सौर ऊर्जा : भारत में टीकाकरण अभियान में मददगार

सौर ऊर्जा : भारत में टीकाकरण अभियान में मददगार

सौर ऊर्जा : भारत में टीकाकरण अभियान में मददगार

चर्चा मेंदूरदराज के इलाकों में टीकों को स्टोर करने के लिए एक मजबूत मेडिकल कोल्ड चेन लोगों के लिए जीवन रक्षक साबित हो रही है।

शीत श्रृंखला (Cold Chain)- एक कोल्ड चेन आवश्यक तापमान पर वांछित आपूर्ति श्रृंखला है, यह कम तापमान पर वस्तुओं सुरक्षित रखती है। एक अटूट कोल्ड चेन संबंधित उपकरणों और रसद के साथ-साथ प्रशीतित उत्पादन, भंडारण और वितरण गतिविधियों की एक निर्बाध श्रृंखला है, जो वांछित निम्न-तापमान सीमा के माध्यम से गुणवत्ता बनाए रखती है। इसका उपयोग ताजा कृषि उत्पाद, दवा उत्पाद, समुद्री जीव, फोटोग्राफिक उपकरण आदि के सामान्य जीवन या शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जाता है।

मोबाइल मैकेनिक रैफ्रीजरेशन का आविष्कार फेरैडरिक मैकिनले जोंस ने किया इससे जोंस ने जल्द खराब होने वाले सामान के ट्रकों के लिए पोर्टेबल एयर कूलिंग यूनिट तैयार की। 12 जुलाई 1940 को इसके लिए उन्हें पेटेंट भी मिल गया।

1950 के दशक से यह तकनीक उपयोग में रही, पशु आधारित कोशिकाओं के संरक्षण के लिए, कैंसर के उपचार के लिए और अब कोविड टीकाकरण हेतु टीके को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन की आवश्यकता बढ़ी है। 

टीकाकरण के लिए कोल्ड चेन- दुनिया के सभी कोनों में टीके पहुंचाना एक जटिल उपक्रम है। इन जीवन रक्षक उत्पादों के भंडारण, प्रबंधन और परिवहन के लिए तापमान नियंत्रित वातावरण में सटीक रूप से समन्वित घटनाओं की एक श्रृंखला लेता है। इसे कोल्ड चेन कहते हैं। टीकों को एक सीमित तापमान सीमा में उनके निर्माण के समय से लेकर टीकाकरण के क्षण तक लगातार संग्रहित किया जाना चाहिए । क्योंकि बहुत अधिक या बहुत कम तापमान टीके को अपनी शक्ति (बीमारी से बचाने की क्षमता) को खोने का कारण बन सकता है। एक बार जब कोई टीका अपनी शक्ति खो देता है, तो उसे पुनः प्राप्त या बहाल नहीं किया जा सकता है।

टीकों को आवश्यक तापमान में बनाए रखने के लिए रेफ्रीजरेटर बॉक्स में रखा जाता है। इन्हें संग्रहित करने के लिए ठण्डे कमरों(cold storage) में रखा जाता है। भंडारण सुविधाओं से लेकर गांव के स्तर तक, स्वास्थ्य कार्यकर्ता कोल्ड बॉक्स और वैक्सीन कैरियर में टीके ले जाते हैं, कार, मोटरसाइकिल, साइकिल, गधे, ऊंट या पैदल यात्रा करके हर आखिरी बच्चे का टीकाकरण करते हैं, यहां तक ​​कि गांवों के सबसे दूरस्थ क्षेत्र में भी टीकाकरण आवश्यक रूप से किया जाता है। 

शीत श्रृंखला उपकरण का रखरखाव- 

  • कम से कम15 से 20 सेमी की खुली जगह चारो तरफ रहनी चाहिए ,जिससे चारो तरफ हवा का प्रवाह बना रहे। 
  • बिना वोल्‍टेज स्‍टेब्‍लाइजर के किसी भी शीत-श्रृंखला को चालू नही करना चाहिए।
  • बिजली का प्‍लग उपकरण केपास ही लगा हो ओर कही भी तार,  पिन अथवा सर्किट, ढीला न हो अन्‍यथा शोर्ट सर्किट होकर आग लग सकती है।
  • उपकरणो को हमेशा समतल  जगह पर रखने चाहिए, जिससे कू‍लिंग गैस का प्रवाह सुचारू रूप से हो  हो सके तो एक लकडी के तख्‍ते पर उपकरण को रखे, जिससे फर्श की नमी उपकरण को नुकसान न पहुंचायें।

 अतः शीत श्रृंखला के लिए बिजली की उतनी ही आवश्यकता है। जितनी टीकाकरण के लिए शीत श्रृंखला की। भारत में लगातार हो रही बिजली की कटौती के कारण टीकाकरण करना चुनौतीपूर्ण रहा है। पिछले वर्ष बिजली की उचित व्यवस्था न होने के कारण वैक्सीन भारी मात्रा में बरबाद हो गई थी। 

इसका तत्कालीन समाधान संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और जापान सरकार द्वारा दी गई सहायता से कई गांवों में सौर ऊर्जा द्वारा प्रचालित रेफ्रजरेशन यूनिट संसाधन  के रूप में किया जा रहा है। अब तक 27 ऐसी यूनिट स्थापित की जा चुकी हैं जिनकी लागत लगभग $ 9.3 मिलियन है।

सौर ऊर्जा- पृथ्वी पर सबसे प्रचुर और स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है। एक घंटे में पृथ्वी की सतह से टकराने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा लगभग उतनी ही होती है जितनी एक वर्ष में सभी मानवीय गतिविधियों के लिए आवश्यक होती है। सौर ऊर्जा का मुख्य रूप से तीन तरीकों से उपयोग किया जा सकता है, 

  • पीवी कोशिकाओं के माध्यम से सूर्य के प्रकाश का बिजली में प्रत्यक्ष रूपांतरण, 
  • सौर ऊर्जा (सीएसपी) को केंद्रित करना और हीटिंग और कूलिंग (एसएचसी) के लिए सौर तापीय संग्राहक। 
  • भारत प्रचुर मात्रा में सौर ऊर्जा से संपन्न है, जो 5,000 ट्रिलियन किलोवाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम है। 

यूनिसेफ के लिए काम करने वाले स्वास्थ्य विशेषज्ञ अनिल अग्रवाल ने कहा,“सौर डायरेक्ट ड्राइव (एसडीडी) रेफ्रिजरेशन सिस्टम सौर ऊर्जा द्वारा प्रदान की जाने वाली बिजली पर चलते हैं। वे राष्ट्रीय ग्रिड से बिजली की आवश्यकता के बिना, अपने उचित तापमान पर टीके रख सकते हैं। “विभिन्न गैर-बैटरी-आधारित तकनीकों का उपयोग करके बिजली का भंडारण किया जाता है।”

देश में एक वर्ष में लगभग 300 धूप वाले दिन और 4-7kWh प्रति वर्गमीटर का सौर सूर्यातप होता है। यदि इस ऊर्जा का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाता है, तो यह हमारे ऊर्जा घाटे के परिदृश्य को बिना कार्बन उत्सर्जन के आसानी से कम कर सकती है । भारत में कई राज्यों ने पहले ही सौर ऊर्जा क्षमता को पहचाना और अन्य स्वच्छ और चिरस्थायी सौर ऊर्जा के साथ अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार हैं। निकट भविष्य में भारत की ऊर्जा मांग को पूरा करने में सौर ऊर्जा की बड़ी भूमिका होगी।

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 5thSeptember

 

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