सूडान गृहयुद्ध के प्रभाव

सूडान गृहयुद्ध के प्रभाव

सूडान गृहयुद्ध के प्रभाव

संदर्भ- सूडान में हो रहे गृहयुद्ध के कारण सूडान ने विदेशों के नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए मंजूरी दे दी है। सूडान में फंसे भारत के 3000 नागरिकों को निकालने के लिए भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन कावेरी शुरु किया गया है। जिसके लिए दो IAFC-130J जेद्दा, सऊदी अरब में प्रतीक्षा कर रहे हैं, और एक भारतीय नौसैनिक जहाज लाल सागर के सूडान पोर्ट पर पहुंच गया है।

भारत के साथ साथ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, रूस, दक्षिण कोरिया और कई अरब देश सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए प्रयासरत हैं।

गृहयुद्ध का तात्कालिक कारण-

सूडान गृहयुद्ध की शुरुआत सूडान आर्म्ड फोर्स्ड के प्रमुख अब्देल फतह अल बुरहान और अर्ध सैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेस के प्रमुख मोहम्मद हमदान दगालो (हेमेदती) के मध्य टकाराव के कारण प्रारंभ हुई है। यह दोनों ही अधिकारी पिछले गृहयुद्ध में एक साथ लड़े थे। 

सूडान

सूडान, अफ्रीका का सबसे विशाल देश है जिसकी सीमा मिस्र, लीबिया, चाड, केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिणी सूडान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, यूगांडा, इथिय़ोपिया, इरीट्रिया और लाल सागर से संलग्न रहती है। देश में दुनियां की सबसे लम्बी नदी, नील नदी है, जो अफ्रीका को पूर्व व पश्चिम में बांटती है। सूडान आर्थिक रूप से केवल कृषि व सोने पर निर्भर है, जिनका वर्तमान अर्थव्यवस्था में सीमित योगदान रह गया है। दक्षिणी सूडान के पास सारे कच्चे तेल के भण्डार चले जाने के बाद यह देश काफी गरीब श्रेणी में आ गया है। गृहयुद्ध इसकी आर्थिक स्थिति को और भी बरबाद कर रहे हैं। 

सूडान के गृहयुद्ध का प्रभाव, पड़ोसी देशों पर भी पड़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। जैसे-

चाड- चाड में वर्तमान स्थिति तख्तपलट, जिहादवाद, रूस जैसे देशों की बढ़ती गतिविधि के कारण चाड पहले से ही संवेदनशील है, और अब सूडान गृहयुद्ध के कारण शरणार्थी चाड की ओर बढ़ा रहे हैं। जिसके कारण चाड पर अतिरिक्त भार आने के साथ यह युद्ध की स्थिति उत्पन्न करने में सहायक हो सकता है। 2003 में एक विद्रोह के रूप में शुरू हुए दारफुर संकट की शुरुआत के बाद से 400,000 से अधिक सूडानी नागरिकों ने चाड में शरण ली थी।

दक्षिणी सूडान- 2011 के गृहयुद्ध के बाद से दक्षिणी सूडान की स्थिति भी स्थिर नहीं हो पाई है। दक्षिणी सूडान की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के निर्यात पर निर्भर करती है और यह निर्यात मार्ग सूडान से होकर जाता है, जिस कारण दक्षिणी सूडान को सूडान से मित्रता रखना आवश्यक है।युद्ध की परिस्थितियों में सूडान युद्ध से 10000 नागरिकों ने भागकर दक्षिणी सूडान में शरण ली है, दक्षिणी सूडान शरणार्थियों की व्यवस्था अपने हितों को बनाए रखने के लिए कर सकता है।

इथियोपिया- सूडान व इथियोपिया में सीमा विवाद की घटनाएं बनी रहती हैं ऐसे में इथियोपिया द्वारा 

सूडान गृहयुद्ध का लाभ उठाया जा सकता है। जिसके लिए विदेशी नागरिकों को देश से निकलने का मार्ग रोक रहा है जैसे हाल ही में नाइजीरिया के नागरिकों को सूडान सीमा से प्रवेश नहीं दिया गया। 

सूडान  में देशों की भागीदारी- सूडान की लाल सागर पर रणनीतिक स्थिति, नील नदी, सोने के विशाल भंडार, कृषि हेतु विशाल क्षेत्र और तीसरा सबसे बड़ा अफ्रीकी देश होने के कारण लंबे समय से बाहरी शक्तियों द्वारा प्रतिष्ठित रहा है, जिसमें उसके पड़ोसी, खाड़ी देश, रूस और अफ्रीकी देश शामिल हैं। 

संयुक्त अरब अमीरात(UAE)- दक्षिण सूडान और सूडान के विभाजित होने के बाद दक्षिणी सूडान ने खार्तूम के 75 प्रतिशत तेल संसाधनों को हस्तगत कर लिया। जिसस कारण सूडान की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई अर्थव्यवस्था की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सूडान ने विदेशी निवेशकों को आमंत्रित किया और उनमें से एक यूएई भी था। 

यूएई ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अपने प्रभाव का विस्तार करने के अवसर का भी उपयोग किया। इसने आरएसएफ प्रमुख दगालो के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए, जिन्होंने यमन में ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में अमीरात और सऊदी अरब की सहायता के लिए अपने हजारों लोगों की आपूर्ति की। इसके बदले में, दगालो को बड़ी रकम मिली, जिसने उसे अपने अर्धसैनिक बलों को पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बनाने में मदद की। जो सूडान की सेना और आरएसएफ के बीच विवाद का कारण बन गया।

रूस- रूस के लिए, सूडान रुचि का विषय रहा है। क्रेमलिन(सामंतवादी दुर्गों का काल) वर्षों से एक नौसैनिक अड्डे का निर्माण करना चाहता है, जो पोर्ट सूडान में 300 सैनिकों और चार जहाजों की मेजबानी करने में सक्षम होने के साथ ही दुनिया के सबसे व्यस्त और सबसे विवादित समुद्री मार्गों में से एक का नेतृत्व करता हो। 

इजराइल – इजराइल अपने कट्टर दुश्मन ईरान के खिलाफ एक राजनीतिक और सैन्य मोर्चा बनाने के लिए अन्य अरब और मुस्लिम राष्ट्रों को प्रोत्साहित करने के अपने प्रयासों में सूडान से समर्थन चाहता है। नतीजतन, 2020 में, दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य करने पर सहमति व्यक्त की और तीन साल बाद आधिकारिक तौर पर राजनयिक संबंध स्थापित किए।

पश्चिमी देशों – जब 2019 में बशीर को उनके खिलाफ एक महीने के विद्रोह के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया था, संयुक्त राज्य अमेरिका सहित पश्चिम ने सर्वसम्मति से जश्न मनाया। इसने आशा व्यक्त की कि विकास न केवल देश के लोकतंत्र में परिवर्तन को बढ़ावा देगा बल्कि इस क्षेत्र में रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव को भी कम करेगा।

किंतु वर्तमान गृहयुद्ध की स्थिति के कारण सुडान में देश के नागरिकों की असुरक्षा के कारण कनाडा ने सुडान से कांसुलर सेवाओं को निलंबित कर दिया। 

भारत

सूडान के पूर्व में हो चुके गृहयुद्धों में भारत तटस्थ रहा है। सूडान में प्रथम गृहयुद्ध 1962-72 के मध्य और द्वितीय गृहयुद्ध 1983-2005 के मध्य हुआ था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सूडान की आलोचना करने के खिलाफ मतदान किया। और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सूडान को वापसी के प्रयासों का भी विरोध किया। 

भारत कृषि, जल विद्युत परियोजना और चीनी उद्योग के लिए सूडान की सहायता करता आया है। इसके साथ ही सूडान के छात्र, भारत के तकनीकि व सांस्कृतिक विश्वविद्यालयों में छात्रवृत्ति पाने के पात्र हैं। वर्तमान गृहयुद्ध की समस्या में भारतीय नागरिकों को वहां से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन कावेरी जारी किया है। 

ऑपरेशन कावेरी का उद्देश्य भारतीय नागरिकों को सुरक्षित सूडान से निकालना है। इस मिशन का नाम नदी के नाम पर रखने का मूल अर्थ भारतीय सभ्यता के अनुरूप है। जिसमें नदी को मां का स्थान दिया गया है जिसका प्रथम लक्ष्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है। इसी तर्ज पर यूक्रेन में फंसे नागरिकों हेतु मिशन गंगा जारी किया गया था।

कावेरी नदी-

  • भारत के कर्नाटक व तमिलनाडु में प्रवाहित होती है, जिसका उद्गम स्थल पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत है। इसके जल के लिए दोनों राज्यों में विवाद रहता है। 
  • दक्षिण पूर्व में प्रवाहित होते हुए यह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसके प्रवाह मार्ग में कई उपनदियां इसमें समाहित होती हैं जैसे- सिमसा, हेमावती और भवानी।
  • प्राचीन काव्यों में इसे पोन्नि भी कहा जाता था।

स्रोत

Indian Express

www.bbc.com

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