वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने महान्यायवादी पद को अस्वीकार किया

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने महान्यायवादी पद को अस्वीकार किया

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने महान्यायवादी पद को अस्वीकार किया

संदर्भ- हाल ही में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव कि वे महान्यायवादी बने, को ठुकरा दिया है। 

भारत का महान्यायवादी, भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार आर सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार का वकील होता है। भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार-

  • भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • महान्यायवादी भारत सरकार को सलाह देगा और राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित कार्यों का निर्वहन करेगा। 
  • अटॉर्नी जनरल को भारत के अंतर्गत आने वाले सभी न्यायालयों में सुनवायी का अधिकार होगा।
  • महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत ही पद व पारिश्रमिक ग्रहण करता है। 

महान्यायवादी पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने योग्य हो,  सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अर्हत योग्यताएँ-

  • वह भारत का नागरिक हो,
  • कम से कम 5 वर्ष के लिए भारत के किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो, या भारत के किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्ष के लिए अधिवक्ता के पद पर रह चुका हो।
  • राष्ट्रपति के नजर में उत्तम विधि विशेषज्ञ हो।

भारत के महान्यायवादी का कार्यकाल अनिश्चित होता है, यह राष्ट्रपति पर निर्भर होता है। 

  • अब तक सर्वाधिक कार्यकाल वाले महान्यायवादी एम सी सीतलवाड़(28 जनवरी 1950 – 1 मार्च 1963 तक) का रहा है।
  • सबसे कम समय का कार्यकाल सोली सोराबजी(9 दिसम्बर- 2 दिसम्बर तक) का रहा है। 
  • संविधान में उनके कार्यकाल के लिए कोई प्रावधान नहीं है। यह पूर्णतः राष्ट्रपति पर निर्भर होता है

महान्यायवादी के कर्तव्य-

  • राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह देता है।
  • वह संविधान के अन्य कर्तव्यों को पूरा करता है।
  • वह भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है,सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सरकार का पक्ष रखता है।

महान्यायवादी के अधिकार 

  • भारत के सभी राज्य क्षेत्र में सुनवायी का अधिकार रखता है।
  • वह संसद के दोनों सदनों या उनके संयुक्त बैठकों की कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है किंतु वोट नहीं दे सकता।
  • वह उन सभी विशेषाधिकारों को प्राप्त कर सकता है, जो संसद के सदस्य के लिए नियत की गई हैं।

 महान्यायवादी की सीमाएँ-

  • यह आवश्यक नहींं कि महान्यायवादी की राय को सरकार द्वारा अपनाया जाए।
  • उसे भारत सरकार के खिलाफ कोई राय या जानकारी देने का अधिकार नहीं होता है।
  • वह भारत सरकार की अनुमति के बिना आपराधिक मामलों में आरोपियों का बचाव नहीं कर सकता है।
  • वह भारत सरकार की अनुमति क बिना किसी अन्य कंपनी की नियुक्ति नहीं ले सकता।

स्रोत

https://indianexpress.com/article/upsc-current-affairs/upsc-key-september-26-2022-why-you-should-read-attorney-general-of-india-or-sangam-age-or-khalistan-movement-for-upsc-cse-8174433/

 

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