भाषण की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता

भाषण की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता

स्त्रोत- द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था, वाक एवं अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार, न्यायिक समीक्षा, भारत में राजद्रोह, देशद्रोह की अवधारण, देश की शासन व्यवस्था का उतरदायित्व।

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में 31 जनवरी 2024 को कुणाल कामरा के केस के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पटेल द्वारा दिए गए एक न्यायिक निर्णय ने सोशल मीडिया पर स्वतंत्र भाषण के अधिकार को लेकर संवैधानिक बुनियादी सिद्धांतों को महत्वपूर्णता को लेकर बहस छेड़ दी है। 
  • बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय ने इस मामले में स्वतंत्र भाषण के अधिकारों को संवैधानिक दृष्टिकोण से मान्यता दी है। 
  • इसमें यह कहा जा रहा है कि स्वतंत्र भाषण के महत्वपूर्ण अधिकारों की सुरक्षा एक सुरक्षा कवच के रूप में न्यायिक समीक्षा के तर्क को मान्यता देता है। उन्होंने संवैधानिक सिद्धांतों के अभिसरण और स्वतंत्र भाषण के महत्वपूर्ण अधिकारों के प्रति राष्ट्र की संवेदनाओं की प्रतिनिधित्व किया है।
  • यह निर्णय बहुसंख्यक सभाओं और अदम्य शक्ति की ज्यादतियों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में न्यायिक समीक्षा के तर्क को मान्य करता है।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पटेल द्वारा दिए गए इस न्यायिक निर्णय आईटी नियम 2021 के संशोधित नियम 3(1)(B)(v) के आधार पर  किया गया है, जिसमें एक व्यापक रूप से मनमाना और अन्यायपूर्ण माना जाने वाला विधान शामिल है। इससे स्पष्ट होता है कि न्यायिक निर्णय में स्वतंत्र भाषण के महत्वपूर्ण अधिकारों की रक्षा के प्रति न्यायिक समीक्षा के द्वारा किए जा रहे तर्क को मान्यता दी गई है।
  • इस निर्णय में यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद 19(2), (6) में प्रावधानित प्रतिबंधों के अलावा स्वतंत्रता की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए और संविधान के खिलाफ राज्य के अतिक्रमण के खिलाफ स्पष्ट रक्षा की जानी चाहिए। यह निर्णय स्वतंत्र भाषण के महत्वपूर्ण अधिकारों की प्रमुखता को पुनरावृत्ति करता है और इसे संवैधानिक दृष्टिकोण से सुरक्षित करने का प्रयास करता है।
  • न्यायाधीश ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्याख्यित करते हुए, अनुच्छेद 19(2) और (6) के अनुसार उचित प्रतिबंधों को छोड़कर स्वतंत्रता की पूर्ण रक्षा की आवश्यकता को आवश्यक बताया  है। इसमें उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य द्वारा व्यक्ति की इस स्वतंत्रता से छीनने का कोई कारगर और धाराप्रवाह प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
  • इस निर्णय से यह स्पष्ट  होता है कि न्यायाधीश ने सोशल मीडिया पर भाषण के साथ छेड़छाड़ या प्रतिबंध की अनुमति देने का समर्थन किया है, जब तक कि इसमें आपत्तिजनक और अनैतिक सामग्री शामिल नहीं है। इसमें विधिवत और न्यायिक दृष्टिकोण से सोशल मीडिया पर भाषण की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण रक्षा हो रही है।

भारत में वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक स्पष्टता : 

नागरिक के आलोचना करने का अधिकार : 

  • भारत में प्रत्येक भारतीय को सरकार की और सरकार की तत्कालीन असंवैधानिक नीतियों की आलोचना करने का अधिकार है, और इसे राजद्रोह के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यह नागरिकों को अपने मत और विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का मौका देता है। यह अधिकार ही लोकतंत्र की मौलिक भूमि है और यह भारत में  सामाजिक बदलाव के लिए भी आवश्यक है। 

भारत में राजद्रोह की परिभाषा : 

  • प्रत्येक भारतीय को नागरिक के रूप में सरकार की और सरकार की तत्कालीन नीतियों का आलोचना करने का अधिकार है और इस प्रकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित करने की स्थिति में भारत का लोकतंत्र एक पुलिस राज्य के रूप में बदल जाएगा।

देशद्रोह (Sedition) : 

 

  • भारत में भारतीय संविधान द्वारा देशद्रोह और देशद्रोह से संबंधित कानूनों को स्पष्टता से परिभाषित करना आवश्यक है, ताकि भारत के किसी भी नागरिक द्वारा इसका दुरुपयोग नहीं हो और भारत के नागरिकों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मूल अधिकारों की रक्षा हो सके।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (A) में देश की एकता और अखंडता को व्यापक हानि पहुँचाने के प्रयास को देशद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है। देशद्रोह के अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं – 
  1. सरकार विरोधी गतिविधि और उसका समर्थन।
  2. देश के संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास।
  3. कोई ऐसा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, लिखित या मौखिक कृत्य जिससे सामाजिक स्तर पर देश की व्यवस्था के प्रति असंतोष उत्पन्न हो। 

वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Speech and Expression) : 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression) भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत भारत के नागरिकों को लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार प्रदात  किया गया है।
  • भारत में अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है। इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन भी लागू होता हैं। भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में इस अधिकार को बाधित किया जा सकता है।
  • भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है। प्रेस/ पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है,  इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
  • इसका उपयोग देश की एकता और सामरिक समृद्धि के हित का विकास करने में होना चाहिए।

 

देश या समाज में नवाचार और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करना : 

  • भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय समाज में नवाचार और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि इनसे ही समाज का विकास होता है।
  • समाज की प्रगति का आधार उस समाज में उपस्थिति नवाचार की प्रवृत्ति होती है। समाज में नवाचार और जिज्ञासा में ह्रास इसकी जड़ता को प्रतिबिंबित करता है। जिज्ञासा के अभाव में समाज का विकास रुक जाता है और वह तात्कालिक अन्य समाजों से पीछे रह जाता है।

असंतोष का अधिकार : 

  • किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश या राज्य में उनके नागरिकों को प्रदत असंतोष का अधिकार एक स्वस्थ और परिपक्व लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है, इससे भारतीय समाज में अनेकानेक सुधार हो सकता है।
  • संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं लिखे गए अधिकार जैसे- विचार की स्वतंत्रता का अधिकार (The Right Of Freedom Of Opinion), अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom Of Conscience) और असंतोष का अधिकार (Right To Dissent) को स्वस्थ्य और परिपक्व लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्थाओं के बाद ही लोकतंत्र में लोगों की सहभागिता बढ़ेगी।
  • बदलते समय के साथ न चलने की स्थिति एक दिन भयावह रूप ले लेती है और इस प्रकार का असंतोष विध्वंसक होता है जिससे समाज को व्यापक और दीर्घकालिक हानि उठानी पड़ती है।

अधिकारों का प्रवर्तन : 

  • भारतीय संविधान में स्पष्टता से नहीं भी लिखे गए अधिकारों को भी स्थान मिलना चाहिए, जैसे- विचार की स्वतंत्रता, अंतरात्मा की स्वतंत्रता और असंतोष का अधिकार।

समयानुकूल सामाजिक नियमों में परिवर्तन : 

  • भारतीय समाज में प्रगति के लिए तय किए गए नियमों में बदलते समय के साथ परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि भारतीय समाज नए विचारों का स्वीकृति कर सके और भारत की शासन व्यवस्था और अधिक परिपक्व और लोकतांत्रिक बन सके। 
  • प्रत्येक समाज के कुछ स्थापित नियम होते हैं। समय के साथ इन नियमों में परिवर्तन आवश्यक है। अगर समाज इन नियमों की जड़ता में बंधा रहता है तो इससे समाज का विकास रुक जाता है।
  • समाज में नए विचारों का जन्म तात्कालिक समाज के स्वीकृत मानदंडों से असहमति के आधार पर ही होता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति पुराने नियमों और विचारों का ही अनुसरण करेगा तो समाज में नवाचारों का अभाव उत्पन्न हो जाएगा, उदाहरण के लिये नये विचारों और धार्मिक प्रथाओं का विकास तभी हुआ है जब पुरानी प्रथाओं से असहमति व्यक्त की गई।

सामाजिक असंतोष : 

 

  • भारत में सामाजिक असंतोष को समाधान के रूप में देखना चाहिए और राजनीतिक व्यवस्थाओं में लोगों के विचारों को समर्थित करना चाहिए।
  • भारत के बड़े क्षेत्रों में फैले सामाजिक असंतोष कहीं न कहीं इन राजनीतिक व्यवस्थाओं में उनके विचारों के प्रतिभाग का अभाव है। भारत जैसे सामासिक संस्कृति वाले देश में सभी नागरिकों जैसे आस्तिक, नास्तिक और आध्यात्मिक को अभिव्यक्ति का अधिकार है। इनके विचारों को सुनना लोकतंत्र का परम कर्तव्य है, इनके विचारों में से समाज के लिए अप्रासंगिक विचारों को निकाल देना देश की शासन व्यवस्था का उतरदायित्व है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : 

  • भारतीय समाज में सभी वर्गों, धर्मों, और विचारधाराओं को समाहित करना चाहिए, ताकि सभी नागरिक अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त कर सकें और समृद्धि में सहभागी बन सकें।
  • भारत में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, और इनके विचारों को सुनना और समर्थित करना भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को और अधिक परिपक्व करना, सभी के लिए समावेशिक बनाना और समानतामूलक बनाना ही है।

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक समृद्धि और स्वतंत्र दृष्टिकोण का सूत्र है जो किसी समाज में न्यायिक स्पष्टता के साथ जुड़ा होता है। इसका मतलब है कि लोगों को उनके विचारों, भावनाओं, और अभिव्यक्तियों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अधिकार है और समाज में न्यायिक संरचना इस स्वतंत्रता को सहारा देने के लिए होनी चाहिए।
  • भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण उपधाराएं हैं। धारा 19(1)(a) में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि “प्रत्येक नागरिक को उसके विचार को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अधिकार है” यह एक महत्वपूर्ण मानदंड है जो सुनिश्चित करता है कि समृद्धि और न्याय की बुनियाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है।
  • न्यायिक स्पष्टता भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बिना किसी आपत्ति या आपत्तियों के साथ बना रहता है। न्यायिक स्पष्टता एक ऐसी स्थिति को दर्शाती है जिसमें अभिव्यक्ति का स्वतंत्रता से योगदान समाज के लिए महत्वपूर्ण होता है और इसे स्वतंत्रता से बिना किसी भय या प्रतिबंध के व्यक्त किया जा सकता है।
  • समाज में न्यायिक स्पष्टता का होना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने में मदद करता है। न्यायिक संरचना को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को उसके विचारों और अभिव्यक्तियों को स्वतंत्रता से बयान करने का अधिकार है, यदि वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है और सामाजिक सुरक्षा या न्याय की प्रक्रिया को ठेस पहुंचाने की कोई कोई भी संभावना नहीं है।
  • न्यायिक स्पष्टता एक सुरक्षित देश /राज्य  या सुरक्षित समाज की नींव होती है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सही दिशा में प्रतिबद्ध करता है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी प्रतिबंध या आपत्ति के बिना लोग अपने विचारों और विचारों को साझा कर सकते हैं और समृद्धि की दिशा में बढ़ सकते हैं।
  • सामाजिक समृद्धि और न्यायिक स्पष्टता का साथ देने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में सुरक्षा बनी रहती है और लोग साहसपूर्वक अपने विचारों को रख सकते हैं, जिससे समृद्धि और समरसता का आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता समृद्धि और न्याय के साथ एक सुशिक्षित और सजीव समाज की रचना करती है।

इन प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से, भारतीय समाज को सुधारने, उसे लोकतांत्रिक और विकसित करने के लिए सशक्त और संरचित कदम उठाना चाहिए।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में भाषण की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता  के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (A) में देश की एकता और अखंडता को व्यापक हानि पहुँचाने के प्रयास को देशद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है।
  2. भारत में अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है क्योंकि  इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन भी लागू होता है। 
  3. भारत में सरकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है, क्योंकि ऐसी  स्थिति में भारत का लोकतंत्र एक पुलिस राज्य के रूप में बदल जाएगा। 
  4. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता समृद्धि और न्याय के साथ एक अशिक्षित और निर्जीव समाज की रचना करती है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1, 2 और 3 

(B) केवल 2 और 4 

(C ) केवल 1 और 3 

(D) केवल 1 और 2 

उत्तर – (D)  

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में देशद्रोह/ राजद्रोह के मुख्य प्रावधानों को रेखांकित करते हुए, यह चर्चा करें कि भारत में भाषण की स्वतंत्रता पर न्यायिक स्पष्टता के संदर्भ में स्वतंत्र भारत में देशद्रोह की वर्तमान प्रासंगिकता कैसे है ?  

 

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