स्वामी दयानंद सरस्वती

स्वामी दयानंद सरस्वती

  • भारत में 19वीं शताब्दी का काल सामाजिक-धार्मिक पुनर्जागरण का समय माना जाता है। इस काल में कई महान समाज सुधारक हुए जिन्होंने तत्कालीन समाज को एक नई दिशा दी और जिनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। इनमें स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम बहुत प्रमुखता से लिया जाता है।
  • उन्होंने न केवल तत्काल सामाजिक-धार्मिक आंदोलन को आगे बढ़ाया, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद को जगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम अम्बा शंकर तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरु विरजानंद स्वामी थे। 21 साल की उम्र में स्वामी दयानंद सरस्वती ने संन्यास का रास्ता चुना और उसके बाद देश और समाज की सेवा करने लगे।
  • 19वीं सदी के भारत में पाखंड और मूर्तिपूजा बड़े पैमाने पर थी। इसके साथ ही उस समय समाज में कई अन्य सामाजिक बुराइयां भी मौजूद थीं।
  • गुरु विरजानंद से दीक्षा लेने के बाद स्वामी दयानंद सरस्वती ने वैदिक शास्त्रों का प्रचार करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने पूरे भारत की यात्रा करते हुए तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।
  • उन्होंने न केवल बाल विवाह और सती प्रथा का पुरजोर विरोध किया, बल्कि लोगों को विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा के लिए भी जगाया।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया और संप्रदाय और वर्ण के आधार पर सामाजिक विभाजन को खारिज करते हुए सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाने की कोशिश की। उन्होंने समाज में समानता का बहुत समर्थन किया।
  • स्वामीजी ने सभी धर्मों के मूल ग्रंथों का अध्ययन किया और उनमें मौजूद बुराइयों का खुलकर विरोध किया। उन्होंने जो कुछ भी गलत पाया उसका उन्होंने विरोध किया; चाहे वह ईसाई धर्म में हो, मुस्लिम धर्म में हो या फिर सनातन धर्म में ही हो।
  • मूर्ति पूजा के विरोधी स्वामी दयानंद सरस्वती एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि अगर गंगा में स्नान करके, सिर मुंडवाकर और राख को रगड़कर स्वर्ग प्राप्त किया जा सकता है, तो मछली, भेड़ और गधा स्वर्ग के पहले अधिकारी होंगे।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों में निहित ज्ञान को सबसे ऊपर, प्रामाणिक और अकाट्य माना है। वेदों के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया।
  • इसके साथ ही उन्होंने एक सुधारवादी और प्रगतिशील समाज की स्थापना के लिए 1875 में आर्य समाज की स्थापना की।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए ऋग्वेददी भाष्य-भूमिका, ग्रंथ वेदभाष्य और सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथों की रचना की। इसमें सत्यार्थ प्रकाश काफी लोकप्रिय हुए।
  • भारतीय राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहे स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस बात की पुरजोर वकालत की कि “विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
  • गौरतलब है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘स्वराज्य’ को जगाने का श्रेय स्वामी दयानंद सरस्वती को जाता है। जिसे बाद में बाल गंगाधर तिलक ने आगे बढ़ाया और “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा दिया।
  • ऐसा माना जाता है कि स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों ने 1857 के विद्रोह में प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम किया। इससे ब्रिटिश सरकार नाराज हो गई और परिणामस्वरूप एक साजिश रची गई जिसमें उन्हें जहर देकर मार दिया गया।
  • इस प्रकार भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रवाद के अग्रदूत स्वामी दयानंद सरस्वती इस दुनिया से हमेशा के लिए चले गए, लेकिन उनके विचारों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने आगे बढ़ाया और वे आज भी भारतीय समाज का मार्गदर्शन करते हैं।

yojna ias daily current affairs 15 feb 2022 hindi

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