राष्ट्रीय समुद्री दिवस

राष्ट्रीय समुद्री दिवस

राष्ट्रीय समुद्री दिवस

संदर्भ- हाल ही में समस्त भारत में 5 अप्रैल को राष्ट्रीय समुद्री दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व अर्थव्यवस्था के विषय में जागरुकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भारतीय समुद्री क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वालों को पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। 

प्रत्येक वर्ष की तरह 2023 में भी राष्ट्रीय समुद्री दिवस के लिए एक थीम रखी गई है- शिपिंग में अमृतकाल।

भारतीय समुद्री इतिहास

राष्ट्रीय समुद्री इतिहास को राष्ट्रीय व्यापार के संबंध में जागरुकता लाने के लिए जाना जाता है अतः भारत के समुद्री व्यापार का इतिहास जानना आवश्यक हो जाता है। 

भारतीय समुद्री इतिहास की प्रथम जानकारी सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त होती है। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सर्वाधिक व्यापार ईराक या मेसोपोटामिया से था। इसका प्रमाण यह दिया जाता है कि सिंधु सभ्यता की सर्वाधिक मुहरें मेसोपोटामिया से प्राप्त होती हैं। और मेसोपोटामिया के लेखों में सिंधु घाटी( मेलुहा) को नावों का देश कहा गया है।

वैदिक काल में भी समुद्री व्यापार प्रचलित था। ऋग्वेद में नौकाओं व अरित्र को समुद्र में चलने वाला बताया गया है। वैदिक काल में अरब के साथ व्यापार प्रचलित था।

संगम काल में समुद्री गतिविधियों का पर्याप्त लिखित उल्लेख प्राप्त होता है, इसमें चेर साम्राज्य का बंदर व पाण्ड्य साम्राज्य का शालियूर बंदरगाहों की सूचना प्राप्त होती है। संगम साहित्य के अनुसार उस समय घोड़ों का आयात सर्वाधिक होता था।

मौर्य साम्राज्य में सीरिया, मिस्र, यूनान, दक्षिण पूर्व एशिया व चीन में पर्याप्त विदेशी व्यापार होता था। भारत के पश्चिमी तट पर भड़ौच व सोपारा नामक बंदरगाहों का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही मालाबार तट पर मुजिरिस बंदरगाह की जानकारी मिलती है, जहां रोमन व्यापारी निवास करते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में समुद्र को संयाथपथ औऱ जहाजों को प्रवहण कहा गया है।

 भूगोलवेत्ता टॉलमी ने भड़ौच व बेरीगाजा के साथ पूर्व में कंटकोस्सील, काद्दूर व अल्लोसिंगे का वर्णन किया है। रोमन इतिहासकारों के अनुसार भारत का रोम से व्यापार लाल सागर के माध्यम से होता था, रोमन साम्राज्य के पतन के बाद रोम का लाल सागर से व्यापार प्रतिबंधित हो गया। इसका लाभ अरब व मिस्र जैसे देशों को हुआ। जिन्होंने भारत के व्यापार पर 7-8वी सदी में एकाधिकार करना प्रारंभ किया। इसके साथ साथ दक्षिण भारत के व्यापार पर विभिन्न राजवंशों का आधिपत्य रहा।

पूर्वी दुनियाँ के स्थलीय मार्ग के बंद हो जाने के बाद यूरोप द्वारा जलमार्ग की खोज प्रारंभ की गई। और पुर्तगालियों द्वारा मार्ग खोज लेने के बाद हिंद महासागर में व्यापार निर्बाध गति से होने लगा। पुर्तगालियों के अतिरिक्त भारत में डच, अंग्रेज व फ्रांसीसियों का जल मार्गों से आगमन हुआ। जलमार्ग द्वारा व्यापार की बढ़ोतरी व अत्यधिक लाभ से समुद्री व्यापार में एकाधिकार की भावना जागृत हुई। जहाजों का प्रयोग अब केवल व्यापार के लिए नहीं वरन सैन्य शक्ति के रूप में किया जाने लगा।

आधुनिक नौसेना 

वर्तमान भारत का तटीय क्षेत्र 7517 किलोमीटर है और इसमें 1000 से अधिक बंदरगाह स्थापित हैं। विदेशी व्यापार व संचार के साथ भारत को बाहरी खतरों से सुरक्षित रखना आवश्यक है। छत्रपति शिवाजी ने सर्वप्रथम मुगलों व यूरोपियों का सामना करने के लिए नौसेना की आवश्यकता को महसूस किया और तटवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार कर दुर्गों का निर्माण किया। शिवाजी के समय मराठा सेना के पास 500 से अधिक पोत थे। मराठा सेना में समुद्री सेना में सर्वाधिक प्रसिद्ध कान्होंजी आंग्रे थे जिन्होंने पुर्तगालियों अंग्रेजों से निपटतें हुए मराठा किलों को अपने अधीन बनाए रखा। उनकी मृत्यु के बाद मराठा सेना के कमजोर हो गई और ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिपत्य भारत में बढ़ा। 

ईस्ट इंडिया कंपनी 01 मई 1830 को ब्रिटिश क्राउन के अधीन आई और इसे योधी का दर्जा मिल गया। तब इस सर्विस को इंडियन नेवी नाम दिया गया। 1858 में पुनः नामकरण करते हुए इसे ‘हर मेजेस्टीज़ इंडियन नेवी’ अभिहित किया गया। 1863 में इसका पुनर्गठन करते हुए इसे दो शाखाओं में बाँटा गया। बॉम्बे स्थित शाखा को बॉम्बे मरीन और कलकत्ता स्थित शाखा को बंगाल मरीन कहा गया। भारतीय जलराशि की सुरक्षा करने का कार्य रॉयल नेवी के सुपुर्द किया गया।

स्वतंत्रता के बाद नेवी- 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के बाद ‘रॉयल इंडियन नेवी’ से ‘रॉयल’ शब्द को हटा दिया गया और ‘इंडियन नेवी’ के रूप में इसका पुनः नामकरण किया गयाI 26 जनवरी 1950 को भारतीय नौसेना के प्रतीक चिह्न के रूप में रॉयल नेवी के क्रेस्ट के क्राउन का स्थान अशोक स्तंभ ने ले लियाI वेदों में वरुण देवता (समुद्र के देवता) की आराधना भारतीय नौसेना द्वारा चयनित आदर्श वाक्य “श नो वरुण:” से शुरू होती है जिसका अर्थ “वरुण देवता की कृपा हम पर हमेशा बनी रहे”I राज्य के प्रतीक के नीचे अंकित वाक्य “सत्यमेव जयते” को भारतीय नौसेना के क्रेस्ट में शामिल किया गयाI

समुद्री व्यापार की वर्तमान चुनौतियाँ-

  • डिकार्बोनाइजेशन की दिशा में प्रयास
  • जहाज, ईंधन, रसद, माल ढुलाई की लागत में वृद्धि
  • बड़े टैंकरों के निर्माण की लागत व उनके फंसने की समस्या(2021 में एवर गिबन नामक जहाज, बड़े आकार (20000 टीईयू.) के कारण स्वेज नहर में फंस गया था।)
  • सोमालियाई समुद्री डकैतों से व्यापारिक जहाजों की रक्षा।

समुद्री क्षेत्र के विकास 

  •  नीली अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं।
  • सागरमाला पहल- बंदरगाह व तटरेखा को विकसित किया जाएगा, जिससे समुद्री अर्थव्यवस्था बेहतर हो सके।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030- इसके तहत बुनियादी समुद्री बंदरगाहों की सुविधा उपलब्ध कराना, लॉजिस्टिक की कुशल व्यवस्था करना, प्रौद्योगिकी व नवाचार को अपनाना, समुद्री व्यापार में सहयोग बढ़ाना आदि।
  • सागर कवच-  समुद्री खतरों से निपटने के लिए वर्ष में दो बार सुरक्षा अभ्यास का आयोजन किया जाता है। 

स्रोत

Yojna IAS daily current affairs hindi med 6th April 2023

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