भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण बनाम महिलाओं को अपनी पहचान चुनने का अधिकार

भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण बनाम महिलाओं को अपनी पहचान चुनने का अधिकार

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी। 

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, भारत में लैंगिक समानता, महिलाओं की श्रम संबंधी भागीदारी, श्रमशक्ति आवधिक आँकड़ा (अक्टूबर – दिसंबर 2023),  महिलाओं को अपनी पहचान चुनने का अधिकार। 

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में सुश्री दिव्या मोदी टोंग्या ने अपनी खुद की पहचान चुनने का अधिकार पाने के लिए एक याचिका दायर की थी कि उन्हें अपने विवाह से पूर्व वाला नाम उपयोग करने की इजाजत दी जाए। 
  • सुश्री दिव्या मोदी टोंग्या को सरकार द्वारा जारी किए गए एक अधिसूचना के कारण दिल्ली उच्च न्यायालय से अपनी खुद की पहचान पाने के लिए यह याचिका दायर करनी पड़ी। 
  • सरकार द्वारा जारी इस अधिसूचना के अनुसार भारत में यदि कोई विवाहित महिला अपने तलाक के बाद यदि वह अपने शादी से पूर्व वाला नाम उपयोग करना चाहती है तो उसे अपने तलाक के कागजात पर अपने पूर्व के पति से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेना पड़ता है।
  • सुश्री मोदी टोंग्या के द्वारा दायर अपनी याचिका में,उनका कहना कि सरकार द्वारा जारी यह अधिसूचना ‘भारत में लैंगिक पहचान की दृष्टि से महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण है और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है।
  • सुश्री मोदी टोंग्या के द्वारा दायर अपनी याचिका में यह भी कहना कि अपने पूर्व के पति से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) पेश करना भारत में उन महिलाओं के लिए एक असंवैधानिक और गैरजरूरी प्रतिबंध है जिसमें कोई भी महिला अपने स्वयं का नाम चुनने या अपना  उपनाम / सरनेम बदलने के लिए अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करना चाहती हैं।
  • दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 मई को अगली सुनवाई तक सुश्री मोदी टोंग्या के द्वारा दायर याचिका  के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। 
  • सुश्री मोदी टोंग्या के द्वारा दायर अपनी याचिका में, यह भी कहना कि भारत में जिन महिलाओं ने शादी के बाद अपने पति का उपनाम नहीं अपनाती है, उन महिलाओं को भारत में  बैंक खाता खोलने, या स्कूल में बच्चे के दाखिले, या अपने किए पासपोर्ट के लिए आवेदन इत्यादि करने के समय समय अनेक गैरजरूरी प्रश्नों और अनेक कागजी कार्रवाई से गुजरना पड़ता है।
  • भारत में, आज भी राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर लैंगिक असमानताएं हैं। भारत में महिलाएं आज भी अपने घर में अवैतनिक काम करती हैं और अक्सर उन्हें विभिन्न वजहों से श्रम बल से बाहर कर दिया जाता है। 
  • भारत जैसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था वाले देश में कोई लड़की या महिला क्या कर सकती है और क्या नहीं, यह अक्सर घर के पुरुषों द्वारा तय किया जाता है।
  • भारत में महिलाएं भी कभी परंपरा के नाम पर तो कभी सामाजिक व्यवस्था के नाम पर महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा और अपमान को चुपचाप स्वीकार कर लेती हैं। यदि कोई महिला  इसका विरोध भी करती है तो उसे समाज ‘ कुलटा, कुलबोरनी, मर्दाना औरत’ के विशेष उपनामों से उसे पुकारा जाता है और उसे सामाजिक स्तर पर अपमानित किया जाता है।
  • श्रमशक्ति में महिलाओं की श्रम संबंधी भागीदारी– श्रमशक्ति के ताजा आवधिक आंकड़ों (अक्टूबर-दिसंबर 2023) के अनुसार, भारत में सभी उम्र की महिलाओं की भागीदारी महज 19.9 फीसदी ही है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अभी दुनिया में सबसे बड़ी मानवाधिकार संबंधी चुनौती लैंगिक समानता हासिल करना और महिलाओं व लड़कियों को सशक्त बनाना है।
  • संयुक्त राष्ट्र के जेंडर स्नैपशॉट रिपोर्ट 2023  लैंगिक समानता के संदर्भ में  बताता है कि लैंगिक समानता की दृष्टिकोण से अगर सुधार के उपाय नहीं किए गए, तो महिलाओं की अगली पीढियां भी पुरुषों के मुकाबले घरेलू कामों और कर्तव्यों पर अनुपात से ज्यादा समय खर्च करती रहेंगी और नेतृत्वकारी भूमिकाओं से दूर रहेंगी। 
  • सामान्य लैंगिक अंतर (Overall Gender Gap) : जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार –  लैंगिक समानता के मामले में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।
  • भारत में महिलाओं के लिए संवैधानिक और विधायी समर्थन के बाद भी भारत जैसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था वाले देश में सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन के बिना लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण दोनों ही लगभग असंभव है।

भारत में महिला सशक्तिकरण : 

तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गाँठें खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास?
X X X X
अगर नहीं!
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में..?

———– —– नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द, निर्मला पुतुल (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन) 

भारत में सभी धर्म में भी महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय और निम्न मानना :  

  • भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश में शिक्षा, मीडिया, कानूनी संस्थाएँ, आर्थिक संस्थाएँ, राजनीतिक संस्थाएँ सभी में पितृसत्तात्मक व्यवस्था हैं। भारत के सभी धर्म में भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था हैं। अधिकांश धर्म महिला को अपना मुख्य आराध्य नहीं मानते। चूंकि धर्मों में पितृसत्ता को सर्वोच्च दिखाया गया है इसलिए महिलाओं को हमेशा से धर्म के नाम बराबरी करने का मौका ही नहीं दिया जाता है, और महिलाएँ बिना बराबरी का अधिकार माँगे अपने पति को परमेश्वर, स्वामी मानने लगती हैं। वह इस बात पर ज़रा भी विचार नहीं करतीं कि पति-पत्नी में अगर एक मालिक है तो दूसरा कौन होगा? वह आसानी से अपने आपको गुलाम मान लेती हैं क्योंकि उन्हें अपने परिवार में ही पारंभिक अवस्था में  स्त्री – पुरुष के बीच के अंतर को समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा समझया जाता है।
  • प्रसिद्ध नारीवादी चिंतक “ सिमोन – द – बुवुआर”  की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ द सेकेण्ड सेक्स “ के अनुसार – “ स्त्री पैदा नहीं होती। स्त्री बनाई जाती है। समाज में पैदा तो नर और मादा होते हैं । परिवार और समाज द्वारा स्त्री को बचपन से स्त्रीत्व के गुणों के विकास के लिए एक खास प्रकार का अभ्यास करवाया जाता है। फलतः भारत के बाहर अन्य विकासशील देशों में भी लैंगिक असमानताएं और महिला सशक्तिकरण में एक खास प्रकार का अंतर विद्यमान है।” 

लैंगिक समानता का अर्थ : 

  • लैंगिक समानता का अर्थ है कि महिलाएँ और पुरुषों को या बालक और बालिकाओं को  समान अधिकार, जिम्मेदारियाँ और सामान अवसर प्राप्त हों। यह सिर्फ एक सामाजिक मुद्दा भर ही नहीं है, बल्कि यह एक मानवाधिकार भी है जो सभी व्यक्तियों को समानता के माध्यम से समृद्धि और सम्मान की भावना के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) के अनुसार –  लैंगिक समानता का मतलब यह नहीं है कि महिलाएँ और पुरुष समान हों, बल्कि इसका मतलब है कि उन्हें समान अधिकार, स्वतंत्रता, और अवसर मिले जो उनकी क्षमताओं और चयन के आधार पर होना चाहिए। इसका उद्देश्य लैंगिक भेदभाव, स्त्रियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा, और अन्य लैंगिक समस्याओं के खिलाफ सामाजिक जागरूकता बढ़ाना और समाज में समानता की भावना को स्थापित करना है।
  • इसमें यह भी शामिल है कि लैंगिक समानता का पूरा होना एक सुशिक्षित और सुशासनयुक्त समाज के लिए आवश्यक है, जहां सभी व्यक्तियों को उनकी इच्छा और क्षमता के आधार पर समान अधिकार और अवसर मिलते हैं। इससे समाज में सामंजस्य और समृद्धि होती है जो समृद्धि और प्रगति की दिशा में सहायक होती है। लैंगिक समानता न केवल एक आदर्श बल्कि एक समृद्धि और समृद्धिवादी समाज की आधारशिला भी है।

महिला सशक्तिकरण का अर्थ : 

  • महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और व्यक्तिगत स्तर पर सशक्त बनाना है। इस प्रक्रिया का मकसद महिलाओं को उनके जीवन में सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता और समानता का अधिकार प्रदान करना है।

महिला सशक्तिकरण के प्रमुख घटक : 

 

महिला सशक्तिकरण के मुख्य  पाँच घटक निम्नलिखित हैं – 

  1. आत्म-सम्मान : महिलाओं में आत्म-सम्मान की भावना का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे वे अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को पहचानती हैं और समाज में समानता का अधिकार को जानकर , अपने अधिकारों के प्रति सजग रहती हैं।
  2. विकल्प चुनने और निर्णय लेने का अधिकार : महिलाओं को अपने जीवन में स्वतंत्रता से विकल्प चुनने और निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए, चाहे वह घर में हों या घर के बाहर के कार्यस्थल ही क्यों न हो, महिलाओं को अपने जीवन में हर जगह और हर स्थिति में स्वतंत्रता से विकल्प चुनने और निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
  3. अवसर और संसाधनों तक पहुँच:: महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, और अन्य संसाधनों तक पहुँच होनी चाहिए ताकि वे अपनी क्षमताओं को सही तरीके से विकसित कर सकें।
  4. महिलाओं को अपने जीवन पर नियंत्रण का अधिकार : महिलाओं को अपने जीवन के निर्णयों में सकारात्मक रूप से शामिल होना चाहिए, चाहे वह घर के अंदर हों या  घर के बाहर महिलाओं को अपने जीवन में हर जगह और हर स्थिति में स्वतंत्रता से अपने जीवन पर नियंत्रण का अधिकार  होना चाहिए।
  5. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक परिवर्तन में भाग लेने की क्षमता : महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में न्यायपूर्ण परिवर्तन के लिए सक्रिय रूप से योजना बनाने और उनमें भाग लेने की क्षमता प्रदान होमी  चाहिए।

महिला सशक्तिकरण के तीन मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं – 

  1. सामाजिक-सांस्कृतिक सशक्तिकरण : महिलाओं को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने और सामाजिक बदलाव में भाग लेने की क्षमता प्रदान करना महिला सशक्तिकरण का प्रमुख आयाम है।
  2. आर्थिक सशक्तिकरण : महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने और उन्हें आर्थिक विकास में सक्रिय भाग लेने की क्षमता प्रदान करना महिला सशक्तिकरण का प्रमुख आयाम है।
  3. राजनीतिक सशक्तिकरण : महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने, नीतियों में सहभागिता बढ़ाने, और प्रतिनिधित्व में उनकी बढ़ती हुई भूमिका को समझाना भी महिला सशक्तिकरण का प्रमुख आयाम है।

यह सभी आयाम साथ मिलकर महिलाओं को समर्थ, स्वतंत्र, और इंसानी रूप में समान बनाने की प्रक्रिया की ओर संकेत करते हैं।

लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के बीच संबंध : 

 

  • महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के बीच संबंध गहरे और पारस्परिक संबंध  हैं और इन दोनों के परस्पर संबंध को समझना महत्वपूर्ण है। लैंगिक समानता को प्राप्त करने के लिए, महिलाओं को समाज में समान अधिकार, अवसर, और सामान स्थिति मिलना चाहिए। महिला सशक्तिकरण का अर्थ यह भी है कि महिलाएं अपने जीवन में नियंत्रण रखें, अपनी राय व्यक्त करें, और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समर्थ हों।
  • भारतीय समाज में, प्राचीन-मध्यकाल से ही महिलाओं को देवियों की पूजा का सौभाग्य मिलता रहा है, लेकिन समय के साथ महिलाओं को समाज में उच्च स्थान पर पहुँचने में कई रुकावटें आईं। इसके बावजूद, भारतीय इतिहास में कई शक्तिशाली महिला नेताएं और राजनेत्रियाँ भी उभरीं हैं, जो न केवल अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दी हैं बल्कि समाज को भी बदलने का कारण बनीं हैं।
  • भारत में, प्राचीन-मध्यकाल से लेकर स्वतंत्रता-पूर्व काल तक, महिलाओं को विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक उपाधियों के माध्यम से पूजा गया है, लेकिन समाज में उन्हें पूर्णत: समानता नहीं मिली। स्त्री हितैषी आंदोलन, सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, बाल विवाह निरोधक अधिनियम जैसे कई सुधारों के माध्यम से समाज में बदलाव आया।
  • सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन (19वीं शताब्दी) ने भी महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई कदम उठाए। सती प्रथा के खिलाफ धार्मिक सुधार, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, और बाल विवाह निरोधक अधिनियम जैसे कानूनों के प्रदर्शन से सामाजिक बदलाव हुआ और महिलाओं को अधिक अधिकार मिले।
  • स्वतंत्रता-पूर्व भारत में, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों ने महिला सशक्तिकरण के मामले में सकारात्मक परिवर्तन किए। साथ ही, महिला संगठनें भी लैंगिक समानता की मुद्दे पर अपनी आवाज उठाईं और समाज में जागरूकता फैलाई।
  • स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, महात्मा गांधी ने महिलाओं को समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए अग्रणी भूमिका दी। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और उन्हें राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपने अधिकारों की मांग करने के लिए साहसिक बनाया। गांधीजी के नेतृत्व में हुए स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाएं अपने योगदान से सजग रहीं और उन्हें समाज में बड़ा हिस्सा बनने का मौका मिला।
  • स्वतंत्रता के बाद, भारतीय महिला परिषद, भारतीय महिला संघ, और अन्य महिला संगठनें भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए संघर्ष कर रहीं हैं। इन संगठनों ने महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए लड़ने और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित किया है।
  • इस प्रकार, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का संघर्ष एक साथ चल रहा है और यह समाज में समानता और न्याय की दिशा में प्रगति कर रहा है। इसे बढ़ावा देने के लिए समाज को सकारात्मक रूप से सहयोग करना और लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।
  • वर्तमान समय में  महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के प्रति समर्थन तेजी से बढ़ रहा है और समाज में सबको समानता का अधिकार मिलना चाहिए। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और सामाजिक सद्भावना में सुधार के माध्यम से हम सभी को मिलकर इस मार्ग पर आगे बढ़ने का समर्थन करना आवश्यक है।

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में शांति काल में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता आंदोलन का नवीनीकरण हुआ। यह मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से  हुआ था – 

 

स्वतंत्रता के बाद अधिकांश महिला कार्यकर्ता राष्ट्र निर्माण कार्यों में शामिल हो गईं:  स्वतंत्रता के बाद, अनेक महिलाएं सार्वजनिक जीवन में अधिक सक्रिय हो गईं और राजनीति, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में भूमिका निभाने लगीं।

भारत के विभाजन के आघात ने महिलाओं के तत्कालीन मुद्दों से ध्यान हटा दिया:  भारत के पारंपरिक समाज में विभाजन के कारण, महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाया था। स्वतंत्रता के बाद, यह स्थिति बदली और महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा होने लगी।

1970 दशक के पश्चात् भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता आंदोलन का नवीनीकरण हुआ।

भारतीय महिला आंदोलन के दूसरे चरण के रूप में प्रसिद्ध, प्रमुख महिला संगठनों ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलों की शुरुआत हुई। जैसे – 

स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) :  इस संगठन ने असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कार्य किया और उन्हें स्व-रोज़गार के लिए समर्थन प्रदान किया।

अन्नपूर्णा महिला मंडल (AMM) :  इस  संगठन ने महिलाओं और बालिकाओं के कल्याण के लिए कार्य किया और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य क्षेत्रों में समर्थन प्रदान किया।

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति और चुनौतियां  :

 

  • हाल ही में, सरकार ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं की  शरूआत  की हैं। हालांकि कुछ सुधार हुआ है, लेकिन भारत में महिलाओं को समान अवसर मिलने में अभी भी कई चुनौतियां हैं और उनके साथ भेदभाव जारी है।
  • सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्तिकरण के लिए अनेक नए पहलों की शुरुआत की हैं, जैसे कि उद्यमिता समर्थन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और समाज में प्रतिष्ठा दिलाना।
  • इन प्रयासों का उद्देश्य है महिलाओं को समाज में समानता, स्वतंत्रता, और अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करना। हालांकि यह समस्याएं अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सकारात्मक प्रयास और बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति एक जटिल मिश्रण है जिसमें समृद्धि और चुनौतियां दोनों शामिल हैं। यहां कुछ मुख्य पहलुओं को देखा जा सकता है:

  1. लैंगिक असमानता : भारत में पुरानी सांस्कृतिक धाराओं और जाति व्यवस्था के कारण, लैंगिक असमानता की समस्याएं आज भी मौजूद हैं। लिंगानुपात, मातृ मृत्यु दर, और शिक्षा में असमानता इसके प्रमुख प्रमाण हैं।
  2. सामाजिक-सांस्कृतिक असमानता : भारतीय समाज की समाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों के फलस्वरूप महिलाएं अक्सर विभिन्न अवसरों से वंचित रहती हैं। बाल विवाह और असमान पुरुषाधिकार भी इसके उदाहरण हैं।
  3. आर्थिक विषमता : महिलाओं का वेतन अंतर, अनौपचारिक रोजगार, और उच्चतम पदों में कम प्रतिनिधित्व इसे बढ़ाते हैं।
  4. राजनीतिक असमानता : सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर, महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। संसद और राज्य विधानसभाएं में महिला सदस्यों की कमी इसे चुनौती देती है।
  5. लैंगिक आधारित हिंसा : महिलाओं के खिलाफ लैंगिक आधारित हिंसा की सामान्यता इसे एक गंभीर समस्या बनाती है।
  6. शिक्षा :  किसी भी समाज की उन्नति और एक बेहतर भविष्य के लिए सबसे अच्छा और महत्पूर्ण  उपाय शिक्षा है, लेकिन इसमें भी कई क्षेत्रों में महिलाओं को अभी तक समानता का अवसर नहीं मिल पाया है। इन समस्याओं का सामना करते हुए, समाज में साक्षरता, स्वास्थ्य, रोजगार, और राजनीतिक स्तर पर महिलाओं को सशक्तिकरण के लिए समर्थ बनाने के लिए नीतियों और कदमों की जरूरत है। लोगों को लैंगिक समानता और आपसी समरसता की प्रोत्साहना करनी चाहिए ताकि हर व्यक्ति को समान अवसर मिले और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ा सके।

लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का महत्त्व : 

 

  • महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को प्राप्त करना एक समृद्धि और समानतामूलक समाज बनाने की महत्वपूर्ण  प्रक्रिया है। इसका समग्र महत्त्व सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तनों में है। 

सामाजिक न्याय : 

  • लैंगिक समानता को स्वीकृति देने से समाज में न्याय की भावना बढ़ती है। महिला सशक्तिकरण से उन्हें समाज में उचित स्थिति मिलती है और समाजिक असमानता को कम करने में मदद मिलती है। 

राष्ट्र की प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना  : 

  • महिलाओं का सकारात्मक योगदान राष्ट्र की प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि हम समाज के सभी सदस्यों को समाहित बनाना चाहते हैं, तो महिलाओं को सशक्त करना आवश्यक है।

सामाजिक – सांस्कृतिक महत्व : 

  • लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण एक शांतिपूर्ण और समतामूलक समाज निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। इससे महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा में कमी आती  है और समाज में समरसता बनी रहती है। 

आर्थिक महत्त्व : 

  • महिलाओं को समान अधिकार और अवसर देने से आर्थिक समृद्धि में भी सुधार होता है। वे सक्षम होती हैं और अपने परिवार और समाज के लिए योगदान करती हैं, जिससे राष्ट्र को भी लाभ होता है।

राजनीतिक महत्त्व : 

  • महिलाओं का समर्थन करना और उन्हें नेतृत्व की भूमिकाओं में बढ़ावा देना राजनीतिक प्रक्रिया में बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है। महिला सांसदों और महिता नेत्रियों के माध्यम से समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक माहौल का निर्माण होता है।
  • लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण समृद्धि, सामरस्य, और अन्याय के खिलाफ एक सशक्त समाज की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।इस प्रकार, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्त्व है, जो समृद्धि, सामंजस्य, और समाज में न्याय की स्थापना में मदद करता है।

भारतीय संविधान में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए कई प्रावधान हैं। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण  के लिए कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है – 

  1. मूल अधिकार (Article 14) :  सभी नागरिकों को सामान्य विधि के तहत समानता और संरक्षण का अधिकार है, जिसमें महिलाओं को भी समाहित किया गया है।
  2. मूल अधिकार (Article 15) :  इस अधिकार के तहत महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव पर प्रतिबंध है, जिससे लैंगिक भेदभाव को रोका जाता है।
  3. मूल अधिकार (Article 16) : इस अधिकार के तहत भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रोजगार और नौकरी में समानता का अधिकार है, जिससे महिलाओं को भी समाहित किया गया है।
  4. मूल अधिकार (Article 21) :  इस अधिकार के तहत भारत के प्रत्य्र्क नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार में, महिलाओं को शालीनता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है।
  5. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (Article 39) : राज्य नीति के निदेशक तत्त्व के तहत भारत के प्रत्येक नागरिकों को समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है, जिससे महिलाओं को भी समाहित किया जाता है।
  6. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (Article 42) : इसके तहत भारत के नागरिक के रूप में महिलाओं को कार्य की उचित और मानवीय स्थितियों के लिए मातृत्व राहत और अवकाश का प्रावधान है, जिससे महिलाओं को समाहित किया गया है।
  7. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (Article 44) :  इसके तहत समान नागरिक संहिता का प्रावधान है, जिससे विवाह, तलाक, विरासत आदि में महिलाओं को समान अधिकार मिलते हैं।
  8. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (Article 45) : भारत के संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 45 के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का प्रावधान है, जिससे बालिकाओं को भी समाहित किया गया है।
  9. मौलिक कर्तव्य (Article 51A) : भारत के नागरिकों को प्रदत मौलिक अधिकार के तहत हर नागरिक को महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने का मौलिक कर्तव्य है।
  10. मौलिक कर्तव्य (Article 51A) :  इसके तहत भारत के प्रत्येक माता-पिता/अभिभावक को अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने का मौलिक कर्तव्य है।
  11. नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम) 2023 : महिला आरक्षण अधिनियम 2023 के तहत लोकसभा, विधानसभा और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षित सीटों का प्रावधान शामिल  है।

इन प्रावधानों के माध्यम से भारतीय संविधान ने महिला सशक्तिकरण और समानता की प्रोत्साहन प्रदान  की है , जिससे भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव को कम करने का प्रयास किया गया  है।

भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए प्रावधान :

 

भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं, जो समाज में महिलाओं को सुरक्षित रखने और भारत के नागरिक होने के तौर पर उनके अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करते हैं – 

महिलाओं का सामाजिक – सांस्कृतिक सशक्तिकरण : 

भारतीय दंड संहिता (IPC) :  इसमें महिलाओं के खिलाफ बलात्कार, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या, और एसिड हमले सहित अपराधों का संज्ञान लेता है और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की सुनिश्चित करता है।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 : इस अधिनियम से घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा आदेश और निवास अधिकार प्राप्त होता है, जिससे उन्हें सुरक्षित रहने में मदद मिलती है।

दहेज प्रतिबंध अधिनियम, 1961 :  इसके तहत दहेज लेने और देने को प्रतिबंधित किया गया है और इसके उल्लंघन के लिए सजा का प्रावधान है।

सती (निवारण) आयोग अधिनियम, 1987 : इसके अंतर्गत सती प्रथा को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है, जिससे यह प्रथा निषेधित है।

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 :  इससे बाल विवाह को रोकने के लिए बालिकाओं के लिए न्यूनतम विवाह आयु 18 वर्ष कर दी गई है।

महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण : 

न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 :  इस अधिनियम से सभी श्रमिकों, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं, के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाता है।

समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 :  इससे कार्यस्थल में लैंगिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलती है, क्योंकि यह लिंग के आधार पर मजदूरी और वेतन में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 :  इस अधिनियम से कार्यरत महिलाओं को मातृत्व अवकाश और अन्य लाभ प्रदान किया जाता है।

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 : इससे कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न को रोकने और निवारण के लिए एक प्रणाली बनाई गई है जो महिलाओं को सुरक्षित और समर्थन मिलने में मदद करती है।

महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण : 

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 :  इससे महिलाओं को पुरुषों के समान मतदान करने और चुनाव लड़ने का अधिकार प्रदान किया गया है।

परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 :  इससे निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करते समय महिला मतदाताओं की संख्या का विचार करने का आदेश दिया गया है, जिससे महिलाओं की चुनावी क्षमता में वृद्धि होती है।

भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए सरकारी योजनाएँ : 

भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के क्षेत्र में कई योजनाओं की  शुरूआत की है, जो महिलाओं को समाज में सक्रिय और स्वतंत्र बनाने का उद्देश्य रखती हैं। इन योजनाओं का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को समान अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।

  1. राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति : इस नीति का उद्देश्य महिलाओं के समग्र विकास को बढ़ावा देना है, जिसमें उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक स्थिति को मजबूती से बनाए रखना शामिल है।
  2. राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण मिशन (NMEW) : यह मिशन महिलाओं को सशक्तिकरण के लिए विभिन्न क्षेत्रों में समर्थन प्रदान करता है, जैसे कि शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य।
  3. लैंगिक बजट : यह बजट महिलाओं और पुरुषों के बीच लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लागू किया जाता है, जिससे समाज में इन्हें बराबरी मिले।
  4. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) :  इस योजना का मुख्य उद्देश्य बेटियों की जनसंख्या में सुधार करना और उन्हें शिक्षित बनाना है।
  5. प्रधानमंत्री स्वस्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) : इस योजना से महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त होती हैं, जो उनकी स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करती हैं।
  6. स्टैंड अप इंडिया योजना : इस योजना के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं को ऋण प्रदान करके उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  7. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) :  इस योजना के माध्यम से महिलाओं को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान की जा रही है, जो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करती है।
  8. महिला नेतृत्व विकास कार्यक्रम :  इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं को राजनीतिक भूमिका में प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि वे समाज में अधिक से अधिक भूमिका निभा सकें। 

इन योजनाओं के माध्यम से सरकार भारतीय महिलाओं को समाज में सशक्तिकरण के लिए एक साकारात्मक माहौल प्रदान करने का प्रयास कर रही है। ये कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को साथ लेकर समृद्धि और समानता की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।

महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए चुनौतियाँ : 

भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में तमाम सरकारी प्रयासों के भी बावजूद, कई चुनौतियाँ हैं जो इस प्रयास में रुकावटें डालती हैं।

महिलाओं के समक्ष विद्यमान सामाजिक चुनौतियाँ : 

  1. भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंड:  ऐतिहासिक कारणों से भारत में लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मानदंडों में भेदभाव है, जिससे महिलाएं समाज में बराबरी के अधिकारों की ओर बढ़ती हैं।
  2. महिलाओं की भूमिका का रूढ़ीवादी चित्रण : भारतीय समाज में रूढ़ीवादी सोच ने महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों में ही रूचिकर बनाया है, जिससे उन्हें बाहरी क्षेत्रों में आगे बढ़ने में कठिनाई हो रही है।
  3. महिलाओं का कम साक्षरता दर :  भारत के कई राज्यों और कई क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर अभी भी बहुत ही कम है, जिसका सीधा असर उनके समाजिक और आर्थिक स्थिति पर हो रहा है।

महिलाओं के समक्ष विद्यमान आर्थिक चुनौतियाँ : 

  1. रोजगार के कम अवसर : महिलाओं को रोजगार के क्षेत्र में अधिक मौके नहीं मिलते, और जब मिलते हैं, तो उन्हें अधिकतर असुरक्षित और कम वेतन वाले क्षेत्रों में रखा जाता है।
  2. ग्लास सीलिंग : महिलाओं को सीधे और सबसे ऊपर के पदों तक पहुँचने में कठिनाई होती है, जिसे “ग्लास सीलिंग” कहा जाता है। यह उन्हें प्रमोशन और अच्छे पदों तक पहुँचने में बाधित करता है।
  3. आर्थिक असमानताएँ : भारत में अधिकतर महिलाएं आर्थिक असमानता का सामना कर रही हैं, जो उन्हें स्वतंत्र और समर्थ बनने में रोक रहा है।

महिलाओं के समक्ष विद्यमान राजनीतिक चुनौतियाँ : 

  1. कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व : भारत में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत कम है, जिसका परिणाम है कि उनकी आवाज को सार्वजनिक निर्णय में कम ही होती है।
  2. मुखिया पति या सरपंच पति’ संस्कृति : भारत के कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश स्थानों पर महिलाओं को नाममात्र का ही राजनीतिक प्रतिनिधित्व होता है, और यह भी उनके पति या पुरुष रिश्तेदारों के पास ही रहते हैं।

महिलाओं के समक्ष अन्य चुनौतियाँ : 

कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन : 

 भारत में कानूनों का अधिकारिक और सकारात्मक कार्यान्वयन होना चाहिए ताकि महिलाएं अपने अधिकारों का सही से उपयोग कर सकें।

 

वैश्वीकरण के फलस्वरूप उभरती चुनौतियाँ : 

भारत में वैश्वीकरण के फलस्वरूप और शहरीकरण के साथ, महिलाओं को नई चुनौतियाँ भी मिल रही हैं, जिनमें उन्हें पर्याप्त  सुरक्षा और समर्थन की जरूरत है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, समाज को सामूहिक रूप से सहयोग करना और महिलाओं को उच्च शिक्षा, रोजगार के अधिक अवसर, और समर्थन के लिए सुनिश्चित करना होगा।

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

महिला सशक्तिकरण और भारत में लैंगिक समानता के लिए सुझाए गए कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित है – 

महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण : 

सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन : 

सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन के लिए सामाजिक जागरूकता का विस्तार करना और समाज में लैंगिक समानता की महत्वपूर्णता को समझाना।

महिलाओं को शिक्षा के बेहतर अवसर प्रदान करना :   

महिलाओं को समाज में समानता के लिए उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान करना और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सक्षम बनाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना।

महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना : 

कानूनी उपाय महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठिन कानूनी कार्रवाई करना और कानूनों को सशक्त बनाए रखना।

  • सामाजिक परिवर्तन : सामाजिक बदलाव के माध्यम से लोगों को लैंगिक समानता की महत्वपूर्णता समझाना और इसे समर्थन करने के लिए सामूहिक आंदोलनों को प्रोत्साहित करना।

महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण : 

  1. महिलाओं में कौशल विकास करना : महिलाओं को आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि वे विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में सक्षम हो सकें।
  2. ऋण तक पहुँच : महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए साकारात्मक ऋण की सुविधा प्रदान करना और उन्हें व्यापार में भाग लेने के लिए सक्षम करना।

महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण : 

  1. राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना : महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें नेतृत्व की भूमिकाओं में प्रमोट करना।
  2. महिलाओं में नेतृत्व का विकास करना :  महिलाओं को नेतृत्व विकास कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित करना ताकि वे समाज में नेतृत्व की भूमिका निभा सकें।
  3. भारत में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि हम समृद्धि और समाज की सभी वर्गों के साथ एक समरस, समानित और सांघरिष्ठ समाज की दिशा में अग्रसर हो सकें।
  4. महिला कर्मचारियों के विवाह और उनकी घरेलू भागीदारी को पात्रता न रखने का आधार बनाने वाले नियमों के असंवैधानिक होने संबंधी अदालत की राय को सभी संगठनों को सुनना चाहिए ताकि कार्यस्थल महिलाओं के लिए बाधक बनने के बजाय उन्हें समर्थ बनाने वाले बन सकें।
  5. भारत में महिलाओं को  शिक्षा, रोजगार और अवसरों की राह में आनेवाली बाधाओं को तोड़ना होगा। 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

  1. भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 
  2. श्रमशक्ति केआवधिक आंकड़ों (अक्टूबर-दिसंबर 2023) के अनुसार, भारत में श्रम बल में सभी उम्र की महिलाओं की भागीदारी महज 19.9 फीसदी है।
  3. लैंगिक समानता के संदर्भ में लैंगिक अंतर रिपोर्ट, 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।
  4. मूल अधिकार के अनुच्छेद 15 के तहत महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव पर प्रतिबंध है, जिससे लैंगिक भेदभाव को रोका जाता है।
  5. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद  21 महिलाओं के लैंगिक पहचान के आधार पर होने वाले भेदभाव का निषेध करता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1 और 3 

(B) केवल 2 और 4 

(C)  इनमें से कोई नहीं।

(D) इनमें से सभी।

उत्तर – (D) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ? चर्चा कीजिए कि भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की राह में क्या चुनौतियाँ है और इसको किस प्रकार दूर किया जा सकता है ? 

 

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