सम्प्रभुता

सम्प्रभुता

सम्प्रभुता

संदर्भ- हाल ही में कर्नाटक चुनाव प्रचार में कांग्रेस के बयान में आए सम्प्रभुता शब्द की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्याख्या की। उनके अनुसार स्वतंत्र देश को सम्प्रभु देश कहा जाता है। उन्होंने कहा कांग्रेस के बयान में कर्नाटक की सम्प्रभुता की रक्षा करने की बात कही गई है, क्या कांग्रेस कर्नाटक को भारत से अलग मानती है?

वास्तव में कांग्रेस ने सम्प्रभु शब्द का प्रयोग नहीं किया था। इन बयानों के कारण सम्प्रभुता शब्द चर्चा का विषय बना हुआ है।

सम्प्रभुता- 

  • सम्प्रभुता शब्द latin sovereignty के sovereign से उत्पन्न हुआ है, जिसे सर्वोच्च से परिभाषित किया जा सकता है। सामान्य तौर पर सम्प्रभुता(sovereignty) का अर्थ सर्वोच्च शक्ति है। 
  • सम्प्रभुता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जीन बोदां के द्वारा Six book of concerning republic में किया था। 
  • सम्प्रभुता केवल एक परिभाषित क्षेत्र पर सर्वोच्च अधिकार रखने का विचार है।
  • संप्रभुता एक परिभाषित क्षेत्र पर सर्वोच्च अधिकार रखने का विचार है। 17वीं शताब्दी के बाद से, पश्चिमी दार्शनिकों ने राज्य की सर्वोच्चता का वर्णन करने के लिए इस अवधारणा का उपयोग किया। इसके संस्थानों जैसे कि सरकार, न्यायपालिका और संसद के साथ-साथ लोगों पर शासन किया जाता है।

सम्प्रभुता की परिभाषा – विभिन्न विचारकों के अनुसार सम्प्रभुता की भिन्न भिन्न परिभाषाएं दी गई हैं

  • ह्यूगो ग्रोटियस  – “संप्रभुता उसके पास निहित सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति है, जिसके कार्य किसी अन्य के अधीन नहीं हैं और जिसकी इच्छा की अवहेलना नहीं की जा सकती है।”
  • जेडब्ल्यू बर्गेस-  “व्यक्तिगत विषय और विषय के अन्य सभी संघों पर मूल, पूर्ण और असीमित शक्ति के रूप में परिभाषित किया है। यह आज्ञाकारिता को आदेश देने और बाध्य करने की एक अव्युत्पन्न और स्वतंत्र शक्ति है।”
  • डब्ल्यूडब्ल्यू विलोबी के लिए, “संप्रभुता राज्य की सर्वोच्च इच्छा है। “
  • वुडरो विल्सन के अनुसार, “संप्रभुता कानूनों को बनाने और कानूनों के प्रभाव को बनाए रखने की दैनिक क्रियात्मक शक्ति है।”

सम्प्रभुता के दो भाग हैं, आंतरिक समप्रभुता व बाहरी सम्प्रभुता।

आंतरिक समप्रभुता – 

  • आंतरिक समप्रभुता की अवधारणा को फ्रांसीसी लेखक जीन बोडिन ने पेश किया था।
  • आंतरिक संप्रभुता राज्य की पूर्ण और अंतिम शक्ति को संदर्भित करती है।
  • यह राज्य के क्षेत्र के भीतर सभी नागरिकों, संगठनों और संघों पर सर्वोच्च नियंत्रण रखने की अनुमति देता है।
  • राज्य, कानून की स्थापना कर कानून को लागू कर सकता है और जिसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करके नियंत्रित कर सकता है।
  • आंतरिक संप्रभुता, राज्य के आंतरिक मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार राज्यों को देती है।

बाह्य सम्प्रभुता

  • बाहरी सम्प्रभुता के सिद्धांत को ह्यूगो ग्रोटियस द्वारा पेश किया गया था, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय कानून के जनक के रूप में जाना जाता है। बाहरी संप्रभुता का अर्थ है सभी राज्यों की “संप्रभु समानता” ।
  • बाह्य शब्द का अर्थ सभी राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समान दर्जे में निहित है और कोई भी राज्य किसी अन्य राज्य पर नियंत्रण या अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है।
  • बाहरी संप्रभुता में, किसी भी राज्य के पास युद्ध और शांति की घोषणा जैसे सभी आंतरिक मामलों पर पूर्ण विवेकाधिकार हो सकता है।
  • कोई भी राज्य अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करने के लिए स्वतंत्र है।
  • बाहरी संप्रभुता में एक राज्य, दूसरे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

सम्प्रभुता के लक्षण

  • मौलिकता- यह राज्य की मूल शक्ति है, कोई भी आंतरिक या बाहरी संगठन राज्य को अपनी संप्रभुता नहीं सौंप सकता। कोई भी राज्य अपनी सम्प्रभुता को किसी अन्य राज्य को नहीं सौंप सकता। 
  • स्थायित्व- जब तक राज्य विद्यमान है तब तक राज्य की सम्प्रभुता बनी रहेगी। अतः राज्य की सम्प्रभुता स्थायी होती है। 
  • अद्वैत- राज्य के भीतर दो सम्प्रभुता नहीं हो सकती।

भारतीय संविधान में सम्प्रभुता

भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है जो संविधान का लघु रूप है। प्रस्तावना में सम्प्रभु शब्द का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि भारत एक सम्प्रभु राष्ट्र है।

महान न्यायविद दुर्गा दास बसु ने लिखा है कि भारतीय संविधान में ‘संप्रभुता’ शब्द का प्रयोग “भारत के लोगों की परम संप्रभुता की घोषणा करने के लिए किया गया है और यह कि संविधान उनके अधिकार पर टिका है ”।

मौलिक कर्तव्यों के तहत संविधान में संप्रभुता का उल्लेख किया गया है, जिसका पालन सभी भारतीय नागरिकों द्वारा किया जाना है लेकिन कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 51ए (सी) में कहा गया है कि “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना” सभी नागरिकों का कर्तव्य है।

शपथपत्र- तीसरी अनुसूची के तहत मुख्य न्यायाधीशों, केंद्रीय मंत्रियों और संसद सदस्यों जैसे पदों के लिए ली गई शपथ में भी इसका उल्लेख है: “…मैं कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखूंगा, कि मैं संप्रभुता को बनाए रखूंगा और भारत की अखंडता…”

भारतीय सम्प्रभुता की व्याख्या है-

  • भारत देश न तो किसी देश का डोमिनियन है और न ही किसी देश पर निर्भर है। 
  • भारत अपने आंतरिक व बाह्य मामलों से संबंधित निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। 
  • भारत राष्ट्रमण्डल का सदस्य होते हुए भी संवैधानिक दृष्टि से ब्रिटेन पर निर्भर नहीं है। 
  • भारत, देश की सीमा से संबंधित मामलों जैसे किसी देश द्वारा भारतीय सीमा के अधिग्रहण व किसी अन्य देश की सीमा पर भारत के अधिग्रहण जैसे मामलों के लिए किसी भी देश, राज्य या संगठन पर निर्भर नहीं है।

स्रोत

indianexpress.com

 

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