28 Nov मेधा पाटेकर, नर्मदा बचाओं आंदोलन व भूमि अधिग्रहण कानून
मेधा पाटेकर, नर्मदा बचाओं आंदोलन व भूमि अधिग्रहण कानून
संदर्भ- नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटेकर पर कांग्रेस की भारत जोड़ो रैली में शामिल होने पर, विकास विरोधी का आरोप लग रहा है जिसका मेधा पाटेकर ने विरोध किया है।
नर्मदा नदी-
- नर्मदा नदी, भारतीय उपमहाद्वीप की पाँचवी सबसे लम्बी नदी है।
- इसका उद्गम मध्य प्रदेश में विंध्यांचल व सतपुड़ा के संधिस्थल अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है।
- नर्मदा नदी मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र व गुजरात होते हुए 1312 किमी की दूरी तय कर खम्भात की खाड़ी से अरब सागर में मिलती है।
- नर्मदा या रेवा नदी को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा के नाम से भी जाना जाता है।
सरदार सरोवर बांध-
- यह बांध भारत का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। जिसकी ऊँचाई 138 मीटर व लम्बाई 1210 मीटर है।
- बांध का निर्माण नर्मदा नदी पर किया गया है।
- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने 5 अप्रैल 1961 को नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध परियोजना रखी।
बांध के उद्देश्य-
- गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुँचाना।
- इसकी ऊँचाई बढ़ाने का उद्देश्य बिजली पैदा करना है जिससे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान राज्यों को बिजली का लाभ पहुँचाना है।
- बांध के माध्यम से गुजरात के लगभग 9500 गाँवों व 150 शहरों के साथ राजस्थान के 124 गाँवों को पेयजल का लाभ पहुँचाया जा सकेगा।
- इस परियोजना से गुजरात व राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाकों में कृषि संभाव हो सकेगी जिससे कृषिगत उपज में प्रति वर्ष 87 लाख टन की वृद्धि होगी।
बांध निर्माण
- नर्मदा बेसिन में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए 49.08 मीटर की पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) की ऊंचाई निर्धारित की गई।
- 1965 में, एक समिति द्वारा 152.45 मीटर के FRL के साथ एक उच्च बांध की सिफारिश की गई थी।
- मध्य प्रदेश इसकी सिफारिशों से सहमत नहीं हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अक्टूबर 1969 में नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई।
- इस ट्रिब्यूनल ने 1979 में अपना अंतिम निर्णय दिया, 138.68 मीटर पर एफआरएल तय किया, साथ ही पानी व हाइड्रोपावर का हिस्सा नदी तटवर्ती राज्यों – गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के साथ तय किया, ट्रिब्यूनल के तहत निर्णय को 2025 तक न तो बदला जाना था न ही इसी समीक्षा की जानी थी।
- बांध का निर्माण 1987 में शुरू हुआ, जिसे विश्व बैंक के फंड से समर्थन मिला।
अवरोध
- एनबीए द्वारा बांध निर्माण का पहले से ही विरोध करने पर विश्व बैंक ने 1993 में परियोजना को फंड देने से इंकार कर दिया।
- बांध विरोधी प्रदर्शन के बाद अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने 1995 में बांध के निर्माण पर रोक लगा दी।
- फरवरी में 1998 में बांध का कार्य फिर से शुरु किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2000 में बांध के विस्थापितों के लिए पर्यवेक्षित राहत और पुनर्वास की शर्त रखी।
- 2004 तक, FRL 110.64 मीटर तक पहुंच गया था।
- 2014 में केंद्र सरकार द्वारा बांध की अधिकतम ऊँचाई की मंजूरी दे दी गई।
सरदार सरोवर बांध विरोध के कारण
आदिवासियों के मूल निवास प्रभावित- केवड़िया कॉलोनी के 6 आदिवासी समुदायों की भूमि अधिग्रहित होने से वे हजारों लोग सड़क पर आ गए जिससे समुदाय संकट में था, जिसका मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया। आदिवासी इससे ज्यादा प्रभावित हुए क्योंकि उनके पास जीविकोपार्जन के लिए प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग के अतिरिक्त कोई अन्य कौशल ज्ञान नहीं है। परियोजना ने 13,542 हेक्टेयर वन और 12,869 हेक्टेयर नदी बेसिन और बंजर भूमि को जलमग्न कर दिया।
किसानों पर प्रभाव- किसानों की भूमि भी बांध की चपेट में आ गई जिससे उनके रोजगार में संकट आ गया। जिसमें 11279 हेक्टेयर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया गया।
मेधा पाटकर
- मेधा पाटेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता व समाज सुधारक हैं।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता के रूप में विख्यात पर्यावरणविद हैं।
- उन्हें Right livelihood Award से सम्मानित किया गया है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन में भूमिका-
एनबीए ने 40000 लोगों विशेषकर गुजरात, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के आदिवासियों के उचित पुनर्वास की मांग की।
मेधा पाटकर ने अपने प्रशंसकों के साथ अनिश्चित कालीन अनशन व उपवास रखकर बांध का विरोध किया।
पाटेकर के आंदोलन ने, स्थानीय लोगों के विरोध के साथ, विश्व बैंक को मोर्स कमीशन स्थापित करने के लिए मजबूर किया, परियोजना की एक स्वतंत्र समीक्षा के अनुसार परियोजना में पर्यावरण और पुनर्वास नीतियों का उल्लंघन किया गया है। परिणामस्वरूप विश्व बैंक ने 1993 में फंडिंग वापस ले ली।
मेधा पाटेकर के आंदोलनों के कारण 2006 में, महाराष्ट्र में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने किफायती घरों और झुग्गी पुनर्विकास का वादा करते हुए एक नई आवास नीति लाई।
मेधा पाटेकर ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ इसके अतिरिक्त अन्य परियोजनाओं पर भी सवाल उठाया जैसे-
- बिहार के नंदी ग्राम की नैनो संयंत्र परियोजना
- आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के परमाणु संयंत्र योजना
- केरल सिल्वरलाइन सेमी हाइस्पीड कॉरिडोर परियोजना आदि।
भूमि अधिग्रहण से संबंधित नियम
समवर्ती सूची – सम्पत्ति की मांग व भूमि अधिग्रहण समवर्ती सूची में आते हैं। अतः केंद्र व राज्य सरकार इससे संबंधित कानून बना सकती हैं।
भूमि अधिग्रहण कानून 1894-
- यह सरकार को सार्वजनिक प्रयोजन जैसे योजनाबद्ध विकास, शिक्षा हेतु विद्यालय या आवास निर्माण आदि के लिए भूमि के अधिग्रहण का अधिकार देता है.
- यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार के दौरान बनाया गया था, जिसे पर्याप्त संशोधित कर स्वतंत्रता के बाद भी अपनाया गया है।
भूमि अधिग्रहण कानून 2013
- यह कानून लोगों की सहमति, मुआवजा, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन व सामाजिक प्रभाव आंकलन पर टिका है।
- इसके अनुसार यदि लाभार्थियों को मुआवजे की कीमत नहीं दी गई तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द कर दी जाएगी।
- इस अधिनियम में भूमि अधिग्रहण के लिए ग्रामीण क्षेत्र में बाजार मूल्य का 4 गुना व शहरी क्षेत्र में बाजार मूल्य का 2 गुना कीमत अदा करने की व्यवस्था की गई है।
- इस अधिनियम में बहुफसलीय भूमि को किसी विशेष परिस्थिति में एक सीमा तक ही अधिग्रहित करने का प्रावधान है।
- सरकार के किसी विभाग द्वारा अपराध होने की स्थिति में विबाग के प्रमुक को अपराधी माना जाएगा जब तक वह यह साबित नहीं करता कि वह दोषी नहीं है।
भूमि अधिग्रहण संशोधन 2015
- संशोधन के अनुसार रक्षा, ग्रामीण, मूलभूत सुविधा, सस्ते आवास, सरकारी उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगक गलियारे, PPP युक्त मूलभूत सुविधा जैसी परियोजनाओं में सहमति की आवश्यकता नहीं है।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि भूमि अधिग्रहण न्यूनतम जरुरत मानदण्ड के अनुसार किया जा रहा है।
- किसी अपराध की स्थिति में किसी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी।
- सरकार को बंजर भूमि का सर्वेक्षण कर उसका रिकॉर्ड रखना।
स्रोत
https://indianexpress.com/article/political-pulse/medha-patkar-saga-narmada-anti-dam-movement-fighter-causes-8292896/
https://indianexpress.com/article/explained/bjp-congress-medha-patkar-role-in-narmada-bachao-andolan-8281349/
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