06 Jan हल्द्वानी अतिक्रमण केस
हल्द्वानी अतिक्रमण केस
संदर्भ- 5 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी से रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को जमीन से बेदखल करने वाले उच्च न्यायालय नैनीताल के फैसले पर रोक लगा दी है।
- उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर लगभग 70 साल से लोग निवास कर रहे हैं।
- उच्च न्यायालय जनहित याचिका पर ध्यान देते हुए रेलवे की जमीन पर वर्षों से अतिक्रमण को हटाने के निर्देश दिए हैं। उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार जिला प्रशासन व रेलवे, जमीन से बेदखली के लिए अर्धसैनिक बलों का प्रयोग कर सकती थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले पर रोक लगाते हुए, वर्षों से वहां रह रहे लोगों के पुनर्वास का उल्लेख भी किया है।
हल्द्वानी-
- हल्द्वानी उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में स्थित एक नगर है, जो उत्तराखण्ड का दूसरा सबसे बड़ा नगर है।
- हल्द्वानी नगर के काठगोदाम को कुमाऊँ मण्डल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
- काठगोदाम(हल्द्वानी) में रेलवे का आगमन अंग्रेजों के काल में हुआ था। सर्वप्रथम 24 अप्रैल 1884 को काठगोदाम रेलवे स्टेशन में पहली रेल पहुँची थी।
- यह पहाड़ी क्षेत्र को मैंदान से जोड़ने वाला अंतिम स्टेशन है।
अतिक्रमण मामलों पर वैधानिक कानून
सार्वजनिक परिसर विधेयक के अनुसार अतिक्रमण करने वाले को-
- केंद्र सरकार के किसी अधिकारी द्वारा कारण बताओं नोटिस जारी किया जाएगा जिसमें उसे तीन कार्य दिनों के भीतर स्थान से क्यों न हटाया जाए इसका जवाब देना होगा।
- कारण बताओ नोटिस के उत्तर की जाँच के बाद ही एस्टेट ऑफिसर उसे बेदखली का आदेश दे सकता है।
- आदेश की अवमानना पर बलपूर्वक क्षेत्र को सरकार अधिकृत कर सकती है।
- न्यायालय के आदेश को चुनौती देने की स्थिति में व्यक्ति, उस स्थान के हर महीने होने वाले नुकसान की भरपाई करेगा।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकार व प्रादर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013
- यह अधिनियम निजी सम्पत्ति के लिए लागू होता है, सरकारी सम्पत्ति के लिए नहीं।
- भूमि अधिग्रहण से तात्पर्य, जब सरकार सार्वजनिक हित कोध्यान में रखते हुए क्षेत्र के बुनियादी विकास के लिए नियमानुसार नागरिकों की निजी भूमि या सम्पत्ति का अधिग्रहण करती है।
- सहमति की आवश्यकता- निजी क्षेत्र की परियोजना के लिए 80% और सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजना के लिए 70% भूमि मालिकों की सहमति की आवश्यकता है।
- मुआवजा व पुनर्वास- शहरी क्षेत्र की भूमि के लिए 4 गुना व ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2 गुना मुआवजा अदा करने का प्रावधान है।
- विवाद निवारण- विवाद होने पर अधिसूचना के 60 दिन के भीतर संबंधित कलेक्टर के पास बात तख सकता है, जिसका निवारण कलेक्टर द्वारा ही किया जाएगा।
अतिक्रमण निषेध नियमावली 2016 (उत्तराखण्ड)
2016 में सरकार ने राज्य की मलीन बस्तियों के पुनर्वास व नियमितीकरण के साथ अतिक्रमण निषेध नियमावली 2016 जारी की थी। यहाँ मलीन बस्ती से अभिप्राय, नागर निकायों में अवस्थित ऐसे क्षेत्र से है जहां अत्यधिक घनत्व, अनियोजित निर्माण, मूलभूत सुविधाओं एवं भौमिक अधिकारों के अभाव के कारण जहां स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दृष्टि से मानव बसावट अनुपयुक्त हो तथा जो उपरोक्त एक या एक से अधिक कारकों के फलस्वरूप राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किये गये हों।
जबकि kafaltree.com के अनुसार यहां 4365 परिवारों के लगभग 50000 लोग निवास करते हैं। इसमें प्राथमिक व माध्यमिक सरकारी स्कूल, अस्पताल, बैंक, पीडबल्यूडी की सड़कें आदि हैं।
आगे की राह
- अतिक्रमण क्षेत्र में रह रहे लोगों को वहां से हटाने की व्यवस्था मानवीय दृष्टिकोण से की जानी चाहिए, जिसमें उनके पुनर्वास की व्यवस्था शामिल हो।
- यदि उस क्षेत्र पर रहने वाले लोगों का अधिकार उस क्षेत्र में साबित होता है तो विकास की दृष्टि से उस क्षेत्र को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकार व पार्दर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के अनुसार वहां से प्रतिस्थापित करना चाहिए।
स्रोत
https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/4473/1/slum_area_2016.pdf
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