भारत में रोज़गार संकट के व्यापक आर्थिक कारण/ भारत में व्याप्त बेरोजगारी

भारत में रोज़गार संकट के व्यापक आर्थिक कारण/ भारत में व्याप्त बेरोजगारी

(यह लेख ‘द इकॉनोमी टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ , ‘ऑक्सफ़ोम इंडिया’, ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’, ‘ द हिन्दू’, ‘ जनसत्ता ’ मासिक पत्रिका ‘वर्ल्ड फोकस’ और ‘पीआईबी ’ के सम्मिलित संपादकीय के संक्षिप्त सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विशेषकर ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था , रोज़गार, वृद्धि एवं विकास, गरीबी, शिक्षा, कौशल – विकास, मानव संसाधन, भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी, बेरोज़गारी के प्रकार’ खंड से संबंधित है। यह लेख ‘दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में रोज़गार संकट के व्यापक आर्थिक कारण/ भारत में व्याप्त बेरोजगारी ’  से संबंधित है।)

सामान्य अध्ययन-III – भारतीय अर्थव्यवस्था , रोज़गार, वृद्धि एवं विकास, गरीबी, शिक्षा, कौशलविकास, मानव संसाधन भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी, बेरोज़गारी के प्रकार।

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में कृषि और कृषि से संबंधित क्षेत्रों में कम लोग कार्यरत हैं, इसके वाबजूद बेरोजगारी – दर में भी परिवर्तन कमज़ोर रहा है।

  • कृषि कार्य को छोड़ने वाले लोग कारखानों की तुलना में निर्माण स्थलों और असंगठित क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में अधिक संख्या में काम कर रहे हैं।

भारत में बेरोजगारी दर : ऐतिहासिक डेटा 

भारत में पिछले 10 या 15 सालों के बेरोजगारी दर का आंकड़ा निम्नलिखित है जो इस चार्ट / ग्राफ से समझा जा सकता है – 

 

वर्ष बेरोजगारी दर (प्रतिशत)
2023 10.05 (अक्टूबर में)*
2022 7.33
2021 5.98
2020 8.00
2019 5.27
2018 5.33
2017 5.36
2016 5.42
2015 5.44
2014 5.44
2013 5.42
2012 5.41
2011 5.43
2010 5.55
2009 5.54
2008 5.41

स्रोतः सीएमआईई

भारत में वर्तमान बेरोजगारी – दर को मापने का तरीका : 

भारत में वर्तमान बेरोजगारी – दर को मापने का वर्तमान में निम्नलिखित तरीका है – 

  • भारत में पिछली और वर्तमान बेरोजगारी दर एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जिसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है जो मौजूदा आर्थिक स्थितियों के आधार पर भिन्न होता है।
  • आर्थिक मंदी के दौरान जब नौकरी के अवसर कम हो जाते हैं, तो बेरोजगारी बढ़ने लगती है। इसके विपरीत, आर्थिक विकास और समृद्धि की अवधि के दौरान, जनता के लिए नौकरी के कई अवसर उपलब्ध होने के कारण, बेरोजगारी दर में गिरावट की उम्मीद है।
  • भारत में वर्तमान बेरोजगारी दर की गणना करने का सूत्र इस प्रकार है:
  • बेरोजगारी दर = बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या/नागरिक श्रम बल

या,

         बेरोजगारी दर = बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या / (रोजगार व्यक्तियों की संख्या + बेरोजगार    व्यक्तियों की संख्या)

बेरोजगार के रूप में वर्गीकृत होने के लिए, किसी व्यक्ति को विशिष्ट मानदंडों को पूरा करना होगा:

  • उनकी आयु कम से कम 16 वर्ष होनी चाहिए और पिछले चार सप्ताहों में पूर्णकालिक काम के लिए उपलब्ध होना चाहिए।
  • उन्हें इस अवधि के दौरान सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश करनी चाहिए।
  • कुछ अपवादों में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जिन्हें अस्थायी रूप से नौकरी से हटा दिया गया है और वे सक्रिय रूप से अपनी पिछली नौकरियों में फिर से शामिल होना चाह रहे हैं।

बेरोजगारी के प्रकार : 

प्रच्छन्न बेरोज़गारी:

  • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
  • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।

मौसमी बेरोज़गारी:

  • यह बेरोज़गारी वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
  • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी:

  • यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।

चक्रीय बेरोज़गारी:

  • यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।

तकनीकी बेरोज़गारी:

  • यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण रोज़गार में आई कमी है।

घर्षण बेरोज़गारी:

  • घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियाँ बदल रहा होता है, यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।

सुभेद्य रोज़गार:

  • इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
  • इन व्यक्तियों को ‘बेरोज़गार’ माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी नहीं बनाया जाता है।

कृषि क्षेत्र में रोज़गार:

  • वर्ष 1993-94 में कृषि देश की नियोजित श्रम शक्ति का लगभग 62% थी।
  • कृषि में श्रम प्रतिशत (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर) वर्ष 2004-05 तक लगभग 6% अंक और अगले सात वर्षों में 9% अंक गिर गया था।
  • श्रम प्रतिशत में यह गिरावट की प्रवृत्ति बाद के सात वर्षों में भी धीमी गति से जारी रही।
  • वर्ष 1993-94 और वर्ष 2018-19 के बीच भारत के कार्यबल में कृषि की हिस्सेदारी 61.9% से घटकर 41.4% हो गई।
  • यह अनुमान है कि वर्ष 2018 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद स्तर के अनुसार, भारत के कृषि क्षेत्र में कुल कार्यबल का 33-34% कार्यरत होना चाहिए ।
  • इस प्रकार , यह 41.4% औसत कार्यबल से पर्याप्त विचलन को नहीं दर्शाता है।

भारत में रोज़गार की प्रवृत्ति:

कृषि:

प्रवृत्ति का उत्क्रमण:

  • इस प्रवृति में पिछले दो वर्षों में लगातार बदलाव आया है, जिससे वर्ष 2020-21 में कृषि में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 44-45% हो गई है।
  • यह मुख्य रूप से कोविड-प्रेरित आर्थिक व्यवधानों से संबंधित है।

संरचनात्मक परिवर्तन:

  • पिछले तीन दशकों या उससे अधिक समय में भारत में कृषि से श्रम का जो पलायन देखा गया वह उस योग्य नहीं है जिसे अर्थशास्त्री “संरचनात्मक परिवर्तन” कहते हैं।
  • संरचनात्मक परिवर्तन में कृषि से श्रम का स्थानांतरण उन क्षेत्रों, विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं जहाँ उत्पादकता, मूल्यवर्द्धन तथा औसत आय अधिक है, में होना शामिल है।
  • कृषि के साथ ही विनिर्माण (और खनन) जैसे क्षेत्रों में भी कुल रोज़गार में से इनका भी हिस्सा कम हुआ है।
  • कृषि से अधिशेष श्रम को बड़े पैमाने पर निर्माण और सेवाओं में समाहित किया जा रहा है।
  • भारत में संरचनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया कमज़ोर और दोषपूर्ण रही है।
  • कोविड के कारण अस्थायी रूप से ठप होने के बावजूद कृषि से अलग क्षेत्रों में मजदूरों की आवाजाही जारी तो है, लेकिन वह अधिशेष श्रम उच्च मूल्यवर्द्धित गैर-कृषि गतिविधियों विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं की ओर नहीं बढ़ रहा है।
  • श्रम हस्तांतरण कम उत्पादकता वाली अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के भीतर हो रहा है।

सेवा क्षेत्र:

  • सेवा क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी, व्यवसाय प्रक्रिया, आउटसोर्सिंग, दूरसंचार, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और लोक प्रशासन जैसे अपेक्षाकृत अच्छी तरह से भुगतान करने वाले उद्योग शामिल हैं।
  • अधिकांश नौकरियाँ छोटी खुदरा बिक्री, छोटे भोजनालयों, घरेलू मदद, स्वच्छता, सुरक्षा स्टाफ, परिवहन और इसी तरह की अन्य अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियां सेवा क्षेत्र के रोजगार  से संबंधित हैं।
  •  जिन्हें 10 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाले के रूप में परिभाषित किया गया है , जैसे संगठित उद्यमों में रोज़गार के कम हिस्से से भी स्पष्ट है, कि भारत में रोजगार की स्थिति दयनीय है।

सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रोज़गार के बढ़ते अवसर:

  • वर्ष 2020-22 के बीच भारत की शीर्ष पाँच आईटी कंपनियों (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ और टेक महिंद्रा) में संयुक्त कर्मचारियों की संख्या55 लाख से बढ़कर 15.69 लाख हो गई है।
  • कोविड महामारी के बाद की अवधि में यह 4.14 लाख या लगभग 36% की वृद्धि है, जब कृषि को छोड़कर अधिकांश अन्य क्षेत्र नौकरियों और वेतन में कमी कर रहे थे।
  • इन पाँच कंपनियों में संयुक्त रोज़गार की संख्या, भारतीय रेलवे और तीन रक्षा सेवाओं के संयुक्त रोज़गार की तुलना में अधिक हैं।
  • आईटी क्षेत्र में हाल की अधिकांश सफलता निर्यात के परिणामस्वरूप है, जिससे रोजगार सृजन हुआ है ।
  • भारत का सॉफ्टवेयर सेवाओं में शुद्ध निर्यात वर्ष 2019-20 में 84.64 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 109.54 बिलियन डॉलर हो गया है। जो अनेक प्रकार से रोजगार सृजन के मुद्दे से भी जुड़ा है।

बेरोज़गारी पर अंकुश लगाने हेतु संभावित उपाय:

कृषि में संलग्न श्रमिकों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना:

  • सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में संलग्न कार्यबल के कौशल को बढ़ाने वाली योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • कृषि क्षेत्र में कौशल तथा ज्ञान को बढ़ावा देने से यह दोहरा लाभ प्रदान करेगा और साथ – ही – साथ यह श्रमिकों को रोज़गार के अन्य बेहतर क्षेत्रों की तलाश करने में मदद करेगा।

श्रम-गहन/ श्रम आधारित  उद्योगों को बढ़ावा देना:

  • भारत में कई श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र हैं जैसे- खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के उत्पाद एवं फर्नीचर, परिधान, टेक्सटाइल व वस्त्र आदि।
  • रोज़गार सृजित करने के लिये प्रत्येक उद्योग को विशेष पैकेज की आवश्यकता होती है।

उद्योगों का विकेंद्रीकरण:

  • प्रत्येक क्षेत्र में लोगों को रोज़गार प्रदान करने के लिये औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण किया जाना आवश्यक है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र में रोज़गार पर दबाव कम होगा।

बेरोजगारी दर को कम करने के लिए सरकार की पहल:

सरकार द्वारा भारत की विशाल जनसंख्या और वर्तमान बेरोजगारी – दर को कम करने के लिए एवं बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए और अधिकतम लोगों रोजगार मुहैया करवाने के लिए निम्नलिखित पहल या योजनाएं भी चलाई जा रही है –  

  • ‘आजीविका और उद्यम के लिए सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन (स्माइल) योजना
  • पीएम दक्ष योजना
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
  • स्टार्टअप इंडिया योजना

बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए आगे की राह: 

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण सर्वेक्षण (एनएसएसओ) के अनुसार , शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए बेरोजगारी दर जनवरी-मार्च 2023 के दौरान घटकर 6.8 प्रतिशत हो गई, जो एक साल पहले 8.2 प्रतिशत थी। यह सकारात्मक विकास मौजूदा आर्थिक जटिलताओं के बीच नौकरी बाजार में संभावित बदलाव का सुझाव देता है। हालाँकि, निरंतर सतर्कता और प्रभावी नीतिगत उपाय स्थायी नौकरी वृद्धि को बढ़ावा देने और देश की भविष्य की समृद्धि को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • भारत में बेरोजगारी एक गंभीर चिंता बनी हुई है, भारत में रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जो जुलाई के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों का संदर्भ देती है , जुलाई 2023 तक भारत में कुल बेरोजगारी दर 7.95 प्रतिशत है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न : 

Q. 1 . भारत में कृषि क्षेत्र में पाए जाने वाली ऐसी बेरोजगारी जिसमें आवश्यकता से अधिक लोगों को नियोजित किया जाता है, कहलाता है ? 

(a) मौसमी बेरोजगारी। 

(b) प्रच्छन्न बेरोजगारी।

(c) संरचनात्मक बेरोजगारी।

(d) सीमांत बेरोजगारी

उत्तर – ( b ) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. बेरोजगारी और बेरोजगारी – दर से आप क्या समझते हैं ? भारत में व्याप्त बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करते हुए बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने हेतु चलाये जा रहे प्रमुख पहलों और कार्यक्रमों की चर्चा कीजिए।

 

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