हिमालयी जल विद्युत परियोजनाएं

हिमालयी जल विद्युत परियोजनाएं

हिमालयी जल विद्युत परियोजनाएं

स्रोत- हाल ही में उत्तराखण्ड राज्य के जोशीमठ में निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजना की गतिविधियों का हिमालयी क्षेत्रवासियों के आवासों पर संकट आ गया है। इस संकट के कारण हिमालयी जल विद्युत परियोजनाओं पर पुनर्विचार किया जा रहा है।

जल विद्युत- 

  • भारत में जल विद्युत या पनबिजली को ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत माना गया है। नवीकरणीय स्रोत वे ऊर्जा स्रोत होते हैं जिनका प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन होता रहता है। 
  • पनबिजली संयंत्र पानी की गतिज ऊर्जा द्वारा संचालित होता है। इसमें किसी बहते पानी के स्रोत जैसे नदी को आवश्यकता अनुसार (बांध बनाकर) दिशा देकर प्रवाहित किया जाता है। 
  • बिजली का उत्पादन जलचक्र की अंतहीन क्रिया पर निर्भर करती है, जिसमें पानी को उच्च गति देने के लिए ऊँचे बांध से पानी को नीचे की ओर प्रवाहित किया जाता है।
  • पानी की गतिज ऊर्जा का प्रयोग टरबाइन के शाफ्टों को घुमाने के लिए किया जाता है। जिससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।
  • भारत में 2022 में वार्षिक रूप से 86850 मेगावाट संस्थापित जल विद्युत ऊर्जा आंकी गई थी। वर्तमान 11137.50 मेगावाट की 30 बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं हिमालयी राज्यों में विकसित की जा रही हैं।
  • इस जल विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के लिए सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत यानि किसी जल स्रोत का होना आवश्यक है, और हिमालय भारत समेत कई देशों जैसे चीन, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान आदि देशों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत उपलब्ध कराता है।

भारत में हिमालयी जल विद्युत परियोजनाओं के दुष्प्रभाव

भारत में 10 हिमालयी राज्य हैं- असम, नागालैण्ड, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणांचल प्रदेश और मिजोरम। इन हिमालयी राज्यों में कार्बन मुक्त ऊर्जा के उत्पादन के लिए अनियमित रूप से परियोजनाएं स्थापित की जा रही हैं। जिसके कारण हिमालय की पारिस्थितिकी पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

(1) भू धंसाव- 

भूमिगत सामग्री के संचलन के कारण ये परिघटना हो सकती है। जिसमें जमीन की एक सतह धंस जाती है। भूमि धंसाव बहुत बड़े क्षेत्रों जैसे राज्यों, जिलों, शहरों में हो सकता है। यह प्राकृतिक या मानव निर्मित किसी भी प्रकार की गतिविधियों के कारण हो सकता है। उत्तराखण्ड के जोशीमठ में भूधंसाव की घटना हिमालयी क्षेत्रों में विदियुत परियोजनाओं के निर्माण के दुष्प्रभावों का ज्वलंत उदाहरण है। इससे पहले भी 2007 में विष्णु प्रयाग जल विद्युत परियोजना के कारण च्यांई गांव में भूधंसाव देखा गया था।

(2) हिमस्खलन- 

किसी ढलान वाले क्षेत्र में ऊपरी सिरे से बड़ी मात्रा में हिम के बहाव को हिमस्खलन कहते हैं, यह अपने साथ ढलान के हिम को भी स्खलित करता है जिससे यह हिम का प्रवाह एक आपदा का रूप ले लेता है। 2021 में उत्तराखण्ड के ऋषिगंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में बड़ी मात्रा में हिमस्खलन हुआ जिसके कारण ऋषिगंगा में बाढ़ आई और धौलीगंगा नदी पर 5200 मेगा वाट की विद्युत परियोजना नष्ट हो गई, जिसमें लगभग 200 व्यक्ति लापता हो गए।

(3) वन भूमि का अधिग्रहण- 

परियोजनाओं के लिए वनों का अधिग्रहण किया जाता है जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। हिमांचल प्रदेश के अध्ययन के अनुसार किन्नौर में 21 प्रजाति के 11958 पेड़ों को परियोजना के निर्माण के लिए गिराया गया जो पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण थे। जिससे देवदार, चिलगोजा पाइंस जेसे दुर्लभ अनेक प्रजातियाँ नष्ट होने के कगार पर हैं।

(4) पुनर्वास की समस्या

मानव को पुनर्वास का सामना करना पड़ा है जिससे उनके पुनः स्थापित होने से उनके ऐतिहासिक व सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण होता है। जैसे टिहरी बांध के निर्माण के कारण समस्त टिहरी राजवंश की ऐतिहासिक विरासत नष्ट हो गई। 

आगे की राह

  • माइक्रो हाइड्रो सिस्टम- यह हाइड्रो इलैक्ट्रिक पावर जनरेशन सिस्टम है जो 100 किलोवॉट तक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है। यह बड़े संयंत्रों का लघु रूप होता है जिनका संरक्षण व दोहन छोटे स्तर पर होता है लेकिन इसके दुष्प्रभाव अत्यंत कम होते हैं। 
  • परियोजना के दुष्प्रभावों का आंकलन करने के बाद ही परियोजना का निर्माण किया जाना चाहिए। 
  • इकॉलॉजिकल सेंसिटिव जोन की पहचान कर ऐसे क्षेत्रों में परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

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