सोमालिया में अकाल।

सोमालिया में अकाल।

सोमालिया में अकाल।

संदर्भ- अफ्रीका के देश सोमालिया के नागरिक लम्बे समय से इस्लामिक विद्रोहियों व सरकार के बीच संघर्ष के कारण बहुत बुरी स्थिति में हैं और अब सोमालिया में अकाल से हालात अत्यधिक खराब हो गए हैं। भूख से मृत्यु दर का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। 

  • सोमालिया में लगातार  2 वर्षों से वर्षा ऋतु में बारिश की कमी के कारण सूखे की स्थिति हो गई है।
  • सूखा प्रभावित समुदायों को भोजन, पानी, आश्रय, स्वच्छता की आवश्कता है। 
  • सूखे की बदतर स्थिति के कारण देश में अकाल की घोषणा की मांग की जा रही है। जिससे वैश्विक स्तर से सहायता प्राप्त हो सके।

अकाल- अकाल, किसी विशेष क्षेत्र में भोजन की कमी को कहा जाता है जिससे भुखमरी, कुपोषण, महामारी व मृत्युदर में बढ़ोतरी हो जाती है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय से वर्षा न हुई हो। जिससे वहां की कृषि व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिसका सीधा असर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

अकाल की घोषणा- अकाल घोषित करने का निर्णय अकाल पीड़ित देश व संयुक्त राष्ट्र् द्वारा संयुक्त रूप से लिया जाता है। 

अकाल घोषित करने का निर्णय देश की सत्ता पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से हानिकारक हो सकता है,यह विरोधी पक्ष द्वारा उसे शासन में असफलता के रूप मे पेश किया जा सकता है, इसलिए वे अपने स्तर पर इस समस्या को सुलझाने का प्रयास करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भुखमरी की घोषणा उस क्षेत्र में की जाती है जहाँ लोग पर्याप्त भोजन न होने के कारम भुखमरी से मरने लगे हों। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अकाल की घोषणा के लिए निम्न शर्तों को पूरा करना चाहिए- 

  • कम से कम 20% आबादी भोजन की कमी का सामना कर रही हो।
  • कम से कम 30% बच्चे कुपोषण से पीड़ित हों।
  • प्रत्येक 10000 निवासियों में से कम से कम दो लोग प्रतिदिन भुखमरी, गंभीर भूख या इनके संयोजन के कारण मर रहे हों।

भारत में अकाल- 

भारत में कृषि का अधिकांश क्षेत्र वर्षा पर आधारित है। वर्षा के कम होने या समय पर न होने से फसल की उत्पादकता पर प्रभावित होती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था  प्रभाव पर प्रभाव पड़ता है। देश ने अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना इतिहास में कई बार किया है। भारत में 11वी से 17वी शताब्दी तक 14 बार भीषण अकाल पड़े। ब्रिटिशकाल तक आते आते अकालजनित परिस्थितियों की भयावहता बढ़ती चली गई।

स्वतंत्रता के पूर्व अकाल

1769-70 का अकाल ब्रिटिश काल का प्रथम भीषण अकाल था। इसकी भयावहता प्राकृतिक होने के साथ अंग्रेजी नीतियों के कारण भी थी क्योंकि अकाल की परिस्थितियों में भी कंपनियाँ चावल को अधिक कीमतों में बेचकर अधिक लाभ कमाने में व्यस्त थी।

1803 के उत्तर पश्चिमी प्रांतों में, 1833 व 1837 के अकालों में राहत कार्यों का सम्पूर्ण दायित्व धार्मिक संस्थाओं के भरोसे छोड़ दिया गया।

1866 में उड़ीसा में अकाल पड़ा और उस अकाल से 10 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। उड़ीसा के भयनक अकाल के बाद कैम्पबेल समिति का गठन किया गया और अकाल की भयावहता से निपटने के कारणों की जाँच की गई, इसकी रिपोर्ट में सरकारी मिशनरी को दोषी ठहराया गया।

1876-78 के अकाल ने चेन्नई, मुंबई, उत्तर प्रदेश व पंजाब को प्रभावित किया, इस अकाल में मृत्यु दर की न्यूनतम सीमा 55 लाख मानी जाती है।  अकाल की परिस्थिति से त्रस्त लोगों को सहायता न देकर ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली दरबार आयोजित किया जिसमें अत्यधिक धन बरबाद किया गया। अकाल व्यवस्था की जांच के लिए स्ट्रेची आयोग की स्थापना की गई , जिसमें समर्थ लोगों को काम देना, असमर्थ लोगों को सहायता देना, प्रत्येक प्रांत में अकाल निधि की स्थापना करने, विभिन्न स्थानों में नहरें व रेलवे सेवा की सिफारिश की गई।

1942-43 का अकाल बंगाल में 1938 से फसल के उत्पादन में कमी और द्वितीय विश्व युद्ध की परिस्थितियाँ थी। इस प्रकार ब्रिटिश काल में अकाल का कारण प्राकृतिक होने से अधिक अपर्याप्त राहत उपाय थे। 

स्वतंत्रता के पश्चात अकाल

स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने प्रथम पंचवर्षीय योजना में हरित क्रांति लाकर आर्थिक स्थिति को सुधारने का सफल प्रयास किया।

1965-66 का अकाल ऐसी परिस्थिति में आया जब भारत सरकार ने कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हुए इसे भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा था, ऐसे में द्वितीय विश्व युद्ध और बिहार में सूखे की परिस्थिति ने देश में आर्थिक गतिरोध उत्पन्न किया। इस समय यूनाइटेड स्टेट्स ने 9 लाख टन अनाज भारत को आबंटित किया था।

इसी प्रकार 1970-73 में महाराष्ट्र, 1979-80 में पश्चिम बंगाल व 2013 में महाराष्ट्र में सूखा पड़ा। इन परिस्थितियों के बाद देश में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता की अनुभूति हुई।

खाद्य सुरक्षा- खाद्य सुरक्षा का अर्थ प्रत्येक वयक्ति तक भोजन की पहुँच तक ही सीमित नहीं है, इसके निम्नलिखित आयाम हैं-

  • उपलब्धता(Availability)- देश में पर्याप्त अनाज का उत्पादन, आवश्यक अनाज का आयात, सरकारी अन्न भण्डारों में अनाज की उपलब्धता।
  • पहुँच(Accessibility)- खाद्य पदार्थों में भारत के प्रत्येक नागरिक की पहुँच।
  • वहनीयता(Affordability)- खाद्य पदार्थों की खरीद हेतु प्रत्येक नागरिक वहन क्षमता।

भारत में खाद्य सुरक्षा 

बफर स्टॉक- भारतीय खाद्य निगम न्यूनतम समर्थन मूल्यपर खाद्यान्न की खरीद कर विभिन्न गोदामों में इन्हें संग्रहित करता है, और राज्यों की आवश्यकता के अनुसार राज्य सरकारों को आबंटित करता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली – वर्तमान में वितरण के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को गेहूँ, चावल, चीनी आदि आबंटित किया जाता है। कोरोना महामारी के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा अनाज का भरपूर आबंटन किया गया, किंतु असंगठित क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों के खाद्य व्यवस्था का एक भयानक संकट सामने आया। इस समस्या से भविष्य में निपटने के लिए One Nation One Ration Card योजना का प्रारंभ किया गया। ताकि प्रवासी नागरिकों को आधार कार्ड के माध्यम से राशन प्राप्त किया जा सकेगा।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में संसद द्वारा पारित किया गया।
  • इस अधिनियम का प्रयोजन भारत के प्रत्येक नागरिक तक गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु पर्याप्त खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और पौषणिक सुरक्षा प्नदान करना है।
  • इसके द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा ग्रामीण क्षेत्र की 75% आबादी व शहरी क्षेत्र की 50% आबादी कवर की जाएगी।
  • इसके द्वारा शिशु के जन्म के 6 माह बाद भोजन के अतिरिक्त मातृत्व लाभ का प्रावधान है। 
  • खाद्य सुरक्षा के अधीन भोजन की आपूर्ति न कर सकने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ता प्राप्त किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान किए गए हैं।

स्रोत

https://indianexpress.com/article/explained/explained-global/somalis-are-dying-of-hunger-but-why-no-famine-declaration-8281397/

https://dfpd.gov.in/nfsa-act-hi.htm

https://www.downtoearth.org.in/hindistory/

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