मेकेदातु विवाद

मेकेदातु विवाद

 

  • हाल ही में, कर्नाटक ने अपनी अगली बैठक में ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) द्वारा ‘मेकेदातु संतुलन जलाशय परियोजना’ पर ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) को मंजूरी देने की मांग की है।

संबंधित मामला:

  • तमिलनाडु मेकेदातु में कावेरी नदी पर जलाशय बनाने के कर्नाटक के कदम का विरोध कर रहा है। हालांकि, कर्नाटक सरकार का कहना है कि मेकेदातु परियोजना से कोई “खतरा” नहीं है और इस परियोजना को राज्य की निगरानी में किया जाएगा।

समाधान:

  • इस बीच, केंद्र सरकार ने कहा है कि इस परियोजना के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) की अनुमति आवश्यक है।
  • कर्नाटक द्वारा भेजी गई ‘विस्तार परियोजना रिपोर्ट (DPR) को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) के समक्ष कई बार अनुमोदन के लिए रखा गया है, लेकिन संबंधित राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच आम सहमति की कमी के कारण, ऐसा नहीं हो सका|
  • साथ ही, ‘कावेरी जल विवाद प्राधिकरण’ के अंतिम निर्णय के अनुसार, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, ‘जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ पहले कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण की स्वीकृति आवश्यक है। 
  • चूंकि परियोजना एक अंतर-राज्यीय नदी पर प्रस्तावित है, इसलिए ‘अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम’ के अनुसार परियोजना के लिए सम्बंधित राज्यों का अनुमोदन प्राप्त करना भी आवश्यक है।

मेकेदातु परियोजना के बारे में:

  • ‘मेकेदातु’ एक बहुउद्देशीय (जल और बिजली) परियोजना है।
  • परियोजना के तहत, कर्नाटक के रामनगर जिले में कनकपुरा के पास एक ‘संतुलन जलाशय’ का निर्माण करने का प्रस्ताव है।
  • इस परियोजना का उद्देश्य बेंगलुरू शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों के लिए पेयजल (75 टीएमसी) का भंडारण और आपूर्ति करना है। इस परियोजना से करीब 400 मेगावाट बिजली पैदा करने का भी प्रस्ताव है।
  • परियोजना की अनुमानित लागत 9,000 करोड़ रुपये है।

तमिलनाडु ने परियोजना का विरोध करने के कारण:

  • तमिलनाडु का कहना है कि ‘सुप्रीम कोर्ट’ और ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ के अनुसार ‘कावेरी बेसिन में उपलब्ध मौजूदा भंडारण सुविधाएं जल भंडारण और वितरण के लिए पर्याप्त हैं, इसलिए कर्नाटक का यह प्रस्ताव प्रथम दृष्टया असमर्थनीय है।
  • तमिलनाडु के अनुसार- प्रस्तावित जलाशय का निर्माण केवल पीने के पानी के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि इससे सिंचाई की सीमा बढ़ जाएगी, जो ‘कावेरी जल विवाद निर्णय’ का स्पष्ट उल्लंघन है।

ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय:

  • ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ का गठन वर्ष 1990 में किया गया था और वर्ष 2007 में अपने अंतिम निर्णय में तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट, कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी फीट और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी दिया गया था।
  • हालांकि, तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ने विभाजन पर नाराजगी व्यक्त की और पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों में विरोध और हिंसा हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और साल 2018 के फैसले में तमिलनाडु के पूर्व निर्धारित हिस्से को बांटकर कर्नाटक को 75 टीएमसी फीट पानी दिया गया|
  • इस प्रकार, नए वितरण के अनुसार, तमिलनाडु को 25 टीएमसी फीट और कर्नाटक को 284.75 टीएमसी फीट दिया गया। केरल और पुडुचेरी का हिस्सा अपरिवर्तित रहा।
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