मोरबी ब्रिज आपदा 

मोरबी ब्रिज आपदा 

मोरबी ब्रिज आपदा 

संदर्भ- हाल ही में 30 अक्टूबर 2022 को गुजरात के लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने पुल टूटकर गिर गया, जो एक विनाशकारी आपदा सिद्ध हो रही है।

  • पुल के क्षतिग्रस्त होने से 34 बच्चों सहित 135 लोगों की जान चली गई। 
  • आपदा, प्राकृतिक या मानव निर्मित।

मोरबी ब्रिज- 

  • भारत के गुजरात राज्य के मोरबी जिले में मच्छु नदी में स्थित है।
  • गुजरात के राजा वाघजी ठाकोर ने 1863 में सस्पैंशन ब्रिज का निर्माण करवाया था।
  • इस ब्रिज के निर्माण के लिए इंग्लैण्ड से सामग्री का आयात करवाया गया था। उस समय इस पुल की लागत 3.5 लाख रुपया थी।
  • वर्तमान में ऐतिहासिक विशेषताओं के कारण यह पुल गुजरात टूरिज्म की लिस्ट में शामिल किया गया है।

मच्छु नदी-

  • भारत के गुजरात राज्य में बहने वाली एक नदी है,
  • मच्छु नदी का उद्गम स्थल राजकोट जिले के जसदण(मदला) पहाड़ियों में है।
  • जसदण पहाड़ियों से कच्छ के रण तक मच्छु नदी की कुल लम्बाई 130 किमी. है। तथा इसका क्षेत्रफल 2515 वर्गकिमी. है।
  • मच्छु नदी की सहायक नदियाँ माछछोरी, जम्बूरी, बेनिया, महा, बेट्टी और असोई हैं।
  • वर्तमान आपदा से पूर्व1979 में मच्छु नदी में मच्छु बांध के टूटने के कारण हजारों लोगों व मवेशियों की जान चली गई थी।
  • मच्छु नदी में मच्छु प्रथम व मच्छु द्वितीय बांध स्थित हैं। जिनका जल ग्रहण क्षेत्रफल क्रमशः 735वर्ग किमी. और 1939 वर्ग किमी है।

आपदा, प्राकृतिक या मानवनिर्मित – पुल के गिरने के बाद पुल के ढहने के कारणों पर विवाद उत्पन्न हो गया है कि ये आपदा प्राकृतिक है या मानवनिर्मित। 

  • प्राकृतिक आपदा, प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण होने वाली दुर्घटना है जिससे मानव को जनधन की हानि हो सकती है। जैसे – भूकंप, सूनामी, हिमस्खलन, बाढ़ आदि। 
  • मानवनिर्मित आपदा, वे आपदाएँ जो मानव गतिविधियों के कारण सम्पन्न हो सकती है। जैसे भोपाल गैस त्रासदी, युद्ध, आतंकवादी हमला। 

द हिंदू के अनुसार हाल ही में पुल का नवीनीकरण किया गया था और पुल के ध्वस्त होने से कुछ समय पूर्व ही पुल को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था। क्योंकि पुल की मरम्मत होने पर ही पुल को खोला गया था इसलिए पुल की मरम्मत व प्रबंधन में लापरवाही की सम्भावना बढ़ जाती है। जो मानवनिर्मित आपदा का संकेत देती है।

पुल के ध्वस्त होने के कारण-

पुल के पुनर्निर्माण में लापरवाही- अनुभवहीन कम्पनी को पुनर्निर्माण के कार्य का दायित्व देना।

पुनर्निर्माण के बाद सुरक्षा जाँच किए बिना पुल को पर्यटकों के लिए खोल देना।

पुल में भारवहन क्षमता से अधिक पर्यटकों को प्रवेश की अनुमति- आपदा के समय पुल में भारवहन क्षमता से अधिक पर्यटक उपस्थित थे, जिससे नुकसान में बढ़ोतरी होती चली गई। जैसे केदारनाथ त्रासदी के समय हुआ था।

सुरक्षा प्रबंधन का अभाव- पर्यटक क्षेत्रों में दर्शनीय स्थलों व पर्यटकों की सुरक्षा हेतु कोई व्यवस्था नहीं है। हाल ही में हुई सियोल की घटना इसका एक अन्य उदाहरण है जहाँ पर्यटकों की भीड़ के प्रबंधन के कोई इंतेजामात नहीं किए गए थे।

आगे की राह-

  • देश में पर्यटक स्थलों व तीर्थस्थलों की सुरक्षा की जांच की जानी चाहिए।
  • नियमित रूप से पर्यावरण की स्थिति की समीक्षा कर पर्यटक स्थलों का प्रबंधन करना चाहिए।
  • पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील स्थानों में बुनियादी ढांचों जैसे सड़क व पुल की व्यवस्था भौगोलिक परिस्थिति के अनुरूप करनी चाहिए।
  • यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
  • पर्यटन से जुड़े प्रचार अभियानों में पर्यटन के साथ सुररक्षा संबंधी जानकारी भी शामिल होनी चाहिए।

स्रोत

https://bit.ly/3FGMMUi (द हिंदू )

https://bit.ly/3WnHLWI ( इण्डियन एक्सप्रैस )

https://web.archive.org/web/20150221225117/http://guj-nwrws.gujarat.gov.in/showpage.aspx?contentid=1647&lang=English

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