19 Apr भारत में उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियां और उपचारात्मक याचिका
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 – ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत में उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियां और उपचारात्मक याचिका ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘दैनिक करंट अफेयर्स’ के अंतर्गत ‘ भारत में उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियां और उपचारात्मक याचिका ’ से संबंधित है।)
ख़बरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2021 के अपने पुराने फैसले को पलटते या बदलते हुए एक उपचारात्मक याचिका के माध्यम से अपनी “असाधारण शक्तियों” का प्रयोग किया है।
- दिल्ली मेट्रो रेल निगम (DMRC) और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड-कंसोर्टियम के नेतृत्व वाली इस फैसले में दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (DAMEPL) को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था।
दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड मामला 2024 क्या है ?
- वर्ष 2008 में DMRC ने दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये DAMEPL के साथ भागीदारी की।
- सुरक्षा चिंताओं और परिचालन संबंधी मुद्दों जैसी विवादों के कारण का हवाला देते हुए वर्ष 2013 में DAMEPL द्वारा समझौते को समाप्त कर दिया गया था।
- इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने DAMEPL के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके परिणामस्वरूप DMRC को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दियागया । हालाँकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने DMRC को 75% राशि एस्क्रो खाते में जमा करने का निर्देश दिया था।
- इस मामले में सरकार ने अपील की और वर्ष 2019 में उच्च न्यायालय के फैसले को DMRC के पक्ष में परिवर्तित कर दिया गया था ।
- DAMEPL ने भारत के उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने शुरुआत में वर्ष 2021 में माध्यस्थम पंचाट (Arbitral Award) को बरकरार रखा था।
भारत के उच्चतम न्यायालय का वर्तमान निर्णय :
- भारत के उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले ने अपने पुराने फैसले में “मौलिक त्रुटि” का हवाला देते हुए अब DMRC के पक्ष में फैसला सुनाया है ।
- भारत के उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपचारात्मक याचिकाओं के महत्त्व को बताता है।
- यह निर्णय भारत में किसी भी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए कानूनी प्रावधानों के संबंध में स्पष्टता प्रदान करता है साथ ही न्यायालय के अंतिम फैसले के वर्षों बाद भी त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने की भारत के उच्चतम न्यायालय की सदिच्छा (willingness) को प्रदर्शित करता है।
उपचारात्मक याचिका क्या है ?
- भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा भी जब अंतिम दोषसिद्धि के विरुद्ध समीक्षा याचिका खारिज़ होती है, तो उसके उसके बाद भी भारत में न्यायिक व्यवस्था के अनुसार भारत के उच्चतम न्यायालय में न्याय पाने के उद्देश्य से उपचारात्मक याचिका वादी के लिए एक कानूनी उपाय के रूप में कार्य करता है।
- भारत के संविधान के अनुसार भारत में संवैधानिक रूप से भारत के उच्चतम न्यायालय के अंतिम निर्णय को आमतौर पर केवल समीक्षा याचिका के माध्यम से और उसके बाद भी संकीर्ण प्रक्रियात्मक आधारों पर ही चुनौती दी जा सकती है।
- भारत में उपचारात्मक याचिका न्यायिक विफलता को सुधारने हेतु एक संयमित न्यायिक नवाचार के रूप में कार्य करती है।
- इसका मुख्य उद्देश्य न्यायिक विफलता को रोकने के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को भी रोकना होता है।
- उपचारात्मक याचिकाओं पर निर्णय आमतौर पर न्यायाधीशों द्वारा चैंबर में लिया जाता है, हालाँकि विशिष्ट अनुरोध पर खुले न्यायालय में भी सुनवाई की अनुमति दी जा सकती है।
- उपचारात्मक याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य मामले, 2002 के मामले में दिया गया था।
भारत में उपचारात्मक याचिका दायर करने के संबंध में दिशा – निर्देश :
- याचिका के साथ किसी वरिष्ठ अधिवक्ता का प्रमाणीकरण होना चाहिए, जिसमें इस पर पुनः विचार करने के लिए पर्याप्त आधारों पर प्रकाश डाला गया हो।
- इसे सबसे पहले तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक पीठ में प्रसारित किया जाता है, साथ ही यदि उपलब्ध हो तो मूल निर्णय पारित करने वाले न्यायाधीशों के साथ भी इसे साझा किया जाता है ।
- सुनवाई: केवल यदि न्यायाधीशों का बहुमत इसे सुनवाई के लिए आवश्यक समझता है, तो इसे विचार के लिए सूचीबद्ध किया जाता है,
- भारत में उपचारात्मक याचिका उसी पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जिसने प्रारंभिक निर्णय पारित किया था।
- पीठ उपचारात्मक याचिका पर विचार के किसी भी चरण में न्याय-मित्र के रूप में सहायता के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता को नियुक्त कर सकती है।
- यदि पीठ यह निर्धारित करती है कि याचिका तर्कराहित है और यह कष्टप्रद है, तो वह याचिकाकर्त्ता पर अनुकरणीय शुल्क लगा सकती है।
- भारत का उच्चतम न्यायालय इस बात पर ज़ोर देता है कि न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिए उपचारात्मक याचिकाएँ दुर्लभ होनी चाहिए और उनकी समीक्षा सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए।
भारत में उपचारात्मक याचिका पर पुनः विचार करने के लिए आवश्यक मानदंड :
नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन : यह प्रदर्शित किया जाना चाहिए कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है, जैसे न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्त्ता के पक्ष को नहीं सुना गया है।
न्याय सुनिश्चित करने में पूर्वाग्रह की आशंका : यदि न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह का संदेह करने के आधार हैं, जैसे कि प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने में विफलता, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।
भारत में उपचारात्मक याचिका से संबंधित अन्य मामले :
भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड मामला (भोपाल गैस त्रासदी ) :
- संघ सरकार भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिये अधिक मुआवज़े के लिये वर्ष 2010 में एक उपचारात्मक याचिका दायर की। वर्ष 2023 में 5 न्यायाधीशों की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज़ कर दी कि पहले निर्धारित किया गया मुआवज़ा पर्याप्त था।
- पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उपचारात्मक याचिका पर केवल न्याय के दुरुपयोग, धोखाधड़ी, या भौतिक तथ्यों को दबाने के मामलों में ही विचार किया जा सकता है, जिनमें से कोई भी तथ्य इस मामले में मौजूद नहीं था।
नवनीत कौर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य मामला, 2014 :
- इस मामले ने मृत्युदंड के मामलों में बदलाव को चिह्नित किया। मृत्युदंड पाने वाले याचिकाकर्त्ता ने उपचारात्मक याचिका के माध्यम से सफलतापूर्वक तर्क दिया कि मानसिक बीमारी और दया याचिका के लिए अनुचित रूप से विलंब सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने का आधार बनाया गया था ।
भारत के उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियाँ क्या हैं ?
- विवादों का समाधान : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या स्वयं राज्यों के बीच कानूनी अधिकारों से जुड़े विवादों में विशेष मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन करता है।
- विवेकाधीन क्षेत्राधिकार : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को भारत में किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा दिये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष अनुमति देने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह शक्ति सैन्य न्यायाधिकरणों और कोर्ट-मार्शल पर लागू नहीं होती है।
- सलाहकारी क्षेत्राधिकार : संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास सलाहकार क्षेत्राधिकार है, जहाँ भारत के राष्ट्रपति अपनी राय के लिये विशिष्ट मामलों को न्यायालय में भेज सकते हैं।
- अवमानना की कार्यवाही : संविधान के अनुच्छेद 129 और 142 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अदालत की अवमानना के लिए दंडित करने का अधिकार है, जिसमें स्वत: संज्ञान या महान्यायवादी, सॉलिसिटर जनरल या किसी व्यक्ति द्वारा याचिका सहित स्वयं की अवमानना भी शामिल है।
समीक्षा और उपचारात्मक शक्तियाँ :
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को, राष्ट्रपति की मंज़ूरी से, न्यायालय के अभ्यास और प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है, जिसमें न्यायालय के समक्ष अभ्यास करने वाले व्यक्तियों के लिए नियम, अपील की सुनवाई, अधिकारों को लागू करना तथा अपीलों पर विचार करना शामिल है।
- इसमें निर्णयों की समीक्षा करने,, लागत निर्धारित करने, ज़मानत देने, कार्यवाही पर रोक लगाने और पूछताछ करने के नियम भी शामिल हैं।
स्त्रोत – द हिन्दू एवं इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.भारत में उपचारात्मक याचिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- इसके तहत न्याय सुनिश्चित करते समय नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है, और न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्त्ता के पक्ष को नहीं सुना गया है।
- भारत में उपचारात्मक याचिका उसी पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जिसने मामले के संबंध में पूर्व में ही निर्णय दिया था।
- इसके तहत इसमें निर्णयों की समीक्षा करने,, लागत निर्धारित करने, ज़मानत देने, कार्यवाही पर रोक लगाने और पूछताछ करने के नियम भी शामिल हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य न्यायिक विफलता को रोकने के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को भी रोकना होता है।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 3
B. केवल 2, 3 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.उपचारात्मक याचिका से आप क्या समझते हैं ? भारत में न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित किए जाने के दौरान किसी भी मामले में न्यायालय द्वारा किए गए भूलों या त्रुटियों को सुधारने में भारत के उच्चतम न्यायालय की उपचारात्मक याचिकाओं की विशेष शक्तियों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक -15)
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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