17 Feb भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और आवश्यक औषधियाँ : नए अनुसंधान की जरूरत
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।
सामान्य अध्ययन – सार्वजनिक सवास्थ्य देखभाल सेवाएं, आवश्यक दवाएं, विकास वित्त संस्थान , स्वास्थ्य व्यय, राष्ट्रीय चिकित्सा नीति, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, तर्कसंगत दवा उपयोग।
ख़बरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) से जुड़ा एक मुक्त व्यापार समझौता हुआ है।
- केंद्र सरकार को 15 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन . के. सिंह ने स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में में निवेश के लिए एक समर्पित विकास वित्त संस्थान (Development Financial Institute- DFI) बनाने के लिए अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत की थी।
- भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) से जुड़ा एक मुक्त व्यापार समझौता में विवाद की एक जड़ बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित है जो वर्ष 2008 से एक मुद्दा बना हुआ है।
- स्विट्जरलैंड और नॉर्वे, जो ईएफटीए के प्रमुख सदस्य हैं, भारत की कई फार्मास्युटिकल और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों भी विश्व स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र को रेखांकित करती है।
- फार्मा उद्योग की प्रकृति ही ऐसी है कि एक उपयोगी प्रभावी दवा की खोज करने में बहुत अधिक धन की लागत आती है और इसकी जेनेरिक प्रतियां बनाने में अपेक्षाकृत कम लागत होती है। इसकी मांग सामर्थ्य के मुकाबले बहुत अधिक है। फलतः आविष्कारकों और जेनेरिक-दवा के बीच लगातार विवाद होता रहता है।
- कंपनियां. पेटेंटिंग, या प्रवर्तकों को एक निश्चित संख्या में वर्षों के लिए एक विशेष एकाधिकार और सरकारों द्वारा ‘अनिवार्य लाइसेंसिंग’ के लिए निर्देश जारी करने का पारस्परिक अधिकार, जिससे दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्योग के हित में ऐसे एकाधिकार को वैश्विक फार्मा ने बनाए रखा है।
- डेटा विशिष्टता जैसे नए कानूनी नवाचार मुक्त व्यापार वार्ता में खुद को शामिल करना जारी रखते हैं। इस प्रावधान के तहत, सभी नैदानिक-परीक्षण डेटा जो कि प्रवर्तक फर्म द्वारा उत्पन्न दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता से संबंधित है, कम से कम छह साल की अवधि के लिए स्वामित्व और सीमा से बाहर हो जाता है।
- जेनेरिक दवा बनाने की अनुमति तभी संभव है जब किसी देश का नियामक किसी दवा को मंजूरी देने के लिए आपूर्ति किए गए नैदानिक परीक्षण डेटा पर भरोसा कर सके। इसके लिए, जेनेरिक निर्माता आमतौर पर प्रवर्तक के प्रकाशित डेटा पर भरोसा करते हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का परिचय :
समाज में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य और कल्याण, जो व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर आधारित है। यह स्वास्थ्य के अधिक व्यापक निर्धारकों को संबोधित करता है और शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य और कल्याण के व्यापक और आपस में संबंधित पहलुओं पर केंद्रित है।
- वह पूरे जीवन में स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए पूरे की देखभाल मुहैया कराता है और न केवल विशिष्ट रोगों के लिए। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में व्यक्तियों का उपचार, पुनर्वसन और पीड़ाहारक देखभाल शामिल है, जो लोगों के दैनिक जरूरतों और व्यापक पर्यावरण की दृष्टि से अधिक से अधिक योग्य हो।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का मूल न्याय और समानता के प्रति वचनबद्धता और स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक के मूलभूत अधिकार की मान्यता में है।
- मानव अधिकारों पर वैश्विक घोषणा की धारा 25 के अनुसार – “हर किसी को उसके और उसके परिवार के लिए पर्याप्त जीवन यापन का अधिकार शामिल है, जिसमें अन्न, वस्त्र, आवास और चिकित्सीय देखभाल तथा आवश्यक सामाजिक सेवाएं शामिल हैं [“
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को बारबार आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक पहलुओं पर ध्यान देते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण घटक समझा जाता है। जिसे चुनिंदा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल भी कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सार्वजानिक स्वास्थ्य देखभाल का अर्थ :
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन घटकों के आधार पर सार्वजानिक स्वास्थ्य देखभाल की एक व्यापक परिभाषा दिया गया है। जो निम्नलिखित है –
- किसी भी व्यक्ति के पूरे जीवन में व्यापक बढ़ावा देने वाली, सुरक्षात्मक, निवारक, उपचारात्मक, पुनर्वसन संबंधी और पीड़ाहारक देखभाल के माध्यम से लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना, समेकित स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्रीय घटकों के रूप में रणनीति की दृष्टि से प्राथमिक देखभाल के माध्यम से और परिवारों पर लक्षित महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं और जनसंख्या पर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों के माध्यम से प्राथमिकता देना ।
- सभी क्षेत्रों में प्रमाण सूचित सार्वजनिक नीतियों और कार्यों के माध्यम से स्वास्थ्य के व्यापक निर्धारकों को व्यवस्थित रूप से संबोधित करना, जिसमें व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण केअनुकूल और व्यवहारिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं शामिल है। तथा
- व्यक्तियों और सार्वजानिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली और सुरक्षा देने वाली नीतियों की वकालत के रूप में, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं के सह – विकासकों के रूप में और अन्यों को स्वयं देखभाल करने और देखभाल देने वालों के रूप में स्वास्थ्य को महत्तम करने के लिए व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों का सशक्तीकरण करना शामिल है ।
सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का महत्व :
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का नूतनीकरण करना और उसे प्रयासों के केंद्र में रखकर स्वास्थ्य और कल्याण को सुधारना निम्नलिखित तीन कारणों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है –
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तेज़ी से आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और जनसंख्या परिवर्तनों को प्रतिक्रिया देने के लिए जिनमें सभी के स्वास्थ्य और कल्याण शामिल है । प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की व्यापक परिधि को आकर्षित कर स्वास्थ्य और कल्याण के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और व्यावसायिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए नीतियों की परीक्षा और बदलाव लाता है। अपने स्वयं के स्वास्थ्य और कल्याण के उत्पादन में महत्वपूर्ण कार्यकारकों के रूप में लोगों और समुदायों से व्यवहार करना हमारे बदलते विश्व की जटिलताओं को समझने और प्रतिक्रिया देने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य और कल्याण के आज के प्रमुख कारणों और खतरों को संबोधित करने के लिए, साथ ही आने वाले समय मेंस्वास्थ्य और कल्याण को खतरे में डालने वाले उभरती चुनौतियों को संभालने के लिए अति प्रभावी और कार्यक्षम पद्धति सिद्ध हुई है।
- सार्वजानिक स्वास्थ्य में निवेश अच्छे मूल्यवान निवेश भी सिद्ध हुआ है, क्योंकि ऐसा प्रमाण है कि गुणवत्तावान प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व्यक्तियों केअस्पताल में भर्ती होने की दर में कमी करने के द्वारा कुल स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को कम करती है और कार्यक्षमता को बढ़ाती है।
- बढ़ती जटिल स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करने के लिए एक बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली और निवारक नीतियों का समेकन करता है,।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य समाधान जो मानव समुदायों को प्रभावित करते हैं और वैसी स्वास्थ्य सेवाएं जो जनकेंद्रित होती हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल होते हैं, और वह स्वास्थ्य सुरक्षा को सुधारने और महामारियों व सूक्ष्म जीवरोधी प्रतिरोध जैसे स्वास्थ्य खतरों के निवारण में अत्यंत आवश्यक होते हैं, वह सामुदायिक सहभाग तथा शिक्षा, विवेकपूर्ण निर्धारण औरआवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यवाहियों जैसे कि पर्यवेक्षण के माध्यम से ही संभव होता है।
- सामुदायिक और सार्वजानिक स्वास्थ्य सुविधा प्रणालियों को विक्सित करने से स्वास्थ्य क्षेत्र में निरंतरता बनाने में योगदान मिलता है, जो स्वास्थ्य प्रणाली के झटके झेलने के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
- सार्वजानिक स्वास्थ्य सेवाएं अधिक शक्तिशाली प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल चिरस्थायी विकास ध्येयों और वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज को प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वह स्वास्थ्य ध्येय( एसडीजी – 3) के परे अन्य ध्येयों की उपलब्धि में योगदान देगा, जिसमें गरीबी, भूख, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी और सुरक्षा, कार्य तथा आर्थिक विकास, असमानता और जलवायु के प्रति जोखिमों को कम करना शामिल है।
सार्वजानिक स्वास्थ्य सेवा के प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिक्रिया :
विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी के लिए स्वास्थ्य और कल्याण को प्राप्त करने की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की केंद्रीय भूमिका को पहचानता है। डब्ल्यूएचओ विश्व के विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों के साथ इन कारणों से साथ – साथ सहयोगी के रूप में काम करता है –
- विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी के लिए स्वास्थ्य और कल्याण को प्राप्त करने की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की केंद्रीय भूमिका को पहचानता है। डब्ल्यूएचओ अन्य देशों के साथ इस कारण से काम करता हैः
- समावेशक नीतियां विकसित करने के लिए देशों को देना, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर आधारित देश के नेतृत्व और स्वास्थ्य प्रणालियों जो चिरस्थायी विकास ध्येयों और वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिए कार्य करता है।
- बहुक्षेत्रीय कार्य के माध्यम से व्यापक असामनता और स्वास्थ्य के निर्धारकों को संबोधित करना।महत्त्वपूर्ण तथ्य
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पूरे जीवन में निवारण, उपचार, पुनर्वसन और पीड़ाहारक देखभाल समेत की स्वास्थ्य आवश्यकताओं में अधिक को कवर करता है।
- कम से कम विश्व के आधे ७३ करोड़ लोगों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के पूरा कवरेज नहीं मिलता है।
- जिन ३० देशों के लिए डेटा उपलब्ध है, केवल ८ ही प्रति अमरीकी ४० डॉलर प्रति वर्ष प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करते हैं।
- उद्देश्य के लिए योग्य कार्यबल प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की आपूर्ति करने के लिए आवश्यक है, फ़िर भी विश्व में करीब 19 करोड़ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की अनुमानित कमी है।
‘स्वास्थ्य’ को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने के पक्ष में तर्क :
केंद्र की ज़िम्मेदारी में वृद्धि: स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किये जाने से केंद्र को नियामक परिवर्तनों को लागू करने, बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने और सभी पक्षों के दायित्वों को सुदृढ़ करने के लिये अधिक अवसर मिलेगा।
अधिनियमों का युक्तिकरण और सरल बनाना: स्वास्थ्य क्षेत्र में अनेक अधिनियमों, नियमों और विनियमों तथा तेज़ी से उभरने वाली संस्थानों की बहुलता है, फिर भी इस क्षेत्र का विनियमन उचित रूप से नहीं होता है। स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करके कार्यप्रणाली में एकरूपता सुनिश्चित की जा सकती है।
केंद्र की विशेषज्ञता: केंद्र सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्यों की तुलना में तकनीकी रूप से बेहतर है क्योंकि इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिये समर्पित अनेक शोध निकायों और विभागों की सहायता प्राप्त है। दूसरी ओर राज्यों के पास व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को स्वतंत्र रूप से डिज़ाइन करने की तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है।
’स्वास्थ्य’ को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने के विपक्ष में तर्क:
स्वास्थ्य का अधिकार: सभी के लिए सुलभ, सस्ती और पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान की गारंटी देना न तो आवश्यक है तथा न ही पर्याप्त।
स्वास्थ्य का अधिकार पहले ही संविधान के अनुच्छेद 21 के माध्यम से प्रदान किया गया है जो जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है।
संघीय संरचना को चुनौती: राज्य सूची से केंद्र सूची में अधिक विषयों को स्थानांतरित करने से भारत की संघीय प्रकृति दुर्बल होगी। न्यास सहकारी संघवाद: केंद्र को अपने अधिकारों का इस प्रकार से इस्तेमाल करना होगा, जिससे राज्यों को उनके संवैधानिक दायित्वों जैसे- सभी के लिये पर्याप्त, सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में मदद मिल सके।
केंद्र पर अधिक ज़िम्मेदारी: केंद्र के पास पहले से ही अधिक ज़िम्मेदारियाँ हैं, जिनसे निपटने के लिये वह संघर्ष करता रहता है। अधिक ज़िम्मेदारियाँ लेने से न तो राज्यों को और न ही केंद्र को अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में मदद मिलेगी।
राज्यों को प्रोत्साहित करना: राज्य द्वारा एकत्रित किये जाने वाले करों का 41% हिस्सा केंद्र सरकार को जाता है। केंद्र द्वारा राज्यों को अपेक्षित ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, साथ ही केंद्र को भी स्वयं के संसाधन का उपयोग करके अपने दायित्व को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
निष्कर्ष / समाधान :
- स्वास्थ्य को राज्य सूची का विषय होने के बाद भी इस पर केंद्र के रचनात्मक सहयोग को राज्यों को अपनाना चाहिए ।
- नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक, बीमा आधारित कार्यक्रम (आयुष्मान भारत) के माध्यम से वित्तीय सहायता, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये बेहतर विनियामक वातावरण और चिकित्सा शिक्षा ऐसे ही उदाहरण हैं जो राज्यों को सही दिशा में प्रेरित कर सकते हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता अस्पतालों और औषधालयों को भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
- राज्य सूची – इसमें वे विषय शामिल हैं जिनके तहत राज्य कानून बना सकता है।
- डेटा विशिष्टता का सिद्धांत यूरोपीय देशों के साथ-साथ कई विकासशील देशों से जुड़े समझौतों में भी मौजूद है। यदि यह भारत में प्रभावी होता, तो यह भारत के दवा उद्योग में काफी बाधा डाल सकता था।
- भारत सस्ती दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक देश भी है।
- भारतीय अधिकारियों ने एफटीए में बातचीत के बिंदु के रूप में डेटा विशिष्टता को खारिज कर दिया है, हालांकि समझौते के लीक हुए मसौदे से पता चलता है कि यह अभी भी जारी या अस्तित्व में है।
- पिछले कुछ दशकों में दवा निर्माण श्रृंखला में भारत के आगे बढ़ने का मतलब है कि उसे एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करना चाहिए जो नैदानिक दवा परीक्षण कर सके और जो स्वास्थ्य क्षेत्र में नए नैदानिक उपचार प्रणाली तैयार कर सके।
- सार्वजानिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में जेनेरिक दवाओं का विकास हमेशा महंगा होगा और पश्चिम के देशों या यूरोपीय देशों तक ही सीमित रहेगा,।
- भारत को भी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में नए – नए और स्थायी अनुसंधान करने की अत्यंत आवश्यकता है। क्योंकि भारत में COVID-19 महामारी के दौरान टीके विकसित करने के लिए कई नवीन प्रौद्योगिकी दृष्टिकोणों के विकास में देखा गया था।
- भविष्य में आने वाली किसी भी महामारी के लिए तैयारी के तौर पर, भारत को भविष्य में स्थानीय दवा उद्योग को विकसित करने के लिए मौलिक अनुसंधान में काफी अधिक निवेश करना चाहिए। जिससे भारत जेनेरिक दवाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति आत्मनिर्भर देश बन सके ।
Download yojna daily current affairs hindi med 17th feb 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में स्वास्थ्य सेवा संविधान के किस सूची के अंतर्गत आता है ?
(A)यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
(B) यह भारत के संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
(C) यह भारत के संविधान की नौवीं अनुसूची की संघ सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
(D) यह भारत के संविधान की प्रस्तावना के तहत मौलिक कर्तव्य के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
उत्तर – A
व्याख्या :
- भारत के संविधान में मुख्य रूप से तीन सूची होती है। वे हैं – राज्य सूची , समवर्ती सूची और संघ सूची।
- राज्य सूची – इसमें वे विषय शामिल हैं जिनके तहत केवल संबंधित राज्य सरकार ही कानून बना सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता अस्पतालों और औषधालयों को भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में सूचीबद्ध किया गया है। अतः विकल्प A सही उत्तर है ।
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त खामियों को रेखांकित करते हुए यह व्याख्या कीजिए कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में जेनेरिक दवाओं और नए अनुसंधान प्रणालियों को विकसित करने में और अधिक निवेश करने की जरूरत क्यों है ?

Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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