभी स्तरों के चुनाव के आधार के रूप में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की स्थापना करता है।

अनुच्छेद 327 : यह राष्ट्रीय चुनावों के संचालन के संबंध में ईसीआई और संसद की जिम्मेदारियों को रेखांकित करता है।

अनुच्छेद 328 : यह राज्य-स्तरीय चुनावों के संबंध में राज्य विधानमंडलों की भूमिका और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।

अनुच्छेद 329 : यह चुनाव से संबंधित मामलों में अदालत के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है जब तक कि विशेष रूप से अपने विचार प्रदान करने के लिए न कहा जाए।

 

भारत निर्वाचन आयोग  की प्रमुख भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ : 

 

 

 

भारतीय चुनाव आयोग देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत निर्वाचन आयोग की कुछ प्रमुख भूमिकाएं और जिम्मेदारियां निम्नलिखित है – 

  1. निष्पक्ष रूप से चुनावी प्रक्रिया को सुनिश्चित करना : भारत के निर्वाचन आयोग को राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय चुनावों सहित विभिन्न स्तरों पर चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह चुनाव की तारीखों की घोषणा से लेकर नतीजे घोषित करने तक पूरी चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए जिम्मेदार है।
  2. मतदाता पंजीकरण : भारत में यह सुनिश्चित करने के लिए कि पात्र नागरिक अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सकें, भारत निर्वाचन आयोग मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है। यह मतदाता पंजीकरण अभियान आयोजित करता है और मतदाता सूचियों को अद्यतन करता है एवं पात्र व्यक्तियों को मतदाता पहचान पत्र जारी करता है।
  3. स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना :  निष्पक्ष और संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, ईसीआई चुनावी सीमाओं का परिसीमन करता है। यह समय-समय पर जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं की समीक्षा और संशोधन करता है, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की लगभग समान संख्या बनाए रखने का प्रयास करता है।
  4. चुनाव कार्यक्रम घोषित करना : भारत निर्वाचन आयोग भारत में चुनावों का कार्यक्रम निर्धारित करता है, जिसमें नामांकन दाखिल करने, मतदान और मतगणना की तारीखों की घोषणा शामिल होती है। यह सुनिश्चित करता है कि पूरी चुनावी प्रक्रिया उचित समय सीमा के भीतर ही आयोजित की जाए।
  5. आदर्श आचार संहिता लागू करना  : भारत में चुनावों के दौरान नैतिक मानकों और निष्पक्ष प्रथाओं को बनाए रखने के लिए, भारत निर्वाचन आयोग एक आदर्श आचार संहिता लागू करता है। यह संहिता राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के व्यवहार को नियंत्रित करती है, सत्ता के दुरुपयोग या अनुचित लाभ को रोकती है।
  6. चुनावी कानून और नियम सुनिश्चित करना :  भारत निर्वाचन आयोग चुनावी कानूनों और नियमों को बनाता और लागू करता है जो चुनावों के संचालन को नियंत्रित करते हैं। यह पूरी चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और संविधान और प्रासंगिक कानून का पालन सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  7. चुनाव पर्यवेक्षक को तैनात करना : भारत में चुनाव के संचालन की निगरानी के लिए भारत निर्वाचन आयोग चुनाव पर्यवेक्षकों को तैनात करता है। ये पर्यवेक्षक मतदान केंद्रों की देखरेख करते हैं, मतगणना प्रक्रिया का निरीक्षण करते हैं और किसी भी अनियमितता या उल्लंघन की रिपोर्ट ईसीआई को देते हैं।
  8. मतदाता शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रम निर्धारित करना  :  भारत में एक लोकतांत्रिक और सक्रिय नागरिक वर्ग के महत्व को पहचानते हुए, भारत निर्वाचन आयोग मतदाता शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य नागरिकों के बीच मतदान के महत्व और मतदाता के रूप में उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, जिसका उद्देश्य अंततः मतदान प्रतिशत बढ़ाना और सूचित निर्णय लेने को बढ़ावा देना है।
  9. राजनीतिक दल को मान्यता प्रदान करना : भारत निर्वाचन आयोग विशिष्ट मानदंडों के आधार पर भारत में राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि मान्यता प्राप्त पार्टियाँ वित्तीय प्रकटीकरण आवश्यकताओं का पालन करें, आचार संहिता का पालन करें और चुनाव में भाग लेने के लिए अन्य पात्रता मानदंडों को पूरा करें।
  10. चुनाव निगरानी और प्रवर्तन तथा चुनाव सुरक्षा प्रदान करना  : भारत निर्वाचन आयोग भारत की विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करते हुए,चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। यह चुनावी कदाचार को रोकने, चुनाव के दौरान कानून और व्यवस्था बनाए रखने और मतदाताओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के उपाय करता है।
  11. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना : भारत निर्वाचन आयोग को राज्य विधानसभाओं, संसद, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और स्थानीय शासी निकायों सहित विभिन्न स्तरों पर चुनाव कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है। अतः इसका प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करके लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना है कि चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हो।
  12. प्रौद्योगिकी प्रगति : भारत निर्वाचन आयोग ने चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और सटीकता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी प्रगति को अपनाया है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) ने मतदान में क्रांति ला दी है, जिससे भारत में चुनाव के दौरान वोट डालने और वोटों की गिनती के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय तरीका उपलब्ध हो गया है।
  • भारत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को सबसे पहले अपनाने वाला देश था, जिसने 2014 में संसदीय चुनावों के दौरान इसे देश भर में लागू किया। भारत की बड़ी और विविध आबादी को देखते हुए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसमें निरक्षर नागरिकों वाले कई ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया में मुख्य चुनाव आयुक्त के कार्यालय के महत्व को 1990 से 1996 तक टीएन शेषन के कार्यकाल के दौरान व्यापक रूप से मान्यता मिली। शेषन भारतीय चुनावों में भ्रष्टाचार और हेरफेर से निपटने के अपने दृढ़ प्रयासों के लिए प्रसिद्ध हैं ।

 

भारत के चुनाव आयोग का महत्व : 

 

 

  • भारत के चुनाव आयोग ने 1952 से राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को सफलतापूर्वक आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज, यह चुनावी प्रक्रिया में लोगों की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में सक्रिय रूप से काम करता है। आयोग ने आंतरिक पार्टी लोकतंत्र को बनाए रखने में विफल रहने पर मान्यता रद्द करने की धमकी देकर राजनीतिक दलों के बीच प्रभावी ढंग से अनुशासन स्थापित किया है। यह चुनावी शासन पर अपनी निगरानी, ​​निर्देशन और नियंत्रण में समानता, समता, निष्पक्षता, स्वतंत्रता और कानून के शासन के संवैधानिक मूल्यों को कायम रखता है।
  • चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव विश्वसनीयता, निष्पक्षता, पारदर्शिता, अखंडता, जवाबदेही, स्वायत्तता और व्यावसायिकता के उच्चतम मानकों के साथ आयोजित किए जाएं। यह सभी पात्र नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए एक समावेशी और मतदाता-केंद्रित वातावरण बनाने का प्रयास करता है। आयोग चुनावी प्रक्रिया के सर्वोत्तम हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों और सभी हितधारकों के साथ जुड़ता है। यह राजनीतिक दलों, मतदाताओं, चुनाव पदाधिकारियों, उम्मीदवारों और आम जनता सहित हितधारकों के बीच चुनावी प्रक्रिया और शासन के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन प्रयासों का उद्देश्य भारत की चुनावी प्रणाली में विश्वास और विश्वास बढ़ाना है।

भारत में चुनाव आयोग के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ : 

 

 

  • भारत का चुनाव आयोग मौद्रिक प्रभाव से बढ़ती हिंसा और चुनावी कदाचार को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है।
  • आयोग के पास राजनीतिक दलों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिए पर्याप्त अधिकार और संसाधनों का अभाव है, जिसमें आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र को लागू करना और पार्टी के वित्त को विनियमित करना शामिल है।
  • कार्यपालिका से चुनाव आयोग की घटती स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं हैं, जिससे इसकी प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की खराबी, हैकिंग या वोट दर्ज करने में विफल रहने के आरोपों ने चुनाव आयोग में जनता के विश्वास को काफी कम कर दिया है।

निष्कर्ष / आगे की राह : 

 

 

  • भारत का निर्वाचन आयोग चुनावों की अखंडता सुनिश्चित करने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक है। निष्पक्ष चुनाव कराने, मतदाताओं को जागरूक और अपने मत के महत्व की  शिक्षा को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को लागू करने के अपने प्रयासों के माध्यम से, वह भारतीय  नागरिकों को सशक्त बनाने और देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः उसे अपने निहित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जनता को जागरूक और भारत की लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित एवं जागरूक करना चाहिए।
  • भारतीय चुनाव आयोग, एक महत्वपूर्ण संवैधानिक इकाई है जिसे भारत में चुनावी प्रक्रिया की देखरेख, प्रबंधन और नियंत्रण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अतः उसे निष्पक्ष एवं तटस्थ रूप से भारत की चुनावी प्रक्रिया को संपन्न सुनिश्चित करना चाहिए।
  • चुनाव आयोग को सतर्क रहना चाहिए और नागरिक और पुलिस नौकरशाही के निचले स्तर के भीतर किसी भी मिलीभगत की बारीकी से निगरानी करनी चाहिए जो सत्तारूढ़ दल का पक्ष ले सकती है। इससे चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और निष्पक्षता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को लेकर चल रहे विवादों के बीच जनता का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए आयोग को अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल सिस्टम (वीवीपीएटी) की तैनाती बढ़ानी चाहिए।
  • आयोग के अधिदेश और इसके कामकाज को सुविधाजनक बनाने वाली प्रक्रियाओं को मजबूत कानूनी समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है। इससे इसकी प्रभावशीलता बढ़ेगी और चुनावों का सुचारू संचालन सुनिश्चित होगा।
  • भारत में नैतिक और सक्षम व्यक्ति ही चुनाव आयोग सहित अन्य सार्वजनिक संस्थानों में नेतृत्व पदों पर आसीन हों, हमें ऐसे सुरक्षा उपाय भी सुनिश्चित करना होगा। इससे आयोग की विश्वसनीयता और प्रासंगिकता  बनाए रखने में मदद मिलेगी।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कॉलेजियम की स्थापना की सिफारिश की गई, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, कानून मंत्री और राज्य के उपसभापति शामिल होंगे। सभा के सदस्य के रूप में. यह कॉलेजियम मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को सिफारिशें करेगा। इन पदों के लिए चयन प्रक्रिया को बढ़ाने और आयोग के भीतर सक्षम नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए इस प्रस्ताव पर विचार किया जाना चाहिए।
  • भारत निर्वाचन आयोग का इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के पक्ष में  बचाव करना सही है, वहीं इन  मशीनों पर जनता का भरोसा सुनिश्चित करने के लिए उसे और ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है। 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय के आलोक में चुनावी बांड के द्वारा चंदा देने वालों के निजता के अधिकार के दावे और मतदाता के सूचना के अधिकार के बीच के टकराव में, ईसीआई का टालमटोल वाला रवैया एकदम अनुचित  है। 
  • भारत निर्वाचन आयोग  को यह पता होना चाहिए कि जब भारत में इस दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रणाली का आकलन करने की बात आती है, तो सभी की निगाहें उसी पर होती हैं, क्योंकि लोकतंत्र में जनता द्वारा किए गए मतदान का निष्पक्ष एवं पारदर्शी होना अत्यंत आवश्यक है ताकि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था बची रह सके और हम भारत को एक समावेशी और लोकतांत्रिक देश के रूप में दुनिया को लोकतांत्रिक मूल्यों का पाठ पढ़ाने के लिए उनका अगुआ और पथ – प्रदर्शक बन सके। तभी सही मायने में लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित हो सकती है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत विश्व में सबसे पहले गणतंत्रात्मक व्यवस्था वाला राष्ट्र रहा है।  

Download yojna daily current affairs hindi med 18th March 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त विधेयक, 2023 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त  और अन्य चुनाव आयुक्तों के वेतन एवं सेवा शर्तें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान होंगी।
  2. इस विधेयक में खोज समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और इसमें कैबिनेट सचिव के पद से निम्न पद वाले दो सदस्य भी शामिल होंगे।
  3. भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 मई 1950 को हुई थी।
  4. यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया है।

उपरोक्त कथन / कथनों में कौन सा कथन सही है ? 

(A). केवल 1 और 3 

(B). केवल 2 और 4 

(C ) केवल 3

(D) केवल 4  

 

उत्तर – (D) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष उत्पन्न वर्तमान चुनौतियों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि क्या भारत निर्वाचन आयोग को प्राप्त शक्तियां वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने में प्रासंगिक है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए 

 

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