भारत-मॉरीशस संयुक्त व्यापार समिति

भारत-मॉरीशस संयुक्त व्यापार समिति

भारत और मॉरीशस ने 01-03 अगस्त 2022 को नई दिल्ली में भारत-मॉरीशस उच्चाधिकार प्राप्त संयुक्त व्यापार समिति का पहला सत्र आयोजित किया। इस बैठक की सह-अध्यक्षता डॉ. श्रीकर के रेड्डी, संयुक्त सचिव, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार और श्री नारायणदुथ बूधू, निदेशक, व्यापार नीति, विदेश मंत्रालय, क्षेत्रीय एकीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, मॉरीशस सरकार ने की। इस बैठक में दोनों ही देशों के संबंधित सरकारी प्राधिकरणों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया।

1 अप्रैल 2021 को लागू हुए भारत-मॉरीशस सीईसीपीए के सामान्य कामकाज और कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौते (सीईसीपीए) के अधिदेश के अनुसार उच्चाधिकार प्राप्त संयुक्त व्यापार समिति का गठन किया गया था। सीईसीपीए दरअसल अफ्रीका के किसी भी देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला व्यापार समझौता है।

  • भारत और मॉरीशस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में बढ़कर 72 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2019-20 में 690.02 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • दोनों पक्ष द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ाने के लिये द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने तथा विशेष रूप से CECPA के तहत द्विपक्षीय संबंधों की वास्तविक क्षमता के महत्त्व को स्वीकार करने पर सहमत हुए।
  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय तथा मॉरीशस में इसके समकक्ष कौशल विकसित करने पर विभिन्न पेशेवर निकायों की व्यवस्था के प्रमाणीकरण, कौशल और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं में समानता स्थापित करने के संबंध में सेवा क्षेत्र में दोनों पक्षों के मध्य वार्ता हुई।
  • मॉरीशस पक्ष ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT), वित्तीय सेवाओं, फिल्म निर्माण, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मॉरीशस में पेशेवरों की कमी से अवगत कराते हुए भारत से मॉरीशस में उच्च कुशल पेशेवरों की गतिविधियों का स्वागत किया।

 

 

भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता(CECPA):- 

  • भारत और मॉरीशस ने 22 फरवरी 2021 को व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौते (CECPA) पर हस्ताक्षर किए।
  • CECPA अफ्रीका में किसी देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला व्यापार समझौता है। दोनों पक्षों ने अपनी आंतरिक कानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर ली हैं और भारत-मॉरीशस सीईसीपीए गुरुवार, 01 अप्रैल 2021 को लागू होगा।
  • समझौता एक सीमित समझौता है, जिसमें माल के व्यापार, उत्पत्ति के नियम, व्यापार सेवाएं, व्यापार के लिए तकनीकी बाधाएं (टीबीटी), स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय, विवाद निपटान, प्राकृतिक व्यक्तियों की आवाजाही, दूरसंचार, वित्तीय सेवाएं, सीमा शुल्क और अन्य क्षेत्रों में सहयोग प्रक्रियाएं शामिल होंगी।
  • भारत-मॉरीशस CECPA दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने और सुधारने के लिए एक संस्थागत तंत्र प्रदान करता है। भारत और मॉरीशस के बीच CECPA में खाद्य सामग्री और पेय पदार्थ (80 लाइनें), कृषि उत्पाद (25 लाइनें), कपड़ा और कपड़ा लेख (27 लाइनें), आधार धातु और उसके लेख (32 लाइन), इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक आइटम सहित भारत के लिए 310 निर्यात आइटम शामिल हैं। (13 लाइनें), प्लास्टिक और रसायन (20 लाइनें), लकड़ी और उसके लेख (15 लाइनें), और अन्य।
  • मॉरीशस को फ्रोजन फिश, स्पेशलिटी शुगर, बिस्कुट, ताजे फल, जूस, मिनरल वाटर, बीयर, अल्कोहलिक ड्रिंक्स, साबुन, बैग्स, मेडिकल और सर्जिकल उपकरण और परिधान सहित अपने 615 उत्पादों के लिए भारत में तरजीही बाजार पहुंच से लाभ होगा।
  • जहां तक ​​सेवाओं में व्यापार का संबंध है, भारतीय सेवा प्रदाताओं की 11 व्यापक सेवा क्षेत्रों जैसे पेशेवर सेवाओं, कंप्यूटर से संबंधित सेवाओं, अनुसंधान एवं विकास, अन्य व्यावसायिक सेवाओं, दूरसंचार, निर्माण, वितरण, शिक्षा, पर्यावरण, वित्तीय, पर्यटन के लगभग 115 उपक्षेत्रों तक पहुंच होगी।

भारत-मॉरीशस सम्बन्ध

भारत-मॉरीशस सम्बन्ध, भारत और मॉरीशस के बीच राजनीतिक, ऐतिहासिक, सैन्य, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को संदर्भित करता है। दोनों देशों के बीच संबंध 1730 से पहले के हैं। 1948 में, मॉरीशस के स्वतंत्र देश बनने से पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित किए गए थे।

मुख्य बिंदु 

  • दोनों देशों के बीच लंबे ऐतिहासिक संबंधों ने उनके बीच मजबूत संबंधों में योगदान दिया।
  • मॉरीशस की 68% से अधिक आबादी भारतीय मूल की है।
  • दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती से निपटने में सहयोग करते हैं।

भारत और मॉरीशस के बीच व्यापार

  • 2007 के बाद से, भारत मॉरीशस का आयात का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। अप्रैल 2010-मार्च 2011 वित्तीय वर्ष में मॉरीशस ने 816 मिलियन डालर के सामान का आयात किया था। इसके अलावा, मॉरीशस अप्रैल 2000 से अप्रैल 2011 तक 55.2 बिलियन डॉलर की FDI इक्विटी अंतर्वाह के साथ एक दशक से अधिक समय से भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है।

दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग

  • मॉरीशस भारतीय नौसेना के राष्ट्रीय कमान नियंत्रण संचार खुफिया नेटवर्क के तटीय निगरानी रडार (Coastal Surveillance Radar – CSR) स्टेशन सहित भारत के सुरक्षा ग्रिड का भी एक हिस्सा है।

हाल के घटनाक्रम:

  • उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर एमके III के निर्यात के लिये भारत ने मॉरीशस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • मॉरीशस पुलिस बल द्वारा हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाएगा।
  •  100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रक्षा ऋण समझौते पर भारत और मॉरीशस ने हस्ताक्षर किये।
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) के समक्ष संप्रभुता और सतत् विकास का मुद्दा रहे चागोस द्वीपसमूह विवाद पर भी दोनों देशों ने चर्चा की।
  • वर्ष 2019 में भारत ने इस मुद्दे पर मॉरीशस की स्थिति के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया। भारत उन 116 देशों में से एक था, जिन्होंने ब्रिटेन से द्वीपीय देशों से “औपनिवेशिक प्रशासन” को समाप्त करने की मांग करते हुए मतदान किया था।
  • भारत द्वारा मॉरीशस को 1,00,000 कोविशील्ड के टीके प्रदान किये गए हैं।

भविष्य  की राह

  • मिशन सागर (Mission Sagar) के अंतर्गत भारत की पहल को हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को कोविड-19 से संबंधित सहायता प्रदान करने के परिपेक्ष्य भारत का रुझान मॉरीशस की तरफ तेज़ी से बढ़ते हुए देखा जा सकता है।
  • भारत को इस जुड़ाव को आगे भी बनाए रखने के लिये मॉरीशस, कोमोरोस, मेडागास्कर, सेशेल्स, मालदीव और श्रीलंका जैसे समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ सक्रिय रहने की आवश्यकता है।
  • हिंद महासागर (Indian Ocean) के उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने इस महासागर और सीमावर्ती देशों के लिये नई चुनौतियों के साथ-साथ अवसर को जन्म दिया है। मॉरीशस, भारत के अन्य छोटे द्वीपीय पड़ोसियों के साथ अपनी समुद्री पहचान एवं भू-स्थानिक मूल्य के विषय में गहराई से जानता है। ये पड़ोसी भली-भाँति समझते हैं कि एक बड़े पड़ोसी देश के रूप में भारत उनके लिये क्या मायने रखता है।
  • जैसा कि भारत दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में अपने सुरक्षा सहयोग के बारे में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाता है, मॉरीशस इसके लिये प्राकृतिक नोड है।
  • इसलिये भारत को अपनी नेबरहुड फर्स्ट की नीति में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।

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