सागोल कांगजेई : मणिपुर का प्राचीन खेल

सागोल कांगजेई : मणिपुर का प्राचीन खेल

सागोल कांगजेई : मणिपुर का प्राचीन खेल

संदर्भ- हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में 122 फुट ऊँची घुड़सवार की प्रतिमा का अनावरण किया। इसके साथ ही इंफाल में 122 फीट मार्जिंग पोलो कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया। 

पोलो 

  • पोलो दो टीमों की 4 खिलाड़ियों के बीच घोड़े की पीठ पर बैठकर खेला जाने वाला खेल है।
  • इसके लिए खिलाड़ी, घोड़े, घास का मैंदान, दो गोल पोस्ट, एक लकड़ी की गेंद, लम्बे व लचीले हैंड़ल वाले मैलेट का उपयोग करते हैं।
  • यह घुड़सवारी के खेलों में सबसे प्राचीन है।

सागोल कांगचेई की ऐतिहासिकता

  • आधुनिक समय के पोलो की उत्पत्ति 3100 ई.पू. में छोटे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की मानी जाती है। जहाँ इसे सागोल कांगचेई के रूप में खेला जाता है।
  • सागोल का अर्थ होता है टट्टू या घोड़ा व कांगचेई का अर्थ होता है कंगबा की छड़ी।
  • मणिपुर में पोलो की उत्पत्ति चेंगलेई जनजाति के देवता मार्जिंग से जुड़ी हुई है, जिनके लिए प्राचीन पोलो के समान एक संरचना व एक गेंद आज भी पूजा में प्रयोग की जाती है।
  • मणिपुर के ऐतिहासिक ग्रंथ जैसे- थांगमेइरोल व कांगजेरोल में पोलो का जिक्र सागोल कांगचेई का जिक्र करते हैं। कांगजिरोल एक पाण्डुलिपि है, जिसके अनुसार राजा कांगपा ने सागोल कांगजेई की शुरुआत की थी। जो कि वर्तमान पोलो खेल है।
  • मणिपुर के शाही इतिहास चीथरोन कुम्पापा में भी पोलो खेल का वर्णन किया गया है। जो 33 ई. के समय को दर्शाता है। इसी ग्रंथ में दुनिया के सबसे प्राचीन पोलो ग्राउंड( इंफाल पोलो ग्राउंड) का उल्लेख है।
  • मणिपुरी पोलो की प्रत्येक टीम में 7 खिलाड़ी होते हैं।

भारतीय इतिहास में पोलो

  • मध्यकाल में भारत में मुस्लिम विजेताओं द्वारा खेले जाने पर इस खेल को प्रसिद्धि मिली। गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरने से हुई थी।
  •  मुगल वंश में इस खेल को चौगान कहा जाता था, इतिहास में बाबर को पोलो का एक महान खिलाड़ी माना जाता है। अकबर ने इस खेल के लिए एक नई नियमावली जारी की थी।
  • आधुनिक काल, जिसे ब्रिटिश काल भी कहा जाता है, में अंग्रेजों द्वारा सर्वप्रथम यह खेल असम के सिलचर में खेला गया। जहाँ 1859 में पहले यूरोपीय पोलो क्लब की स्थापना की गई। 
  • 1863 में इसके नियम निश्चित किए गए।

खेल में घोड़े का महत्व

  • मणिपुर में इसे मार्जिंग देवता का वाहन माना जाता है।
  • मणिपुर की पौराणिक कथाओं व संस्कृति में बसने के कारण मणिपुर के घोड़े को पूजनीय माना गया है।
  • खेल में घोड़े का सबसे अधिक महत्व होता है।
  • भारत में घोड़ों की 5 प्रमुख नस्लों में से मणिपुर का टट्टू शामिल है जो पारिस्थितिकी तंत्र का एक मुख्य भाग है।

मणिपुरी घोड़े के संरक्षण के प्रयास-

  • 1916 में मणिपुरी घोड़े के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था ताकि इनकी संख्या में सुधार आ सके।
  • 2013 में इसे लुप्तप्राय नस्ल का दर्जा दिया गया है।
  • मणिपुर संरक्षण व विकास नीति 2016।

वर्तमान स्थिति

  • 17वीं पंचवार्षिक पशुधन जनगणना 2003 में 1,898 मणिपुर टट्टू दर्ज किए गए थे; 
  • 2012 में 19वीं पंचवार्षिक पशुधन गणना में यह संख्या गिरकर 1,101 हो गई। 
  • 2014 में मणिपुरी पोनी सोसायटी के यादृच्छिक सर्वेक्षण के अनुसार इनकी संख्या 500 से भी कम है।
  • वर्तमान में शहरीकरण व प्राकृतिक स्थानों से घोड़ों को वंचित किए जाने के कारण ये सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक स्थलों की कमी के कारण ये शहरी स्थानों पर आ जाते हैं और भोजन के रूप में कचरे से अपना निर्वाह करते हैं, विषाक्त भोजन भी इनकी मौत का कारण बन जाता है। 

आगे की राह

  • प्राकृतिक आवास की व्यवस्था करना।
  • इनके प्राकृतिक चारागाहों की व्यवस्था करना।
  • आर्द्र भूमि का विकास।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

traditional Sports

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