राजकोषीय समेकन

राजकोषीय समेकन

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन –  भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, राजकोषीय समेकन, राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद, प्रत्यक्ष कर , अप्रत्यक्ष कर ।

खबरों में क्यों ? 

  • फरवरी 2024 में भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अंतरिम बजट को संसद में पेश करते हुए बताया था कि इस वित्तीय वर्ष में भारत के राजकोषीय घाटे को सीमित करने का लक्ष्य रखा है।
  • ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपने राष्ट्रीय ऋणों से निपटने में भारत  वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, इसलिए वित्त मंत्रालय ने अपने अंतरिम बजट 2024-25 में भारत के राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष 2024-25 में  सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) के 5.1% तक कम करने का निर्णय लिया है।
  • अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री  ने 2024-25 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 5.1% तक और 2025-26 तक 4.5% से कम करने की सरकार के लक्ष्य के बारे में बताया जिससे कई आर्थिक विश्लेषकों को आश्चर्य हुआ, जिन्होंने थोड़ा अधिक घाटे के लक्ष्य की उम्मीद की थी।
  • सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.8 प्रतिशत तक सीमित रखना है, जबकि वित्तीय वर्ष के लिए पहले बजट में 5.9 प्रतिशत का अनुमान लगाया गया था और कर राजस्व में मजबूत उछाल के कारण 2025-26 तक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 4.5 प्रतिशत से नीचे सीमित रखने पर जोर दिया गया है। 
  • प्रत्यक्ष कर राजस्व में तेज वृद्धि देखी गई है, आयकर इस वित्तीय वर्ष के लिए बजट अनुमान से 13.5 प्रतिशत अधिक और प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) राजस्व बजट अनुमान से 15.8 प्रतिशत अधिक देखा गया है।
  • अगले वित्तीय वर्ष के लिए, प्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें आयकर और कॉर्पोरेट कर शामिल हैं, 13.1 प्रतिशत बढ़कर 21.99 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में प्रत्यक्ष कर राजस्व सालाना आधार पर 17.2 प्रतिशत बढ़कर 19.45 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
  • 2023-24 में आयकर संग्रह में तेज वृद्धि देखी गई है और बजट अनुमान से 1.2 लाख करोड़ रुपये अधिक होने की उम्मीद है, जबकि कॉर्पोरेट कर संग्रह 9.23 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान स्तर पर बनाए रखा गया है। इसके साथ, आयकर राजस्व कॉर्पोरेट कर संग्रह से अधिक देखा जा रहा है, भले ही उन्हें 2023-24 के बजट अनुमान में कॉर्पोरेट कर राजस्व की तुलना में निचले स्तर पर रखा गया था।
  • प्रतिभूति लेनदेन कर, जो शेयर बाजारों में व्यापारित प्रतिभूतियों पर लगाया जाता है, 2023-24 के संशोधित अनुमान में बढ़कर 32,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो 2022-23 में वास्तविक राजस्व से 27.6 प्रतिशत की वृद्धि है। 2024-25 के लिए एसटीटी राजस्व बढ़कर 36,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
  • अगले वित्त वर्ष में सरकार का सकल कर राजस्व 11.5 फीसदी बढ़कर 38.31 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
    केंद्र का शुद्ध कर राजस्व 2024-25 में लगभग 12 प्रतिशत बढ़कर 26.02 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। इसकी तुलना मौजूदा वित्तीय वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान में 2022-23 में वास्तविक राजस्व की तुलना में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि से की जाती है। 2024-25 के लिए अनुमानित कर राजस्व की लगभग 12 प्रतिशत की वृद्धि दर 2024-25 के बजट अंकगणित के लिए अनुमानित 10.5 प्रतिशत नाममात्र जीडीपी वृद्धि से बहुत अधिक है।
  • कर राजस्व में मजबूत वृद्धि उच्च कर उछाल को दर्शाती है, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान में 1.2 है, जबकि वित्त वर्ष 23 में यह 1.0 थी। 2024-25 के लिए, कर उछाल 1.1 पर देखा गया है।
  • अप्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और जीएसटी (क्षतिपूर्ति उपकर सहित) शामिल हैं, से 2024-25 में सरकार को 16.22 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।
  • चालू वित्तीय वर्ष में, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क संग्रह का संशोधित अनुमान क्रमशः 2.19 लाख करोड़ रुपये और 3.08 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जबकि जीएसटी संग्रह (क्षतिपूर्ति उपकर सहित) 9.57 लाख करोड़ रुपये के बजटीय स्तर पर अनुमानित है। .
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत की संसद में कहा कि – “ सरकार न केवल राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के साथ तालमेल बिठा रही है बल्कि इसे बेहतर भी बना रही है। न केवल राजकोषीय समेकन रोडमैप के साथ तालमेल बिठाना, जो हमने पहले दिया था, बल्कि इसे बेहतर बनाना भी सरकार की प्राथमिकता  है। ” 

राजकोषीय घाटा : 

  • परिभाषा : किसी भी सरकार के कुल राजस्व और उसके कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। जब कभी भी सरकार का व्यय उसके द्वारा प्राप्त  राजस्व से अधिक हो जाता है, तो सरकार को उस घाटे को पूरा करने के लिए या तो धन उधार लेना पड़ता है या फिर सरकार को अपनी सरकारी संपत्ति बेचनी पड़ती है।
  • राजस्व प्राप्ति का प्राथमिक स्रोत :  किसी भी सरकार के लिए राजस्व प्राप्ति का प्राथमिक स्रोत कर होता है। 2024-25 में कर प्राप्तियां ₹26.02 लाख करोड़ होने की उम्मीद है, जबकि कुल राजस्व ₹30.8 लाख करोड़ होने का अनुमान है। इसी अवधि के लिए कुल सरकारी व्यय ₹47.66 लाख करोड़ अनुमानित है।

राष्ट्रीय ऋण :

  • किसी भी देश का राष्ट्रीय ऋण वह कुल राशि है जो किसी देश की सरकार को अपने ऋणदाताओं को एक निश्चित समय पर देना होता  है।
  • सरकारी ऋण में छोटी बचत, भविष्य निधि और विशेष प्रतिभूतियों जैसी योजनाओं के दायित्वों के साथ-साथ घरेलू तथा बाहरी ऋण सहित विभिन्न देनदारियाँ शामिल होती  हैं।
  • इन देनदारियों में ब्याज भुगतान और मूल राशि का पुनर्भुगतान दोनों शामिल होते हैं, जिससे सरकार के वित्त पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है।
  • यह आम तौर पर ऋण की वह राशि है जो सरकार ने कई वर्षों के राजकोषीय घाटे और घाटे को पाटने के लिये उधार लेने के दौरान जमा की है। 
  • सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में सरकार का राजकोषीय घाटा जितना अधिक होगा, उसके ऋणदाताओं को बिना किसी परेशानी के भुगतान किये जाने की संभावना उतनी ही कम होगी।

सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण :  

  • बाजार से उधार लेना : सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए अपने बांड के माध्यम से  बाजार से पैसा उधार लेती है, बाजार से ऋणदाता सरकार द्वारा जारी बांड को खरीदती है। जिससे सरकार को आय प्राप्त होती है। 2024-25 में, केंद्र का लक्ष्य बाजार से ₹14.13 लाख करोड़ उधार लेने का है, जो 2023-24 के लक्ष्य से कम है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से धन प्रदान करना : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे केंद्रीय बैंक, द्वितीयक बाजार में सरकारी बांड खरीदकर, अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को धन प्रदान करके क्रेडिट बाजार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • सरकार की मौद्रिक नीति : सरकार की मौद्रिक नीतियां भी सरकारों के लिए बाज़ार से पैसा उधार लेने की लागत को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • केंद्रीय बैंक की ऋण दरें : सरकार के लिए केन्द्रीय बैंक की ऋण दरें भी सरकार की राजकोषीय घाटा को प्रभावित करती है।  उदाहरण के लिए – कोविड महामारी से पहले कई देशों में केन्द्रीय बैंक की ऋण दरें लगभग  शून्य के करीब थीं, लेकिन वह महामारी के बाद तेज़ी से बढ़ी हैं। इससे सरकारों के लिए पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है। केन्द्रीय बैंक की ऋण दरों के कारण ही केंद्र – सरकार अपने राजकोषीय घाटे को कम करने के करने के लिए दृढ – संकल्पित है।

राजकोषीय घाटा की भूमिका  : 

  • मुद्रास्फीति का होना : उच्च राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति को जन्म दे सकता है, क्योंकि सरकार घाटे को पूरा करने के लिए पैसे छापने का सहारा ले सकती है। महामारी के दौरान वर्ष 2020 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.17% के उच्च स्तर पर पहुँच गया। तब से इसमें काफी कमी आई है और वर्ष 2023-24 में 5.8% तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • ऋणदाताओं के बीच विश्वास पैदा होना : किसी भी राजकोषीय अनुशासन में , जो कम घाटे के रूप में परिलक्षित होता है, बाजार के ऋणदाताओं के बीच सरकार के प्रति विश्वास को बढ़ा सकता है। यह  बांड के रेटिंग में संभावित रूप से सुधार कर सकता है और उधार लेने की लागत को भी कम कर सकता है। कम राजकोषीय घाटा बेहतर सरकारी राजकोषीय अनुशासन का संकेत देता है। इससे भारत सरकार के बांडों की रेटिंग ऊँची हो सकती है। जब सरकार कर राजस्व पर अधिक निर्भर करती है और कम उधार लेती है, तो इससे ऋणदाता का विश्वास बढ़ता है तथा उधार लेने की लागत कम हो जाती है।
  • सार्वजनिक ऋण प्रबंधन : किसी भी परिस्थिति में उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की सार्वजनिक ऋण प्रबंधन करने की क्षमता पर दबाव डाल सकता है। इससे भारत का सार्वजनिक ऋण तीव्र गति से सकता है, जिससे देश की वित्तीय प्रबंधन भी प्रभावित होती है ।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार से सस्ता ऋण प्राप्त करना: किसी भी सरकार के लिए कम राजकोषीय घाटा की प्रतिपूर्ति के लिए उसे विदेशी बाजारों में अपना बांड जारी करने और सस्ता ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया को अत्यंत सरल बना देता है। इस प्रक्रिया द्वारा भी सरकार द्वारा राजकोषीय घाटा की प्रतिपूर्ति की जाती है।

राजकोषीय घाटा को मापने का मुख्य तरीका : 

राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (उधार को छोड़कर)।

राजस्व घाटा : किसी भी व्यवसाय में या किसी भी सरकार के लिए राजस्व घाटा कुल राजस्व प्राप्तियों में से कुल राजस्व व्यय को घटाकर निर्धारित किया जाता है। अतः 

राजस्व घाटा =  कुल राजस्व प्राप्तियाँ – कुल राजस्व व्यय।

ऋणात्मक सकल घरेलू उत्पाद अनुपात: ऋणात्मक सकल घरेलू उत्पाद अनुपात किसी देश पर उसकी जीडीपी पर कितना बकाया है को मापने की विधि है । अतः 

सकल घरेलू उत्पाद पर ऋण =  देश का कुल ऋण / देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद।

राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित कानून : 

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) ढाँचा :

 

  • वर्ष 2003 में स्थापित FRBM अधिनियम ने ऋण कटौती के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक सामान्य सरकारी ऋण को सकल घरेलू उत्पाद के 60% तक सीमित करना था। राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) ढाँचा अपने निर्धारित लक्ष्यों  को प्राप्त करने में असफल रहा। परिणामस्वरूप भारत के केंद्र सरकार का बकाया ऋण निर्धारित की गई सीमा से अधिक हो गया।
  • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिए ऋण-GDP अनुपात 60% की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार हेतु 40% और राज्य सरकारों के लिए  20% शामिल है।

भारत में राष्ट्रीय ऋण तथा राजकोषीय घाटा के प्रबंधन के उपाय : 

राजस्व संग्रहण में वृद्धि करना : 

  • सरकार द्वारा राजस्व संग्रह में सुधार के लिए एवं कर आधार को विस्तारित करने के लिए कर  प्रशासन एवं इसका सख्ती से अनुपालन को सुदृढ़ करने की अत्यंत आवश्यकता है। 
  • राजस्व स्रोतों में विविधता लाने हेतु पर्यावरण कर अथवा विलासिता की वस्तुओं पर कर , संपत्ति पर नए कर अथवा शुल्क अधिरोपित करने की भी आवश्यकता है ।

राजकोषीय अनुशासन तथा सुदृढ़ीकरण : 

  • राजकोषीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्यों का अनुपालन करने के लिए FRBM अधिनियम का अनुपालन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सरकार को सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करने के लिए राजकोषीय घाटे और GDP अनुपात को क्रमिक रूप से कम करने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। 
  • सरकार को अपने व्यय को युक्तिसंगत बनाने, राजस्व वृद्धि उपायों तथा सहायिकी में सुधारों के साथ-साथ विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों के कार्यान्वन से ऋण-ग्रहण पर निर्भरता कम होगी तथा राजकोषीय असंतुलन को व्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।

ऋण प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करना :

  • सरकार द्वारा  ऋण-ग्रहण की लागत को अनुकूलित करने तथा पुनर्वित्त जोखिमों को कम करने के लिए एक विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन रणनीति विकसित करने की जरूरत है।
  • बाज़ार की अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिए घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के निवेशकों के  आधार एवं वित्तपोषण के स्रोतों में विविधता लाने की जरूरत है।

संरचनात्मक स्तर पर सुधार :

  • अर्थव्यवस्था की दक्षता तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाने के उद्देश्य से संरचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है जिसमें श्रम बाज़ार सुधार, व्यापार सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) संबंधी पहल एवं शासन व्यवस्था में सुधार करना शामिल हैं।
  • विकास क्षमता में वृद्धि करने तथा राजकोषीय स्थिरता को बनाए रखने के लिये कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक बाधाओं तथा चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।

सरकारी व्यय की व्यापक समीक्षा करना :

  • सरकार को सार्वजानिक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में व्यय को प्राथमिकता देने के लिए सरकारी व्यय की व्यापक समीक्षा करना चाहिए ।
  • देश की वंचित समुदायों, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली  कमज़ोर आबादी के लिए लक्षित समर्थन सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा गैर-आवश्यक व्यव एवं सहायिकी को कम करने के लिये नीतियाँ बनाना चाहिए ।

निष्कर्ष/  समाधान : 

  • राजकोषीय सुदृढ़ीकरण उपायों के संयोजन को कार्यान्वित कर भारत राजकोषीय स्थिरता, आर्थिक विकास एवं दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित करते हुए अपने राष्ट्रीय ऋण तथा राजकोषीय घाटे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकता है।
  • स्थायी राजकोषीय का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अल्पकालिक स्थिरीकरण प्रयासों तथा दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।
  • राजकोषीय घाटा, सरकारी राजस्व और व्यय के बीच का अंतर, मुद्रास्फीति, बाजार विश्वास, ऋण प्रबंधन और अंतर्राष्ट्रीय उधार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
  • आने वाले वर्षों में राजकोषीय घाटे को कम करने की सरकार की योजना में राजस्व सृजन और व्यय नियंत्रण का एक नाजुक संतुलन शामिल है।
  • भारत में सार्वजनिक वित्त को बहाल करने और बाजार का विश्वास बनाए रखने के लिए समेकन योजनाओं और उपायों की घोषणा करना एक शर्त है।  भारत में इसका उद्देश्य सरकारी घाटे और ऋण संचय को कम करना है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

Q. 1.  राजकोषीय समेकन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए अपने बांड के माध्यम से  बाजार से पैसा उधार लेती है।
  2. उच्च राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति को जन्म दे सकता है।
  3. सरकार के कुल राजस्व और उसके कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। 
  4. सरकारी ऋण में छोटी बचत, भविष्य निधि और विशेष प्रतिभूतियों जैसी योजनाओं के दायित्वों के साथ-साथ घरेलू तथा बाहरी ऋण सहित विभिन्न देनदारियाँ शामिल होती  हैं।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A). केवल 1, 2 और 3 

(B). केवल 2, 3 और 4 

(C ) इनमें से कोई नहीं।

(D). इनमें से सभी।

उत्तर – (D)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. राजकोषीय घाटा और राष्ट्रीय ऋण को परिभाषित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि राजकोषीय समेकन किस प्रकार भारत के सकल घरेलू उत्पाद और भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक है ? तर्कसंगत व्याख्या प्रस्तुत कीजिए।   

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