मुश्किल दौर में भारत-चीन के संबंध

मुश्किल दौर में भारत-चीन के संबंध

संदर्भ क्या है ?

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में कहा कि चीन ने सीमा पर जो किया है, उसके बाद भारत और उसके संबंध अत्यंत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा  कि यदि दोनों पड़ोसी देश हाथ नहीं मिलाते तो एशियाई शताब्दी नहीं आएगी।

भारत-चीन संबंधों में तनाव के बिंदु

सीमा पर तनाव 

  • भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) कहा जाता है अर्थात 1962 के युद्ध के बाद की वास्तविक स्थिति भारत और चीन के बीच किसी एक क्षेत्र को लेकर सीमा विवाद नहीं है बल्कि कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ चीन तो कहीं भारत को आपत्ति है। दोनों देशों के बीच करीब 3500 किमी लंबी सीमा है। 2017 में डोकलाम क्षेत्र में भारत-चीन के बीच  तनाव हुआ।
  •  सिक्किम के पठारी क्षेत्र डोकलाम पर चीन अपना दावा करता है तो भूटान अपना दावा करता है। चीन में इस क्षेत्र को डोंगलोंग नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त चीन अरूणाचल प्रदेश के बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है। अरुणाचल की 1126 कि.मी लम्बी सीमा चीन के साथ और 520 कि.मी. लम्बी म्यांमार के साथ मिलती है। चीन कहता है कि भारत से उसका सीमा विवाद सिर्फ 2000 किमी. है। इसमें ज्यादातर हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में आता है।
  • इन दोनों क्षेत्रों के अलावा एक मामला अक्साई चीन पर भारत-चीन का विवाद है। भारतीय पक्ष है कि ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझौते के तहत मैकमोहन को अंतराष्ट्रीय सीमा माना, जबकि चीन इसको नहीं मानता। 1962 के युद्ध के बाद हमारा बहुत बड़ा भाग चीन ने अपने हिस्से में मिला लिया, जिसे अक्साई चीन कहा जाता है। अक्साई चीन का कुल हिस्सा करीब 38 हजार वर्ग किमी. लम्बा है जो निर्जन पहाड़ी इलाका है|

ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध 

  • चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अपनी सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना ‘जम हाइडो पावर स्टेशन’ का निर्माण किया है। इस परियोजना से भारत को यह चिंता है कि चीन जल आपूर्ति को बाधित कर सकता है या संघर्ष के समय इन बांधों से अतिरिक्त पानी छोड सकता है जिससे भारत में बाढ़ आने का गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा।
  • माउंट कैलाश से निकलने वाली 4 नदियां भी दोनों देशों के लिए एक बड़े विवाद की जड़ हैं। इसमें ब्रह्मपुत्र शामिल है। जहां चीन ने बांध बनाकर पानी को बाधित कर दिया है। इससे जल का बहाव प्रभावित है। 

भारत के अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण के कारण 

  • भारत के रूस और अमेरिका दोनों के साथ ही अच्छे कूटनीतिक और सामरिक संबंध हैंभारत, अ‍मेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया क्वाड के सदस्य हैं चीन ने कहा था कि क्वाड स्पष्ट तौर पर क्षेत्र  में चीन के बढ़ते प्रभाव को निशाना बनाने का प्रयास है। उसने इसे बंद और विशिष्ट गुट बताया था। हालांकि अमेरिका ने कहा कि क्वाड एक ‘अनौपचारिक सभा’ है, जिसके निशाने पर कोई देश नहीं है।चीन को लगता है कि क्‍वाड(क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डॉयलॉग) के रूप में एशिया के भीतर नाटो जैसा समूह बना दिया गया है।
  • दक्षिणी चीन सागर पर चीन का दृष्टिकोण आक्रामक और विस्तारवादी है जिसका भारत विरोध करता है। 
  • चीन भारत की अखंडता का समर्थन नहीं करता है परन्तु भारत से अपेक्षा करता है कि भारत एक चीन नीति का खुलकर समर्थन करे। 
  • चीन पूर्वोत्तर भारत में अस्थिरता फ़ैलाने का कार्य करता है और पाकिस्तान को भारत के खिलाफ गतिविधियों में सहयोग करता है । यही नहीं वह पाकिस्तान के आतंकवादियों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध लगाने के भारत के प्रयासों में अडंगा डालता है। 
  • चीन पीओके में अपनी कई परियोजनाएं चलाकर भारत की अखंडता का समर्थन करता है।   

सहयोग की संभावनाएं 

  • चीन वर्तमान में भारतीय उत्पादों का बड़ा निर्यात बाजार है। वहीं चीन से भारत काफी आयात करता है और भारत, चीन के लिए उभरता हुआ बाज़ार है। चीन से भारत मुख्यतः इलेक्ट्रिक उपकरण, मेकेनिकल सामान, कार्बनिक रसायनों आदि का आयात करता है। वहीं भारत से चीन को मुख्य रूप से, खनिज ईंधन और कपास आदि का निर्यात किया जाता है। 
  • भारत में चीनी टेलिकॉम कंपनियाँ 1999 से ही हैं और वे काफी पैसा कमा रही हैं। इनसे भारत को भी लाभ हुआ है। भारत में चीनी मोबाइल का मार्केट भी बहुत बड़ा है।
  •  भारतीय सौर बाजार चीनी उत्पाद पर निर्भर है। भारत का थर्मल पावर चीन पर काफी निर्भर है। पावर सेक्टर के 70 से 80 फीसदी उत्पाद चीन से आते हैं। दवाओं के लिए कच्चे माल का आयात भी भारत चीन से ही करता है। इस मामले में भी भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है।

सहयोग की संभावनाएं 

भारत व चीन एशिया की उभरती ऐसी शक्तियाँ हैं जिनकी विदेश नीति का विश्व और एशिया की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनके पारस्परिक सहयोग अथवा संघर्ष से न केवल एशियाई सुरक्षा परिवेश अपितु वैश्विक शक्ति संरचना पर भी प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। यदि भारत और चीन दोनों पड़ोसी देश इसी तरह टकराव और संघर्ष में आगे बढ़ेंगे तो एशियाई शताब्दी नहीं आएगी क्योंकि दोनों ही देश बड़ी अर्थव्यवस्था और बड़ा बाजार है। वहीं यदि दोनों के संबंधों में विश्वास और सद्भाव आता है तो यह शताब्दी एशिया की हो सकती है । 

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