29 Dec वीर बाल दिवस
वीर बाल दिवस
संदर्भ- हाल ही में गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों की शहादत को याद करते हुए वीर बाल दिवस मनाया गया। इस दिन गुरू के पुत्रों के त्याग और बलिदान को याद किया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह और उनके पुत्र-
- गुरु गोविंद सिंह को सिख पंथ के दसवे गुरु के रूप में जाना जाता है।
- गुरु गोविंद सिंह एक महान चिंतक, आध्यात्मिक गुरु व एक योद्धा थे।
- वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की।
- इनका जन्म गुरु तेग बहादुर व माता गुजरी के घर में हुआ। अतः गुरु की गद्दी इन्हें विरासत में मिली थी।
- गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब का पुनः संकलन किया तथा उन्हें गुरु रूप में प्रतिष्ठित किया।
- गुरु गोविंद साहिब के चार पुत्र थे- जुझारु सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह, अजित सिंह। प्रारंभिक तीन पुत्र उनकी पत्नी जीतो और अजित सिंह गोविंद सिंह जी की दूसरी पत्नी सुंदरी के पुत्र थे।
वीर बाल दिवस
- वीर बाल दिवस गोविंद सिंह जी के बच्चों व मां द्वारा किए गए सर्वोच्च बलिदान को चिह्नित करता है।
- शहीदी जोर मेला या शहीदी सभा फतेहगढ़ साहिब में मनाय़ा जाता है।
- केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार प्रति वर्ष 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के छोटे बेटों (जोरावर सिंह, फतेह सिंह) व मां के शहादत को याद करने के लिए वीर बाल दिवस मनाया जाएगा।
शहादत घटनाक्रम (आनंदपुर का युद्ध)
मुगलों की सेना व वर्तमान हिमांचल के पहाड़ी राजाओं द्वारा आनंदपुर साहिब पर हमले के कारण गुरु गोविंद सिंह के पुत्र व मां शहादत को प्राप्त हुई।
आनंदपुर के युद्ध की पृष्ठभूमि- पहाड़ी क्षेत्रों में गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर रहे थे, जैसे अपनी सेना को सुदृढ़ करना, खालसा पंथ की स्थापना करना आदि। इसे मुगल साम्राज्य व अन्य पहाड़ी राज्य अपनी स्थिति के लिए एक खतरे की तरह देख रहे थे। जिसके कारण पहाड़ी राजाओं के साथ गुरु गोविंद सिंह जी का युद्ध होता रहता था।
बारंबार युद्धों के चलते मुगलों व पहाड़ीराजाओं ने गुरु गोविंद सिंह को एक प्रस्ताव दिया कि यदि वे आनंदपुर छोड़ दें तो आगामी युद्ध नहीं होंगें। प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए गुरू ने 20 दिसंबर को आनंदपुर छोड़ दिया। विरोधिय़ों ने प्रस्ताव या शपथपत्र का स्वयं ही पालन नहीं किया और गुरु गोविंद सिंह जी पर सरसा नदी के तट पर आक्रमण कर दिया।
सरसा या सिरसा नदी में बाढ़ आ गई और कई सिक्ख सैनिक बाढ़ में बह गए। और गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार बिछड़ गया, इसी स्थल को आज विछोरा साहिब के रूप में जाना जाता है। उनकी पत्नी साहिब कौर व साथी मणि सिंह मालवा की ओऱ चल दिए। गुरु व उनके दो पुत्र अजित सिंह व जुझारु सिंह चमकौर साहिब की ओर बढ़े। उनकी माता व दो छोटे पुत्र सरहंद की ओर बिखर गए।
गुरू गोविंद साहिब ने चमकौर साहिब में चमकौर का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा। साहिबजादे अजीत सिंह व जुझारू सिंह ने इस युद्ध में 22 दिसंबर 1704 को अपने प्राणों की आहुति दे दी।
गुरू गोविंद साहिब की माता अपने पोतों के साथ ग्राम खीरी में स्थानीय निवासी गंगू के घर में आश्रित ली हुई थी। तत्कालीन मुगल गवर्नर द्वारा घोषित इनाम के कारण गंगू ने गुजरी कौर को सरहिंद के नवाब वजीर खां को सौंप दिया। परिणाम स्वरूप गुजरी देवी, जोरावर सिंह व फतेह सिंह को ठण्डा बुर्ज में कैद कर लिया।
फतेह सिंह व जोरावर सिंह जो क्रमशः 7 व 9 वर्ष के थे को दरबार में कई तरह के लालच देकर इस्लाम में परिवर्तित होने को कहा गया। साहिबजादों ने धर्म परिवर्तन व आत्मसमर्पण दोनों से इंकार कर दिया। वजीर खां ने उन्हें 26 दिसंबर 1704 जिंदा दीवार पर को चिनवा दिया, इसकी खबर सुनकर गुजरी देवी की भी मृत्यु हो गई। कुछ वर्षों के बाद गुरु गद्दी के संरक्षक बंदा बहादुर ने सरहिंद पर अधिकार कर साहिबजादों की मृत्यु का बदला लिया।
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