वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023

संदर्भ- हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम 1980 में परिवर्तन करने के लिए लोकसभा में वन संशोधन विधेयक 2023 पेश किया गया। अधिनियम में प्रस्तावित परिवर्तन का विचार वृक्षारोपण करके वन कार्बन के स्टॉक में वृद्धि करना है। यह विधेयक विकास परियोजनाओं के लिए प्रयोग की गई वन भूमि के स्थान पर नए वनों के निर्माण के लिए नई भूमि या नए वनों का निर्माण करना।

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 

  • वन संरक्षण अधिनियम 1980 की अस्पष्टता को दूर करने के लिए यह विधेयक पेश किया गया है।
  • गैर वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर वनों का निर्माण किया जाना है।

वन संरक्षण अधिनियम 1980

  • राज्य सरकार केंद्र सरकार के अनुमोदन के बिना किसी भी वन भूमि को वनेतर प्रयोजन के लिए अनुमति नहीं दे सकती है। इस उपबंध का उल्लंघन करने पर कम से कम सामान्य कारावास 15 दिन का दिया जाएगा।
  • यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अधीन व्यथित है तो वह अधिनियम की धारा 3 के अनुसार राज्य सरकार को इस अधिकरण के अधिनियम के अनुसार अपील कर सकता है। 
  • केंद्र सरकार द्वारा सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा। जो केंद्र सरकार द्वारा निर्देशित वनों के संरक्षण हेतु किसी विषय पर सरकार को सलाह दे सकती है। 
  • केंद्र सरकार इन उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए राजपत्र के अधिकरण के अनुसार नियम बना सकती है।

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 में वन कार्बन स्टॉक का उल्लेख किया गया है इसके लिए वन कार्बन स्टॉक की जानकारी आवश्यक है।

वन कार्बन स्टॉक – 

पृथ्वी के वातावरण में संतुलन के लिए कार्बन के स्रोत व सिंक का समुचित मात्रा में होना आवश्यक है, जैसे ग्रीन हाउस गैसों की अधिक मात्रा पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हो रहा है किंतु यदि ग्रीन हाउस गैसों का अस्तित्व खत्म हो जाए तो पृथ्वी का तापमान अत्यधिक कम हो जाएगा। दोनों स्थितियाँ पृथ्वी में जीवन के अस्तित्व के लिए भयावह हैं।   

कार्बन स्टॉक, कार्बन की ऐसी मात्रा जिसे वातावरण से अलग पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर या पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर संग्रहित किया जाता है। मुख्य रूप से यह जीवित बायोमास या मिट्टी, लकड़ी व अपशिष्ट के भीतर भी हो सकता है।

  • वन संसाधन आंकलन रिपोर्ट के अनुसार 2020 में वैश्विक कार्बन स्टॉक, 1990 के कार्बन स्टॉक 668 गीगाटन से घटकर 662 गीगाटन हो गया। अतः वैशअविक रूप से कार्बन स्टॉक में कमी आई है।
  • आईएसएफआर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार गत 5 द्विवार्षिक आकलन यह दर्शाते है कि देश के वनों में कार्बन स्टॉक बढ़ते प्रवृत्ति में है। वर्ष 2011 आकलन में कार्बन स्टॉक 6,663 मिलियन टन था जो कि वर्तमान आकलन में बढ़ कर 7,204.0 मिलियन टन हो गया है जो यह दिखा रहा है कि 2011 से 2021 के अवधि के बीच 541 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। भारत के आंकड़ों के अनुसार देश में कार्बन स्ॉक की वृद्धि हुई है।
  • राज्य स्तरीय आंकड़ों में सर्वाधिक कार्बन स्टॉक अरुणांचल प्रदेश(1023.84 मिलियन टन) का पाया गया। 
  • प्रति हेक्टेयर कार्बन स्टॉक के अनुसार जम्मू कश्मीर(173.41टन/हे.) राज्य शीर्ष पर है।

कार्बन स्टॉक का आंकलन- 

  • भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ विविध राष्ट्रीय संचार(नैटकॉम) के लिए देश के लिए वनों में कार्बन स्टॉक का आंकलन करता है। 
  • प्रारंभ(1984-1994) में राष्ट्रीय संचार प्रक्रिया के लिए कार्बन स्टॉक का आंकलन किया जाता था।  
  • भारतीय वन सर्वेक्षण 1994-2004 तक की अवधि के लिए, राषट्रीय वन भूमि, शेष वनभूमि, वन भूमि में परिवर्तित भूमि का आंकलन किया गया था।
  • सर्वप्रथम 2011 में कार्बन स्टॉक के आंकलन के लिए अलग से एक रिपोर्ट तैयार की गई थी।
  • 2016 में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों के लिए जिला स्तर पर वनों का आंकलन उनकी प्रजाति या प्रकार के वनावरण के आधार पर अलग अलग किया गया था।
  • कार्बन स्टॉक का आंकलन स्वच्छ कार्बन की जलवायु में संतुलन बनाए रखने के लिए किया जाता है ताकि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव को कम किया जा सके।
  • भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसके पास समय-समय पर वन आवरण मूल्यांकन की एक वैज्ञानिक प्रणाली है जो “योजना, नीति निर्माण और साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए मूल्यवान इनपुट” प्रदान करती है। 1980 के दशक की शुरुआत में 19.53% के बाद से, 2021 में भारत का वन आवरण बढ़कर 21.71% हो गया है। इसे 2021 में अनुमानित 2.91% ट्री कवर में जोड़कर, देश का कुल हरित आवरण अब कागज पर 24.62% है।

2021 में कार्बन सटॉक के आंकलन के लिए मुख्यतः निम्नलिखित आंकड़े लिए गए थे-

  • भूमि के ऊपर जैवभार
  • भूमि के नीचे जैवभार
  • मृत काष्ठ 
  • करकट 
  • मृदा आदि।

वन कार्बन स्टॉक की आपूर्ति हेतु कानून

सुप्रीम कोर्ट 1916 आदेश – 

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में पेड़ों की कटाई को निलंबित कर दिया, और फैसला सुनाया कि वन (संरक्षण) अधिनियम उन सभी भूमि पार्सल पर लागू होगा जो या तो ‘वन’ के रूप में दर्ज किए गए थे या जंगल के शब्दकोश अर्थ से मिलते जुलते थे। इस व्यापक आदेश ने ‘वन’ के रूप में दर्ज नहीं की गई भूमि पर बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकने में मदद की, लेकिन यह रिकॉर्ड किए गए वनों के विशाल क्षेत्रों को बाहर करने के रास्ते में भी आया जो पहले से ही कृषि या घरों के रूप में उपयोग में थे। 

जमीनी स्तर पर सीमांकन प्रक्रिया को पूरा करने के बजाय संशोधन विधेयक, वन (संरक्षण) अधिनियम की प्रयोज्यता को केवल ‘वन’ के रूप में दर्ज भूमि तक सीमित करने का प्रयास करता है। यह उन लाखों हेक्टेयर भूमि से अधिनियम के संरक्षण को हटाने का प्रभाव होगा, जिसमें वनों की विशेषताएँ हैं, लेकिन इस रूप में अधिसूचित नहीं हैं।

प्रतिपूरक वनीकरण कानून- 29 अप्रैल 2015 को प्रतिपूरक वनीकरण कोष विधेयक पारित हुआ। इसका विचार वन संरक्षण अधिनियम 1980 में निहित था। किंतु प्रतिपूरक कोष हेतु कदम प्रतिपूरक कानून 2016 के बाद ही उठाए गए। इसके तहत भारत के सार्वजनिक खातों के अधीन प्रतिपूरक वनीकरण कोष की स्थापना की गई। इस कोष का 10% केंद्र को व 90 % राज्य को प्राप्त होता है। यह निधि निम्न के लिए प्रयोग किया जाता है-

Yojna IAS daily current affairs hindi med 7th April 2023

  • क्षतिपूरक वनीकरण हेतु
  • वन के वर्तमान मूल्य हेतु
  • अन्य परियोजनाओं के भुगतान हेतु।

स्रोत

Indianexpress.com

Fsi.nic.in

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