विलुप्त होती भाषा के संदर्भ में त्रि – भाषा सूत्र

विलुप्त होती भाषा के संदर्भ में त्रि – भाषा सूत्र

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था, मातृभाषा, संविधान की अष्टम अनुसूची, राजभाषा, आधिकारिक भाषा, कोठारी आयोग एवं त्रि – भाषा सूत्र , राजभाषा संकल्प 1968 एवं त्रि- भाषा सूत्र, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020.

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए भारत में स्कूली स्तर पर बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के महत्त्व पर जोर देते हुए भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को देश के सभी राज्यों को अपनाने के लिए कहा था। 
  • हाल ही में पूरे विश्व ने विश्व में भाषाई व सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए और मातृभाषा के प्रति जागरुकता लाने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ’  के रूप में मनाया है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में निहित त्रि – भाषा सूत्र को लागू करने में भारत के कुछ राज्यों ने  खासकर तमिलनाडु, पुडुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य ने विरोध किया है और हिंदी को जबरदस्ती थोपने की बात कही है।
  • हाल ही में जारी विश्व के अनेक देशों में  खतरे में भाषाओं  के लिए जारी होने वाली रिपोर्ट यूनेस्को एटलस के अनुसार, विश्व में खतरे में होने वाली भाषाओं के वर्तमान में 577 भाषाएँ गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया हैं।

त्रि – भाषा सूत्र की परिचय : 

 

 

भारत में आज़ादी के बाद सबसे पहले त्रिभाषा सूत्र को राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने वर्ष 1968 की नीति में उल्लिखित किया था। जो निम्नलिखित है – 

(1) पहली भाषा- अध्ययन की जाने वाली पहली भाषा मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा।

(2) दूसरी भाषा – हिन्दी भाषी राज्य- कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेजी

      गैर-हिंदी भाषी राज्य- हिंदी या अंग्रेजी होगी

(3) तीसरी भाषा- हिंदी भाषी राज्य- तीसरी भाषा अंग्रेजी या  कोई आधुनिक भारतीय भाषा  (जो दूसरी भाषा के रुप  में न लिया गया हो)

गैर-हिंदी भाषी राज्य- तीसरी भाषा अंग्रेजी या  कोई आधुनिक भारतीय भाषा (जो दूसरी भाषा के रुप में न लिया गया हो)

 

कोठारी आयोग एवं त्रिभाषा सूत्र ( 1964 – 1966 ) :

 

  • राष्ट्रीय शिक्षा आयोग को ही कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। 
  • इसकी अध्यक्षता दौलत सिंह कोठारी ने की थी, जो भारत के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के भी अध्यक्ष थे, इसीलिए इसे कोठारी आयोग के नाम से भी जाना जाता है। 
  • यह भारत सरकार द्वारा भारत में शैक्षिक क्षेत्र के सभी पहलुओं की जांच करने एवं सलाह देने के लिए एक सर्वोच्च आयोग था।
  • कोठारी आयोग ने ही सिफ़ारिश की थी कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा अथवा दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक के अध्ययन की व्यवस्था एवं अहिंदी भाषी राज्यों में राज्य भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन की व्यवस्था की जाए। इसी व्यवस्था को त्रि – भाषा सूत्र के नाम से जाना जाता है। 

 

राजभाषा संकल्प 1968 एवं त्रि – भाषा सूत्र : 

  • कोठारी आयोग की सिफ़ारिशों को कार्यान्वित करने के लिए भारत की संसद द्वारा एक संकल्प पारित किया गया जिसे राजभाषा संकल्प 1968 ’  के नाम से जाना जाता है। 
  • राजभाषा संकल्प 1968 के अनुसार- भारत की एकता एवं अखंडता की भावना को बनाए रखने एवं देश के विभिन्न भागों में जनता में संपर्क सुविधा के लिए यह आवश्यक है कि भारत के केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित किया जाएगा।
  • अतः इस संकल्प में यह पारित किया गया कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा अथवा दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक के अध्ययन की व्यवस्था एवं अहिंदी भाषी राज्यों में राज्य भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन की व्यवस्था हो।

 

नई शिक्षा नीति, 2020 एवं  त्रि – भाषा सूत्र : 

 

 

  • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लिए भारतीय विज्ञान अकादमी बैंगलोर के अध्यक्ष और भारतीय विज्ञान कांग्रेस के महासचिव एवं भारत के प्रसिद्द वैज्ञानिक डॉ कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में केंद्र सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया था। चूंकि त्रिभाषा सूत्र को पूरी तरह व्यावहारिक तौर पर लागू नहीं किया जा सका था अतः नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इस बात का उल्लेख किया गया कि उपर्युक्त त्रिभाषा सूत्र को लागू किया जाएगा। इस पर कई राज्यों ने विराध किया है तथा आपत्ति भी जताई है। 

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार –

  • मातृभाषा या स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा-इसमें कहा गया है कि ग्रेड 5 तक शिक्षा का माध्यम घर या स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा या कम से कम मातृभाषा होगी जिससे 8 वीं कक्षा या उससे आगे तक बढ़या जा सकता है।
  • भारत के 2 भाषाओं का अध्ययन -छात्र को तीन भाषाओं में से 2 भारतीय भाषाओं का अध्ययन करना होगा।
  • त्रि – भाषा सूत्र को लागू करते समय राज्य, आम जनता, लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान रखा जाएगा। किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी।
  • राज्य, भारत का कोई भी क्षेत्र और यहाँ तक छात्र भी तीन भाषाओं को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
  • कक्षा  6 या 7 में पढ़ने वाले छात्र उन तीन भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषा को बदल सकते हैं। 
  • इससे बहुभाषावाद और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा। 
  • ऐसी कोई विशिष्ट भाषा नहीं है जो किसी भी राज्य पर थोपी जाए। यह राज्य को तय करना है कि –    “ उनकी पसंद की भाषा कौन सी है।”

 

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में त्रि – भाषा फॉर्मूला का कार्यान्वयन : 

 

 

  • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत भारत में  स्कूली स्तर पर शिक्षा देने के लिए त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने के लिए एक व्यापक आधार प्रदान किया गया है।  इस नीति के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

 

प्रारंभिक शिक्षा पर जोर देना  :

  • यह नीति बच्चों को भाषाएँ सीखने में मदद करने के लिए प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के महत्व पर ज़ोर देती है । इसका सुझाव है कि 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चे अपनी मूल भाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई करें।

लचीलापन :

  • इस नई नीति में यह भाषा सीखने के लिए विकल्पों की एक विस्तृत श्रृंखला की अनुमति देती है। तीसरी भाषा अंग्रेजी या छात्र की पसंद की कोई अन्य भाषा हो सकती है, जबकि पहली दो भाषाएँ उनके राज्य या क्षेत्र की मूल भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में, जहां हिंदी को थोपे जाने को लेकर चिंताएं हैं, इस प्रावधान से इस फॉर्मूले का विरोध होने की उम्मीद बहुत ही कम है।

शिक्षकों का प्रशिक्षण :

  • इस नीति के तहत त्रिभाषा सूत्र को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें सुझाव दिया गया है कि शिक्षकों को बहुभाषावाद का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और स्थानीय भाषाओं में पारंगत शिक्षकों को खोजने का प्रयास किया जाना चाहिए।

 

परीक्षा प्रणाली एवं छात्रों के समग्र मूल्यांकन पद्धति में परिवर्तन  :

  • इस नीति के अनुसार, छात्रों का मूल्यांकन अंग्रेजी सहित सभी तीन भाषाओं पर उनकी पकड़ के आधार पर किया जाना चाहिए।

ऑनलाइन पाठ्य पुस्तकों एवं अन्य शिक्षण सामग्री की उपलब्धता  :

  • छात्रों को अपनी मातृभाषाओं में सीखने में सक्षम बनाने के लिए, यह नीति मूल भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन संसाधनों और शिक्षण सामग्री के निर्माण को प्रोत्साहित करती है।

 

वर्तमान समय में भारत में  त्रि – भाषाई सूत्र की जरूरत : 

 

 

  • इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भाषा सीखना बच्चे के संज्ञानात्मक विकास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। अतः भारत में स्कूली स्तर पर इसका प्राथमिक उद्देश्य बहुउद्देश्यीयता (Multilingualism) और देश भर में राष्ट्रीय सद्भाव (National Harmony) को बढ़ावा देना है।

 

भारत में त्रि – भाषा सूत्र के कार्यान्वयन में उत्पन्न होने वाली समस्याएँ : 

  • तमिलनाडु, पुडुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य अपने स्कूलों में हिंदी सिखाने के लिये तैयार नहीं हैं। और न ही किसी हिंदी भाषी राज्य ने अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा को शामिल किया है।
  • भारत में राज्य सरकारों के पास त्रि-स्तरीय भाषाई फॉर्मूले को लागू करने के लिए अक्सर पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं होते हैं। संसाधनों की अपर्याप्तता भी भारत में स्कूली स्तर पर त्रि – भाषा सूत्र को लागू करने में एक महत्वपूर्ण बाधात्मक पहलू है।

भारतीय संविधान में भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान : 

 

 

 

  • भाषा और संस्कृति का आपस में गहरा और पूरक संबंध होता  है क्योंकि भाषा और संस्कृति एक दूसरे के परस्पर विरोधी नहीं बल्कि दोनों ही लोगो के आपसी पहचान से जुड़े होते हैं।
  • भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची भारत की भाषा के प्रावधानों से  संबंधित है। 
  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
  • भारत में शिक्षा राज्य सूची का विषय है। अतः स्कूली स्तर पर शिक्षा के लिए नीति – निर्माण करने का अधिकार भारत के राज्यों के पास है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 में यह कहा गया है कि- भारत में किसी भी व्यक्ति के धर्म, नस्ल, जाति, भाषा या उनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • इस अनुच्छेद में कहा गया है कि – “ नागरिकों के किसी भी वर्ग “जिसकी स्वयं की विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है” को उसका संरक्षण करने का अधिकार होगा।”
  • अनुच्छेद 343 : भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद भारत संघ की आधिकारिक भाषा से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अनुसार, हिंदी देवनागरी लिपि में होनी चाहिए  और अंकों के संदर्भ में भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का अनुसरण किया जाना चाहिये। इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान को अपनाए जाने के शुरुआती 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी का आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग जारी रहेगा।
  • अनुच्छेद 346 :  यह अनुच्छेद भारत में राज्यों और संघ एवं राज्य के बीच संचार हेतु आधिकारिक भाषा के विषय में प्रबंध करता है। अनुच्छेद के अनुसार, उक्त कार्य के लिये “अधिकृत” भाषा का उपयोग किया जाएगा। हालाँकि यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि उनके मध्य संचार की भाषा हिंदी होगी, तो आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 347: किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में एक भाषा को चुनने की शक्ति प्रदान करता है, यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
  • अनुच्छेद 350 (A)इस अनुच्छेद के तहत यह प्रावधान है कि यह प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 350 (B) : यह अनुच्छेद भारत में भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए नियुक्त होने वाले उस विशेष अधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जायेगा। यह भाषाई अल्पसंख्यकों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा तथा वह अपना रिपोर्ट सीधे भारत के राष्ट्रपति को  सौंपेगा। भारत के राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है या उसे संबंधित राज्य/राज्यों की सरकारों को भेज सकता है।
  • अनुच्छेद 351 : भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद के तहत केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता  है।

 

विश्व में सर्वाधिक लुप्तप्राय भाषाएँ : 

  • कोई भी भाषा या बोली विलुप्त होने से पहले वह कई चरणों से गुजरती हैं। इनमें से पहला चरण संभवतः खतरे में है, जो तब होता है जब एक बाहरी भाषा व्यवसाय और शिक्षा की प्रमुख भाषा बन जाती है जबकि संभावित खतरे वाली भाषा घर पर वयस्कों और बच्चों दोनों द्वारा बोली जाती रहती है। जैसे-जैसे प्रमुख भाषा संभावित खतरे वाली भाषा को कम से कम उपयोगी बनाती जाती है, भाषा लुप्तप्राय स्थिति में चली जाती है। 

 

भाषा के संदर्भ में कोई भी भाषा विलुप्तिकरण से पहले वह निम्नलिखित चरणों से गुजरती हैं: 

 

  1. गंभीर रूप से संकटग्रस्त भाषा ,
  2. मरणासन्न भाषा,  
  3. विलुप्त भाषा।
  • विश्व की खतरे में भाषाओं के यूनेस्को एटलस के अनुसार, वर्तमान में 577 भाषाएँ गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध हैं। इस वर्गीकरण का अर्थ यह है कि उस भाषा में सबसे पुरानी जीवित पीढ़ी में केवल कुछ ही लोग हैं जो उस भाषा को बोल  या समझ सकते हैं और इनमें से कई व्यक्ति पूरी तरह से उस भाषा में धाराप्रवाह बोलने की स्थिति में भी नहीं हैं।
  • विश्व की करीब 537 भाषाओं को गंभीर रूप से लुप्तप्राय माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इसका उपयोग केवल सबसे पुरानी जीवित पीढ़ी द्वारा किया जाता है।
  • इन 577 गंभीर रूप से लुप्तप्राय भाषाओं में से, कई भाषाओं में केवल 1 वक्ता ही जीवित बचा है और कई भाषा तो बहुत वर्ष पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। 
  • इनमें से कुछ सबसे आलोचनात्मक भाषाओं में शामिल हैं –  यामाना (चिली में बोली जाने वाली), ताजे (इंडोनेशिया में बोली जाने वाली), पेमोनो (वेनेजुएला में बोली जाने वाली), लाउआ (पापुआ न्यू गिनी में बोली जाने वाली), कुलोन-पाज़ेह (ताइवान में बोली जाने वाली), कैक्साना (ब्राजील में बोली जाने वाली), डायहोई (ब्राजील में बोली जाने वाली), डंपेलस (इंडोनेशिया में बोली जाने वाली), बिक्या (कैमरून में बोली जाने वाली), और अपियाका (ब्राजील में बोली जाने वाली)। इन भाषाओं के अकेले शेष वक्ता को, कई मामलों में, कई वर्षों से नहीं सुना गया है। 
  • वास्तव में, कुछ भाषाविदों का मानना ​​है कि इनमें से अधिकांश भाषाएँ तो बहुत वर्ष पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, केवल कुलोन-पज़ेह को छोड़कर, जो अभी भी एक छोटी आबादी द्वारा दूसरी भाषा के रूप में बोली जाती है।

 

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

 

 

  • भारत की शिक्षा व्यवस्था या शिक्षण प्रणाली  में यदि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के त्रिभाषा सूत्र के पूरी तरह लागू होने पर हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को समृद्ध होने का मिलेगा अवसर मिलेगा एवं भारत में बहुभाषावाद एवं सांस्कृतिक सद्भाव में वृद्धि होगी।
  • भाषा के विलुप्तिकरण के संदर्भ में त्रि – भाषा सूत्र से देश की एकता एवं अखंडता को सुनिश्चित किया जा सकता है और  देश के विभिन्न भागों में जनता में संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के साथ – ही साथ अन्य भारतीय भाषाओं का भी विकास होगा। 
  • त्रि – भाषा सूत्र में हिन्दी भाषी एवं अहिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी भाषा के अध्ययन की भी व्यवस्था की गयी है। हम सभी जानते हैं कि आज उच्च शिक्षा में ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में अंग्रेजी भाषा का ही प्रभुत्व है एवं हिन्दी सहित एवं अन्य भारतीय भाषाओं में अभी भी इसका अभाव है। 
  • अतः त्रि – भाषा सूत्र के द्वारा उच्च शिक्षा में ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं के विषयों को भारतीय भाषाओँ में अनुवादित कर  छात्रों को उनकी मातृभाषा में या उस राज्य से संबंधित क्षेत्रीय भाषाओँ में या हिंदी भाषा में भी शिक्षा प्रदान की जा सकती है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मध्य प्रदेश में डॉक्टरी की पढाई की भाषा के रूप में हिंदी भाषा का उपयोग होना है । 
  • वैश्वीकरण के दौर में हिंदी भाषा या अन्य भारतीय भाषा को भी विधि या कानून से संबंधित या विज्ञान और प्रद्यौगिकी से संबंधित शब्दों को मूल शब्द के रूप में ही शामिल कर लेना चाहिए ताकि वह भाषा और समृद्ध हो सके।
  • कोई भी भाषा अगर लोक अर्थात लोक जीवन में बोली जाती है या स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग की जाती है तो वह भाषा या बोली सदैव जीवित रहेगी अन्यथा उस भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है या विलुप्त हो सकता है क्योंकि लोक संवेदना के चिन्तक कबीर ने भी कहा है कि –  “ संसकिरत है कूप जल , भाखा बहता नीर।”  अतः भाषाई सत्ता के विरोध में उलझाने के बजाए हमें लोकभाषा के शब्दों को ज्यों का त्यों रूप में स्वीकार कर भारतीय भाषा में शामिल कर लेना चाहिए ताकि वह और अधिक समृद्ध और लोकोपयोगी बन सके और उसका अस्तित्व भी बचा रह सके।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भाषा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची भाषा से संबंधित है जिसमें कुल 24 आधिकारिक भाषाओँ का जिक्र है।
  2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
  3. भारत में शिक्षण संसाधनों की अपर्याप्तता भी स्कूली स्तर पर त्रि – भाषा सूत्र को लागू करने में एक महत्वपूर्ण बाधात्मक पहलू है।
  4. भाषा और संस्कृति का आपस में कोई संबंध नहीं है क्योंकि भाषा और संस्कृति एक दूसरे के परस्पर विरोधी होते हैं।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A)  केवल 1 और 3 

(B) केवल 2 और 4 

(C) केवल 1 और 4 

(D) केवल 2 और 3 

 

उत्तर – (D) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. त्रि – भाषा सूत्र से आप क्या समझते हैं ? तर्कसंगत चर्चा कीजिए कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के तहत त्रि – भाषा सूत्र किस प्रकार भारत की एकता , अखंडता और सांस्कृतिक पहचानों को एक सूत्र में बांधकर भारत के लोकतंत्र को मजबूत करता है ?

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