राजद्रोह कानून पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

राजद्रोह कानून पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

संदर्भ क्या है ?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने मई, 2022 में  एक ऐतिहासिक निर्णय में आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह कानून से संबंधित सभी लंबित सुनवाइयों, अपीलों और कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी, जब तक केंद्र सरकार इसके प्रावधानों की पुनः जांच नहीं कर लेती।
  • मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि न्याय के लिए आशा की जाती है कि राज्य व केंद्र सरकार आईपीसी की धारा 124 ए के विचाराधीन रहने के दौरान इस कानून के अंतर्गत कोई नई प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करें।
  • देश की ‘सुरक्षा व अखंडता’ एवं ‘नागरिक स्वतंत्रता’ के मध्य संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहा कि यदि कोई नया मामला दर्ज किया जाता है, तो प्रभावित पक्ष उचित राहत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं।

वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाएं

राजद्रोह कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि केदार नाथ वाद में न्यायालय द्वारा दी गई राजद्रोह की सीमित परिभाषा को कई अन्य कानूनों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है, जिसमें गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कड़े आतंकवाद विरोधी कानून शामिल हैं।

इस निर्णय के निहितार्थ क्या हैं ?

  • राजद्रोह कानून की वैधानिकता के संबंध में न्यायालय का यह हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह न्यायालय इस कानून को रद्द करता है, तो उसे केदार नाथ वाद में दिए गए फैसले को रद्द करना होगा।
  • हालाँकि, यदि सरकार कानून की समीक्षा करने का निर्णय लेती है, तो ऐसी स्थिति में या तो वह इस कानून की भाषा में फेरबदल करेगी या इसे निरस्त करेगी। यदि सरकार इस कानून में कुछ सीमित संशोधन करती है तब ऐसी स्थिति में यह कानून एक भिन्न रूप में दोबारा लागू हो सकता है।

सेक्शन 124ए के तहत राजद्रोह क्या है ?

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करे या पैदा करने का प्रयास करे अथवा असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करे या करने का प्रयास करे तो वह राजद्रोह का आरोपी होगा।
  • राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है और इसके लिए 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा तथा जुर्माने (या दोनों) का प्रावधान है।

सेक्शन 124ए के समर्थन में तर्क

  • आईपीसी की धारा 124ए की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों से निपटने में है। यह चुनी हुई सरकार को हिंसा एवं अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • कानून द्वारा स्थापित सरकार की निरंतरता व अस्थिरता राज्य के विकास के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
  • यदि अदालत की अवमानना के लिए दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, तो सरकार की अवमानना के लिए दंड आखिर क्यों नहीं होना चाहिए।

सेक्शन 124ए के विरोध में  तर्क

  • सेक्शन 124ए औपनिवेशिक विरासत का अवशेष है एवं लोकतंत्र में अनुपयुक्त है। साथ ही यह संविधान द्वारा प्रदान की गयी वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मार्ग में एक बाधा है।
  • सरकार की असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मजबूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्व हैं। इन्हें राजद्रोह नहीं माना जाना चाहिए।
  • धारा 124ए के तहत ‘असंतोष’ (disaffection) जैसे शब्द अस्पष्ट स्वरूप के (vague) हैं तथा इनकी क्या व्याख्या की जाएगी यह जांच अधिकारी के स्वविवेक एवं समझ पर निर्भर करता है।
  • कई बार राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का एक उपकरण के रूप में दुरुपयोग किया जाता है।

 

 

Yojna IAS Daily Current Affairs Hindi med 13th July

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