मुद्रा स्फीति के प्रभाव

मुद्रा स्फीति के प्रभाव

मुद्रा स्फीति के प्रभाव

संदर्भ- हाल ही में एसबीआई रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 में मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि, सबसे कम दर्ज की गई। वहीं अक्टूबर 2022 में यह आंकड़ा सबसे अधिक 6.77 रही। मार्च 2023 तक इस आंकड़े के 5% तक पहुँचने की उम्मीद की जा रही है। 

 मुद्रा स्फीति – 

  • मुद्रा स्फीति, जिसे महंगाई भी कहा जाता है, इसे मुद्रा स्फीति की दर से मापा जाता है। यह मुद्रास्फीति दर, प्रति वर्ष वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन तथा मुद्रा के मूल्य में आई कमी को दर्शाती है।
  • मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि का अर्थ वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में वृद्धि है, जिसके कारण मुद्रा के मूल्य में कमी आती है। इसी प्रकार मुद्रा स्फीति में कमी का अर्थ है सेवाओं की कीमतों में कमी, इसे अपस्फीति भी कहा जाता है। यह मुद्रा के मूल्य में वृद्धि को दर्शाती है, अर्थात मुद्रा के द्वारा वस्तुओं या सेवाओं का पहले की अपेक्षा अधिक लाभ लिया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक वस्तुओं के एकत्रीकरण के बाद मंदी की अवस्था आती है। यह चक्रीय रूप में चलती रहती है और अपस्फीति को नियंत्रित करना अधिक मुश्किल होता है।
  • मुद्रास्फीति व अपस्फीति एक साथ उत्पन्न होने पर उस स्थिति को निष्पंदन कहते हैं।
  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय का सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी करता है, जिसके द्वारा मुद्रा स्फीति मापी जाती है। 

मुद्रा स्फीति में वृद्धि के कारक- 

  • जब कुल उत्पादन के आपूर्ति के बाद भी मांग में वृद्धि हो तो मांग में यह बढ़त मुद्रा स्फीति का कारक बन जाती है. इसे मांग जनित मुद्रा स्फीति भी कहा जाता है। जब उपभोक्ता के पास अधिक खरीद क्षमता होती है, तो वह गैर जरुरी क्षेत्रों में भी व्यय करता है और ऐसे क्षेत्रों में मांग में अत्यधिक वृद्धि होने पर मुद्रा स्फीति बढ़ सकती है।
  • जब किसी सामग्री के उत्पादन में कमी व वृद्धि का क्रम लगातार चलता रहता है तब जमाखोरों द्वारा अतिरिक्त लाभ के लिए उत्पाद या सामग्री को एकत्रित कर लिया जाता है, उत्पादकता में कमी होने पर मूल्यों मे वृद्धि हो जाती है और मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।

मुद्रा स्फीति का प्रभाव 

मुद्रा स्फीति में वृद्धि दर की गति, देश के आर्थिक विकास को सीधे प्रभावित करती है। आमतौर पर मुद्रा स्फीति में कमी संभव नहीं है लेकिन मुद्रा स्फीति की वृद्धि दर में पहले(पिछले वर्ष में वृद्धि दर) की अपेक्षा सूक्ष्मतम कमी या वृद्धि आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। यह उपभोक्ताओं को खरीदने व बचाने के लिए प्रेरित करता है।

मुद्रा स्फीति की दर में आई तीव्र वृद्धि से वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होती है, इससे बचत में कमी और खरीदने की प्रवृत्ति में कमी आती है। जिससे आर्थिक विकास रुक जाता है। 

  • मुद्रा स्फीति में वृद्धि से व्यक्ति की आय में कमी आ सकती है क्योंकि वह अपनी आय से पहले के बराबर सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकता। इसलिए आय समान रहने पर भी आय कम हो जाती है।
  • बचत में कमी आने से निवेश में कमी आती है। 
  • मुद्रा का मूल्य कम होने से बैंकों को नुकसान
  • जमाखोरों को लाभ(कम दाम में वस्तु के एकत्रीकरण के बाद वस्तु को मुद्रा स्फीति के समय अधिक दाम में बेचना)
  • मांग अधिक होने से उत्पादन व रोजगार में वृद्धि होगी, जबकि अपस्फीति या मंदी के समय उत्पादन व रोजगार में कमी आती है।

फिलिप्स वक्र- मुद्रास्फीति व बेरोजगारी का परस्पर व्युत्क्रमानुपाती हैं अर्थात मुद्रास्फीति के बढ़ने पर बेरोजगारी कम होती है और मुद्रास्फीति ढटने पर बेरोजगारी बढ़ती है। मुद्रास्फीति व बेरोजगारी को संदर्भित करने के लिए बनाए गए वक्र (ग्राफ) को फिलिप्स वक्र कहा जाता है।   

मुद्रा स्फीति में वर्तमान कमी के संभावित प्रभाव

  • मुद्रा के मूल्य में स्थिरता।
  • रोजगार में कमी
  • मुद्रास्फीति को स्थिर रखन के लिए आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना।
  • खाद्य व अन्य उपयोगी वस्तुओं की कीमतें कम होने पर भी यह आम नागरिक के बजट में कटौती करेगा।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/67611/1/Block-3.pdf

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