लद्दाख और बौद्ध मूर्ति कला

लद्दाख और बौद्ध मूर्ति कला

संदर्भ- 26 जनवरी 2023 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर कर्तव्य पथ में भारत के 23 राज्यों ने भारत की सांस्कृतिक विविधता और विशिष्टता को झांकियों के माध्यम से प्रस्तुत किया। प्रस्तुत लेख लद्दाख की झांकी में प्रस्तुत की गई बुद्ध प्रतिमा से संबंधित है। विभिन्न लेखों में इसे बामियान के बुद्ध प्रतिमा की श्रेणी का भी माना जा रहा है।

  • लद्दाख की झांकी, पर्यटन व लद्दाख की समग्र संस्कृति विषय पर आधारित थी।
  • इसमें खुमानी की खेती, समुद्री हिरन का सींग विकास, पश्मीना, ग्रामीण विकास और मोनास्टिक मास्क डांस (छम्स) को दर्शाया गया था।

लद्दाख- लद्दाख को 31 अक्टूबर 2019 को भारत का केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। यह कराकोरम पर्वत व हिमालय पर्वत के मध्य स्थित है। लद्दाख में नवपाषाणकालीन शिलालेख प्राप्त हुए हैं। लद्दाख का वर्णन प्राचीन काल में विदेशी यात्रियों ने भी किया है, जो बौद्ध धर्म को जानने भारत आते थे। 

प्रथम शताब्दी ईसवी में लद्दाख में कुषाण वंश का शासन था। कुषाण वंश के शासक कनिष्क के शासन में बौद्ध धर्म की प्रगति हुई। कनिष्क ने बौद्ध धर्म की चौथी संगीति का आयोजन भी किया था। इसी समय भारत में मूर्ति कला का उत्थान हुआ, जो बौद्ध धर्म पर आधारित थी। सातवी से आठवी शताब्दी के समय यह साम्राज्य चीन व तिब्ब्त के सम्पर्क में आया। 842 ईं में न्यिमागोन ने लद्दाखी राजवंश की स्थापना की और लद्दाख राजवंश ने क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया।

बौद्ध मूर्ति कला

बौद्ध धर्म के विकास का प्रारंभ सम्राट अशोक के काल से हुआ किंतु बौद्ध मूर्ति कला का विकास शुंग काल से माना जाता है। बौद्ध मूर्ति के प्रचलन से पूर्व बुद्ध को उनके प्रतीकों जैसे छत्र, पदचिह्न, धर्मचक्र, बोधिवृक्ष, स्तूप आदि के रूप में पूजा जाता था। शुंग काल में हिंदू धर्म के उत्थान के समय मूर्ति पूजा का प्रभाव बौद्ध धर्म पर भी पड़ा। कनिष्क ने बौद्ध मूर्तियों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया। बौद्ध मूर्ति कला का प्रारंभ गांधार शैली में हुआ या मथुरा शैली से यह विवादित है।

मथुरा शैली

  • भारत में मथुरा शैली के प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से मिलते हैं, जो पूर्णतः भारतीय शैली पर आधारित थी।
  • कुषाण काल (प्रथम शताब्दी) से मथुरा शैली में बौद्ध मूर्तियाँ भी शामिल हो गई। 
  • मथुरा में लाल पत्थरों से निर्मित बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
  • मथुरा शैली में बुद्ध को केश विहीन, वस्त्र रहित, मूंछविहीन दिखाया गया है किंतु प्रभामण्डल का प्रयोग मूर्तियों में हुआ है। मूर्तियों दिव्य प्रतीत होती हैं।
  • इसके साथ ही बुद्ध अभय मुद्रा, धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में दिखाई देते हैं।
  • मथुरा शैली का विकास मथुरा, अहिच्छत्र, वाराणसी , कौशाम्बी, तक्षशिला व श्रावस्ती में हुआ था।

गांधार शैली

  • गांधार शैली का प्रारंभ प्रथम शताब्दी ईसवी से माना जाता है। जो भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई किंतु यह ग्रीक या रोमन शैली पर आधारित है।
  • इस शैली में निर्मित बुद्ध की मूर्तियाँ भूरे व नीले रंग की होती थी।
  • शैली में मानवीय शरीर को आकर्षक बनाने का प्रयास किया गया है।
  • मूर्तियों में बुद्ध को यूनानी शैली के कपड़ो व घुंघराले बालों के साथ दिखाया गया है।
  • इस शैली की मूर्तियाँ अजंता की गुफाओं में भी उत्कीर्ण की गई हैं।
  • इस कला के मुख्य केंद्र जलालाबाद, पेशावर, स्वात घाटी और बामियान हैं। दिल्ली में प्रदर्शित लद्दाख झांकी में प्रद्रर्शित बौद्ध मूर्ति को बामियान श्रेणी का माना गया है। 

बामियान की बौद्ध प्रतिमा

  • ये प्रसिद्ध मूर्तियाँ अफगानिस्तान के बामियान में स्थित थी जो प्रचीन रेशम मार्ग में स्थित था।
  • ये मूर्तियाँ हिंदूकुश की पर्वत श्रृंखलाओं में बनी थी पर्वत रेत, मिट्टी, क्वार्ट्ज, बलुआ पत्थर आदि से बने थे।
  • चट्टानों के साथ मिट्टी व पुवाल के मिश्रण से निर्मित प्लास्टर का पर्योग किया गया था।  
  • बुद्ध की मूर्तियाँ लगभग छठी शताब्दी की थी जिनमे एक 38 मीटर की, जिसे शमामा और दूसरी 55 मीटर की, जिसे साल्सल कहा जाता था। इन मूर्तियों के साथ दीवारों पर अन्य संरचनाओं में भित्ति चित्र भी मौजूद थे।
  • 2001 में तालिबान ने डाइनामाइट का प्रयोग कर बामियान की मूर्तियों को नष्ट कर दिया।
  • इस शैली के बुद्ध की मूर्ति चीन के सिचुआन प्रांत में भी मौजूद है। जो विश्व में बुद्ध की मूर्तियों में सर्वाधिक विशाल है।

स्रोत

NDTV

https://youtu.be/_D-aRdJrAjc

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 27th Jan

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