शिंजो आबे की विरासत : घरेलू नीतियां और भारत-जापान संबंध

शिंजो आबे की विरासत : घरेलू नीतियां और भारत-जापान संबंध

संदर्भ क्या है?

  • जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे शिंजो आबे  की 8 जुलाई 2022 को पश्चिमी जापान के नारा शहर में चुनावी सभा के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई। तेत्सुया यामागामी नामक हमलावर ने पीछे से उन पर दो गोलियां दागीं। दूसरी गोली लगने के बाद आबे गिर गए और गर्दन से खून निकलने लगा। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ छह घंटे बाद उनके निधन की सूचना दी गई। हमलावर नौसेना कर्मी रह चुका है। उसने कहा है कि वह आबे की नीतियों से असंतुष्ट था। घटना के बाद जापान के सभी दलों ने उच्च सदन के लिए चल रहा चुनाव प्रचार रद्द कर दिया।
  • जापान के पूर्व प्रधान मंत्री शिंजो आबे के लिए गहरे सम्मान को दर्शाते हुए भारत में शनिवार 9 जुलाई 2022 को एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘प्रिय मित्र शिंजो आबे के निधन से स्तब्ध और दुखी हूं। वे उत्कृष्ट नेता और अद्भुत प्रशासक थे।‘

शिंजो आबे:परिचय

  • शिंजो आबे 2012 और 2020 के बीच आठ वर्ष तक और उससे पहले 2006 से 2007 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे। उन्होंने ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए अगस्त 2020 में अपने इस्तीफे की घोषणा की थी। उनके बाद उन्ही के दल लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के नेता योशीहिदे सुगा ने उनका स्थान ग्रहण किया , जिनके बाद फुमियो किशिदा प्रधानमंत्री बने।
  • 28 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देते समय जापानी जनता से क्षमा मांगी थी कि वह अपने कार्यकाल का एक वर्ष शेष रहते हुए पद त्याग कर रहे हैं, जबकि अभी कई योजनाएं प्रभाव में आने की प्रक्रिया में हैं।
  • शिंजो अबे के नेतृत्व में जापान ने घरेलू और विदेश नीति दोनों में रूपान्तरण किया, इसके बावजूद उन्होंने माना कि वह अपने कुछ सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाए, जैसे कि दशकों पहले उत्तर कोरिया द्वारा अपहृत जापानी नागरिकों की रिहाई के लिए उत्तर कोरिया से वार्ता, रूस के साथ सीमा विवाद को सुलझाना और सबसे बढ़कर, सेना को अधिक शक्ति देने के लिए युद्ध के बाद के संविधान में संशोधन करना। हालांकि ऐसे बड़े लक्ष्यों की पूर्ति करने में सफलता न मिलने के बावजूद उन्हें देश का कायाकल्प करने में सफलता अवश्य मिली और वह घरेलू और विदेशी मोर्चे पर शानदार विरासत अपने छोड़ गए।

भारत के साथ संबंध

  • शिंजो आबे का भारत से गहरा आत्मीय संबंध रहा है। जापान के महान नेता, विश्व के एक बड़े राजनीतिज्ञ और भारत-जापान मैत्री के प्रबल समर्थक शिंजो आबे कि कमी हमेशा महसूस की जाएगी । भारत जापान संबंधों के लिए उनके योगदान के लिए ही 2021 में उन्हें प्रतिष्ठित पद्मविभूषण सम्मान दिया गया था।
  • विश्व में हो रहे बदलावों को आबे समय से पहले ही पहचान लेते थे और अपने नेतृत्व को उसके अनुकूल बना लेते थे। शिंजो आबे अगस्त 2007 में भारत-प्रशांत दृष्टि को स्पष्ट करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय संसद में “दो समुद्रों का संगम (Confluence of the Two Seas)” भाषण दिया था। इसके अंतर्गत उन्होंने तब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के उभार की नींव रख दी थी। वे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को एक समकालीन राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक वास्तविकता बनाना चाहते थे, उनका यही विचार आधार स्तंभ बन गया है।
  • ये आबे ही थे, जिन्होंने आगे बढ़कर मोर्चा सम्भाला और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के स्थिर,सुरक्षित, शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य के शिल्पी बने। भारत के प्रति उनकी आत्मीयता और भारत-जापान संबंधों के लिए उनका दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत के उनके दृष्टिकोण का केंद्र रहा है। अतः भारत के लिए, शिंजो आबे एक बहुत ही विशेष जापानी नेता के रूप में याद किये जायेंगे।
  • शिंजो आबे 2014 में 65वें गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बनने वाले जापान के प्रथम प्रधानमंत्री बने। सितंबर 2014 में, भारत और जापान ने द्विपक्षीय संबंधों को “विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी” में अद्यतन  करने के लिए सहमति व्यक्त की।
  • यही नहीं 2015 में आबे प्रधानमंत्री मोदी के साथ अहमदाबाद और वाराणसी गए। उन्होंने वाराणसी में गंगा आरती में भागीदारी की थी। भारत के पहले बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर 2015 में आबे के प्रधानमंत्री रहते सहमति बनी।
  • प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो आबे 2007, 2014, 2015 और 2017 में भारत आए। पहली बार भारत आने पर संसद को संबोधित किया तब भारत-जापान के संबंधों को इतिहास से जोड़ते हुए मुगल शासक दारा शिकोह का उल्लेख किया था।
  • शिंजो आबे के नेतृत्व में द्विपक्षीय संबंधों में आखिरी बाधाओं में से एक, भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता देने, से निपटा गया, जब दोनों देशों ने अंततः 2016 में असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने का निर्णय किया।
  • चीनी आक्रमण के बारे में बढ़ती चिंताओं के परिणामस्वरूप भारत और जापान ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को पुन: मजबूत किया है। दोनों देशों ने भारत के पूर्वोत्तर और व्यापक दक्षिण एशिया में संयुक्त परियोजनाओं को शुरू करने, 2017 में QUAD को पुनः मजबूत करने के लिए और एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर जैसी संयुक्त कनेक्टिविटी परियोजनाओं को और अधिक महत्वाकांक्षी बनाने कि लिए प्रयास किये हैं।
  • भारत ने पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में अपने पदचिह्न का विस्तार किया है, उसे इसमें जापान से समर्थन मिला है, जो चीन के साथ अपने सीमा विवादों पर भारत की स्थिति के समर्थन में भी स्पस्ट और दृढ़ रहा है। यह आबे का नेतृत्व था जिसने जापान को भारत के साथ अपने संबंधों के दायरे का विस्तार करने में महत्वपूर्ण दिशा प्रदान की।
  • वे भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प थे, यह उनके देश के लिए कठिन निर्णय था। यही नहीं वे भारत में हाई स्पीड रेल के लिए सबसे उदार शर्तों की पेशकश करने में निर्णायक रहे। उन्होंने सुनिश्चित किया कि न्यू इंडिया विकास की गति तेज करता है, तो जापान साथ-साथ मौजूद रहेगा।
  • शिंजो आबे ने भारत-जापान संबंधों को एक विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी के स्तर तक पहुँचाने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
  • आबे ने हाल ही में कहा था कि वे अब प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते, बल्कि भारत-जापान के संबंधों को मजबूत करने पर काम करना चाहते हैं।

घरेलू कदम

  • बदलावों के प्रति शिनो अबे की एक गहरी अंतर्दृष्टि थी। उनका विजन समय से आगे का था और वे राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय संबंधोंपर उसका प्रभाव देखते थे। वे स्पष्ट और साहसी निर्णय लेने में सक्षम थे। उनमें अपने लोगों के साथ ही विश्व को भी अपने साथ ले चलने की दुर्लभ क्षमता थी। सीमित और मामूली बदलाव करने वाले देश के रूप में पहचान बना चुके जापान में शिंजो अबे शुरू से ही यथास्थितिवाद से मुक्ति पाना चाहते थे। शिंजो आबे ने जापान की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का वादा किया था। उसी के तहत वे सुधारों की श्रंखला लेकर आये, जिसे आबेनोमिक्स‘ नाम से जाना जाता है। उनकी दूरदर्शी नीतियों विशेषकर आबेनोमिक्स ने जापान की अर्थव्यवस्था में नयी ऊर्जा का संचार किया और नवाचार व उद्यमशीलता की भावना को प्रेरित किया।
  • जापान चरणबद्ध परिवर्तनों को प्राथमिकता देने के लिए जाना जाता है, लेकिन आबे शुरू से ही यथास्थिति को बदलने के इच्छुक थे। आर्थिक मोर्चे पर, ‘आबेनोमिक्स’ की उनकी रणनीति, जो मात्रात्मक सहजता, राजकोषीय खर्च और संरचनात्मक सुधारों के मिश्रण पर आधारित थी, ने कम से कम शुरू में एक स्थिर आर्थिक परिदृश्य में विकास को गतिशीलता देने का कार्य किया। यह अवधारणा नरम ब्याज दरों, सरकारी खर्च और ढांचागत सुधारों पर आधारित थी। इसने स्थिरता की शिकार अर्थव्यवस्था को नई गति प्रदान की। कोविड महामारी से पहले अबे के दौर में ही जापानी अर्थव्यवस्था ने तेजी का सबसे लंबा दौर देखा।
  • कोविड -19 के प्रभाव से पहले ही जापान ने आबे के कार्यकाल के अंतर्गत अपनी सबसे लंबी आर्थिक विस्तारवादी पहल देखी, लेकिन आबे ने कुछ ऐसा करने का प्रयास किया जिसे जापानी रूढ़िवादी नेतृत्व ने प्राप्त करने का कभी सोचा भी नहीं था। शिंजो अबे ने घरेलू और बाहरी मोर्चे पर ऐसे अनेक प्रयास किए, जिन्हें करने का साहस उनके पहले किसी जापानी नेता ने नहीं दिखाया।
  • उन्होंने संशोधित प्रवासन और जेण्डर/ लैंगिक नीतियों को बदलकर जापान की सिकुड़ती श्रम शक्ति के मुद्दे को हल करने का प्रयास किया। महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ाने के प्रयास में, आबे की वोमेनिक्स’ नीति ने कंपनियों को विशेष सरकारी नीतियों की मदद से महिलाओं की भर्ती बढ़ाने के लिए प्रेरित किया, जैसे कि महिलाओं को काम पर रखने वाली कंपनियों को पुरस्कृत करना आदि। हो सकता है कि इसने जापान में महिलाओं के लिए रोजगार के परिदृश्य को पूरी तरह से नहीं बदला हो, लेकिन इसने जापानी कॉर्पोरेट क्षेत्र को अपनी गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रहों का सामना करने के लिए प्रेरित किया।
  • जापान की सुरक्षा नीति पर आबे की छाप उतनी ही महत्वपूर्ण है। उनकी सरकार ने जापानी सैनिकों को विदेश में लड़ने की अनुमति देने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार संविधान की पुनर्व्याख्या की, साथ ही यदि मित्र देश पर आक्रमण होता है तो उसकी रक्षा के अधिकार के प्रयोग करने पर पहले से जारी प्रतिबंध को रद्द कर दिया। वे दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू संविधान की पाबंदियों या सीमाओं को कम करने को लेकर लगातार कार्य करते रहे हैं । इसी के बाद वे अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में भी उभरे।
  • वैश्विक सुरक्षा संरचना में जापान की भूमिका एक ऐसे बिंदु तक विकसित हुई है जहां यूनाइटेड किंगडम, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के बीच फाइव आईज इंटेलिजेंस साझेदारी में संभावित रूप से शामिल होने के बारे में चर्चा चल रही है।

शिंजो अबे की हत्या ने जापान में सुरक्षा परिद्रश्य के समक्ष कई प्रश्न उत्पन्न कर उसे ऐतिहासिक प्रतिबद्धताओं का मूल्यांकन करने के लिए विवश किया है। शिंजो अबे की कमी न केवल जापान की घरेलू राजनीति और अर्थव्यवस्था में महसूस की जाएगी बल्कि भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों में भी देखी जाएगी।

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